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Women of Uttarakhand – उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं

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उत्तराखण्ड में महिलाओं (women of Uttarakhand) को पर्वतीय अर्थव्यवस्था का केंद्रबिंदु कहा जाता है। रोजगार के संसाधनों के अभाव में पुरुष जहां पलायन करने को विवश हैं। वहीं परिवार, खेती-बाड़ी और समाज की जिम्मेदारियां महिलाओं को निभानी पड़ती हैं। अपने कष्टसाध्य जीवन संघर्ष के बूते जीवन जीने वाली उत्तराखण्ड की नारी में हिम्मत, साहस, कर्मठता, निर्भीकता और जुझारूपन की कभी कमी नहीं रही। पहाड़ की माटी से बने उसके शरीर में इतनी सक्षमता होती है कि भाग्य पर रुदन करने की बजाय वह पूरी सामर्थ्य के साथ न सिर्फ घर-परिवार की जिम्मेदारियां निभाती है, बल्कि समाज सेवा, शिक्षा, उद्यम, पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में भी सहभागी बनकर सामाजिक शून्यता को पूर्णता प्रदान करने के प्रयत्न में जुटी नजर आती है। पर्वतीय क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की अधिकता भी साबित करती है कि कष्टसाध्य जीवन के बावजूद महिलाएं यहां के समाज को जीवन्त बनाए रखने में अहम भूमिका निभा रही हैं। आज इस पोस्ट के माध्यम से कुछ  उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाओं के नाम और उनके बारे में संक्षिप्त जानकारियों का संकलन कर रहें हैं, जिन्होंने उत्तराखंड के इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों  में दर्ज कराया है। हालाँकि उत्तराखंड के इतिहास और वर्तमान में कई महिलाओं ने अपना अतुलनीय योगदान दिया है। इस संकलन में उत्तराखंड से जुडी कुछ ऐतिहासिक, पौराणिक महिलाओं की सूचि संकलित की है।

Women of Uttarakhand – उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं

रानी कर्णावती: वह गढ़वाल के राजा महीपति शाह की रानी थी। जिसे के इतिहास में प्रसिद्ध ‘वीरांगना और नीति कुशल रानी’ के नाम से जाना जाता है। तत्कालीन समय में मुगलों से एक युद्ध में मुगल सेना के अधिकांश सैनिक मारे गये। रानी के आदेश पर शेष मुगल सैनिकों के नाक-कान काट कर उन्हें भागने को मजबूर कर दिया गया। रानी कर्णावती तभी से ‘नाक काटी राणी’ नाम से प्रसिद्ध हो गई।

जियारानी- कत्यूरी नरेश प्रीतम देव की छोटी रानी। कुमाऊं में न्याय की देवी और कुमाऊं की लक्ष्मीबाई  नाम से विख्यात। कुमाऊं पर रोहिलों और तुर्कों के आक्रमण के दौरान रानीबाग युद्ध में उनका डटकर मुकाबला किया था।

जसुली शौक्याण- कुमाऊं-गढ़वाल से लेकर तिब्बत तक व्यापारियों, यात्रियों के धर्मशालाएं, पानी के प्याऊ बनाने वाली दानी महिला दारमा की जसुली शौक्याण, जसुली अम्मा के नाम से जानते हैं। जसुली शौक्याण बहुत बड़ी सम्पत्ति की मालकिन थी। दुर्भाग्य से उनके पति और पुत्र की जल्दी मृत्यु हो जाने के कारण वे अकेली पड़ गई। हताशा के मारे एक दिन वो सारी दौलत धौलीगंगा में बहा देनी चाही। दौलत को बहाते हुए अचानक अंग्रेज कमिश्नर रैमजे की नजर जसुली बुढ़िया पर पड़ गई। उन्होंने उसे समझाया कि इस पैसे का सदुपयोग किया जाय। तब हेनरी रैमजे ने जसुली अम्मा के नाम से पुरे कुमाऊं गढ़वाल और तिब्बत तक धर्शालाएँ और सराय खोली।

तीलू रौतेली: चौन्दकोट, गढ़वाल में जन्मी अपूर्व शौर्य, संकल्प और साहस की धनी इस वीरांगना को गढ़वाल के इतिहास में ‘झांसी की रानी’ के नाम से जाना जाता है।
सरला बहन-मूल नाम मिस कैथरिन हैलीमन: स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, (जन्म 5 अप्रैल, 1901 इंग्लैण्ड), मृत्यु-1982।
बिशनीदेवी शाह: स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, जन्म 2 अक्टूबर, 1902 मृत्यु 1971 बागेश्वर। स्वतन्त्रता संग्राम में जेल जाने वाली उत्तराखण्ड की प्रथम महिला।
कुन्ती वर्मा: स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी। जन्म 1906-1980 अल्मोड़ा नगर।
टिंचरी माई: गढ़वाल में शराब विरोधी आन्दोलन एवं शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका। टिंचरी माई का जन्म ग्राम मंज्यूर, तहसील थलीसैंण में तथा विवाह ग्राम गवांणी, ब्लॉक पोखड़ा, पौड़ी गढ़वाल के हवलदार गणेशराम नवानी से हुआ था जो द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हो गए थे। परिवार से विरक्त होने पर ये जोगन बन गईं मगर सामाजिक कार्यों में अपने योगदान के लिए सारे गढ़वाल में प्रसिद्ध हुईं। इनका वास्तविक नाम दीपा देवी था। गांव में यह ठगुली देवी के नाम से पुकारी जाती थी। इच्छागिरी माई के रूप में भी इन्होंने प्रसिद्धि पायी। इन्होंने सामाजिक कुरीतियों तथा धार्मिक अन्धविश्वासों का डटकर मुकाबला किया। गढ़वाल में पचास-साठ के दशक में आयुर्वेद दवाई के नामपर बिकने वाली शराब (टिंचरी) की दुकानों को बन्द कराने तथा बच्चों की शिक्षा विशेषकर बालिकाओं की शिक्षा के लिए कई स्कूलों का निर्माण कराने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
गौरा देवी: (जन्म 1925-4 जुलाई, 1991) चिपको आन्दोलन की प्रथम सूत्रधार महिला। 19 नवम्बर, 1986 में प्रथम वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित। चिपको वूमन के नाम से ख्याति प्राप्त।
राधा बहन: सामाजिक कार्यों से सम्बद्ध। (जन्म 16 अक्टूबर, 1934) नारायण आश्रम, कौसानी।
आइरिन पन्त: इनका जन्म डेनियल पन्त के घर मला कसून अल्मोडा साथ हुआ। आइरिन पंत का विवाह लिकायत अली के साथ हुवा था। बाद में लिकायत अली पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री बने।  वे 1954 में नीदरलैण्ड्स में पाकिस्तान की राजदूत रहीं। और गवर्नर पद पर पहुंचने वाली वे पाकिस्तान की प्रथम महिला थी। इनको ‘मदर ऑफ पाकिस्तान’, ‘वूमन ऑफ द वल्र्ल्ड’ (1965) तथा संयुक्त संघ के मानवाधिकार पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
चन्द्रप्रभा एतवाल: विश्व प्रसिद्ध पर्वतारोही नंदादेवी अभियान की 1993 में नेशनल एडवेंचर अवार्ड और वर्ष 2010 में तेनजिंग नोर्ग अॅवार्ड से सम्मानित किया गया है। चन्द्रप्रभा एतवाल को 1981 में सफलता के लिए अर्जुन पुरस्कार, 1990 में पदमश्री से सम्मानित किया था।
डॉ० हर्षवन्ती बिष्ट: उत्तराखंड की प्रसिद्ध पर्वतारोही व् अर्जुन पुरस्कार विजेता डा. हर्षवंती बिष्ट महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं। डा. हर्षवंती बिष्ट देश के सबसे बड़े पर्वतारोहण संस्थान इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं। IMF के इतिहास में डा. हर्षवंती बिष्ट पहली महिला अध्यक्ष बनी हैं। इसके साथ ही उत्तराखंड से IMF का पहला अध्यक्ष बनने का सम्मान भी उनके नाम पर है।
बछेन्द्रीपाल: जन्म 24 मई, 1954 भारत की प्रथम महिला एवरेस्ट विजेता। 1985 में पद्मश्री से सम्मानित। बछेंद्रीपाल, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला है। सन 1984 में इन्होंने माउंट एवरेस्ट विजय किया था। बछेंद्रीपाल एवरेस्ट की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की पाँचवीं महिला पर्वतारोही हैं।
हंसा मनराल: द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाली प्रथम महिला। उत्तराखंड पिथौरागढ़ के भाटकोट में जन्मी हंसा मनराल भारत की पहली महिला भारोत्तोलक कोच रही है। इनके कुशल प्रशिक्षण में पहली बार भारतीय भारत्तोलक महिलाओं ने विश्व भारोत्तोलन प्रतियोगिता में पांच रजत और दो कांस्य पदक जीते थे।
प्रो० सुशीला डोभाल: वे 1958 में महादेवी कन्या डिग्री कॉलेज देहरादून में प्रधानाचार्या बनीं। 1977 में पहली बार और 1984-85 में वह दूसरी बार गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति बनीं। इन्हें उत्तराखण्ड की प्रथम महिला कुलपति होने का गौरव प्राप्त है।
हिमानी शिवपुरी: (24 अक्टूबर, 1957) टेलीविजन एवं हिन्दी सिनेमा की प्रसिद्ध कलाकार। 1984 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़ने के बाद कई निर्माता-निर्देशकों के साथ कार्य किया। 1994 में सूरजबड़जात्या की फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ में सफल अभिनय के साथ ही कई फिल्मों एवं धारावाहिकों में अभिनय किया।
श्रीमती बसन्ती बिष्ट: ऐतिहासिक वीर गाथाओं तथा जागर गायकी के लिए प्रसिद्ध तथा ‘नन्दा के जागर’ पुस्तक की लेखिका। श्रीमती बसंती बिष्ट ने उत्तराखंड के जागर गायन को  नए आयाम दिए। पुरुष वर्चस्व वाले जागर क्षेत्र के बंधनो को तोड़कर आकाशवाणी, दूरदर्शन और विभिन्न मंचों पर पहुंचकर एक ऐसा लक्ष्य  हासिल किया, जो आज एक प्रेणा बन गया है। आजकल  में वे देहरादून में रहती हैं।  विभिन्न मंचों पर जागर की प्रस्तुति देकर पहाड़ की संस्कृति के संवर्द्धन में सतत प्रयासरत हैं । जनवरी 2017 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

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कबूतरी देवी: पिथौरागढ़ जिले के ग्राम क्वीतड़ निवासी लोक गायिका कबूतरी देवी का जन्म काली कुमाऊँ के लेटी गाँव में हुआ। इनके लखनऊ और नजीबाबाद आकाशवाणी केन्द्रों से गाए गीत बहुत लोकप्रिय हुए। कुमाऊं कोकिला नाम से प्रसिद्ध कबूतरी देवी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित थी। 2016 में उत्तराखंड के 17 वे स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में उन्हें लाइफ टाइम अचीमेन्ट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 7 जुलाई 2018 को उनका निधन हो गया।
सुभाषिनी बर्त्वाल: उत्तराखण्ड आन्दोलन केसी०बी०आई० मुकदमे झेलने वाली एकमात्र महिला हैं। वे 2 सितम्बर 1994 को हुए मसूरी गोलीकांड की प्रत्यक्षदर्शी रही हैं। इन पर पुलिस क्षेत्राधिकारी उमाकान्त त्रिपाठी की हत्या का झूठा आरोप लगाया गया था।
विजया बड़थ्वाल: वर्ष 2009 में उत्तराखण्ड विधानसभा की प्रथम उपसभापति चुनी गई। तत्पश्चात् राज्यमंत्री बनाई गई। वह उत्तराखंड की सबसे वरिष्ठ और सक्रिय राजनीतिज्ञों में से एक हैं। वह विधान सभा की तीन बार सदस्य हैं और उन्होंने पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड के यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था।वह मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी और रमेश पोखरियाल की सरकार के मंत्रिमंडल में थीं। उन्हें उत्तराखंड विधान सभा के पहले डिप्टी स्पीकर के रूप में भी सेवा दी गई है।
कलावती रावत: जिनेवा में आयोजित ‘विश्व महिला शीर्ष सम्मेलन’ में वर्ष 2000 का ‘ग्राम्य जीवन में रचनात्मकता’ पुरस्कार से सम्मानित। अपने गावं में बिजली लाने वाली। जंगल माफियाओं को सबक सिखाने वाली समाज सुधारक।
कैप्टेन भावना गुरुनानी : जनवरी 1972 में अल्मोड़ा के सूरीगांव में जन्मी कैप्टन भावना गुरनानी क उत्तराखण्ड की पहली सैन्याधिकारी हैं, जिन्हें ए.एम.सी. के अतिरिक्त सेना की दूसरी शाखा (AEC) में नियुक्ति पाने का गौरव प्राप्त हुआ। इन्होंने  भारतीय सेना में 1994 में प्रवेश किया था।
मेजर जनरल माया टम्टा: माया टम्टा उत्तराखंड की ही नहीं भारत की पहली महिला  मेजर जनरल थी।
मधुमिता बिष्ट: मधुमिता बिष्ट  उत्तराखंड की पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। वह आठ बार राष्ट्रीय एकल विजेता, नौ बार युगल विजेता और बारह बार मिश्रित युगल विजेता हैं। 1992 में विश्व की नंबर दो कुसुमा सरवंता ने मलेशियाई ओपन जीता था। 1982 में मधुमिता बिष्ट को अर्जुन पुरस्कार और 2006 में पदमश्री से सम्मानित किया गया।
श्रीमती लक्ष्मीदेवी टम्टा: लक्ष्मी देवी टम्टा उत्तराखंड की पहली दलित महिला स्नातक थी। तथा वे उत्तराखंड की पहली दलित महिला सम्पादक भी थी। हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में लक्ष्मी देवी का योगदान महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड की पहली अनुसूचित जाती की महिला स्नातक का सम्मान प्राप्त लक्ष्मी देवी टम्टा ने समता पत्रिका के माध्यम से अनुसूचित जाती के लोगो की आवाज को बुलंद स्वर प्रदान किया। तथा दलित वर्ग की शिक्षा समानता के लिए सदा प्रयासरत रही। इनके बारे में विस्तार से पढ़े यहाँ
मृणाल पाण्डेय: इनका जन्म फरवरी 1946 में टीकमगढ़ में हुआ था। बहुमुखी  प्रतिभा की धनी मृणाल पाण्डेय लेखिका, सम्पादक, पत्रकार, कलाविद , मूर्ति शिल्पी, आगरा व ग्वालियर घरानों के  हिन्दुस्तानी संगीत की संगीतज्ञ और दूरदर्शन की जानी-मानी एंकर रही हैं। मृणाल पांडेय दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ की संपादक है।
बसंती देवी: 2022 में पद्मश्री पाने वाली 60 वर्षीय बसंती देवी उत्तराखंड की प्रसिद्ध समाज सेविका हैं। उन्होंने राज्य में महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण संरक्षण, पेड़ों व नदी को बचाने के लिए अपना योगदान दिया है। महज 12 वर्ष की उम्र में ही बसंती देवी का विवाह हो गया था। विवाह के महज दो साल बाद ही उनके पति का निधन हो गया। जिसके बाद बसंती देवी कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम में रहने लगी।  उन्होंने कोसी नदी का अस्तित्व बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से जंगल को बचाने की मुहिम शुरू की।
डॉ माधुरी बड्थ्वाल: लोक गीतों और लोक संगीत के संरक्षण और प्रचार के लिए भारत सरकार ने डॉक्टर माधुरी बर्थवाल जी को  पद्मश्री सम्मान के लिए चयनित किया है। डॉक्टर माधुरी आल इंडिया रेडिओ में पहली महिला संगीतकार के रूप में जानी जाती हैं। इनको वर्ष 2019 के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डॉक्टर माधुरी जी उत्तराखंड के लोकसंगीत के संरक्षण के लिए बरसों से काम कर रही हैं। विस्तार से पढ़े..
रेशमा शाह: ये उत्तराखंड के जौनसार बावर की प्रसिद्ध लोकगायिका है। लोकगायिका रेशमा शाह को लोक कला लिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार प्रदान किया गया है।
ऋतु खंडूरी भूषण: ऋतु खंडूड़ी उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी की बेटी है। कोटद्वार से विधायक और उत्तराखंड की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष हैं।
इनके अतिरिक्त उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाओं में, युवा महिला क्रिकेटर एकता बिष्ट, स्नेहा राणा, मानसी जोशी, तथा युवा पत्रकार मीनाक्षी कंडवाल, युवा एथिलीट मानसी नेगी और महिला हॉकी स्टार वंदना कटारिया का नाम उल्लेखनीय है।

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