देवप्रयाग उत्तराखंड के टिहरी जिले में भागीरथी – अलकनंदा नदी के संगम पर स्थित है। देवप्रयाग ऋषिकेश से 70 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है। 30°-8′ अक्षांश तथा 78 °-39′ रेखांश पर स्थित देवप्रयाग समुद्रतल से 1600 फ़ीट की उचाई पर बसा हुआ है। यह तीन पर्वतों दशरथाचल ,गर्ध्रपर्वत और नरसिंह पर्वत के मध्य ने स्थित है। उत्तराखंड में पवित्र नदियों के संगमों पर पांच प्रयाग बने हैं , जिन्हें पंच प्रयाग कहते हैं। देवप्रयाग इन पंच प्रयागों में सबसे श्रेष्ठ और पहला प्रयाग है। देवप्रयाग का महत्व प्रयागराज के बराबर है।यहाँ का प्रसिद्ध शिलालेख जो यात्रियों की नामावली…
Author: Bikram Singh Bhandari
नारसिंही देवी मंदिर अल्मोड़ा – उत्तराखंड अल्मोड़ा जिले के गोविंदपुर क्षेत्र, गल्ली बस्यूरा नामक गावं में स्थित है माँ नारसिंही देवी का ऐतिहासिक मंदिर। अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से लगभग २८-३० किलोमीटर दूर ,अल्मोड़ा -द्वाराहाट मोटरमार्ग के पास स्थित माँ नारसिंही देवी का यह मंदिर अपनी पहचान लिए तरस रहा है। कुमाऊँ के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडेय जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ,”कुमाऊँ का इतिहास ” में इसके बारे में बताया है कि,अल्मोड़ा का यह प्रसिद्ध देवी मंदिर चंदवंशीय राजा देवीचंद ने बनवाया था। मंदिर की बनावट और शैली देख कर ही लगता कि यह मंदिर काफी प्राचीन एवं ऐतिहासिक…
उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले के तिलवाड़ा सौराखाल रोड पर तिलवाड़ा से लगभग 29 किलोमीटर दूर माता का प्रसिद्ध सिद्धपीठ मठियाणा देवी मंदिर स्थित है। कहा जाता है,कि यह वर्तमान में जाग्रत महाकाली शक्तिपीठ है। मठियाणा देवी मंदिर के बारे में एक लोक कथा प्रचलित है,जिसके अनुसार कई वर्ष पहले मठियाणा देवी भी एक साधारण कन्या थी। उनकी दो माताएं थी । वह बांगर पट्टी के श्रावणी गावँ में रहती थी। उनकी माताओं की आपस मे नही बनती थी। दोनो माताएं अलग अलग रहती थी। उनकी सौतेली माँ गावँ वाले घर मे रहती थी ।और उनकी माँ डांडा मरणा में रहती…
माँ सुरकंडा देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य में टिहरी जिले के ,विकासखंड जौनपुर के ग्राम कद्दूखाल के पास सुरकूट नामक ऊँचे पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर समुद्रतल से 3030 मीटर ऊँचाई पर स्थित है।सुरकंडा माता का यह प्रसिद्ध सिद्धपीठ मसूरी से लगभग 40 किलोमीटर और चंबा से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सुरकंडा देवी ,उत्तराखंड के सबसे ऊँचे शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है।इस मंदिर से उत्तर में त्रिशूल पर्वत, चौखंबा, नंदादेवी,बद्री केदार और गंगोत्री यमुनोत्री के शिखरों के भव्य दर्शन होते हैं। यहाँ से दून घाटी, मसूरी , नई टिहरी, चम्बा,कुंजापुरी,और चन्द्रबदनी के दर्शन भी होते हैं।…
देहरादून में 4 सिद्ध प्रसिद्ध हैं। और इन 4 सिद्धों के चार मंदिर या पीठ देहरादून के 4 कोनो में स्थापित हैं। देहरादून के 4 सिद्धों में , लक्ष्मण सिद्ध , कालू सिद्ध, मानक सिद्ध, मांडुसिद्ध हैं। इनमें से इस लेख में हम लक्ष्मण सिद्ध के बारे में बताएंगे। देहरादून से 12 किलोमीटर दूर ऋषिकेश मार्ग पर स्थित लक्ष्मण सिद्ध मंदिर , लक्ष्मण बाबा के भक्तों के लिए आस्था और विश्वास का प्रमुख केंद्र है। ऐसी मान्यता है, कि भगवान दत्तात्रेय ने लोककल्याण के लिए अपने 84 शिष्य बनाये थे। और उन्हें अपनी सभी शक्तियां प्रदान की थी। कालांतर में…
