Friday, March 14, 2025
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बटर फेस्टिवल उत्तराखंड – अगस्त में छास-माखन की होली वाला उत्तराखंड का अनोखा त्यौहार !

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बटर फेस्टिवल उत्तराखंड

उत्तराखंड एक प्राकृतिक प्रदेश है। यहाँ के निवासियों का और प्रकृति का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रकृति यहाँ के लोगो को एक आदर्श जीवनचर्या के लिए एक माँ की तरह सारी सुविधाएँ देती है। बदले में उत्तराखंड के निवासी समय समय पर प्रकृति की रक्षा और उसके सवर्धन से जुड़े पर्व ,उत्सव मना कर प्रकृति के प्रति अपना आभार प्रकट करना नहीं भूलते। प्रकृति माँ के प्रति आभार प्रकट करने का उत्सव है अंढूड़ी उत्सव, या बटर फेस्टिवल (butter festival)

बटर फेस्टिवल उत्तराखंड
फ़ोटो साभार सोशल मीडिया

उत्तरकाशी में रैथल ग्रामवासी , मखमली बुग्याल दायरा में भाद्रपद की संक्रांति को अपने मवेशियों के ताजे दूध ,दही , मठ्ठा और मक्खन प्रकृति को अर्पित करके उत्सव मनाते हैं। जिसे अंढूड़ी उत्सव या बटर फेस्टिवल (butter festival ) कहते हैं ।

गर्मियां शुरू होते ही रैथल के ग्रामीण अपने अपने मवेशियों को लेकर दायरा बुग्याल पहुंच जाते हैं। दायरा बुग्याल समुद्रतल से 11000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। और यह बुग्याल 28 वर्ग किलोमीटर में फैला हुवा है। रैथल के  ग्रामीण दायरा बुग्याल और ,गोई ,चिलपाड़ा में बनी अपनी छानियों में ग्रीष्मकाल में निवास के लिए अपने मवेशियों को वहाँ पंहुचा देते हैं। बुग्यालों की मखमली और औषधीय घास और अनुकूलित वातावरण से मवेशियों का दुग्ध उत्पादन बढ़ने के साथ औषधीय गुणों से युक्त हो जाता है। अगस्त अंतिम सप्ताह और सितम्बर से पहाड़ों में ठण्ड का आगमन हो जाता है।

ठण्ड बढ़ने से पहले सभी गावंवासी अपने-अपने मवेशियों को वापस अपने घरों को लाने के लिए जाते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि लगभग 5 माह प्रकृति उनके पशुधन की रक्षा और पालन पोषण करती है। पशुधन को घर लाने से पहले ,वे प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए इस उत्सव का आयोजन करते हैं। लोगो  का मानना है कि ,प्रकृति के इस खूबसूरत बुग्याल के कारण उनके पशु  गुणवत्ता युक्त दूध का उत्पादन कर रहे हैं। इ

सलिए उस गुणवत्ता युक्त उत्पादन का कुछ भाग प्रकृति को चढ़ा कर , प्रकृति की गोद में खुशियां मनाकर प्रकृति और सर्वशक्तिमान ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहिए। बटर फेस्टिवल ( butter festival ) अंढूड़ी उत्सव प्रतिवर्ष भाद्रपद की संक्रांति यानि 16 -17 अगस्त को मनाया जाता है।

बटर फेस्टिवल उत्तराखंड
फोटो साभार – सोशल मीडिया

कैसे मानते हैं बटर फेस्टिवल (how to Butter festival Uttarakhand )

पशुधन के घर आने की ख़ुशी में बटर फेस्टिवल (अंढूड़ी उत्सव ) के दिन ग्रामीण अपने  घरों को सजाते हैं। butter festival  की तैयारियां हफ़्तों पहले से शुरू हो जाती हैं। लोग अपने संबंधियों को butter festival के लिए आमंत्रित करते हैं। इस उत्सव के दिन लोग दूध दही , ढोल -दमाऊ आदि पारम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ दायरा बुग्याल पहुंच जाते हैं। वहां एक दूसरे पर दूध मट्ठा फेक कर , और एक दूसरे को मक्खन लगाकर मक्खन की होली  मनाई जाती है। महाराष्ट्र की जन्माष्टमी की तरह दही हांड़ी उत्सव का आयोजन भी किया जाता है।

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ब्रज की होली की तरह राधा -कृष्ण बने पात्र आपस में मक्खन की होली खेलते हैं। पारम्परिक पहनावे के साथ ,पारम्परिक लोक संगीत का आयोजन किया जाता है। पारम्परिक लोक गीत रासो का आयोजन भी किया जाता है। मट्ठे से भरी पिचकारियों से एक दूसरे को खूब भिगाते हैं। उत्तराखंड पर्यटन विभाग के त्योहारों में शामिल होने के बाद, बटर फेस्टिवल (अंढूड़ी उत्सव ) में कई प्रकार की विविधताएं देखने को मिल रही हैं। पहले यह त्यौहार गाय के गोबर को एक दूसरे पर फेक कर मनाया जाता था।  बाद में इसमें गोबर की जगह , दूध ,माखन और छास का प्रयोग करने लगे। दूध दही माखन के प्रयोग से इसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी है।

कैसे पहुंचे –

दायरा बुग्याल जाने के लिए अंतिम रेलवे स्टेशन व् हवाई अड्डा देहरादून है। देहरादून से सड़क मार्ग द्वारा उत्तरकाशी के रैथल गावं तक आसानी से ,टाटा सूमो या कार से पंहुचा जा सकता है। सार्वजनिक परिवहन की बसें भी उपलब्ध हैं। रैथल गावं से दायरा बुग्याल 11 किलोमीटर दूर पड़ता है। रैथल से दायरा बुग्याल जाने के लिए पैदल ट्रैकिंग करनी पड़ती है।

कहाँ ठहरे –

रैथल में ठहरने के लिए GMVN का पर्यटक आवास गृह के साथ गांव में एक दो होमस्टे भी उपलब्ध है। इसके अलावा बुग्यालों में टेंट लगा कर भी रह सकते हैं।

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उत्तराखंड के राजा – भोलेनाथ को समर्पित गीत के बोल (Uttarakhand ke raja lyrics in hindi)

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uttarakhand ke raja

भगवान शिव के पवित्र सावन माह में सभी भाषा संस्कृति के लोग अपनी-अपनी भाषा और संस्कृति में गीत बनाते हैं। अपने अन्दाज में भगवान शिव को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। भगवान शिव का घर हिमालय कैलाश में है। और उत्तराखंड देवभूमि में भगवान शिव के कई चमत्कारी मन्दिर और उनका पावन धाम केदारनाथ है। हरियाणवी गायक गुलजार छिंदवाड़ा ने भगवान शिव को समर्पित एक भजन बनाया है, जिसके बोल हैं. “उत्तराखंड के राजा”। हालांकि यह भजन साल 2022 के सावन में रिलीज हो गया था। और यूट्यूब पर टॉप Five में रैंक भी किया था। अभी भी यह हरियाणवी गीत Uttarakhand Ke Raja trending में चल रहा है। लोग उत्तराखंड के राजा को बहुत पसन्द कर रहें हैं।

उत्तराखंड के राजा गीत के बारे मे

इस गीत को गाया है Gulzaar chhaniwala ने और इस गीत के लेखक भी Gulzaar chhaniwala है। इस गीत में संगीत दिया है khatri ने। गीत मे music Lable Speed Records का है।

उत्तराखंड के राजा गीत के बोल | Uttarakhand Ke Raja lyrics in hindi –

रै भोले रोला हो जाएगा,
जे डमरू तने बजाया ना ।
इतनी दूर हरयाणे ते,
मैं ड्रेक सुनन ने आया ना ।।
मुकुट पे चँदा, केश मे गंगा ।
डुबकी लगा ले, तन मन चंगा ।।
गल मे लटके, नाग मारे झटके,
रे डीजे पे आग लगा जा ।
हो उत्तराखंड के राजा।
नंदी ने लेके आजा ।
पवित्तर जल माँ गंगा,
मेरी नैया पार लगा जा ।
हो उत्तराखंड के राजा ,
नंदी ने लेके आजा ।
पवित्तर जल माँ गंगा ।
मेरी नैया पार लगा जा ।।
हो उत्तराखंड के राजा
भोले भोले …
तेरे फैन कसूते हरयाणा में
छोरे गामा के ।
पावे स्टीकर लागे,
गाड़ी पे तेरे नामा के ।
पावे स्टीकर लागे,
गाड़ी पे तेरे नामा के ।
केदारनाथ कोई अमरनाथ,
कोई हरिद्वार जानदा ।
ढूँढ ढूंड के थक गये ,
पर तने तरस नही आंदा ।।
जा करले नखरे,
तने असली इब ते टकरे।
आवे से झोले तगड़े,
पी के ने भंगिया ताज़ा ।
हो उत्तराखंड के राजा।
नंदी ने लेके आजा।
पवित्तर जल माँ गंगा,
मेरी नैया पार लगा जा ।
हो उत्तराखंड के राजा।
नंदी ने लेके आजा।
पवित्तर जल माँ गंगा,
मेरी नैया पार लगा जा ।
हो उत्तराखंड के राजा
भोले …
हर हर महादेव शिव शंभू!
हर हर महादेव!
हर हर महादेव शिव शंभू!
हर हर महादेव..
रे सावण आया बारिश होरी ।
हेटरा के खारिश होरी,
भोले की रे गोरा माता,
भांग की सिफारिश होरी ।
क्या करा बतावे भोले।
टैम जानदा जावे भोले।
कावडिया ने देख ले,
तेरे खतर से ये आवे भोले ।
शंभू आ जावेंगे रे अपने आप
हम तू बस एड्रेस दे दिए,
एक बार फेस तो फेस आके मिल ले।
रे चाहें जितना कॅश ले लिए।

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तने कितना प्यार करे छानिवाला
ना रे अंदाज़ा
हो उत्तराखंड के
हो उत्तराखंड के …
हो उत्तराखंड के राजा।
नंदी ने लेके आजा।
पवित्तर जल माँ गंगा
मेरी नैया पार लगा जा।
हो उत्तराखंड के राजा ।
नंदी ने लेके आजा ।
पवित्तर जल माँ गंगा,
मेरी नैया पार लगा जा ।
खत्री की बीट रे…
हो उत्तराखंड के राजा
भोले.. .

उत्तराखंड होमगार्ड भर्ती 2023, शुरू होने वाली है महिलाओं की भर्ती।

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Uttarakhand home guard bharti 2023- उत्तराखंड होमगार्ड भर्ती 2023, 1 सितंबर से शुरू होगी। उत्तराखंड के मुख्यमन्त्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने होमगार्ड स्थापना दिवस के अवसर पर इन भर्तियों की घोषणा की थी। कमांडेंट जनरल होमगार्ड्स के अनुसार उत्तराखंड राज्य मे 320 महिला होमगार्डो की भर्ती की जाएगी इसके अलावा 10 प्लाटून कमांडरों की भर्ती भी की जाएगी।उत्तराखंड के कई जिलों में पहली बार होमगार्ड की महिला प्लाटून की भर्ती खुलेगी । यह भर्ती के बार में होगी में उधम सिंह नगर, बागेश्वर, उत्तरकाशीचमोली पौड़ी, टिहरी मे आयोजित की जाएगी। पहला चरण 1 सितम्बर से शुरू होगा दूसरे चरण मे रुद्रप्रयाग,पिथौरागढ़, चम्पावत में फिर भर्ती आयोजित होगी प्राप्त जानकारी के अनुसार अक्टूबर पहले सप्ताह तक उत्तराखंड होमगार्ड भर्ती 2023 पूरी हो जाएगी।

उत्तराखंड होम गार्ड भर्ती 2023

यह रहेगा भर्ती परीक्षा का स्वरूप:-

उत्तराखंड होमगार्ड भर्ती में लिखित परीक्षा का प्रवधान खत्म कर दिया गया है। अब शारिरिक दक्षता के आधार पर और शैक्षणिक योग्यता के आधार पर मैरिट बनेगी । उत्तराखंड होमगार्ड  भर्ती परीक्षा कुल 60 अंक की होगी। जिसमे से 30 अंक की शारीरिक परीक्षा होगी। बाकी 30 अंक  निम्न योग्यताओं के आधार पर मिलेगे –

  • 10 अंक शैक्षिक योग्यता के लिए ।
  • अधिकतम 5 अंक NCC के लिए।
  •  5 अंक कुशल खिलाड़ी के लिए
  • कुशल वाहन चालक के लिए 5 अंक निर्धारित किए गए हैं।
  • वैतनिक और अवैतनिक होमगार्ड के परिवारिक सदस्यों के लिए 5 अंक निर्धारित किये गए हैं।

उत्तराखंड होमगार्ड भर्ती 2023 के लिए योग्यता-

Uttarakhand home guard bharti 2023 के लिए qualification , 10th Pass रखी गई । इसके अलावा शारिरिक दक्षता की परीक्षा होगी , जिसका विवरण  विज्ञप्ति होगा।

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आयु-

होमगार्ड भर्ती के लिए न्यूनतम आयु ( age ) 18 वर्ष तय की गई है। और अधिकतम आयु 40 वर्ष रखी गई है।

03 अगस्त 2023 को निकलेगी विज्ञप्ति –

Uttarakhand home gaurd bharti 2023 के लिए संबंधित जिलों में 03 अगस्त 2023 को विज्ञप्ति प्रकाशित होगी 21 अगस्त 2023 आवेदन की अंतिम तिथि होगी। तथा 23 अगस्त 2023 तक दस्तावेज चैक होंगे। 1सितंम्बर 2023 से प्रथम चरण वाले जिलों में शारीरिक दक्षता परीक्षा कराई जाएगी।

मिज्जू परंपरा | उत्तराखंड में 7 जन्मों की दोस्ती की विशेष परंपरा

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मिज्जू परंपरा

प्रत्येक वर्ष अगस्त के पहले रविवार को आधुनिक युवा मित्रता दिवस मनाते हैं। और आज के डिजिटल युग मे मित्रता जोड़ने के लिए सोशल मीडिया सबसे बड़ा साधन है। इसके बाद भी दोस्ती इतनी प्रगाढ़ नही होती जितनी उत्तराखंड की मिज्जू परंपरा में हो जाती थी और अभी भी होती है।

उत्तराखंड कुमाऊँ मंडल के चंपावत जिले तथा सीमांत क्षेत्रों में सदियों से एक अनोखी परम्परा चली आ रही है, जिसे मिज्जू परंपरा कहा जाता है। इस परंपरा का मूल कार्य, कुमाऊ के अलग अलग जाती, समुदाय,अलग अलग वर्गों के बीच अटूट मित्रता स्थापित करना है। दो अलग अलग जाती, सम्प्रदाय, के दो लोगो के बीच मित्रता कराने को मिज्जू परम्परा कहते हैं। कहा जाता है, कि मिज्जू (मितज्यू) लगाने वाले 2 परिवारों बीच 7 जन्म तक यह अटूट दोस्ती का रिश्ता निभाया जाता है।

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कैसे शुरू हुई कुमाऊँ में मिज्जू परंपरा ( मितज्यू रिवाज)-

