Monday, May 22, 2023
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पहाड़ की वास्तविक स्थिति का बखान करती ये गढ़वाली कविता।

गढ़वाली कविता

उत्तराखंड के पहाड़ की वास्तविक हालत बताती प्रदीप बिलजवान  विलोचन जी की यह गढ़वाली कविता।

गढ़वाली कविता का शीर्षक है – ” बची खुची बांदरू न उजाड़ी 

जनसंख्या बढ़णी छ, 

अर देखा तब बढ़णी छ। 

बेरोजगारी यां लई त द्वी 

हजार रुपिया कु नोट ह्वेगी 

तीस साल पैली का जनू एक 

सौ  नोटा बरोबरी । 

यू मिलावटी,

खाणु हमन कब तलक खाणी 

दवाई लै कु हर रोज डॉक्टर

का पास कब तलक जाणी 

बोतल बंद अर चूना मिल्यूं 

छ यख कू पाणी काम धंधा खेती 

पाती कन कू क्वी भी नी छ बल 

त बोला अब हमन कोदा 

झंगोरा की दाणी द बोला अब

कखन खाणी ।

बांदुरू कू भलै खेती पाती मां 

आतंक फैलाऊं छ उत्पात देखा 

ऊंकू कनु मचायूं छ

करा तुम सभी खेती पाती तब 

बांदुरु की देखभाल भली करी 

कई बार होई जाली सरकार न 

भी त यां का खात्मा कु कई ,

स्कीम बनाई याली  ।

यख, जना ठंडू ठंडू पाणी कखन लैल्या

ठंडी माठी आबोहवा बोला कखन पैल्या

बात या तुम सब मेरी या माणी जा

स्वर्ग छ हम तैं यखी बातु कु महत्व तुम ईं 

जाणी जा गांव गांव सी पलायन एक , 

विशेष समस्या होइगी ।

गर पर्यटन, जीवनदायिनी पाणी 

अर कुछ हिमालय मां पैदा जनि 

औषधि वाला पादपु पर काम 

करे जाऊ जलवायु परिवेश का 

अनुसार खेती बाड़ी जू करे जाऊ

त पलायन कर्यों युवा वर्ग 

रोजगार का चक्कर मां दौड़ी 

रोजगार का अवसरू देखी

दौड़ी दौड़ी यना ही पहुंचन सी 

जनसंख्या भी धीरा धीरा बढ़ी जाली ।

नया नया स्कूल अर हॉस्पिटल का साथ मा और 

भी जरूरी संसाधनु की जरूरत भी आई जाली ।

 

पहाड़ की वास्तविक स्थिति           @ प्रदीप बिजलवान बिलोचन

लेखक के विषय में

यह कविता टिहरी गढ़वाल निवासी प्रदीप बिजलवान बिलोचन जी ने भेजी है। बिजलवान जी हमारे पुराने सहयोगी हैं। विजलवान जी की कवितायेँ और लेख हमारे पोर्टल में संकलित होते रहते हैं। 

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