यदि आप बेस्ट कुमाऊनी गीत ढूढ़ रहे हैं तो, टीम घुघुती जागर का यह गीत बेस्ट कुमाऊनी गीत के सभी मापदंडों पर खरा उतरता है। सिंतबर 2021, में ओहो रंगमंच के मंच से रिलीज हुवा यह गीत आज भी लोगों को काफी पसंद है। अभी तक यूटयूब में ऐसे लाखों लोग अपना प्यार दे चुके हैं। आपूण मन मा पहाड़ ल्या रायूं, जी हां दोस्तों टीम घुघुती जागर का बहुप्रतीक्षित कुमाऊनी गीत आज ओहो रेडियो स्टेशन से रिलीज हो गया। इस लेख में हम आपको टीम घुघुती जागर के इस शुद्ध गीत के बारे में बताएंगे और इस गीत का…
दोस्तो हमारी कुमाउनी संस्कृति, पहाड़ी संस्कृति और पहाड़ी परम्पराओ का मूल आधार आपसी एकता और सहयोग की भावना है। इसी भावना से निहित होकर हम अपनी सांस्कृतिक परम्पराओ का निर्वहन करते हैं। विगत समय मे हमारी कुमाउनी संस्कृति, पहाड़ी संकृति में एकता आपसी सहयोग और मिलजुल कर रहने के व्यवहार में कमी आ रही है। जिसका मूल कारण, शहरी समाज के रहन सहन को अपनाना और उससे भी बड़ा कारण पलायन है। अल्मोड़ा विश्वनाथ घाट के भूत और अनेरिया गावँ के लोगो की रोचक कहानी। दगड़ियों कुमाउनी या पहाड़ी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि हम पहाड़ी लोगों…
प्रस्तुत लेख में हम कोशिश करेंगे कि बेतालघाट के पूजनीय लोकदेवता एवं बेतालघाट के क्षेत्रपाल नकुवा बुबु जी की रोचक कहानी एवं जानकारी का सम्पूर्ण वर्णन कर सकें। यदि कोई सुझाव हों त्रुटि हो तो, हमारे फसेबूक पेज देवभूमी दर्शन पर msg या कॉमेंट में दे सकते हैं। उत्तराखंड के नैनीताल जिले में बसी एक सुंदर घाटी बेतालघाट। यह घाटी प्राकृतिक सुंदरता के बीच जितना सुंदर लगती है, उतनी ही रहस्यमयी भी है। सबसे ज्यादा रहस्यमयी है, इसका नाम बेतालघाट। इस स्थान का नाम बेतालघाट यहां के रक्षक यहां के लोकदेवता बेताल के नाम से पड़ा है। जैसा कि हमने बिक्रम…
गिरीश चंद्र तिवारी “गिर्दा ” जनकवि ,पटकथा लेखक ,गीतकार,गायक, निर्देशक एवं उत्तराखंड संस्कृति की तथा उत्तराखंड राज्य के सच्चे हितेषी थे। गिर्दा का प्रारंभिक जीवन गिरीश तिवारी गिर्दा का जन्म 10 सिंतबर 1945 को उत्तराखंड, अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक में ज्योली नामक गाँव मे हुवा था। गिरीश तिवारी जी के पिता का नाम हंसादत्त तिवारी था। और माता जी का नाम जीवंती देवी था। गिर्दा की आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा से पूर्ण की। और 12वी की परीक्षा नैनिताल से (व्यक्तिगत) पूर्ण की ।तत्कालीन संस्कृति कर्मी, रंगकर्मी मोहन उप्रेती और बृजेन्द्र लाल शाह इनके प्रेरणा श्रोत बने। गिर्दा, घर से निकल…
अब पहाड़ भी शहरों की तरह विकसित हो गए हैं। गावों में मोबाइल टावर लग चुके हैं। लोगो का मिलकर बैठ के आणा कथा बन्द हो गई है। बारिश में सफेद भट्ट भून कर खाने का रिवाज बन्द हो गया है। पहाड़ो की कई पहचानों के साथ विलुप्त हो गए पहाड़ों में मशाल लेकर एकाकी चलने वाली आत्माएं जिन्हें ट्वॉल कहते थे। आइये चलते हैं, उस स्वर्णिम काल मे जब हम इतने विकसित नही थे, लेकिन रिश्तों, संवेदना,और प्यार के क्षेत्र में हम धनाढ्य थे। उस समय शाम को, ईजा और काकी खाना बनाती थी । और मैं अपने दादा…