बताया जाता है, सदियों पहले कि कुमाऊँ के चन्द्रवंशी राजाओं ने इस अनोखी परम्परा को शुरू किया था। कुमाऊँ के अलग अलग जातियों और समुदायों के बीच दोस्ती मजबूत करने के लिए इस परंपरा की शुरुआत की गई थी।और कुमाऊँ के कई इलाकों में या परम्परा अभी भी चल रही है।

इतिहासकारों के अनुसार, जाती ,कुल ,गोत्र आदि के बंधनों से मुक्त होकर दो अजनबी परिवारों के बीच मिज्जू लगाया जाता था, और अभी भी लगाया जाता है। चाहे वो गरीब वर्ग हो या अमीर वर्ग सभी बंधनों से बाहर निकल कर वो अपने मिज्जू परम्परा को निभाता है। जिसके साथ मिज्जू लगाया है, वो दोनो मित्र पूरी ईमानदारी से मिज्जू मित्रता को निभाते हैं। और विश्वास रखते हैं कि अगले सात जन्म तक एक दूसरे का साथ यू ही निभाएंगे।

यह परम्परा उस समय के राजाओं, जिहोने मिज्जू परंपरा को बनाया, उनके सोच, उनके दर्शन को दर्शाता है, कि कितने अच्छे उनके विचार और उनकी सोच होगी अपने उत्तराखंड के बारे में।

मिज्जू परंपरा

इस लेख को भी पढ़े – उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों का सावन और मैदानी क्षेत्रों या देशी लोगो के सावन की तिथि अलग अलग क्यों होती है ?

 

कैसे लगाते हैं मिज्जू परंपरा।

दोस्ती कैसे निभाते है, कोई उत्तराखंड के लोगो से सीखे, खाली मित्रता मित्रता दिवस मना कर मित्रता का ढोंग करते हैं। सबसे पहले आपस मे मिज्जू लगाने वाले परिवारों के बीच गन्धराक्षत ( पिठ्या टिका ) की रस्म होती है। फिर अपने कुल देवता की पूजा की जाती है,उनसे अपनी दोस्ती पर सदा कायम रहने का वर मांगा जाता है। यहाँ से दो व्यक्तियों के बीच अटूट रिश्ते की शुरुवात होती है। इसके ततपश्चात आपस मे मिज्जू लगाने वाले दोनो परिवार,पूरे गाँव को मीट भात का भोजन कराया जाता है।जैसे पुरुष आपस मे मिज्जू लगाकर दोस्ती मजबूत करते है,वैसे ही उस क्षेत्र की महिलाएं आपस मे संगज्यू लगाकर अपनी दोस्ती मजबूत करती है।

मिज्जू परंपरा
मितज्यूँ लगाते मित्र। फ़ोटो साभार अमर उजाला

उत्तराखंड की अनोखी परम्परायें, भारत के साथ पूरे विश्व का मार्गदर्शन करके सभी को एक सभ्य सुरक्षित समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करती हैं।

इसे भी देखें –

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कोटी कनासर, भीड़ से दूर शांति के लिए प्रसिद्ध है यह हिल स्टेशन !

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कोटी कनासर हिमाचल और उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहा दैविय या प्राकृतिक शक्तियों का प्रमुख क्षेत्र माना जाता है। ये दोनो हिमालयी राज्य धार्मिक रूप से संपन्न होने के साथ-साथ प्राकृतिक रूप से भी समृद्ध हैं। यहां प्राकृतिक सुन्दरता से भरे हुए अनेको क्षेत्र है, जिसकी सुन्दरता आपको एक अलग दुनिया में ले जाऐगी यहा एक से बढ़कर एक हिल स्टेशन हैं, जो प्राकृतिक सुन्दरता के मामले मे विश्व प्रसिद्ध है। इसके अलवा कुछ ऐसे हिल स्टेशन भी हैं, जिन्हें अभी तक अधिक लोगों ने नहीं देखा है, और वे सुन्दरता के मामले मे किसी चर्चित हिल स्टेशन से कम नहीं हैं।

उत्तराखंड का ऑफ बीट हिल स्टेशन है कोटी कनासर –

इस पोस्ट में उत्तराखंड के एक ऐसे हिल स्टेशन के बारे में लिख रहे है, जिसे अभी तक बहुत कम लोगों ने देखा है। यह हिल स्टेशन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से काफी नजदीक है। देहरादून के नजदीक छुपे हुए इस हिल स्टेशन का नाम है, कोटी कनासर (koti Kanasar) कोटी कनासर उत्तराखंड में स्थित एक छोटा सा सुन्दर हिल स्टेशन है।

यह हिल स्टेशन, देहरादून से मात्र 113 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यदि आप नैनीताल, मसूरी जैसी भीड़-भाड़ वाले हिल स्टेशन से अच्छी कोई शान्त और सुकून भरी डेस्टिनेशन चाहते है तो कोटी कनासर एक अच्छा विकल्प बन सकता है। यह सुन्दर स्थान मसूरी से 105 किमी की दूरी पर स्थित है।कोटी कनासर हिल स्टेशन उत्तराखंड के प्रसिद्ध हिल स्टेशन चकराता से केवल 25 किमी की दूरी पर स्थित है।

सुन्दर देवदार के पेड़ो से घिरा है कोटी कनासर-

यह हिल स्टेशन अपने प्राचीन देवदार के पेड़ो के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां एक 20 फीट ऊंचाँ येवदार का वृक्ष है, जिसके बारे में कहा जाता है, कि यह एशिया का सबसे पुराना देवदार वृक्ष है। प्रकृति संरक्षण का सन्देश देता है यह हिल स्टेशन ! यहा देवदार के पेड़ो पर लिखा है, “मैं एक बूढ़ा पेड़ हूं, मैं बात नहीं कर सकता फिर भी मैं कनासर देवता से आपकी सुखद यात्रा और आपकी सुख समृद्धि की कामना करता हूँ। उम्मीद है आप अपने परिवार की तरह मेरा स्वय ख्याल भी रखोगे”

कोटी कनासर

विशेष है यहां का मन्दिर –

यहां भगवान भोलेनाथ को समर्पित एक मन्दिर है। जिसे कनासर देवता मंन्दिर कहा जाता है। यह मन्दिर यहां के प्रमुख आकर्षणों मे एक है। यह मन्दिर अपनी अद्‌भुत स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।

कोटी कनासार मे करने लायक, गतिविधियां –

1 कैम्पिंग

कोटी कनासर मे कैम्पिंग एक बेहतरीन गतिविधि होगी। कोटी कनासर हिल स्टेशन का आन्नद लेने के लिए कैम्पिंग सबसे अच्छा विकल्प होगा प्रकृति के बीच कुछ दिन रहने का अनुभव अवश्य प्राप्त करें।

2- नेचर वाक और फोटोग्राफी –

यहां प्रकृति की अद्‌भुत सुन्दरता का आनन्द सकते हैं। और प्रकृति के बीच बिताएं इन अनमोल पलों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। प्रकृति की सुन्दर वादियों में नेचर वाक का आनंद ले सकते कोटी कनासर (koti Kanasar) पिकनिक स्पॉट के रूप में प्रसिद्ध है। यहां लोग परिवार सहित पिकनिक मनाने या हनीमून मनाने भी आते हैं।

koti kanasar

कहाँ ठहरें –

कोटि कनासर में ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था मिल जाती है। यहाँ होटल ,लाज ,होमस्टे और फारेस्ट विभाग का एक गेस्टहॉउस उपलब्ध है।

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 कैसे जाये-

यहाँ जाने के लिए सर्वप्रथम देहरादून आना पड़ेगा। देहरादून उत्तराखंड की राजधानी होने की वजह से यातायात के साधनो से अच्छी तरह जुडी है। देहरादून से बस प्राइवेट टेक्सी ,बस इत्यादि से यहाँ पंहुचा जा सकता है।

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कानाताल शांति व सुकून के लिए, उत्तराखंड का नंबर 1 हिल स्टेशन है।

मुनस्यारी हिल स्टेशन के दार्शनिक स्थल ,पुराना नाम और प्रसिद्ध भोजन

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अल्मोड़ा में घूमने लायक स्थान (Places to visit in Almora)

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अल्मोड़ा में घूमने लायक स्थान (Places to visit in Almora)

अल्मोड़ा उत्तराखंड का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है। जो अपनी संस्कृति ,प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। जिला मुख्यालय और इसके आस पास, अल्मोड़ा में घूमने के लिए कई जगहें हैं, जो आपको एक अविस्मरणीय अनुभव देंगी। अल्मोड़ा और इसके आस पास प्राकृतिक सुंदरता, रोमांचक,और ऐतिहासिक महत्व, आध्यात्मिक शांति और धार्मिक महत्व से जुड़े स्थानों की भरमार है। जिसमे से कुछ महत्वपूर्ण स्थानों का विवरण इस प्रकार है:-

Table of Contents

अल्मोड़ा में घूमने लायक स्थान-

यह अल्मोडा में एक लोकप्रिय दृश्य बिंदु है जो त्रिशूल, नंदा देवी और पंचाचूली पर्वतमाला सहित आसपास की हिमालय चोटियों के लुभावने व मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।  यह विशेष रूप से अपने मनमोहक सूर्योदय और सूर्यास्त दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। यही सूर्योदय और सूर्यास्त के मनमोहक दृश्य इसे प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफरों के लिए एक अवश्य देखने योग्य स्थान बनाता है। शांतिपूर्ण माहौल और सुरम्य दृश्य ब्राइट एंड कॉर्नर को आराम करने और पहाड़ों की सुंदरता का आनंद लेने के लिए एक शांत जगह बनाते हैं।  जब आप अल्मोड़ा जाएँ तो इस रमणीय स्थान को देखना न भूलें!

नन्दा देवी मन्दिर (Nanda devi temple Almora)

नन्दादेवी मन्दिर अल्मोड़ा के प्रमुख दार्शनिक स्थलों में से एक है। यह ऐतिहासिक मन्दिर उत्तराखंड की कुल देवी नन्दा को समर्पित है।

चितई गोलू देवता मन्दिर (chitai Golu devta temple Almora)

अल्मोड़ा बाजार से लगभग 12 किमी पर स्थित यह मन्दिर उत्तराखंड के न्याय के देवता कहे जाने वाले लोक देवता, गोलू देवता को समर्पित है। यहां चिट्ठी लिख कर मन्नतें मांगी जाती है। इसलिए इसे चिट्ठी वाला मन्दिर भी कहते हैं। यह धार्मिक स्थल अल्मोड़ा में घूमने लायक प्रसिद्ध स्थलों में एक है।

अल्मोड़ा में घूमने लायक स्थान
चितई गोलू मंदिर

अल्मोड़ा में घूमने लायक प्रसिद्ध स्थान डोल आश्रम-

अल्मोड़ा मार्केट से लगभग 38 किमी दूर, लमगड़ा नामक स्थान पर स्थित डोल आश्रम नाम का यह आश्रम, प्राकृतिक सुन्दरता और अलौकिक शान्ति के लिए विख्यात है।

जागेश्वर धाम-

अल्मोड़ा से करीब 35 किमी दूर बसा भगवान शिव का प्रसिद्ध धाम है। यह लगभग 125 मन्दिरों का समूह है। इसे भगवान शिव की तपोस्थली भी कहा जाता है। कहते हैं शिवलिंग पूजा का आरम्भ सर्वप्रथम जागेश्वर से ही हुवा | देवदार के पेड़ो के बीच यहां अलौकिक शान्ति का अनुभव होता है। यहां भगवान शिव के दर्शनों केसाथ-साथ, एक रात में बने 125 मन्दिरों की स्थापत्य कला देखने लायक है।

कसार देवी (kasar devi, Almora)

अल्मोड़ा से मात्र 8 किमी की दूरी पर स्थित इस रहस्यमई मन्दिर का रहस्य पता करने में नासा के वैज्ञानिक भी असफल है। देवी कात्यायनी को समर्पित यह मन्दिर प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर अलौकिक शान्ति का प्रसिद्ध स्थान है।

वैज्ञानिकों के अनुसार इस मन्दिर के आस पास चुम्बकीय शक्ति से युक्त बड़े बड़े पिंडं हैं। कहते हैं भारत में यह एकलौती जगह है, जहां चुम्बकीय शक्तियां मौजूद है। आध्यात्मिक शांति का यह स्थान जो पूरे संसार मे प्रसिद्ध है, अल्मोड़ा में घूमने वाली जगहों की फेरहिस्त में सबसे अव्वल है। और इसके आस -पास प्राकृतिक सुंदरता बेशुमार बिखरी पड़ी है। यहाँ आप आध्यात्मिक शांति के साथ पहाड़ो की रमणीय सुंदरता का आनंद भी के सकते हो।

कटारमल सूर्य मन्दिर, अल्मोड़ा में घूमने लायक खास स्थान-

कटारमल सूर्य मन्दिर अल्मोड़ा से लगभग 16 किमी दूर अधोली सुनार गांव में स्थित है। कटारमल भारत का दूसरा और उत्तराखंड का सबसे प्राचीन सूर्य मन्दिर है। कटारमल सूर्य मन्दिर अपनी विशेष वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यहां छोटे- छोटे 45 मन्दिरों का समूह है। यहां भगवान सूर्य की मूर्ति किसी धातु की नही बल्की बरगद की लकड़ी की बनी है। इसलिए इसे बड़आदित्य मन्दिर भी कहते हैं। विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

बिनसर, अल्मोड़ा में घूमने के लिए खास स्थान-

अल्मोड़ा के आस-पास घूमने लायक सर्वोत्तम स्थानों में से एक स्थान है, बिनसर प्रकृतिक सुन्दरता से भरपूर देवदार के जंगलो से घिरा यह रमणीक स्थल अल्मोड़ा से मात्र 33 किमी की दूरी पर है। बिनसर मे हिमालय की चोटियाँ केदारनाथ, चौखंबा, नंदा देवी, पंचाचूली, दिखाई देती है। ट्रैकिंग, कैम्पिंग, प्राकृतिक सुन्दरता के अलावा यहां करने को बहुत कुछ है।

सोमेश्वर धाटी –

यह रमणीय घाटी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में 4752 मीटर ऊंचाई पर अल्मोड़ा बाजार से 34 किमी दूरी पर स्थित है। पर्वत श्रृंखलाओं के बीच यह घाटी बड़ी ही सुन्दर और रमणीय लगती है। इसका नाम सोमेश्वर यहां स्थित यहां स्थित पौराणिक शिव मन्दिर के आधार पर रखा गया है। इस मन्दिर के बारे में कहते है कि इसे राजा सोमचन्द्र ने बनाया था। कहते हैं, यहां की गई पूजा काशी विश्वनाथ के बराबर फलदाई होती है। यह धाटी सैलानियों के बीच काफी लोकप्रिय है। इसके खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य और शान्त वातावरण इसे घूमने के लिए एक परफैक्ट डेस्टिनेशन बनाते हैं। यहां आप नेचरवाक, ट्रैकिंग, फोटोग्राफी का आनंद ले सकते है। अंग्रेज घुम्मकड़ पी. बैरन के अनुसार सोमेश्वर घाटी एशिया की सबसे सुन्दर घाटियों में से एक है।

अल्मोड़ा में घूमने लायक स्थान (Places to visit in Almora)
सोमेश्वर घाटी

स्याही देवी मन्दिर शीतलाखेत-

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से लगभग 56 किमी दूर स्थित यह मन्दिर माँ भगवती को समर्पित है। इस मन्दिर को कत्यूरी राजाओं ने बनाया था। इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि, यहाँ माता की मूर्ती दिन में तीन बार रंग बदलती है। इससे पहले यह मन्दिर वर्तमान मन्दिर से आधा किमी दूर स्थित है। बाघ, जंगली जानवरों के डर से लोग यहां नहीं जाते थे। कहते हैं स्याहि देवी के मूल मन्दिर में स्वामी विवेकानन्द जी ने तपस्या की थी। स्वाही देवी मन्दिर शीतलाखेत के ऊपर चोटी पर स्थित है। यहां जाने के लिए शीतलाखेत से पैदल जाना पड़ता है। शीतलाखेत प्राकृतिक सुन्दरता के परिपूर्ण स्थल है। इस क्षेत्र में साल भर टूरिस्टों का आवागमन बना रहता है। हिमालय के सुन्दर नजारों, कैम्पिंग ट्रैकिंग के लिए यह स्थान परफैक्ट है।

महाअवतार गुफा

अल्मोड़ा के द्वाराहाट के पास प्रसिद्ध बाबा महावतार बाबा की गुफा स्थित है। इस गुफा में कई योगी और सन्तों ने ध्यान लगाया है। फिल्म अभिनेता रजनीकान्त जूही चावला आदी कई हस्तियाँ यहा आती रहती हैं। महावतार बाबा के जन्म से सम्बंधित कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं। बताया जाता है कि, अमर अवतार बाबाजी हजारों वर्षों से हिमालय की कंदराओं में निवास करते हैं। बाबा जी बहुत कम और कभी-कभी सौभाग्यशाली शिष्यों को दिखते हैं।

दूनागिरी, अल्मोडा में घूमने योग्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थल-

अल्मोड़ा जनपद मुख्यालय से 65 किमी. रानीखेत से 52 किमी., द्वाराहाट से उत्तर में 15 किमी. की दूरी पर रानीखेत-कर्णप्रयाग मार्ग पर पड़ने वाले तथा द्वाराहाट कस्बे से पैदल 5 किमी. एवं मोटर मार्ग से 14 किमी. पर स्थित दूनागिरी की पहाड़ी को ही पुराण प्रसिद्ध द्रोणागिरी माना जाता है, जिसकी गणना 7 कुलपर्वतों में की गयी है। यह नाम पड़ा था। इसकी प्राकृतिक सुंदरता के अतिरिक्त यह स्थान अपनी बहुमूल्य वन औषधि सम्पदा के लिए भी प्रसिद्ध है। कहते हैं है कि लंकायुद्ध में मेघनाथ की शक्ति से मूर्च्छित लक्ष्मण को जीवित करने के लिए जब हनुमान संजीवनी बूटी सहित द्रोणाचल को ले जा रहे थे तो उसका एक खण्ड यहां पर गिर गया था।

इसके शिखर पर 1181 ई. से वैष्णवी देवी का मान्य शक्तिपीठ है, अतः यहां पर बलि नहीं चढ़ाई जाती है। मंदिर में प्राचीन शिलालेख भी है। सम्वत् 1086 (सन् 1029 ई.) के इस शिलालेख के विषय में माना जाता है कि मूलत: यह द्वाराहाट के बद्रीनाथ के मंदिर का है जिसे यहां लाकर रख दिया गया है (ताम्रपत्र लेख)। अब मंदिर की सारी व्यवस्था इसके लिए स्थापित एक न्यास द्वारा की जाती है। इसे शक्ति (देवी) के 51 उग्रपीठों में से अन्यतम माना जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 365 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यहां से उत्तरी हिमालय श्रृंखला के रमणीक दर्शन होते हैं।

पांडुखोली भटकोट (Pandu kholi , Bhakto)

कुमाऊ की सबसे ऊंची गैर हिमालयन पर्वत श्रृंखला पर। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट से 14 किमी दूरी पर है। दुनागिरी कुछ रेस्टोरेंट समान से समन्धित दुकानों के साथ -साथ प्रसाद इत्यादि के प्रतिष्ठान आपको सड़क से लगे हुए मिल जाएंगे। दुनागिरी से 5 किमी दूरी पर कुकुछीना पड़ता है। कुकुछीना से लगभग 4 किमी का पैदल रास्ता तय कर के सुुप्रसिद्ध पाण्डखोली आश्रम पहुुँचा जा सकता है स्व: बाबा बलवन्त गिरी जी ने आश्रम की स्थापना की थी और महावतार बाबा व लाहिड़ी महाशय जैसे उच्च आध्यात्मिक संतों की तपस्थली भी रहा है।

अल्मोड़ा में घूमने लायक बेहतरीन स्थल रानीखेत –

रानीखेत भारत के उत्तराखंड के अल्मोडा जिले में एक खूबसूरत हिल स्टेशन है।  यह समुद्र तल से 1,824 मीटर (6,000 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और कुमाऊं हिमालय से घिरा हुआ है। रानीखेत एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो अपने रमणीय दृश्यों, हल्की जलवायु और कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आकर्षणों के लिए जाना जाता है। अल्मोड़ा में घूमने के लिए रानीखेत नगर और इसके आस पास के डेस्टिनेशन एक परफेक्ट चॉइस हैं। रानीखेत के कुछ सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण निम्न हैं :-

रानीबाग पैलेस:

19वीं सदी का यह महल कभी कुमाऊं शाही परिवार का ग्रीष्मकालीन निवास था।  अब यह एक संग्रहालय है जिसमें शाही कलाकृतियों और यादगार वस्तुओं का संग्रह है।

रानीखेत गोल्फ कोर्स:

यह गोल्फ कोर्स भारत के सबसे पुराने गोल्फ कोर्स में से एक है और हिमालय की पृष्ठभूमि पर स्थित है।

चौबटिया गार्डन:

ये खूबसूरत उद्यान सेब, खुबानी, आड़ू और पुलम सहित कई अन्य विभिन्न प्रकार के फलों का उत्पादन यहां होता है। यहां कई ट्रैकिंग के रास्ते भी हैं जो बगीचों से होकर गुजरते हैं और आसपास की पहाड़ियों के दृश्य बड़े रमणीक लगते है। इसके अलावा रानीखेत में रानीझील, झूला देवी आदि प्रसिद्ध स्थल हैं। विस्तार से पढ़ने के लिए क्लिक करें।

अल्मोड़ा में घूमने लायक स्थान मझखाली (Majhkhali, Almora)

मझखाली एक कस्बाई गावँ है। जो रानीखेत के नजदीक स्थित है। यह स्थान हिमालय दर्शन, पुरातत्व गुफा दर्शन और रॉक क्लाइम्बिंग के लिए प्रसिद्ध है।

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लखु उड़्यार शैलाश्रय अल्मोड़ा –

यह स्थल अल्मोड़ा बाजार से लगभग 15 किमी दूर स्थित है। ऐतिहासिक महत्व का यह स्थान, अल्मोड़ा में घूमने, देखने योग्य स्थानों में एक है। लखु का मतलब लाख का या गिनती में लाखो और उड़्यार का मतलब होता है, गुफा प्रागैतिहासिक काल में आदीमानव, बारिश और प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए इन गुफाओं की शरण लेता होगा। तब आदमानव ने इन गुफाओं मे अपने जीवनचर्य से सम्बन्धित चित्र गुफाओं की दिवारों पर उकेरे हैं। इन्ही चित्रों को देखने के लिए यह ऐतिहासिक स्थान घूमने के लिए आवश्यक बन जाता है। इसके अलावा यहां एक अच्छा पिकनिक स्पॉट भी है।

मरतोला (Martola, Almora)

प्रकृति प्रेमीयों के लिए मरतोला (Martola Almora) एक आदर्श घूमने की डेस्टिनेशन है। समुद्रतल से लगभग 520 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान रमणीय प्राकृतिक सुन्दरता से लबरेज है।यह सुन्दर प्राकृतिक स्थान अल्मोड़ा से पनुवानोला वाली रोड पर है।

ये अल्मोडा में घूमने लायक कई रमणीय स्थानों में से कुछ हैं। अल्मोड़ा जिले का शांत वातावरण और प्राकृतिक सुंदरता इसे प्रकृति प्रेमियों और पहाड़ों में शांतिपूर्ण समय बिताने की चाह रखने वालों के लिए एक आदर्श स्थान बनाती है।

किथे रखा तेरा रेशमी रुमाल ट्रेंड कर रहा है आजकल । जानिए इसके बारे में !

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आजकल सोशल मीडीया का जमाना है। और कोई गीत,विडीयो एक बार सोशल मीडीया पर ट्रेंड हो जाता है तो, उसे रातों रात स्टार बनने से कोई नहीं रोक सकता है। आजकल ऐसा ही एक हिमाचली डोगरी लोक गीत सोशल मीडीया पर चल रहा है। जिसके बोल हैं, ” किथे रखा तेरा रेशमी रुमाल’ (kithe rakha tera reshmi rumal) यह गीत आजकल लोगों की जुबा पर चढ़ा हुवा है। kithe rakha mera reshmi rumal गीत पर Instagram पर अनेकों Reels बन गई हैं। facebook पर भी यह गीत काफी ट्रेडिंग में चल रहा है। इस गीत की अल्बम का नाम महेला दी रानी है।

किथे रखा तेरा रेशमी रुमाल
फ़ोटो साभार यूट्यूब वीडियो

किथे रखा तेरा रेशमी रुमाल’ गीत के बारे में –

यह लोक गीत एक हिमाचली डोगरी लोक गीत है। इस गीत को डोगरी लोक गायक मोहन ठाकुर जी ने गया है। और kithe rakha mera reshmi rumal के लिरिक्स भी मोहन ठाकुर ने लिखे हैँ। हिमाचली डोगरी लोक गीत को संगीतबद्ध किया है, नरेश नायब (म्यूजिकल माफिया) ने। Kithe Rakha tera reshmi rumal’ गीत का मूल नाम मेहला दी रानी है। इसकी अलबम का नाम भी मेहला दी रानी है। इसके निर्माता और कम्पोजर हैं, रफिक फौजी और अशरफ बाली। इस गीत को Pahadi folk music नामक यूट्यूब चैनल से प्रसारित किया गया है।

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किथे रखा तेरा रेशमी रुमाल’ video यहां देखें –

Kithe Rakha tera reshmi rumal की सफलता को देखते हुए, इसके गायक मोहन ठाकुर ने मेहला दी रानी पार्ट-2 भी रिलीज कर दिया है।

पुराने कुमाऊनी गाने के लिरिक्स | Old Kumaoni Song Lyrics

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पुराने कुमाऊनी गाने

वर्तमान में डीजे का दौर चल रहा है। और यह डीजे का दौर बालीवुड के संगीत से लोक संगीत में उत्तर आया है। इलेक्ट्रनिक वाध्य यंत्र, शोर- शराबा युक्त डीजे, धूम-धड़ाका संगीत से उत्तराखंड का लोक संगीत जगत भी अछूता नहीं है। आजकल उत्तराखंड के गढ़वाली गीतों और  कुमाऊनी गीतों में कृत्रिम वाद्य यंत्रों और डीजे का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। नई पीढ़ी के डीजे युक्त गीतों की पसन्द के चलते, पुराने कुमाऊनी गाने (old Kumauni song) और पुराने गढ़वाली गीत कहीं विलुप्त हो गए हैं।

पुराने पहाड़ी गीत संस्कृति रीती रिवाजों को ध्यान में रख कर बनाए जाते थे। और पुराने कुमाऊनी गाने या पुराने गढ़वाली गीत तत्कालीन समाज की स्थिति को केन्द्र में रख कर बनाए जाते थे। जिनमे नृत्य के साथ जीवन व समाज केसभी पहलुओं का ध्यान रखा जाता था । जबकि नए पहाड़ी गीत अधिकतर नृत्य को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे हैं। हालांकी कई नए कुमाऊनी गाने या नए गढ़वाली गाने, समाज और परम्पराओं पर भी केन्द्रित हैं।

आज अपने इस संकलन में  कुछ पुराने कुमाऊनी गाने के बोल संकलित कर रहे हैं। यह संकलन हमने पुरानी गीतमाला किताबों और कई आदरणीय बुजर्गों के सहयोग से बनाया है। उम्मीद है पुराने कुमाऊनी गाने का यह संकलन कुमाऊनी लोक संगीत प्रेमीयों को पसंद आएगा और लाभदायक होगा।

पुराने कुमाऊनी गाने जय जय हो बदरी नाथ के बोल

जै जै हो बदरी नाथ….
जै काशी केदार !जै जै हिवाला
देवतों की अवतारी भूमि
सन्तों की तपो भूमि
जै काशी केदारा । जै जै हिंवाला
जाग नाथ बाग नाथ ।
जै हरी हरद्वारा..
नील कंठ जै त्रिशूल
जै तेरी गोमुखा…
शिवं ज्यू की तपो भूमि …!
देवतों को जनमा भूमि
म्यर कुमू गढवाला ।

जै जै हिंवाला
नंन्दा देवी: पंचेश्वर।
जै बूढ़ो केदारा..!
जै मेरी जनमा भूमि
जं तेरी चौखम्बा
पार्वती की जनमा भूमि
नंदा ज्यू की जनमा भूमि
शिव ज्यू हिवांला ..!
डाई बोंटियों में राम श्याम।
ढूंगों में भगवान छँ ।
कण कण रहस्य यां छौ
देबी देबों का थान छ ।
बीरों की यो तपो भूमि।
पैगो की जन्मा भूमि।
ज्ञान की भन्डार
जै जै  हिवांला …!
जै जै हो बदरीनाथ

गीत के बारे में :- उत्तराखंड की प्रशंसा करता यह गीत उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक स्वर्गीय गोपालबाबू गोस्वामी जी ने बनाया है। लोक गायक स्वर्गीय गोपालबाबू गोस्वामी जी का जीवन परिचय देखने के लिए यहां क्लिक करें …

तेरी खुटी मेरी सलाम

तेरी खुटी मेरी सलाम,
मैं मैता जाण दे भागी ।
तेर खुटी मेरी सलाम,
तू मैता नि जा भागी ।
-(जोड़) तेरि खुटी मेरी सलाम, तू मैता नि जा भागि ।
चौमासी ढुंग चिफलो, तेर खुटो रड़ी जालो,
मेरो हियो झुरि जालो, तू मैता नी जा भागि
चौमासी ढुंग चिफलो-तू मैता नि जा भागि ।
तेर खुटी मेरी सलाम तू मैता नि जा भागि ।

( जोड़) तेर खुटी मेरी सलाम मैं मैता जाण दे भागि
मैं ईजू की नराई मैं मैता जाण दे भागि ।
मैं बाबू की नराई मैं मैता जाण दे भागि ।
मै मैता जाण दे भागि ।
मै इजू की नराई मै मैता जाण दे भागि ।
मैं बाबू की नराई मै मैता जाण दे भागि ।।
तेर खुटी मेरी सलाम मै मैता जाण दे भागि ।
तेर खुटी मेरी सलाम मैं मैता जाण दे भागि ।।

म्यर शोभनी होस्यारा।

अहा सब च्यालों है बेरा म्यर शोभनी होस्यारा….
म्यर शोभनी होस्यारा ..!

