Friday, December 6, 2024
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खाल और छीना – गढ़वाल में कई जगहों के नाम के आगे “खाल” और कुमाऊं में “छीना” का मतलब

खाल और छीना का अर्थ-

मित्रों हमारे उत्तराखंड में पहाड़ से लेकर मैदान तक सभी स्थानों के कुछ न कुछ नाम हैं। और ये नाम उस स्थान की विशिष्ट भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान के आधार पर रखे जाते हैं। औऱ लगभग सभी स्थलों की अलग अलग पहचान होने के कारण नाम भी अलग अलग होते हैं।

मगर उत्तराखंड के कई स्थानों के नाम मिलते जुलते होते हैं या उनके पीछे एक खास शब्द या प्रत्यय जुड़ा रहता है, जो उनका अर्थ समान कर देता है।आपने ध्यान दिया होगा कि कुमाऊं मंडल के कई स्थानों के नामों के आगे “छीना ” प्रत्यय लगा रहता है। जैसे – बाड़ेछीना ( अल्मोड़ा ) , कुक्कुछीना (अल्मोड़ा, द्वाराहाट ), कोरीछीना ( अल्मोड़ा ), धौलछीना (अल्मोड़ा),कनालीछीना ( पिथौरागढ़ ) ,कलबिष्टाछीना ( अल्मोड़ा – द्वाराहाट मार्ग ) चौगावँछीना ( बागेश्वर ) बुंगाछीना ( पिथौरागढ़ ) आदि।

इसी प्रकार गढ़वाल में “खाल” प्रत्यय से बहुत सारे जगहों के नाम बने हैं। जैसे :- केतखाल ,कस्राखसखाल , द्वारीखाल, जेरिखाल ,बुवाखाल ,खजीरिखाल, किंगोड़ीखाल, बीरुखाल, जहरीखाल, हिंडोलखाल, मठाणखाल , चौबट्टाखाल, कल्जीखाल, रिखाड़ीखाल,सौराखाल, पांडुवाखाल, कालिंदीखाल आदि ।

कुमाऊनी में जगह के नामो के पीछे “छीना और गढ़वाली में खाल , प्रत्यय का एक ही अर्थ होता है।

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दो पहाड़ों के बीच का भाग , या एक ही पहाड़ के बीच का समतल  भाग जहां से पहाड़ के आर – पार दिखाई देता है। उसको कुमाउनी में छीना और गढ़वाली में खाल कहते हैं।चुकी उस क्षेत्र का पहले से एक नाम और होता है, उस खास क्षेत्र का बोध कराने के लिए, उस नाम के पीछे छीना या खाल प्रत्यय जोड़ दिया जाता है।

खाल और छीना

जैसे – उपरोक्त्त में हमने अल्मोड़ा – द्वाराहाट मार्ग पर पड़ने वाले कलबिष्टाछिना का उदाहरण भी दिया है। इस स्थान पर कलविष्ट देवता के मंदिर होने के साथ यह दो पहाड़ियों के बीच का ऐसा भाग है,जहां से आर -पार दिखाई देता है। इसलिए इसका नाम पड़ा कलबिष्टाछिना ।

खाल शब्द का प्रयोग कुमाऊं में भी होता है। लेकिन उसका अर्थ भिन्न होता है। कुमाऊं में खाल दो पहाड़ों की उस नीची और समतल भूमि को कहते है, जहां उसकी नीचा होने के कारण पानी एकत्र हो जाता है।

जैसे – घोड़ाखाल (नैनीताल), वराहखाल (रानीखेत ) आदि।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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