Friday, October 25, 2024
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राहु मंदिर पैठाणी उत्तराखंड, उत्तर भारत का एकमात्र राहु मंदिर

सनातन धर्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि ,यहाँ जिस सम्मान से देवो को ,पूजते हैं उसी आदर से असुरों को भी पूजते हैं। और सबको आदर और पूजने का भाव सबसे ज्यादा देवभूमि उत्तराखंड में मिलता है। यहाँ देव भी पूजे जाते हैं , और दानव भी पूजे जाते हैं।

यहाँ यदि पांडव पूजे जाते हैं तो ,दुर्योधन भी पूजा जाता है। और पांडवकालीन हिडम्बा भी पूजी जाती है। शायद इसीलिए उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहाँ शुभ ग्रह के बारे अशुभ ग्रह भी पूजे जाते हैं। आज इस लेख में एक ऐसे मंदिर के बारें में बताएंगे ,जो अनोखा है। आज हम आपको उत्तराखंड के राहु मंदिर के में बताएंगे। जो संभवतः भारत का एकलौता राहु मंदिर हैं।

राहु मंदिर पैठाणी उत्तराखंड –

राहु मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले में ,थलीसैण ब्लॉक में कंडारस्यूं पट्टी में पैठाणी नामक गावं में स्योलीगाड़ नदी (रथवाहिनी नदी) और नवालिका (पक्षिमी नयार  नदी ) के संगम पर स्थित है। यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिला मुख्यालय से मात्र 46 किलोमीटर दुरी पर स्थित है।

छाया ग्रह माने जाने वाले राहु का शायद पुरे उत्तर भारत या भारत में यह एकलौता राहु मंदिर है। वैसे दक्षिण भारत मे भी एक मंदिर है लेकिन वहां राहु के साथ केतु की पूजा भी होती है ।लोक मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है, कि इस मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य जी ने करवाया था। जब आदि गुरु शंकराचार्य हिमालय की यात्रा पर थे ,उन्होंने पैठाणी में राहुमंदिर का निर्माण करवाया था। पैठाणी का राहु मंदिर केदारनाथ शैली में बना है।

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कुछ जनश्रुतियों में कहा जाता है, कि जब पांडव स्वर्गारोहिणी यात्रा पर थे,तब उन्होनें  राहु दोष से बचने के लिए ,भगवान शिव और राहु की पूजा की और यहाँ ,मंदिर स्थापित किया। संभवतः यहाँ सर्वप्रथम पांडवों ने मंदिर की स्थापना की होगी और कालांतर में , मंदिर किसी कारण टूट फुट या  खराब हो गया होगा ,जिसे चूंकि आदि गुरु शंकराचार्य, महाज्ञानी संत थे , जब वे हिमालय की यात्रा पर आए तो, सनातन धर्म के अन्य मंदिरों के साथ इस मंदिर का भी पुनरुत्थान किया।

इस मंदिर में केवल राहु कि पूजा नही होती ,बल्कि भगवान शिव के साथ यहां राहु की पूजा होती है। पक्षीमोमुखी इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। तथा मंदिर के शीर्ष पर शेर और हाथी की प्रतिमा अंकित है। मंदिर की दीवारों पर आकर्षक कारीगरी की गई है। यहां राहु के कटे सिर के साथ विष्णु भगवान के सुदर्शन की नक्काशी की गई हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ ,राहु का सिर पत्थर के नीचे दबा हुआ है। इसी का प्रतीक यहां राहु की धड़ विहीन मूर्ति भी हैं। इसके अलावा मंदिर के भीतर और बाहर देवी देवताओं की मूर्तियां अंकित हैं। जिसमे गणेश प्रतिमा और चतुर्भुजी चामुंडा मूर्ति प्रमुख है ।

मंदिर का पौराणिक महत्व और राहु मंदिर की कहानी-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ राठ पर्वत पर ,असुर राहु ने भगवान भोलेनाथ की तपस्या की थी। अन्य पौराणिक मान्यता के आधार पर , जब पांडव स्वर्गारोहिणी यात्रा पर थे, उन्हीने  यहाँ ,भगवान शिव के साथ राहु की पूजा करके अपना राहु दोष दूर किया था।

पैठाणी गावँ का नामकरण:-

पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि,राहु के राज्य का नाम राठपुर था । राष्ट्रकूट पर्वत के नाम पर इस क्षेत्र का नाम राठ था । राहु का गोत्र पैठिनसि नाम पर राहु की इस गाव का नाम पैठाणी पड़ा । पैठाणी उर्फ पैठन उर्फ प्रतिष्ठान कभी गढवाल के दुर्गम राठ उर्फ राष्ट्र राज्य की राजधानी क्षेत्र था। गजेटियरों मे राठ को भितरी गढवाल मे स्थित दुर्गम किन्तु उपजाऊ ,जल सुविधा से पूर्ण पहाडी क्षेत्र बताया गया है। पंवार राजशाही मे पूरा देवलगढ परगना,धनपूर रानीगढ से कटुलस्युं , बच्छणस्युं से लेकर खातस्युं श्रीकोट तक राठ बताया गया। अंग्रेजों ने थैलीसैंण व पाबौ विकासखंड को राठ क्षेत्र माना था।

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राहु मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं

इस मंदिर से अनेक पौराणिक कहानियां जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ राहु का राठपुर था। यही राहु ने भगवान शिव की घनघोर तपस्या की थी। जिसके कारण यहाँ भगवान शिव के साथ राहु का मंदिर भी है। दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार , जब राहु ने सागर मंथन के समय छल से अमृत पी लिया था, तब श्री हरि विष्णु ने उसकी गर्दन अपने सुदर्शन चक्र से काट दी। और राहु का कटा हुआ सिर यहां आ कर गिरा। कहते हैं, राहु का कटा सिर एक बड़े पत्थर के नीचे दबा हुआ है।

एक अन्य लोक कथा के अनुसार , इस स्थान पर एक प्राचीन धारा है । जो इन्द्रेश्वर धारा के नाम से विख्यात है। यहाँ के संगम पर स्थित पत्थर को इन्द्रशिला के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण देवताओं द्वारा एक रात में किया गया था।पैराणिक ग्रन्थों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण 8वी शदी में हुवा था। मंदिर निर्माण के बाद यहां देवता शिव तपस्या में लीन थे ,कि राहु ने उन पर आक्रमण कर दिया। इंद्र और राहु में भयंकर युद्ध हुआ।और भगवान भोलेनाथ की मध्यस्थता करने के बाद  यह तय हुवा कि यहां इंद्र के साथ, राहु की भी पूजा होगी।

राहु मंदिर

मंदिर की शुकनासिका पर भगवान भोलेनाथ के त्रिमुख आकृति से यह तय होता है कि यहां,भगवान भोलेनाथ की पूजा भी होती थी,और आगे होती रहेगी। केदारखंड में लिखित श्लोक “ॐ भूर्भरवः स्व राठेनापुरदेभाव पैठिनासि गोत्र राहो ईहागछेदनिष्ट” को आधार बना कर इस मंदिर को राहू मंदिर मानते हैं। और मान्यता है, कि संभवतः राहु ने ही भगवांन भोलेनाथ की स्थापना की होगी।

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राहू मंदिर का पौराणिक महत्व :-

शिवालय के मंडप में वीणाधर शिव की मूर्ति के साथ, त्रिमूर्ति हरिहर की एक दुर्लभ मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के आश्चर्यजनक लक्षणों के कारण यह मूर्ति उत्तराखंड में ही नही, पूरे भारत की दुर्लभ मूर्तियों में से एक है। अपने राहु दोष दूर करने, इस छाया ग्रह को पूजने व यहां दर्शन करने लोग दूर दूर से आतें हैं। पैठाणी के सुंदर पर्वतीय अंचल के दीदार करने भी लोग देश से आते ।

राहु मंदिर में मूंग की खिचड़ी का भोग लगता है :-

राहु दोष निवारण के लिए लोग दूर दूर से आते हैं।और यहां चढावे में मूंग की खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। भंडारे में भी लोगों को प्रसाद रूप में मूंग की खिचड़ी दी जाती है।

राहू मंदिर पैठाणी कैसे पहुचें –

पैठाणी देश के सभी राजमार्गों से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से यहां आसानी से पहुँच सकते हैं। पौड़ी से पैठाणी लगभग 46 किलोमीटर और गढ़वाल के द्वार कोटद्वार से 150 किलोमीटर दूर है। देहरादून से पैठाणी लगभग 215 किलोमीटर दूर है। यहां से  NH7 से यात्रा करने पर लगभग 6 से 7 घंटे का समय लगेगा। नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून जौलीग्रांट है । और नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार है।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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