पलायन पर गढ़वाली कविता-
टिहरी गढ़वाल के युवा लेखक प्रदीप बिजलवान बिलोचन जी के सहयोग से यहाँ उत्तराखंड की मूल समस्या पलायन पर गढ़वाली कविता प्रस्तुत कर रहें हैं।
” इं देवभूमि का देवी देवता,

बोल किलै बिसराई तीन ।

सारी दुनिया मां मान,
हमारू बढ़ाई जौंन,
अगाड़ी बढ़न की होड़ मां,
कुजानी क्या पौन की दौड़ मां,
न कुछ पाई अर न,
कुछ दी सकी तीन।
इं देवभूमि का देवी देवता,
बोल किलै बिसराई तीन ।
बूढ़ा पराणी त जनु कैद,
सी रैगी हो जेलू मां।
शूर त राइ लग्यूं ऊं कू,
अपणा घर अर ,
गौ की गुठ्यारयों मां ।
पुतला सी जनू बनिगेनी स्यू,
राईकी त्यूं शैरू बाजारू मां ।
बीमार की चार जनू
दरद दिल मां लुकाई जैन ।
इं देवभूमि का देवी देवता,
बोल किलै बिसराई तीन ।
पितरों की बसाई इं भूमि मां,
त बोल देवताऊं दगड़ी सुध,
पितरों की भी तीन किलै
बिसराइ हां ये नया ,
जमाना की दौड़ मां ठोकर मि,
पर तिन किलै लाई हां ।
हमारा पुरखों का सुपिन्या अब,
तीन ही साकार कनी,
दगड़या वैका जनु सूद,
ब्याज सहित तीन ही भनी।
जु आज भी हमारा ,
गढ़-कुमाऊं की शान छीन।
लौट जा अब अपणा पाडू मां लगदू,
यनू कि,जनि तू भरमाई हो कैन ।
इं देवभूमि का देवी देवता भी,
त बोल किलै बिसराई तीन ।
जख कु कोदू, झंगोरू ,
अर कंडाली,मारसू भी जड़ी,
बूटियों का रूप मां बिकदू ।
ज़ख गाड़ गदर्यों कु पाणी,
सेंजी समलै,सेरा पुंगड्यो ,
नाज अर दाल दगड़ी हंसराज,
की क्यार्यों जनि सिंचदू ।
जख की माटी की इक-इक ,
गारी जनि,इं धरा पर गिरियां ,
पसीना की जनि कथा ,
लगौनी छ ।
तुम भी बढ़ा एकी ऐथर मेरा ,
दगड़यूं जनि धई लगै फिर ,
सी एक बारी या धरती ,
पावन देवभूमि बुलानी तुमुक छ ।
इतना सब कुछ होन का,
बावजूद भी,
बोला बल तुम चुप किलै,
बैठ्यां छीन ।
इं देवभूमि का देवी देवता भी,
बोल किलै बिसराई तीन ।
बद्री विशाल यख,
शिवजी कू धाम ।
पंडौ की स्वर्गारोहिनी छ,
अर उदनकारी सूरज कू ,
पड्डदू पैली पैलो घाम छ।
पारवती कु मैत यख,
जुंबा जुंबा पर पंचदेवू कू नाम छ ।
त बोल इं भागमभाग मां या,
पावन सी भूमि किलै ,
बिसराई तीन ।
इं देवभूमि का देवी देवता भी,
बोल किलै बिसराई तीन ।
देशू-विदेशू का देख लौटी की,
स्वर्ग जनि धरती मां ,
यख आना छिन ।
त बोला तुम किलै यख छोड़ी
दूर जाना छिन,पता छ मि ,
तैं यख रोजगार की ,
कमी तुम मानदा छिन।
लेकिन संभावना,
भी छ यख अपार,
बात या तुम भी गैल म्यारा,
धीरा-धीरा मानना छिन ।
बकरी, भेड़, खरगोश,
मुर्गी, मौन पालन करी ।
रोजगार का अवसर ढूंढी,
सकदा तुम,मीठा पानी हमारा,
मृदुजल का स्रोतों सी,
बिसलेरी जनि बंद,
बोतल मां भरी ,
वैतैं रोजगार कु जरिया ,
बनाई सकदा तुम ।
पिल्टा अर गोबर सी ,
जनि जैविक खाद,
बनाई सकदा तुम ।
जिरेनियम अर यख,
होन वाली,दूसरी औषधियों,
पर शोध करी वैकी,
खेती करी सकदा तुम ।
यख् की मिट्टी अर जलवायु ,
पर शोध करी और भी लाभदाई
फसल उपजाई सकदा तुम ।
यख की प्राणदायिनी जलवायु,
देखी योगा अर,प्राणायाम कु ,
एक केंद्र बनाई सकदा तुम ।
होली जब इना स्वरोजगार ,
कू सृजन त तब यख ही ,
बढ़िया बढ़िया सी स्कूल खुलाला,
अस्पताल भी बढ़िया खुली,
सारी व्यवस्था यखी,
जब हम,करी योला ।
अर तब लौटला लोग गांवों की ओर ,
तब स्वर्ग जनी इं देवभूमि तैं , पावन ,हम बनौला ।
इतना सबकुछ होना का बावजूद,
भी किलै,खुद तैं दीन हीन चिताई तीन ।
इं देवभूमि का देवी देवता भी,बोल किलै बिसराई तीन ।
इं देवभूमि का देवी देवता भी,बोल किलै बिसराई तीन ।
।
पंक्तियां कविताबद्ध प्रदीप बिजलवान बिलोचन
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