मडुवा की बाड़ी उत्तराखंड के पहाड़ी लोगो का खास भोज्य पदार्थ है। इसे खासकर पहाड़ के गरीब लोगों का सुपरफूड कहा जाता है। यह भोज्य पदार्थ बहुत ताकतवर होता है। बाड़ी हलवे के जैसा होता है। जिसे मडुवे के आटे से बनाया जाता है ।कुमाऊं मंडल में यह भोज्य दो प्रकार से बनाया जाता है। एक मिष्ठान रूप में दूसरा लावण्य (नमकीन) रूप में। मिष्ठान रूप में इसे हलुवे के जैसे लोहे की कढ़ाही में, घी में भूनकर इसमे गुड़ की पाक (चासनी) का प्रयोग करके बनाते हैं। सर्वप्रथम गुड़ का पाक बना कर रख लेते हैं। फिर लोहे की कड़ाही मे, मडुवे के आटे को खूब भून लेते है। आटा पर्याप्त रूप से भून जाने के बाद इसमे गुड़ का पाक डाल देते हैं।
शरीर मे चोट, थकान, ठंड लगने पर यह भोज्य विशेष लाभदायक माना जाता है। महिलाओं को प्रसव काल मे भी इसी बाड़ी को खिलाते हैं। यद्यपि प्रसव वाली महिलाओं को देते समय इसमे गेहूं के आटे का प्रयोग किया जाता है।
गुड़ आयरन ,कार्बोहाइड्रेट,और मडुवा तो स्वयं सुपरफूड है, विटामीन d का सर्वोत्तम श्रोत माना जाता है ,मडुवा इसके अलावा कई और पोषक तत्व होते हैं मडुवा में। इसके अलावा यह लोहे की कड़ाही में बनता है तो इसमे लौह गुण पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। और इसे घी में भूनते हैं, तो घी के पौष्टिक गुण किसी से छुपे नही हैं। घी, मडुवा, गुड़ इसे एक खास और शक्तिशाली भोज्य बनाते है।
उत्तराखंड कुमाऊं के पूर्वी भोट क्षेत्रों में इसे लावण्य रूप में प्रयोग किया जाता है। अर्थात इसे बिना मीठे के नमकीन बनाया जाता है। इस भोज्य को फाफर पत्तों के साथ खाया जाता है।
गढ़वाल मंडल ,विशेषतया टिहरी गढ़वाल में यह पानी मे पकाकर बनाई जाती है। इसमे नमक मिर्च कुछ नहीं मिलाया जाता है। कहते हैं गढ़वाल क्षेत्र टिहरी गढ़वाल में इस भोजन को, गरीब, हरिजनों आदि प्रयोग करते थे ।कालांतर में यह विलुप्त हो गया है। या यूं कह सकते हैं ,इसका उपयोग लगभग खत्म हो चुका है। इसके अलावा, आटे में दूध और मीठा डाल कर भी बाड़ी बनाई जाती है। जिसे गढ़वाल में “आटा बाड़ी” और कुमाऊं में ऐसा ही, दूध आटे का भोज्य होता है, लापसी!!
उत्तराखंड आंदोलन के समय, “बाड़ी मडुवा खायेंगे ! उत्तराखंड बनाएंगे !! यह नारा काफी चर्चित हुआ था।
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इस लेख में प्रयुक्त फोटोग्राफ सोशल मीडिया के सहयोग से संकलित किए गए हैं।