Friday, December 6, 2024
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कुमाऊनी शायरी जिन्हे पहाड़ी भाषा में कुमाऊनी जोड़ कहते हैं

पहाड़ी भाषा मे पारम्परिक लोकगीत विधा

मित्रों यहाँ कुछ कुमाऊनी शायरी का संकलन करने जा रहे हैं। इन्हे पारम्परिक कुमाउनी भाषा में “जोड़” कहते हैं। प्राचीन लोकगीतों में जोड़ो का प्रयोग लोकगीतों के बीच -बीच में किया जाता था। यह कुमाऊनी लोकगीतों के अंतरों को बढ़ाने का काम भी करती है।

कुमाऊनी जोड़ का अर्थ –

जोड़ का शाब्दिक अर्थ होता है जोड़ना लेकिन कुमाऊनी भाषा मे दो लयात्मक पदों को आपस मे मिलाने को जोड़ कहा जाता है। तेज गति से गाये जाने वाले गीतों के बीच मे हल्का विराम देकर इन्हें गया जाता है। कुमाऊनी जोड़ विधा लगभग न्योली के साथ मिलती जुलती होती है। आधुनिक परिवेश में इसे कुमाऊनी शायरी भी कहते हैं ।

नीचे दिए गए कुमाउनी जोड़ यदि आपको अच्छे लगे तो शेयर अवश्य करें।
कुमाऊनी शायरी

कुमाऊनी शायरी या कुमाऊनी जोड़ –

  • माछी लै फटक मारौ, बलुवा रेतमा। तू होंसिया छाजी रए, हरिया खेतमा।
  • गाड़ तरी गधेरी तरी को रौली तरुलो, पहाड़ जनम मेरो को देशा मरुलो।
  • आस्यारी क रेट भागी आस्यारी क रेट। ऊनै रौला दिन मांसा हुनै रौली भेंट।
  • पानी को मशीक सुवा पानी को मशीक ।  तु भुलना भूली जाली , मैं भूलूँ कशिक ।
  • एक क्यारी में धणियां बोयौ, एक क्यारी में मेथी….
  • म्यर कैंलै नि हुनी सुवा यौ पहाड़ै खेती…।
  • फूली रोछ कांस बल फूली रोछ कांस,
  • यो दानी उमर बल नि ऊन साँस !!
  • ध्न्याली को दाना घट खुलो बान , क्या नै हुनी मयादरा खड्यूनी क्या नै हुनी बाना ,क्या नै हुनी बाना बखते बेमान दाज्यू नै गुड़ नै ज्ञाना…
  • मुलि जुलि रैया भागी चारदइनक कि जिंदगी …
  • भल नक यैरै जालो भागी चारदिनि कि जिंदगी।
  • नान माणी मडुवा भरो ग्यूं भरा ठुल माणी । ढिन मिना घुरी नं रौली मोत्यूं कसी दाणी  ।
  • बांसुई का बन भागि बासुई का बन ।।  तू मेरि राधिका होली में तेरो मोहन ।
  • दो तारि को तार सुवा दो तारि को तारा ।बची रैया खुशी रैया धरती की चारा ।
  • बाकर कि खुटी सुवा बाकरे कि खुटी आपुणो जोबन देखि, आफी रैछ टूटी।
  • तेल त निमड़ि गोछ बुझर्ण छ बाती ।तेरि माया ले मेड़ि दियो सरपै की भांति ।
  • तेरा गावा मूंगे की माला मेरा गावा जन्जीरा ।तेरी मेरी भेंट होली देवी का मंदीरा ।
  • रमुली तेरे प्यार में , भुभरी गया मैं बाजार में।।  तू ले आपुण घर बने ले म्यर दिलेक उड़्यार में।
  • तुमुगु देखी लरबरी गया , खो गया मैं घर बार मे। त्यर बाटा देखमु मी बांजनी को धार में।
  • तेरो मेरो साथ दगड़िया, जस दी और बात । मरी जूलो ,तरी जूलो ,नि छोड़ूलो त्यर हाथ।
  • तू पापा की परी ,मी आपुण ईजा  का लाट प्रिये।। तू होटल की मटन करी, मैं चमु पूजे का बाट प्रिये।।
  • स्वर्ग बटि सर्प छुटो पाणी की तीसल । तू बोली अबोलि भैछै कब की रीसल ।
  • सुर सुर हवा चली उड़ी कत्ति जाणी । हिय में हापसा रैगे यो किलै निजानी ।
  • सल क बुनिया सुआ सल क बुनिया। दुःख दुःख झन कयै दुखी छौ दुनिया।
  • खांणों कौ कमेट, खांणों कौ कमेट, तु भाना जल्दी ऐ गेछै, मि है गोयूं लेट ।
  • रामज्यू बन बन गया शिवजी गया कैलाशा । कैल निपाय दुख दूनी में , झन हया उदासा।
  • गाड़ की चिफली ढुंगी,को ढुंगी टेकुलौ। पहाड़ जन्म म्यरौ,को देश मरूलौ।
  • पारी भीड़ा घुरड बासो वारी भीड़ा करौली, तेरी यो जवानी तसी जे की रौली ।
  • दन्याली को दना लिपिटानी घना ।राज हरी चना ओल रोला दिन मासा मै भूलिए झना ।
  • अयोध्या में राम चन्द्र,गोकुल गोविन्द, अब हम नसि जानूं ,आंखिर जै हिन्द।
  • लगुली क लेट, कफू बासो जेठ, आनी रैना ऋतु मास, हनी रैली भेट ।
  • हली यै लै हल बोय, छम छम बोया धाना, पाली खानी चुवा पंछी, फिर खानी किसाना।

कुमाऊनी शायरी का संदर्भ –

मित्रों उपरोक्त कुमाऊनी पारम्परिक जोड़ गीतों का संकलन हमने बिक्रम सिंह भंडारी जी की फेसबुक पोस्ट “पहाड़ी जोड़” के आधार पर किया है। यदि आपको ये कुमाऊनी जोड़ या कुमाऊनी शायरी पसंद आई हो तो अपने सोशल मीडिया नेटवर्क पर शेयर अवश्य कीजिएगा।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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