Friday, September 22, 2023
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स्वरोजगार की जीती जागती मिसाल ,उत्तराखंड का पनीर गाँव | Paneer Village of Uttrakhand in hindi

उत्तराखंड का एक ऐसा गाँव है, जहाँ की आजीविका का मुख्य साधन पनीर है। इसलिए इस गांव को  पूरे भारत मे उत्तराखंड का पनीर गाँव ( Paneer Village of Uttrakhand ) के नाम से जाना जाता है।

उत्तराखंड टिहरी गढ़वाल जिले के जौनपुर विकास खंड का रौतू की बेली नामक गाँव , उत्तराखंड का पनीर गाँव (Paneer village of Uttrakhand ) पनीर विलेज, पहाड़ का पनीर गाँव आदि नामों से प्रसिद्ध है। यह गांव उत्तराखंड के प्रसिद्ध हिल स्टेशन मसूरी से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मसूरी- उत्तरकाशी रोड पर स्थित सुवाखोली से केवल 5 किलोमीटर दूर है। यह गाव समुद्र तल से लगभग 6283 फ़ीट की उचाई पर है। इस गाँव जनसंख्या लगभग 1500 है। और करीब  250 परिवार रहते हैं। और सारे के सारे परिवार पनीर बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं। इस गाव में प्रत्येक परिवार पनीर बेचकर लगभग 15-35 हजार महीना कमा लेते हैं।

उत्तराखंड का पनीर गाँव
पहाड़ का पनीर गांव

उत्तराखंड में बहुत सारे गाँव जो, पलायन के कारण खाली हो गए है। लेकिन रौतू की बेली गाव से पलायन लगभग शून्य है।

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गाँव के ऊपर बांज बुरांश ,देवदार और चीड़ का घना जंगल है। जिससे पशुओं के लिए चारा आसानी से उपलब्ध हो जाता है।

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उत्तराखंड के पनीर विलेज ( Paneer Village ) रौतू की बेली में सर्वप्रथम , भूतपूर्व ब्लाक प्रमुख कुँवर सिंह पंवार ने इस गाव में पनीर बनाने व बेचने का काम 1980 मे किया था। कुँवर सिंह जी के अनुसार 1980 में यहां भारत का सबसे सस्ता पनीर , मात्र 5 रुपये किलो बिकता था। उस समय पनीर मसूरी बड़े बड़े स्कूलो में पनीर की आवश्यकता पड़ी तो नजदीक का गांव होने के कारण रौतू की बेली से पनीर मंगाया गया, पनीर शुद्ध और स्वादिष्ट सभी गुणवत्ता से भरपूर होने के कारण जल्दी प्रसिद्ध हो गया।

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पहले पहले केवल 30 -35 परिवार पनीर बनाते थे। धीरे धीरे डिमांड बढ़ने लगी, तो गांव के सभी परिवारों ने दूध बेचना छोड कर पनीर का व्यवसाय शुरू कर दिया। और रौतू कि बेली का पनीर फेमस हो गया। और यह गाव बन गया उत्तराखंड का पनीर गाँव ( Uttrakhand ka paneer village ) पनीर वाला गाँव । और इन ग्रामवासियों को दूध से दोगुना मुनाफा मिलने लगा।

बताते है, यहां पहले एक दिन में 40 kg पनीर बन जाता था, बीच मे पनीर उत्पादन में कमी आ गयी, लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद ,यहां के पनीर उत्पादन में तेजी आ गई है। अब यहाँ का फेमस पनीर , देहरादून तक जाता है।

रौतू की बेली गावँ में पलायन ना के बराबर है। बताते है, की कुछ युवक बाहर गए थे, वो भी लॉकडौन में वापस आकर पनीर के व्यवसाय में लग गए हैं। यहाँ ब्याह कर जो बहु आती है, सर्वप्रथम उसे पनीर बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है।

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यहाँ का पनीर शुद्ध और मिलावट रहित होता है। इसी लिए इस पनीर की खास मांग होती है। पनीर बनाना ,बहुत मेहनत का काम है, इसमे जोखिम भी है। यहां के ग्रामीणों के अनुसार यहाँ कई प्रकार की समस्याएं भी हैं। उत्तराखंड सरकार को चाहिए,की यहाँ के ग्रामीणों,की समस्याओं को समझे, और इस गावँ को पहाड़ का पनीर वाला गाव से पनीर हब ऑफ उत्तराखंड बना दें।

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संदर्भ -समाचार पत्र पत्रिकाएं और स्वानुभव।

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