Wednesday, April 24, 2024
Homeसंस्कृतिगेंद मेला उत्तराखंड में मकर संक्रांति का विशेष उत्सव | Gend mela...

गेंद मेला उत्तराखंड में मकर संक्रांति का विशेष उत्सव | Gend mela Uttarakhand –

Gend mela Uttarakhand 

मकर संक्रांति के अवसर पर उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर विकास खंड में थल के नजदीक के मैदान में लगने वाला यह गिंदी मेला या गेंद मेला, उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेलों में गिना जाता है। गिंदी  मेले का आयोजन प्रतिवर्ष अजमेर और उदयपुर पट्टियों के बीच डांडामंडी में लंगूर पट्टी  के दोनों भागों के बीच थल नदी के मैदान में किया जाता है। इसके अलावा भी कई स्थानों पर इस प्रकार के मेलों का आयोजन किया जाता है। लेकिन डांडामंडी का गेंद मेला अधिक प्रसिद्ध है।

Hosting sale

त्यौहार व् मनोरजन के अलावा  मेले का धार्मिक उत्सव के रूप में भी महत्त्व है। डांडामंडी के नजदीक बौंठा गावं के अंतर्गत भटपुड़ी में पौष माह के आखिरी दिन संपन्न की जाने वाली पूजा के बाद ,गांव के किसी हरिजन बंधू को चमड़े की बड़ी गेंद बनाने का कार्य दिया जाता है। वह गेंद का निर्माण करके उसे पकड़ने के लिए ,चमड़े के ही दो कंगन भी लगाता है। मकर संक्रांति के दिन पहले देवी माँ का पूजन किया जाता है। फिर उस गेंद का पूजन करते हैं। इसके बाद गेंद को थलनदी के डांडा मंडी मैदान में लाया जाता है।

प्रतिस्पर्धी  जनसमूह जुलुस के रूप में झंडे ले जाकर मैदान के बीच में गाड़ देते है। और गेंद को अपने हाथ में रखते हैं। उधर लंगूर पट्टी में भी जमेली गांव के लोग संक्रांति  पूर्वाह्न में देवी और भैरव की पूजा करते हैं। ये लोग बारी बारी से एक साल एक साल भैरव देवता का झंडा और एक साल देवी का झंडा लेकर मैदान में जाते हैं। मैदान में झंडा गाड़ के तब तक नृत्य संगीत करते हैं ,जब तक भटपुड़ी के लोग गेंद लेकर नहीं आ जाते। इस प्रतिस्पर्धा मेंगावों के  नदी के बायीं ओर के लोग एक तरफ और दक्षिण भाग की तरफ के लोग एक तरफ होते हैं। इस प्रकार दो टीमों में बटें लोग मैदान के दोनों ओर खड़े हो जाते हैं। गेंद को मैदान के बीच में रख दिया जाता है। वहां पर एक मध्यस्थ व्यक्ति के संकेत पाते ही ,दोनों टीमों के लोग गेंद को झपटकर ,उसपर अपना अधिकार करने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी कोई इसे बाँहों में भरकर ,छाती से चिपटा लेता है ,तो दूसरा उसके कंगन पकड़ कर अपनी ओर खींचता है।

गेंद मेला आधुनिक रग्बी खेल की तरह होता है। जिसमे बड़ी  गेंद को दो दल  अपने कब्जे में लेने की कोशिश करते हैं।

Best Taxi Services in haldwani

इस बीच दोनों दलों के ढोल नगाड़े वाले ढोल नगाड़े बजा कर अपनी टीम का उत्साहवर्धन करते है। जनता भी हल्ला करके अपनी – अपनी टीम का उत्साह वर्धन करती है। अंत में एक एक निश्चित समय बाद गेंद पर कब्ज़ा करने वाला दल ,गेंद को अपने गांव ले जाता है। वहां मंदिर में देवताओं की पूजा के साथ गेंद की पूजा की जाती है। और रात भर नाचगाने के साथ विजयोत्सव मनाया जाता है। अगले दिन देवपूजन के साथ गेंद का पूजन करके मंदिर सामने गाड़ दिया जाता है। कहते हैं पहले इस गेंद को विजयचिन्ह के रूप में मंदिर के बगल वाले कमरे में रख दिया जाता था।

संदर्भ – प्रोफ़ेसर DD शर्मा जी की पुस्तक उत्तराखंड ज्ञानकोष के आधार पर !

फोटो –  सभार सोशल मीडिया मित्र

इसे भी पढ़े –

कुमाऊं में घुघुतिया त्यौहार पर खेले जाने वाला खास खेल, ‘गिर ‘ या “गिरी ” खेल।

कत्यूरी राजाओं को अपनी राजधानी जोशीमठ को छोड़ कर क्यों आना पड़ा ?

हमारे व्हाट्सप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments