Sunday, April 21, 2024
Homeसंस्कृतिउत्तराखंड की लोककथाएँचल तुमड़ी बाटै बाट , कुमाऊनी लोक कथा।

चल तुमड़ी बाटै बाट , कुमाऊनी लोक कथा।

चल तुमड़ी बाटै बाट.. उत्तराखंड की यह प्रसिद्ध लोक कथा कुमाऊँ मंडल में सुनाई जाती है। पहले हमारे दादा दादी ने हमको यह कथा सुनाई थी,आज हम आपको डिजिटल माध्यम से उत्तराखंड की लोक कथा सुनाते हैं।

Hosting sale

दूर जंगल के पास गाव में , रामी नामक एक बुजुर्ग औरत रहती थी। रामी बुढ़िया की एक ही लड़की थी, जिसकी शादी हो चुकी थी। उसका ससुराल बहुत दूर भयानक जंगल के पार था। पहले जमाने मे गाड़ी और संचार की कोई व्यवस्था नही थी। तब घर पर पैदल जाकर ही कुशलक्षेम ली जाती थी।

एक दिन रामी बुढ़िया को अपनी बेटी की बहुत याद आ रही थी, उसको बार बार बाटुली ( हिचकी ) लग रही थी। बुढ़िया ने सोचा, एक बार मिल के आती हूँ बेटी से। तब उसने पूरी , बड़े , पुए ,सब्जी ( कुमाऊनी पकवान ) बनाई और पोटली बांध कर चल दी बेटी के ससुराल को । रामी बुढ़िया की बेटी के ससुराल को जाते समय रास्ते मे एक भयानक जंगल पड़ता था। उस जंगल मे बहुत भयानक भयानक जानवर रहते थे। इधर से बुढ़िया बेटी के ससुराल को जाते हुए, उस भयानक जंगल के बीच मे पहुँच गई, बुढ़िया को भी पता था,यहां खतरा है,वो तेज तेज जा रही थी। इतने मैं अचानक एक शेर बुढ़िया के सामने आ गया और बोला ,”बुढ़िया मी तिकें खानु ” मतलब बुढ़िया मैं आज तुझे कहूंगा ।

बुढ़िया ने कहा ,”मी यदु कमजोर है री, यू हाडिक खाण में तुमुगु स्वाद नी आल,  मी अपूण चेली वा जानी,वा पूरी,खीर साग, दै दूध खूल मोटे घोटे बे ऊल, तब तुम मिके खाया ” मतलब मैं इतनी दुबली पतली हूँ, इन सुखी हड्डियों में आपको स्वाद नही आएगा। मैं अपनी लड़की के ससुराल जा रही हूं, वहाँ पूरी कचोरी,खीर, दूध दही खाकर मोटी होकर आऊंगी, तब तुम मुझे खाना। शेर मान गया और बुढ़िया को जाने दिया । आगे जाकर बुढ़िया को भालू ,भेड़िया, और सियार मिले, बुढ़िया ने सबको यही कहा कि वो अपनी बेटी के घर जा रही, वहाँ से अच्छा खाना खा कर मोटी होकर आएगी, उसे तब खाना।

Best Taxi Services in haldwani

अब बुढ़िया अपनी बेटी के घर पहुच गई। वहाँ दोनो माँ बेटियों ने हँसी खुसी खाना खाया,दिन बिताए। जब बुढ़िया के वापस आने का समय हुवा ,तो बुढ़िया उदास हो गई। बेटी ने कहा अगली बार जल्दी आना माँ मिलने,तब बुढ़िया बोली , चेली ज्यून रूलो तो ऊल पे। मतलब जिंदा रहूंगी तो आऊंगी ।तब उसकी बेटी समझ गई,कोई बात तो है, जिसे मा छुपा रही है। बहुत पूछने पर बुढ़िया ने जंगल और वहां के जानवरों को किये वादे के बारे विस्तार से बताया।