जोड़ – ऐ सब च्यालों है बेरा म्यर शोभनी होस्यारा…
सब ल्यूंनि नगदा भागि म्यर शोभनी उधारा..!
म्यर शोभनी उधारा …
अहा सब च्यालों है बेरा मेर शोभनी होस्यारा …
सब ल्यूंनि नगदा म्यर शोभनो उधारा…
म्यर शोभनो होस्यारा…..
अहा सब च्यालों

जोड़ – ऐ सब च्यालों है बेर म्यर शोभनी हस्यारा
सब खानी हो रोट साग, म्यर शोभनी शिकारा…!
अहा सब खानी रोट सागा, म्यर शोभनी शिकारा..!
म्यर शोभनी शिकारा …,
अहा सब च्यालों…

जोड़- ऐ सब च्यालों है बेर मेर शोभनी होस्यारा…
सब खानी दाल भाता, म्यर शोभनि झुंगरा..
अहा सब खानी दाव भात म्यर शोभनी …
म्यर शोभनी झुंगरा…
अहा सब च्यालों ……..

जोड़- ऐ सब च्यालों है बेरा म्यर शोधनी होस्यारा…!
सब चरुनी गोरू भैंसा, म्यर शोभनी बाकारा
अह सब चरूनी गोरू, म्यर शोभनी बाकारा…!
म्यर शोभनी बाकारा…
अहा सब च्यालों है बेर म्यर शोभनी होस्यारा
म्यर शोभनी होस्यारा…

सुपारि खई खई सुण माया

हई हई हई सुपारि खई सुण माया,
क्या रामरो घाम लागो छ ।

जोड़- नान माणी मडुवा भरो ग्यूं भरा ठुल माणी ।
ढिन मिना घुरी नं रौली मोत्यूं कसी दाणी  ।
हई हई हई…

जोड़-ह्यन मासा ठंडी हवा पंछी पड़ा घोल
झिट घड़ी लुकाइ लिन्ही तो गुलाबी बोल
हई हई हई…

जोड़- बांसुई का बन भागि बासुई का बन
तू मेरि राधिका होली में तेरो मोहन
हई हई हई सुपारि खई सुण माया..

जोड़- दो तारि को तार सुवा दो तारि को तारा
बची रैया खुशी रैया धरती की चारा
हई हई…

माठु माठु हिटैली मेरी बाना (Old kumauni song lyrics):

पहाड़ का ऊँचा नीचा डाना।
माठु माठु हिटैलो मेरी बाना ।
ओ मेरी बाना हाय वे तेरो शाना ।
माठु माठु..

मडुवा को माणो सुवा मडुवा को माणो…
हँसी ल्हिये नाचि ल्हिये द्वी दिन बचणो…
चार दिन रूंछो वे जोबना,
माटु माठु……

सला रुख घूम सुवा सला रुख घूम …!
रोज पै नि रुनि सुवा जवानी की धूम…!!
मैं खंद्योलो तेरी तो हँसणा,
माठु माठु……

बाकर कि खुटी सुवा बाकरे कि खुटी
आपुणो जोबन देखि, आफी रैछ टूटी
घैल करनी तेरि आँखि का बाणा…
माठु माठु..

निमुवे की दाणि सुया निमुवे की दाणी..
रिठे कसो दांणी,
तौ आँखि मैं खंजालि
माया पड़ी गेछ मेर मना
माठु माठु……

सरग तारा, स्वर्ग तारा कुमाऊनी पुराने गीत

सरग तारा जुन्याली राता…
को सुण लो यो मेरि बाता…!
सरग तारा……

पाणिक मसीक सुवा पाणिक मसीक !
तू न्है गेये परदेस मैं रूलो कसीक!!
सरग तारा…

विरहा की रात भायी बिरहा की रात!
आँखन बे आंसू झड़ी लागी बरसात!!
सरग तारा..

तेल त निमड़ि गोछ बुझर्ण छ बाती !
तेरि माया ले मेड़ि दियो सरपै की भांति !
सरग तारा….

अस्याली को रेट सुवा अस्याली को रेट !
आज का जइयां बटी कब होली भेटा !!
सरग तारा……!

यो बाटो का जान्या, कुमाऊनी पुराने गाने

यो बाटो कां जान्यां होला, सुरा सुरा देवी का मंदिर…
चमकनी गिलास सुवा रमकनी चाहा छ !
तेरी मेरी पिरीत कों दुनिये डाहा छ!!
यो बाटो कां…

जाइ फुलि चमेलि फुली देंणा फुली खेता !
तेरो बाटों चानें चानें उमर काटो मैता !!
यो बाटो कां…

गाड़ा का गड्यारा मारा दैत्या पिसाचं लै !
मैं यो देख दुबलि भयूं तेरा निसासे लै !!
यो बाटों कां…

तेरा गावा मूंगे की माला मेरा गावा जन्जीरा !
तेरी मेरी भेंट होली देवी का मंदीरा !!
यो बाटों कां…..

अस्यारी को रेट सुवा अस्यारी को रेट !
यो दिन यो मास आब कब होली भेंट!!
यो बाट कां…

ओ परूवा बौज्यूँ कुमाऊनी गीत (Old Kumauni song lyrics)

ओ परवा बौज्यू, आँगड़ि क्ये ल्याछा यस ।
नै टुपुक बूटा,  घाघरि क्ये ल्याछा यस ।
नै टुपुक बूटा,  घाघरि क्ये ल्याछा यस ।।
ओ परूली ईजा, तू कस माँगि छै कस ।
धन तेरो मिजाता, हाई कस मांग छै कस ।।
ओ परवा बौज्यू, धमेलि क्ये ल्याछा यस ।
नै झुमुक फूना, धमेलि क्ये ल्याछा यस ।।
ओ परूली ईजा, तू कस माँगि छै कस ।
धन तेरो फैशना, हाई कस करूँ मैं कस ।।
ओ परवा बौज्यू, बिंदुलि क्ये ल्याछा यस ।

चम चमै नी हुनी, बिंदुलि क्ये ल्याछा यस ।।
ओ परूली ईजा, तू कस माँगि छै कस ।
तेरी मनै नी ऊनी, हाई कस करूँ मैं कस ।।
ओ परूली ईजा, तू कस माँगि छै कस ।
ओ परवा बौज्यू, चप्पल क्ये ल्याछा यस ।
फट-फटै नी हूनी, चप्पल क्ये ल्याछा यस ।।
ओ परूली ईजा, तू कस माँगि छै कस ।
तेरी मनै नी ऊनी, हाई कस करूँ मैं कस ।
मेरि खोरि फोड़नि, हाई कस करूँ मैं कस।
तेरी मनै नी ऊनी, हाई कस करूँ मैं कस।

गीत के बारे में :- ओ परूवा बाज्यू शेर सिंह अनपढ़ शेरदा का प्रसिद्ध पुराना कुमाऊनी गीत है। 80 – 90 के दशक में यह चुटीला गीत जनता ने खूब पसंद किया। शेरदा अनपढ़ के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें।

झन दिया बौज्यूँ छाना बिलोरी (jhan diya bojyu song lyrics)

झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी,
लागला बिलौरी का घाम…!
हाथ की दाथुली हाथ रै जाली,
लागला बिलौरी का घाम !!
चूलै की रोटी चूलै में रौली,
लागला बिलौरी का घाम….!!
झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी,
लागला बिलौरी का घाम …!!
हाथै कि कुटली हाथै में रौली,
लागला बिलौरी का घाम ..!!
झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी,
लागला बिलौरी का घाम ..!!
फूल जैसी म्यर मुखड़ी,
चेली मैं तुमरी भली-भली।
झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी,
लागला बिलौरी का घाम..!!
बिलोरी का धारा रौतेला रौनी,
लागनी बिलोरी का घामा ..!!
झन दिया बोज्यू छाना बिलौरी,
लागला बिलौरी का घाम ..!!

