Thursday, March 27, 2025
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पंच भैया खाल | गढ़वाल का ऐतिहासिक स्थल और कठैत भाइयों की कहानी

गढ़वाल मंडल के पौड़ी जनपद में स्थित पंच भैया खाल (Panch bhaiya khal ) एक ऐतिहासिक स्थल है, जो गढ़वाल की मध्यकालीन राजनीति की एक महत्वपूर्ण घटना का साक्षी रहा है। यह स्थान कर्णप्रयाग से श्रीनगर के पैदल यात्रा मार्ग पर गुलाबराय चट्टी और नगरकोटा के बीच एक धार (ridge) पर स्थित है। इसका नाम पंच भैया खाल पड़ा है, जिसका अर्थ है ‘पांच भाइयों की मृत्यु का स्मारक’। यह स्थान न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है, बल्कि यह गढ़वाल के इतिहास की एक रोमांचक और दुखद घटना को भी समेटे हुए है।

पंच भैया खाल का ऐतिहासिक महत्व :-

पंचभैया खाल का सम्बन्ध गढ़वाल की मध्यकालीन राजनीति से है। यहां पर पंच भय्या के नाम से ज्ञात एक 6 फीट का चतुष्कोणीय चबूतरा है, जो सन् 1716-17 में पांच भाई कठैतों की मृत्यु के स्मारक के रूप में बनाया गया था। मूल रूप से इस चबूतरे पर पांच पाषाण पटाल स्थापित थे, लेकिन समय के साथ इनमें से केवल तीन ही बचे हैं। डॉ. नैथाणी के अनुसार, इनमें से एक पत्थर को निकट के एक मकान में खूंटी के रूप में और दूसरे को चौक के पटाल के रूप में प्रयोग किया जा चुका है।

पंचभैय्या कठैतों की कहानी :-

पंचभैय्या कठैतों की कहानी गढ़वाल के राजा उपेन्द्रशाह के शासनकाल से जुड़ी है। उपेन्द्रशाह की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उनकी पत्नी कनकदेवी ने अपने देवर के पुत्र प्रदीपशाह को राजगद्दी पर बैठाया और स्वयं संरक्षिका बनकर शासन प्रबंध संभाला। कनकदेवी के पांच भाई, जिन्हें कठैत कहा जाता था, राज्य के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। इनमें से सबसे बड़े भाई भगौतसिंह को रनिवास के विशिष्ट अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया था।

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हालांकि, गढ़वाल के वरिष्ठ अधिकारी, जैसे गजेसिंह भण्डारी, शंकर डोभाल और पुरिया नैथाणी, कठैतों के बढ़ते प्रभाव के विरोधी थे। इसके परिणामस्वरूप, कठैतों और वरिष्ठ अधिकारियों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। कुछ समय बाद, भगौतसिंह कठैत के समर्थकों ने गजेन्द्र सिंह भण्डारी को गंगातट पर बने परगल के नये घाट पर मार डाला। शंकर डोभाल प्राण बचाने के लिए भाग गए, लेकिन बाद में पकड़े गए और हाथी के पैरों तले कुचलवा दिए गए।

कठैतों का पतन और पंचभैया खाल ( Panch Bhaiya Khal ) का निर्माण :-

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कठैतों ने राज्य प्रशासन को पूरी तरह से अपने कब्जे में लेने के लिए अवयस्क राजकुमार की हत्या का षड्यंत्र रचा। हालांकि, राजमाता कनकदेवी को इस षड्यंत्र की सूचना मिल गई और उन्होंने पुरिया नैथाणी के सहयोग से राजकुमार की रक्षा की। इसके बाद, श्रीनगर में कठैतों और उनके समर्थकों को घेर लिया गया। जब ये लोग अपनी जान बचाने के लिए भट्टी सेरा की ओर भाग रहे थे, तो पंचभैया खाल की चढ़ाई पर पकड़े गए और मार डाले गए।

इस घटना के बाद, जहां पर ये पांच भाई मारे गए थे, वहां पर एक चबूतरा बनाया गया, जिसे पंचभैय्यों का मांडा (चबूतरा) कहा जाने लगा। बाद में यह स्थान पंच भैय्या खाल (Panach Bhaiya Khal ) के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

पंच भैया खाल

पंच भैया खाल का वर्तमान स्वरूप –

आज, पंच भैया खाल ( Panch bhaiya khal ) एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में जाना जाता है, जो गढ़वाल के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना को याद दिलाता है। यहां का चबूतरा और उस पर स्थित पाषाण पटाल आज भी उस दुखद घटना की याद दिलाते हैं। यह स्थान न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए, बल्कि प्रकृति प्रेमियों के लिए भी एक आकर्षक स्थल है।

पंचभैया खाल गढ़वाल की ऐतिहासिक धरोहर है,  यह स्थान न केवल गढ़वाल के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना का साक्षी है, बल्कि यह प्राकृतिक सौंदर्य से भी परिपूर्ण है। यदि आप गढ़वाल की यात्रा कर रहे हैं, तो पंचभैया खाल को अपनी यात्रा सूची में अवश्य शामिल करें और इस ऐतिहासिक स्थल की गहराई में उतरें।

संदर्भ – उत्तराखंड ज्ञानकोष पुस्तक 

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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