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वीर केसरी चन्द का जीवन परिचय :-
उत्तराखंड का जौनसार क्षेत्र न केवल अपने सांस्कृतिक वैभव के लिए जाना जाता है, बल्कि इसने देश को कई वीर सपूत भी दिए हैं। यहां की लोकगाथाएं, हारूल नृत्य और मेले-ठेले समाज की जीवंत परंपराएं हैं। यहीं चकरौता के समीप रामताल गार्डन (चौलीथात) में हर वर्ष 3 मई को वीर केसरी चन्द मेला आयोजित होता है। इस अवसर पर वीर केसरी चन्द की शहादत को ‘हारूल’ लोकगीत के माध्यम से श्रद्धांजलि दी जाती है:
सूपा लाहती पीठी है, ताउंखे आई गोई केसरीचंदा
जापान की चीठी हे, जापान की चीठी आई, आपूं बांच केसरी है।
केसरी चन्द का प्रारंभिक जीवन –
- जन्म: 1 नवम्बर, 1920 — गांव: क्यावा, जौनसार बावर
- पिता का नाम: पं. शिवदत्त
- शिक्षा: विकासनगर से प्रारंभिक शिक्षा, फिर डीएवी कॉलेज देहरादून से हाईस्कूल (1938)
पढ़ाई के दौरान ही उनमें राष्ट्रीय चेतना विकसित होने लगी। कांग्रेस की सभाओं में भाग लेने से उनमें निर्भीक नेतृत्व और देशभक्ति का विकास हुआ।
आर्मी सेवा और आज़ाद हिंद फौज से जुड़ाव –
10 अप्रैल, 1941 को केसरी चन्द रॉयल इंडिया आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार बने। युद्धकाल में उन्हें मलाया फ्रंट भेजा गया, जहां वे जापानियों द्वारा बंदी बना लिये गए।
इसके बाद उन्होंने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में आज़ाद हिंद फौज में शामिल होकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ निर्णायक संघर्ष किया। उन्हें कई खतरनाक मिशनों की जिम्मेदारी दी गई।
गिरफ्तारी और फांसी की सजा –
इम्फाल के युद्ध में पुल उड़ाने के प्रयास के दौरान केसरी चन्द ब्रिटिश सेना द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें दिल्ली की जिला जेल में रखा गया और राजद्रोह और षड्यंत्र के आरोप में मुकदमा चलाया गया। मात्र 24 वर्ष 6 माह की उम्र में उन्हें फांसी की सजा दी गई।
शहादत की तारीख: 3 मई, 1945
अंतिम क्षणों में उन्होंने “भारत माता की जय” और “जय हिन्द” के नारे लगाए और हंसते हुए फांसी पर झूल गए।
श्रद्धांजलि और उत्तराखंड की गौरवगाथा –
उत्तराखंड केसरी चन्द को अपना अमर बलिदानी सपूत मानता है। उनके सम्मान में मनाया जाने वाला वीर केसरी चन्द मेला आज एक जन-सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है।
उनकी शहादत पर आधारित लोकगीत, स्कूलों में होने वाले कार्यक्रम और लेखनी में उनकी वीरगाथा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती है।
निष्कर्ष
वीर केसरी चन्द एक प्रेरणास्रोत हैं—उन युवाओं के लिए जो देशप्रेम और बलिदान का अर्थ समझना चाहते हैं। उत्तराखंड की भूमि धन्य है जिसने केसरी चन्द जैसे सपूत को जन्म दिया।
आइए, हर 3 मई को हम सब मिलकर उन्हें स्मरण करें और अपने कर्तव्यों को निभाने का संकल्प लें।
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