गीत के बारे में :-यह गीत पुराने कुमाऊनी गीतों का सरताज रहा है । सत्तर – अस्सी के दशक में लोकगायक मोहन सिंह रीठागड़ी द्वारा गाया यह प्रसिद्ध गीत उस समय इतना प्रसिद्ध हुवा कि, लोगों ने इस क्षेत्र में अपनी लड़की का रिश्ता देना बंद कर दिया। उसके बाद स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी जी, इस क्षेत्र के लिए एक गीत बनाया ।जिसमे इस क्षेत्र की प्रशंसा की गई। 26 जनवरी 2022 को कुमाऊं रेजिमेंट ने इसकी लोकधुन को कर्तव्यपथ के परेड में प्रदर्शित किया।

इन्हे भी पढ़े: छैला वे मेरी छबीली गीत लिरिक्स !

प्रिय पाठकों अपने इस संकलन में हमने कुछ विलुप्ति की कगार पर खड़े पुराने कुमाऊनी गाने (old kumaoni song lyrics) सांकलित किये हैं। उम्मीद है ये आपको पसंद आये होंगे। भविष्य में हम पुराने कुमाऊनी गीत वाले इस संकलन को और बढ़ाने की कोशिश करेंगे।

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मंगलाछू ताल – इस तालाब के किनारे ताली बजाते ही उठते हैं बुलबुले !

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मंगलाछू ताल

मंगलाछू ताल – उत्तराखंड को यूं ही देवभूमी नहीं कहा जाता है। यहां की भूमी प्राकृतिक सुन्दरता के साथ अनजान अनदेखे रहस्यों से भी भरी पडी है। क्या आपने कभी देखा या सुना है ? कि किसी तालाब या बावड़ी के किनारे सीटी या ताली बजाने से बुलबुले उठे? आज उत्तराखंड के ऐसे ही एक रहस्यमय ताल मंगलाछू ताल के बारे में बात करेंगे। इस ताल के किनारे ताली या सीटी बजाने से यह ताल बुलबुलों के रूप में प्रतिक्रिया देता है।

अर्थात जब हम इस किनारे ताली या सीटी बजाते हैं, तो इस ताल में से बुलबुले निकलते हैं। यह रोमांचकारी और रहस्यमय ताल उत्तरकाशी जनपद के जिला मुख्यालय से लगभग 80 किमी दूर माँ गंगोत्री के शीतकालीन पड़ाव मुखबा से करीब 6 किमी की दूरी पर स्थित है। मंगलाछू ताल के लिए रास्ता इसी गांव से होकर जाता है। मंगलाछू ताल समुद्रतल से लगभग 3650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ताल मात्र 200 मीटर के दायरे में फैला हुवा है। यह रोमाचंक ताल अपनी सुन्दरता के लिए विश्व प्रसिद्ध हर्षिल घाटी में आता है।

मंगलाछू ताल (Manglachu tal) की खासियत :-

विश्व प्रसिद्ध हर्षिल घाटी में बसे माल 200 मीटर चौड़ाई वाले इस मंगलाछू ताल की विशेषता यह है कि इस ताल के किनारे आवाज करने, ताली बजाने या सीटी बजाने से इस ताल में बुलबुले उठते हैं। चारों ओर बर्फ से लदी हिमालय की चोटियाँ आर्कषित करती है। इसके आस पास की वादियों में अनोखी शान्ती का अहसास होता है। ताल के किनारे आवाज निकाल कर ताल से निकलने वाले बुलबुलों को देखना अपने आप मे रोमांचकारी अनुभव है।

मंगलाछू ताल

मंगलाछू ताल (Manglachu tal) की धार्मिक मान्यता :-

स्थानीय लोगों के अनुसार, “जब हिमाचल से सोमेश्वर देवता को यहां लाया गया तो देवता ने प्रथम स्थान इस ताल में किया। इसलिए मंगलाछू ताल (Mangalachhu tal ) को सोमेश्वर देवता का ताल भी कहा जाता है। ताल के बारे में यह मान्यता भी है, कि यहां पूजा-अर्चना करने से बारिश होती है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यदि कोई इस ताल को अपवित्र करता है, तो अतिवृष्टि का सामना करना पड़ता है।

इन्हे पढ़े: उत्तराखंड की एक ऐसी झील जहाँ नाहने आती हैं परियां।

बुलबुले वाले ताल मंगलाछू ताल (Manglachu tal) के बारे मे वैज्ञानिक दृष्टिकोण :-

दैनिक जागरण और अन्य पत्र, पत्रिकाओं में छपी एक शोध के अनुसार हिमालयी क्षेत्रों में कुछ स्थान ऐसे भी है, जहां धरती के अन्दर से पानी महीन छेदों के माध्यम से बाहर आता है। जब इसके आस-पास हलचल या आवाज होती है, तो धरती की बारीक दरारों के माध्यम से वायु पानी पर दबाव बनाती है। इस वजह से पानी ताल के ऊपर बुलबुलो के रूप में आता हुवा दिखाई देता है।

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कोदो की नेठाउण – उत्तराखंड के जौनसार में मनाया जाता है लोकपर्व

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कोदो की नेठाउण - उत्तराखंड के जौनसार में मनाया जाता है लोकपर्व

कोदो की नेठाउण- श्रीअन्न मडुवा, कोदो को समर्पित जौनसार का लोकपर्व कोदो की नेठाउण मनाया जाता हैं। यह उत्तराखंड के देहरादून जनपद के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर  के कृषकों का एक लोकउत्सव है, जो वर्षाकाल में मडुवे की गोड़ाई की समाप्ति पर मनाया जाता है। वस्तुतः मडुवा यहां के कृषि उत्पादों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण उत्पाद रहा है। उत्तराखंड लोकजीवन में मडुवा विशेष स्थान रहा हैं। मडुवा को स्थानीय भाषा मे कोदो कहा जाता है। कोदा एक पौष्टिक मोटा अनाज है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को मोटा अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया है। इस प्रस्ताव को भारत देश ने प्रायोजित किया, तथा संसार के 70 देशों ने इसका समर्थन किया है। उत्तराखंड आदिकाल से ही मोटे अनाजों का समर्थक रहा है। उत्तराखंड के पहाड़वासियों के जनजीवन के मूलाधार मोटे अनाज ही रहें हैं। मडुवा, झोंगेरु, कौनी आदि के उत्पादन में उत्तराखंड अव्वल रहा है। जौनसार का यह लोक पर्व कोदो अर्थात मडुवे की गुड़ाई निपटने की खुशी में मनाया जाता है। किन्तु इसकी गोड़ाई का कार्य अत्यन्तश्रमसाध्य होने के कारण इसकी समाप्ति पर हर्षाभिव्यक्ति व आनन्दाभिव्यक्ति के रूप में ‘कोदो की नेठाउण’ मनायी जाती है। इस दिन पूरे गांव में मस्ती और आनन्द का माहौल रहता है। लोग विशेष भोजन का तथा जीवनदायक मडुवे की मदिरा का आनन्द लेते हुए मौज-मस्ती में झूमते, नाचते-गाते हैं। प्राकृतिक वनस्पतियों से बनी ‘कीम’ और उससे बनी मडुवे की मदिरा को न केवल मादक पदार्थ के रूप में अपितु एक जीवनदायिनी औषधि के रूप में भी लिया जाता है।

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वर्तमान में यह लोकपर्व जानकारी के अभाव और शाशन की नीरसता के चलते विलुप्ति की कगार पर खड़ा है। उत्तराखंड मोटे अनाज उत्पादक राज्यो में आता है। इसलिए समाज व शाशन प्रशासन को ऐसे लोकपर्वो को बढ़ावा देना चाहिए।

संदर्भ :- “उत्तराखंड ज्ञानकोष”  प्रो dd शर्मा जी