Friday, April 11, 2025
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कभी हवा में बहती थी ये हल्द्वानी की ऐतिहासिक नहर !

हल्द्वानी की ऐतिहासिक नहर – अमूमन सभी नहरे जमीन में खोदी होती है। खेतों के किनारे या नदियों के किनारे खोद के गंतव्य तक पहुंचाई होती है। लेकिन आज हल्द्वानी शहर की एक ऐसी ऐतिहासिक नहर के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं जो कभी हवा में बहती थी। हल्द्वानी शहर को उत्तराखंड की व्यसायिक राजधानी और कुमाऊं का द्वार कहा जाता है। हल्द्वानी शहर का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है।

हल्द्वानी को अंग्रेजो की दी गई विरासत हल्द्वानी की ऐतिहासिक नहर –

अंग्रेजो ने भारत में वर्षों तक शाशन किया लेकिन उसके साथ -साथ विकास के लिहाज से भी कई कार्य किये। वही विकास के कार्य कई स्थानों में धरोहर के रूप में स्थापित हैं। अंग्रेजों की उन्ही धरोहरों में से एक धरोहर उत्तराखंड की व्यसायिक राजधानी में स्थापित है। हल्द्वानी शहर से लगभग दस किलोमीटर दूर फतेहपुर वन क्षेत्र में एक ऐतिहासिक नहर है। जिसे अंग्रेजो ने बनवाया था। यह ऐतिहासिक नहर की खासियत यह है कि ,यह नहर जमीन से लगभग चालीस फुट ऊंचाई पर 52 पिलरों पर बनाई गई है। इसलिए इस नहर का नाम बावन डाट नहर  भी है।

अंग्रेजों के समय लगभग 1904 ईस्वी के आस पास बनी ये हवाई नहर की लम्बाई लगभग एक किलोमीटर के आसपास है। ये नहर फतेहपुर से लामाचौड़ तक गुजरती है। 52 डाट नहर इस क्षेत्र के लगभग एक दर्जन गावों को सिचाई का पानी उपलब्ध कराती थी। इसकी एक खासियत यह है कि इसमें कोई सीमेंट या सरिया का प्रयोग नहीं किया गया है। जैसा की पूर्व विदित है पुरानी वास्तुकला में अंग्रेज उड़द की दाल पीस कर प्रयोग करते थे। ठीक वही तकनीक इसमें भी आजमाई गई है।

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हल्द्वानी की ऐतिहासिक नहर

कायाकल्प हो गया हल्द्वानी की 52 डांठ नहर का ,रील्स और व्लॉगरों का नया अड्डा बनी ये नहर

काफी समय तक प्रसाशन की उदासीनता झेलने के बाद आखिर इस शाशन प्रशासन को इस ऐतिहासिक नहर की याद आ ही गई। यह सब संभव हुवा नैनीताल के पूर्व जिलाधिकारी श्री धीरज गर्बियाल जी की मजबूत इच्छा शक्ति के कारण। श्री गबर्याळ जी ने इस स्थान को पुनर्स्थापित करने और इसे टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित करने की इच्छा जताई तो शाशन से उन्हें 78 लाख का बजट मिला। इस बजट में बनाकर तैयार हो गया हल्द्वानी का नया पिकनिक स्पॉट। अब यह बावन डाँठ नहर हल्द्वानी के टॉप टूरिस्ट प्लेसेस में लिस्टेड है। रील्स और व्लॉगरों का नया अड्डा बन गई है। हल्द्वानी शहर की इस ऐतिहासिक नहर  का कायाकल्प हो जाने से हल्द्वानी वासी भी खुश हैं।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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