हल्द्वानी की ऐतिहासिक नहर – अमूमन सभी नहरे जमीन में खोदी होती है। खेतों के किनारे या नदियों के किनारे खोद के गंतव्य तक पहुंचाई होती है। लेकिन आज हल्द्वानी शहर की एक ऐसी ऐतिहासिक नहर के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं जो कभी हवा में बहती थी। हल्द्वानी शहर को उत्तराखंड की व्यसायिक राजधानी और कुमाऊं का द्वार कहा जाता है। हल्द्वानी शहर का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है।
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हल्द्वानी को अंग्रेजो की दी गई विरासत हल्द्वानी की ऐतिहासिक नहर –
अंग्रेजो ने भारत में वर्षों तक शाशन किया लेकिन उसके साथ -साथ विकास के लिहाज से भी कई कार्य किये। वही विकास के कार्य कई स्थानों में धरोहर के रूप में स्थापित हैं। अंग्रेजों की उन्ही धरोहरों में से एक धरोहर उत्तराखंड की व्यसायिक राजधानी में स्थापित है। हल्द्वानी शहर से लगभग दस किलोमीटर दूर फतेहपुर वन क्षेत्र में एक ऐतिहासिक नहर है। जिसे अंग्रेजो ने बनवाया था। यह ऐतिहासिक नहर की खासियत यह है कि ,यह नहर जमीन से लगभग चालीस फुट ऊंचाई पर 52 पिलरों पर बनाई गई है। इसलिए इस नहर का नाम बावन डाट नहर भी है।
अंग्रेजों के समय लगभग 1904 ईस्वी के आस पास बनी ये हवाई नहर की लम्बाई लगभग एक किलोमीटर के आसपास है। ये नहर फतेहपुर से लामाचौड़ तक गुजरती है। 52 डाट नहर इस क्षेत्र के लगभग एक दर्जन गावों को सिचाई का पानी उपलब्ध कराती थी। इसकी एक खासियत यह है कि इसमें कोई सीमेंट या सरिया का प्रयोग नहीं किया गया है। जैसा की पूर्व विदित है पुरानी वास्तुकला में अंग्रेज उड़द की दाल पीस कर प्रयोग करते थे। ठीक वही तकनीक इसमें भी आजमाई गई है।
कायाकल्प हो गया हल्द्वानी की 52 डांठ नहर का ,रील्स और व्लॉगरों का नया अड्डा बनी ये नहर
काफी समय तक प्रसाशन की उदासीनता झेलने के बाद आखिर इस शाशन प्रशासन को इस ऐतिहासिक नहर की याद आ ही गई। यह सब संभव हुवा नैनीताल के पूर्व जिलाधिकारी श्री धीरज गर्बियाल जी की मजबूत इच्छा शक्ति के कारण। श्री गबर्याळ जी ने इस स्थान को पुनर्स्थापित करने और इसे टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित करने की इच्छा जताई तो शाशन से उन्हें 78 लाख का बजट मिला। इस बजट में बनाकर तैयार हो गया हल्द्वानी का नया पिकनिक स्पॉट। अब यह बावन डाँठ नहर हल्द्वानी के टॉप टूरिस्ट प्लेसेस में लिस्टेड है। रील्स और व्लॉगरों का नया अड्डा बन गई है। हल्द्वानी शहर की इस ऐतिहासिक नहर का कायाकल्प हो जाने से हल्द्वानी वासी भी खुश हैं।
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