रामी बुढ़िया की बेटी भी ,उसकी तरह चालाक थी। उसने अपनी माँ को बोला,”ईजा तू फिकर ना कर ” अर्थात माँ तुम चिंता मत करो । उसके बाद बुढ़िया की बेटी ने एक बड़ी गोल लौकी लि ,जिसे कुमाऊनी में तुमड़ी कहते हैं। उसे पूरा खाली करके,अपनी माँ को उसमे बिठा दिया,और साथ मे पूरी पकवान बना कर और एक पोटली देकर उसे तुमड़ी (कद्दू) में बिठा दिया । और उस कद्दू के अंदर घुस कर बुढ़िया अपने घर को चली गई।अब रास्ते मे वही भयानक जंगल था, वहां सियार ,भालू और शेर उसे खाने का इंतजार कर रहे थे।

तुमड़ी ( बड़ा कद्दू या बड़ी गोल लौकी ) जैसे ही जंगल मे पहुँची तो ,सबसे पहले उसे भालू मिला , भालू ने तुमड़ी से पूछा कि तुमड़ी तुमने एक बुढ़िया को देखा क्या? जो अपनी बेटी के ससुराल गई थी, और वहां से मोटी होकर आने वाली थी। तब तुमड़ी के अंदर से बुढ़िया बोली ,”   चल तुमड़ी बाटै बाट …. मी के जाणू तेरी बुढ़ियाक बात … मतलब ,तुमड़ी अपने रास्ते पर चलती है, मुझे किसी बुढ़िया के बारे में पता नहीं है। इतना बोल कर तुमड़ी आगे बढ़ गई। आगे चलकर तुमड़ी को शेर मिला , शेर ने भी तुमड़ी से वही सवाल किया, कि तुमने बुढ़िया को देखा, जो मोटी ताज़ा होकर अपने बेटी के घर से आने वाली थी। फिर तुमड़ी ने वही जवाब दिया , चल तुमड़ी बाटै बाट …. मी के जाणु त्येरी बुढ़ियाक बात …. इतना बोल कर तुमड़ी आगे बढ़ गई।

आगे जाकर उसको चतुर सियार मिला, सियार ने भी तुमड़ी से वही सवाल किया,फिर तुमड़ी ने भी वही जवाब दिया, ” चल चल तुमड़ी बाटै बाट…… मगर ये जवाब सियार को जमा नहीं, उसकी बुद्धि खटक गई,वो बुढ़िया की आवाज पहचान गया । वो चुपचाप तुमड़ी से आगे जाकर ,तुमड़ी के रास्ते मे किला गाड़ दिया। जब तुमड़ी वहाँ पहुँची तो,किले से टकराकर ,तुमड़ी फूट गई,और बुढ़िया बाहर निकल गई। तब सियार खुश हो गया, उसने सबको आवाज लगाई,”शेर दादा ,भालू  काका जल्दी आओ ,बूढ़ी मिल गे” इतने में बुढ़िया जल्दी से सामने के पेड़ पर चढ़ गई।

चल तुमड़ी बाटों बाट

इसे भी पढ़े :- , उत्तराखंड की सालम क्रांति – 25 अगस्त 1942 सालम शाहिद दिवस 25 अगस्त

अब सारे जानवर इक्कठा हो गए, और चिल्लाने लगे बुढ़िया नीचे उतर ,हम तुझे खाएंगे। बुढ़िया बोली, “ठीक है, मैं उतर रही हूं, तुम ऊपर को देख कर तैयार रहना, जैसे ही मैं नीचे उतरु, तुम खा लेना। जानवर बोले ,”ठीक है! और टकटकी लगा कर ऊपर बुढ़िया को देखने लगे।अब बुढ़िया ने निकाली, अपनी बेटी की दी हुई लाल मिर्च की पोटली और ऊपर से लाल मिर्च पावडर सब के ऊपर फैंक दिया। सारे जानवर लाल मिर्च की जलन से आँखें मलते रह गए।

और बुढ़िया अपने घर को भाग गई…………

अंत मे – मित्रों आपको यह कुमाऊनी लोक कथा, चल तुमड़ी बाटो बाट.. कैसी लगी ? हमे जरूर बताएं हमारे फ़ेसबुक पेज देवभूमी दर्शन पर। और इसे व्हाट्सप्प वाले बटन पर क्लिक करके शेयर करें।

इसे भी पढ़े -उत्तराखंड में फसलों और भूमि के रक्षक देवता भूमिया देवता।

फ़ोटो – साभार फेसबुक

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments