Friday, April 18, 2025
Homeसंस्कृतिलक्ष्मी पौ ऐपण के बिना अधूरी है पहाड़ की दिवाली।

लक्ष्मी पौ ऐपण के बिना अधूरी है पहाड़ की दिवाली।

लक्ष्मी पौ ऐपण के बिना अधूरी है पहाड़ की दीपावली। जैसा कि हम सबको पता है उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति की पहचान उत्तराखंड की लोककला ऐपण पहाड़ की एक समृद्ध विरासत है। वर्तमान समय में डिजिटल क्रांति के बाद उत्तराखंड की इस लोककला का बहुत ज्यादा प्रचार तो हुवा ही है ,इससे उत्तराखंड के कई युवाओं को रोजगार भी मिला है। इसी समृद्ध लोककला का एक रूप है लक्ष्मी पौ ऐपण।

लक्ष्मी पौ ऐपण

लक्ष्मी पौ ऐपण –

लक्ष्मी पौ ऐपण का अर्थ है माँ लक्ष्मी के पैरों की छाप या लक्ष्मी के पदचिन्ह। यह उत्तराखंड कुमाऊनी ऐपण कला का एक अन्यतम स्वरूप है। इस ऐपण को मुख्यतः दीपावली पर्व के अवसर पर बनाया जाता है। जमीन पर गेरुई मिटटी लगाकर सफ़ेद चावल के विस्वार से ,माँ लक्ष्मी के स्वागत के लिए इन ऐपणों को उत्कीर्ण किया जाता है। इन्हे घर के आंगन से पूजाघर या मंदिर तक बनाया जाता है। इन्हे एक छोटे वृत्ताकार घेरे में बाहर के अंदर जाते हुए दर्शाया जाता है।

Hosting sale

लक्ष्मी पौ ऐपण

कैसे बनाये लक्ष्मी पौ ऐपण –

लक्ष्मी पौ ऐपण बनाने के लिए महिलाये इस कार्य में दक्ष होती है। वे अपनी मुट्ठी पिसे हुए चावलों के घोल में डुबाकर ,गेरुए मिटटी से वृत्ताकार बनाई आकृति में ठप्पा लगाती है। जिससे उस स्थान पर छोटे बच्चों के पैरों के जैसे निसान बन जाते हैं। इन पर फिर उँगलियाँ बनाकर पूरा कर दिया जाता है। इसके अलावा इन्हे बनाने के लिए एक विधि और अपनाई जाती है। इसमें पैर की बाहरी आकृतियों का रेखांकन किया जाता है उसके बाद अंगूठा और उंगलिया पूरी करते हुए लक्ष्मी पौ ऐपण पूरा कर लिया जाता है।

लक्ष्मी पौ ऐपण

Best Taxi Services in haldwani

वर्तमान में इन पारम्परिक तरीकों का कम ही प्रयोग होता है। अब बाजार में ऐपण के स्टिकर उपलब्ध हैं जिन्हे लोग आजकल प्रयोग करने लगे हैं। लेकिन ये स्टिकर वाले ऐपण या पेंट वाले ऐपण केवल देखने में चमकीले लगते हैं और आसानी से बन जाते हैं। मगर इनमे वो ऊर्जा वो दिव्यता नहीं होती जो गेरू की मिट्टी और चावल के विस्वार से बने ऐपणों में होती है।

इन्हे भी पढ़े _

ऐपण कला क्या है ? उत्तराखंड की ऐपण कला का इतिहास।

देहली ऐपण | यक्ष संस्कृति की देन है प्रवेश द्वार के आलेखन की यह परम्परा ।

हमारे व्हाट्सप ग्रुप से जुड़ें ! यहाँ क्लिक करें !

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments