Friday, April 11, 2025
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कोटी कनासर, भीड़ से दूर शांति के लिए प्रसिद्ध है यह हिल स्टेशन !

कोटी कनासर हिमाचल और उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहा दैविय या प्राकृतिक शक्तियों का प्रमुख क्षेत्र माना जाता है। ये दोनो हिमालयी राज्य धार्मिक रूप से संपन्न होने के साथ-साथ प्राकृतिक रूप से भी समृद्ध हैं। यहां प्राकृतिक सुन्दरता से भरे हुए अनेको क्षेत्र है, जिसकी सुन्दरता आपको एक अलग दुनिया में ले जाऐगी यहा एक से बढ़कर एक हिल स्टेशन हैं, जो प्राकृतिक सुन्दरता के मामले मे विश्व प्रसिद्ध है। इसके अलवा कुछ ऐसे हिल स्टेशन भी हैं, जिन्हें अभी तक अधिक लोगों ने नहीं देखा है, और वे सुन्दरता के मामले मे किसी चर्चित हिल स्टेशन से कम नहीं हैं।

उत्तराखंड का ऑफ बीट हिल स्टेशन है कोटी कनासर –

इस पोस्ट में उत्तराखंड के एक ऐसे हिल स्टेशन के बारे में लिख रहे है, जिसे अभी तक बहुत कम लोगों ने देखा है। यह हिल स्टेशन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से काफी नजदीक है। देहरादून के नजदीक छुपे हुए इस हिल स्टेशन का नाम है, कोटी कनासर (koti Kanasar) कोटी कनासर उत्तराखंड में स्थित एक छोटा सा सुन्दर हिल स्टेशन है।

यह हिल स्टेशन, देहरादून से मात्र 113 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यदि आप नैनीताल, मसूरी जैसी भीड़-भाड़ वाले हिल स्टेशन से अच्छी कोई शान्त और सुकून भरी डेस्टिनेशन चाहते है तो कोटी कनासर एक अच्छा विकल्प बन सकता है। यह सुन्दर स्थान मसूरी से 105 किमी की दूरी पर स्थित है।कोटी कनासर हिल स्टेशन उत्तराखंड के प्रसिद्ध हिल स्टेशन चकराता से केवल 25 किमी की दूरी पर स्थित है।

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सुन्दर देवदार के पेड़ो से घिरा है कोटी कनासर-

यह हिल स्टेशन अपने प्राचीन देवदार के पेड़ो के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां एक 20 फीट ऊंचाँ येवदार का वृक्ष है, जिसके बारे में कहा जाता है, कि यह एशिया का सबसे पुराना देवदार वृक्ष है। प्रकृति संरक्षण का सन्देश देता है यह हिल स्टेशन ! यहा देवदार के पेड़ो पर लिखा है, “मैं एक बूढ़ा पेड़ हूं, मैं बात नहीं कर सकता फिर भी मैं कनासर देवता से आपकी सुखद यात्रा और आपकी सुख समृद्धि की कामना करता हूँ। उम्मीद है आप अपने परिवार की तरह मेरा स्वय ख्याल भी रखोगे”

कोटी कनासर

विशेष है यहां का मन्दिर –

यहां भगवान भोलेनाथ को समर्पित एक मन्दिर है। जिसे कनासर देवता मंन्दिर कहा जाता है। यह मन्दिर यहां के प्रमुख आकर्षणों मे एक है। यह मन्दिर अपनी अद्‌भुत स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।

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कोटी कनासार मे करने लायक, गतिविधियां –

1 कैम्पिंग

कोटी कनासर मे कैम्पिंग एक बेहतरीन गतिविधि होगी। कोटी कनासर हिल स्टेशन का आन्नद लेने के लिए कैम्पिंग सबसे अच्छा विकल्प होगा प्रकृति के बीच कुछ दिन रहने का अनुभव अवश्य प्राप्त करें।

2- नेचर वाक और फोटोग्राफी –

यहां प्रकृति की अद्‌भुत सुन्दरता का आनन्द सकते हैं। और प्रकृति के बीच बिताएं इन अनमोल पलों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। प्रकृति की सुन्दर वादियों में नेचर वाक का आनंद ले सकते कोटी कनासर (koti Kanasar) पिकनिक स्पॉट के रूप में प्रसिद्ध है। यहां लोग परिवार सहित पिकनिक मनाने या हनीमून मनाने भी आते हैं।

koti kanasar

कहाँ ठहरें –

कोटि कनासर में ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था मिल जाती है। यहाँ होटल ,लाज ,होमस्टे और फारेस्ट विभाग का एक गेस्टहॉउस उपलब्ध है।

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 कैसे जाये-

यहाँ जाने के लिए सर्वप्रथम देहरादून आना पड़ेगा। देहरादून उत्तराखंड की राजधानी होने की वजह से यातायात के साधनो से अच्छी तरह जुडी है। देहरादून से बस प्राइवेट टेक्सी ,बस इत्यादि से यहाँ पंहुचा जा सकता है।

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कानाताल शांति व सुकून के लिए, उत्तराखंड का नंबर 1 हिल स्टेशन है।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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