दोस्तो हमारी कुमाउनी संस्कृति, पहाड़ी संस्कृति और पहाड़ी परम्पराओ का मूल आधार आपसी एकता और सहयोग की भावना है। इसी भावना से निहित होकर हम अपनी सांस्कृतिक परम्पराओ का निर्वहन करते हैं। विगत समय मे हमारी कुमाउनी संस्कृति, पहाड़ी संकृति में एकता आपसी सहयोग और मिलजुल कर रहने के व्यवहार में कमी आ रही है। जिसका मूल कारण, शहरी समाज के रहन सहन को अपनाना और उससे भी बड़ा कारण पलायन है। अल्मोड़ा विश्वनाथ घाट के भूत और अनेरिया गावँ के लोगो की रोचक कहानी। दगड़ियों कुमाउनी या पहाड़ी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि हम पहाड़ी लोगों…
Author: Bikram Singh Bhandari
प्रस्तुत लेख में हम कोशिश करेंगे कि बेतालघाट के पूजनीय लोकदेवता एवं बेतालघाट के क्षेत्रपाल नकुवा बुबु जी की रोचक कहानी एवं जानकारी का सम्पूर्ण वर्णन कर सकें। यदि कोई सुझाव हों त्रुटि हो तो, हमारे फसेबूक पेज देवभूमी दर्शन पर msg या कॉमेंट में दे सकते हैं। उत्तराखंड के नैनीताल जिले में बसी एक सुंदर घाटी बेतालघाट। यह घाटी प्राकृतिक सुंदरता के बीच जितना सुंदर लगती है, उतनी ही रहस्यमयी भी है। सबसे ज्यादा रहस्यमयी है, इसका नाम बेतालघाट। इस स्थान का नाम बेतालघाट यहां के रक्षक यहां के लोकदेवता बेताल के नाम से पड़ा है। जैसा कि हमने बिक्रम…
गिरीश चंद्र तिवारी “गिर्दा ” जनकवि ,पटकथा लेखक ,गीतकार,गायक, निर्देशक एवं उत्तराखंड संस्कृति की तथा उत्तराखंड राज्य के सच्चे हितेषी थे। गिर्दा का प्रारंभिक जीवन गिरीश तिवारी गिर्दा का जन्म 10 सिंतबर 1945 को उत्तराखंड, अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक में ज्योली नामक गाँव मे हुवा था। गिरीश तिवारी जी के पिता का नाम हंसादत्त तिवारी था। और माता जी का नाम जीवंती देवी था। गिर्दा की आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा से पूर्ण की। और 12वी की परीक्षा नैनिताल से (व्यक्तिगत) पूर्ण की ।तत्कालीन संस्कृति कर्मी, रंगकर्मी मोहन उप्रेती और बृजेन्द्र लाल शाह इनके प्रेरणा श्रोत बने। गिर्दा, घर से निकल…
अब पहाड़ भी शहरों की तरह विकसित हो गए हैं। गावों में मोबाइल टावर लग चुके हैं। लोगो का मिलकर बैठ के आणा कथा बन्द हो गई है। बारिश में सफेद भट्ट भून कर खाने का रिवाज बन्द हो गया है। पहाड़ो की कई पहचानों के साथ विलुप्त हो गए पहाड़ों में मशाल लेकर एकाकी चलने वाली आत्माएं जिन्हें ट्वॉल कहते थे। आइये चलते हैं, उस स्वर्णिम काल मे जब हम इतने विकसित नही थे, लेकिन रिश्तों, संवेदना,और प्यार के क्षेत्र में हम धनाढ्य थे। उस समय शाम को, ईजा और काकी खाना बनाती थी । और मैं अपने दादा…
खतड़वा पर्व उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में पशुओं की रक्षा पर्व के रूप में मनाया जाता है। स्थानीय जानकारी के अनुसार 2024 में खतडुवा पर्व 16 सिंतबर 2024 के दिन मनाया जाएगा। जैसा कि हम अपने पिछले लेख घी संक्रांति में बता चुके हैं कि ,उत्तराखंड में लगभग प्रत्येक संक्रान्ति (जिस दिन सूर्य भगवान राशी परिवर्तन करते हैं) के दिन त्यौहार मनाने की परम्परा है। स्थानीय भाषा मे इसे सग्यान भी कहते है। इसी क्रम में आश्विन मास की संक्रांति के दिन उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के लोग खतडुवा लोक पर्व मनाते हैं। अश्विन संक्रांति को कन्या संक्रांति भी कहते हैं…
ऐड़ी देवता उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के लोक देवता हैं। उन्हें वन देवता के रूप में पूजा जाता है। कहते हैं कि ऐड़ी देवता अपने क्षेत्र में रात्रि को ,अपने दल बल के साथ शिकार के लिए निकलते हैं। और रात्रि में बुरी शक्तियों से अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में ऐरी देवता के बारे में अनेक कथाएं एवं मान्यताएं प्रचलित हैं। और चंपावत और नैनीताल जिले के बीच मे ब्यानधुरा नामक स्थान पर ,ऐड़ी देवता का प्रसिद्ध मंदिर है। यह एक अनोखा मंदिर है, जहां लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर धनुष बाण चढ़ावे…
चल तुमड़ी बाटै बाट.. उत्तराखंड की यह प्रसिद्ध लोक कथा कुमाऊँ मंडल में सुनाई जाती है। पहले हमारे दादा दादी ने हमको यह कथा सुनाई थी,आज हम आपको डिजिटल माध्यम से उत्तराखंड की लोक कथा सुनाते हैं। दूर जंगल के पास गाव में , रामी नामक एक बुजुर्ग औरत रहती थी। रामी बुढ़िया की एक ही लड़की थी, जिसकी शादी हो चुकी थी। उसका ससुराल बहुत दूर भयानक जंगल के पार था। पहले जमाने मे गाड़ी और संचार की कोई व्यवस्था नही थी। तब घर पर पैदल जाकर ही कुशलक्षेम ली जाती थी। एक दिन रामी बुढ़िया को अपनी बेटी…
गढ़वाली भाषा दिवस प्रतिवर्ष 02 सितंबर के दिन गढ़वाली भाषा दिवस मनाया जाता है। यह दिन गढ़वाली भाषा को सम्मान दिलाने के लिए और 02 सिंतबर 1994 को मसूरी गोलीकांड में शहीद हुए आंदोलनकारियों के सम्मान में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की पहल पर्वतीय राज्य मंच द्वारा 2018 में की गई थी तबसे प्रतिवर्ष 02 सिंतबर के दिन गढ़वाली भाषा दिवस मनाया जाता है। गढ़वाली भाषा की विशेषताएं एवं गढ़वाली भाषा पर निबंध – कई लोगो की अवधारणा है कि ,गढ़वाली एक भाषा नहीं बोली है। कोई भी बोलीं जब साहित्यिक रूप ले लेती है, तो वह…
यकुलांस का मतलब होता है अकेलापन। चमत्कारी शार्ट फ़िल्म है पांडवाज की यकुलांस। चमत्कारी इसलिए बोल रहे है, कहते हैं जब तक कोई अपना दर्द बयां नही करता ,तब तक किसी को पता नही चलता कि उसके अंदर कितना दर्द भरा है। मगर इसे पांडवाज की मेहनत और लगन का चमत्कार ही कहंगे बिना रोने धोने के सीन के ,बिना हल्ला गुल्ला के पहाड़ और पहाड़ में रहने वाले अकेले बुजुर्गों की पीड़ा का ऐसा चित्रण किया है, कि आखों से आंसू टपकते हैं,और दिल से आवाज आती है बस !!!!!अब नही!! आइये इस अद्वितीय मूवी यकुलांस के बारे में…
कुमाउनी भाषा का परिचय- उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र उत्तरी तथा दक्षिणी सीमांत क्षेत्र को छोड़ कर बाकि भू भाग में कुमाउनी भाषा बोली जाती है। पिथौरागढ़ का के उत्तरी क्षेत्र शौका बहुल होने के कारण , यहाँ शौका भाषा बोली जाती है। ऐसी जनपद के अस्कोट ,धारचूला और डीडीहाट के निकट रहने वाले वनरौत ,राजी बोलते हैं । कुमाऊँ के दक्षिण में थारू और बॉक्स जनजातियों द्वारा बोकसाड़ी और थारू बोली जाती है। दुसांद (गढ़वाली और कुमाऊँ का बीच का क्षेत्र ) में गढ़वाली कुमाऊनी मिश्रित प्रयोग की जाती है। श्री देव सिंह पोखरिया द्वारा लिखे गए कुमाऊनी भाषा पर…