Friday, April 19, 2024
Homeसंस्कृतिसिंगोड़ी मिठाई, मालू के पत्तों की ओट में छुपा लाजवाब स्वाद

सिंगोड़ी मिठाई, मालू के पत्तों की ओट में छुपा लाजवाब स्वाद

singodi mithai of Uttarakhand

दोस्तों प्रसिद्धि की बात करें तो देवभूमी उत्तराखंड की हर चीज प्रसिद्ध है। प्राकृतिक सौंदर्य ,देवभूमी के देवता ,औषधीय फल फूल ,जड़ी -बूटी ,यहाँ की संस्कृति आदि। इसके अलावा यदि आप स्वाद में उत्तराखंड को ढुढंगे तो अव्वल पाएंगे। यहाँ की प्रसिद्ध मिष्ठान बाल मिठाई पुरे संसार में प्रसिद्ध है। बाल मिठाई के साथ अन्य मिठाई ,सिंगोड़ी मिठाई और खेचुवा मिठाई भी अत्यधिक प्रसिद्ध है। बाल मिठाई की अत्यधिक प्रसिद्धि के कारण, सिंगोड़ी मिठाई की चमक थोड़ी कम हुई ,लेकिन  फीकी नहीं पड़ी। क्योकि बाल मिठाई का अपना स्वाद है ,और सिगोड़ी की अपनी वो मालू के पत्तों वाली भीनी -भीनी सी खुशबु भरा स्वाद। जो हर किसी को दीवाना कर दे।

सिंगौड़ी मिठाई
सिंगोड़ी मिठाई

सिंगोड़ी मिठाई इतिहास –

जैसा की बाल मिठाई मूलतः अल्मोड़ा की मिठाई मानी जाती है। वर्तमान में उत्तराखंड के हर हिस्से में मिलती है ,मगर असली स्वाद अल्मोड़ा की बाल मिठाई का ही आता है। ठीक उसी प्रकार सिगौड़ी मिठाई मूलतः टिहरी की पारम्परिक मिठाई माना जाता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार पुरानी टिहरी में इस मिठाई का स्वाद राजा महाराजाओं के समय से लिया जाता रहा है। बाद में पुरानी टिहरी के ,डूबने के बाद ,पुराने हलवाइयों ने इसे नई टिहरी में विकसित किया।टिहरी की सिगोड़ी  के बाद उत्तराखंड में एक और सिगौड़ी काफी प्रसिद्ध है ,वह है अल्मोड़ा की सिगौड़ी मिठाई। अल्मोड़ा में सिंगोड़ी मिठाई के जायके का परिचय ,श्री जोगा लाल शाह जी द्वारा लगभग 150 साल पहले बाल मिठाई के साथ कराया था।

सिंगौड़ी मिठाई

कैसे बनती है सिंगोड़ी मिठाई ?

इस मिठाई को बनाने के लिए एक कढ़ाई में आवश्यकतानुसार खोये को चीनी डालकर ,हल्की आंच पर पकाते हैं। जब चीनी भली भांति खोये में मिल जाती है ,तो इलायची पावडर और नारियल मिलकर 2-3 मिनट पका लेते हैं। इसके बाद इस मिश्रण को ठंडा होने के लिए रख देते हैं। ठंडा होने के बाद ऐसे मालू के पत्तो में तिकोना करके भर देते हैं। मालू के पत्तों में ऐसे भरकर 9-10 घंटे तक रखते हैं ,जब तक कि मालू  के पत्तों की भीनी -भीनी सी खुशुबू मिठाई में न चढ़ जाये। वैसे इसकी खासियत ही मालू के पते होते हैं। बिना मालू के पत्तों की तो यह साधारण सी मावे की बर्फी होती है।

Best Taxi Services in haldwani

इन्हे भी पढ़े: डीडीहाट की शान खेचुवा मिठाई के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक

क्या है मालू के पत्ते ? कहां पाए जाते हैं ?

मालू एक प्रकार का पेड़ है। यह मुख्यतः पंजाब उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश सिक्किम में पाया जाता है। इसे हिंदी में लता काचनार कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम बाहुनिया वाहली है। यह एक सदाबहार पौधा है। इसके पत्तों से पुढे ,पत्तल व् पूजा सामग्री बनाई जाती है। और पशुओं के चारे के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। उत्तराखंड में इसका प्रयोग मिठाई को फ्लेवर देने के लिए प्रयोग किया जाता है। अल्मोड़ा नैनीताल के मध्य जौरासी में यह प्रचुर मात्रा में होता है। जिसका सीधा लाभ अल्मोड़ा के मिठाई व्यापारियों को होता है।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments