Monday, May 26, 2025
Homeसंस्कृतिखान-पानमडुवा की बाड़ी पहाड़ों में जाड़ों में खाए जाने वाला ख़ास व्यंजन

मडुवा की बाड़ी पहाड़ों में जाड़ों में खाए जाने वाला ख़ास व्यंजन

मडुवा की बाड़ी उत्तराखंड के पहाड़ी लोगो का खास भोज्य पदार्थ है। इसे खासकर पहाड़ के गरीब लोगों का सुपरफूड कहा जाता है। यह भोज्य पदार्थ बहुत ताकतवर होता है। बाड़ी हलवे के जैसा होता है। जिसे मडुवे के आटे से बनाया जाता है ।कुमाऊं मंडल में यह भोज्य दो प्रकार से बनाया जाता है।

एक मिष्ठान रूप में दूसरा नमकीन में। मिष्ठान रूप में इसे हलुवे के जैसे लोहे की कढ़ाही में, घी में भूनकर इसमे गुड़ की पाक (चासनी) का प्रयोग करके बनाते हैं। सर्वप्रथम गुड़ का पाक बना कर रख लेते हैं। फिर लोहे की कड़ाही मे, मडुवे के आटे को खूब भून लेते है। आटा पर्याप्त रूप से भून जाने के बाद इसमे गुड़ का पाक डाल देते हैं।

मडुवा की बाड़ी
फ़ेसबुक से प्राप्त फ़ोटो

शरीर मे चोट, थकान, ठंड लगने पर यह भोज्य विशेष लाभदायक माना जाता है। महिलाओं को प्रसव काल मे भी इसी बाड़ी को खिलाते हैं। यद्यपि प्रसव वाली महिलाओं को देते समय इसमे गेहूं के आटे का प्रयोग किया जाता है।

गुड़ आयरन ,कार्बोहाइड्रेट,और मडुवा तो स्वयं सुपरफूड है, विटामीन d का सर्वोत्तम श्रोत माना जाता है ,मडुवा इसके अलावा कई और पोषक तत्व होते हैं मडुवा में। इसके अलावा यह लोहे की कड़ाही में बनता है तो इसमे लौह गुण पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। और इसे घी में भूनते हैं, तो घी के पौष्टिक गुण किसी से छुपे नही हैं। घी, मडुवा, गुड़ इसे एक खास और शक्तिशाली भोज्य बनाते है।

उत्तराखंड कुमाऊं के पूर्वी भोट क्षेत्रों में इसे लावण्य रूप में प्रयोग किया जाता है। अर्थात इसे बिना मीठे के नमकीन बनाया जाता है। इस भोज्य को फाफर पत्तों के साथ खाया जाता है।

गढ़वाल मंडल ,विशेषतया टिहरी गढ़वाल में यह पानी मे पकाकर बनाई जाती है। इसमे नमक मिर्च कुछ नहीं मिलाया जाता है। कहते हैं गढ़वाल क्षेत्र टिहरी गढ़वाल में इस भोजन को, गरीब, हरिजनों आदि प्रयोग करते थे ।कालांतर में यह विलुप्त हो गया है। या यूं कह सकते हैं ,इसका उपयोग लगभग खत्म हो चुका है। इसके अलावा, आटे में दूध और मीठा डाल कर भी बाड़ी बनाई जाती है। जिसे गढ़वाल में “आटा बाड़ी” और कुमाऊं में ऐसा ही, दूध आटे का भोज्य होता है, लापसी!!

उत्तराखंड आंदोलन के समय, “बाड़ी मडुवा खायेंगे ! उत्तराखंड बनाएंगे !! यह नारा काफी चर्चित हुआ था।

इसे भी पढ़े :-
रुमेक्स हेस्टैटस एक औषधीय घास जिसके पहाड़ी नाम पर अल्मोड़े का नामकरण हुवा
ट्वॉल – पहाड़ी आत्मा जो मशाल लेकर पहाड़ों पर अकेले चलती थी।

हमारे व्हाट्सअप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

इस लेख में प्रयुक्त फोटोग्राफ सोशल मीडिया के सहयोग से संकलित किए गए हैं।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments