Friday, April 11, 2025
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इगास बग्वाल की शुभकामनाएं । Igas bagwal ki Hardik shubhkamnaye

इगास बग्वाल की शुभकामनाएं

इगास त्योहार या इगास बग्वाल (egas festival) उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकपर्व है। यह त्यौहार दीपावली पर्व के 11 दिन बाद मनाया जाता है। 2024 में इगास त्यौहार 12 नवंबर 2024 को  मनाया जाएगा। उत्तराखंड सरकार ने 2024 में भी उत्तराखंड सरकार ने ईगास त्यौहार पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की हैं।

इगास बग्वाल का अर्थ –

इगास का मतलब गढ़वाली भाषा मे एकादशी होता है। और बग्वाल का मतलब पाषाण युद्ध होता है। पहले पहाड़ो में राजा ,मांडलिक बरसात ऋतु खत्म होने के बाद प्रमुख त्योहारों को पत्थर युद्ध का अभ्यास करते थे। और इसी पत्थर युद्ध के अभ्यास को बग्वाल कहा जाता है। कालांतर में पत्थर युद्ध का अभ्यास बंद हो गया लेकिन बग्वाल के नाम पर अन्य उत्सव जुड़ गए। अब केवल रक्षाबंधन की बगवाल पर देवीधुरा में पत्थर युद्ध का अभ्यास किया जाता है।

जैसे :दीपावली को कुमाऊं और गढ़वाल में बग्वाल शब्द से संबोधित किया जाता है। कार्तिक मास शुक्लपक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली दीपावली को इगास बग्वाल ( Egaas bagwal )कहा जाता है। उत्तराखंड गढ़वाल में 4 बग्वाल होती हैं। प्रथम बग्वाल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को होती है। दूसरी बग्वाल कार्तिक अमावस्या को मनाई जाती है।

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यह बग्वाल (दीपावली ) पूरे देश में मनाई जाती है। उत्तराखंड गढ़वाल की तीसरी बग्वाल ,जिसे बड़ी बग्वाल भी कहते हैं, यह कार्तिक माह की एकादशी को इगास बग्वाल के रूप में मनाई जाती है। और चौथी बग्वाल जिसे रिख बग्वाल कहते हैं। इस चौथी बग्वाल को गढ़वाल के प्रतापनगर, जौनपुर, चमियाला,थौलधार, रवाईं और जौनसार क्षेत्र में बूढ़ी दीवाली के रूप में मनाई जाती है। यह चौथी बग्वाल ,दूसरी बग्वाल के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है। इसी

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क्यों मनाई जाती है इगास बग्वाल

इगास त्योहार मनाने के विषय मे उत्तराखंड में अनेक धारणाएं और मान्यताएं प्रचलित है। पहली मान्यता के अनुसार , सारे देश मे दीपावली भगवान राम के अयोध्या आगमन की खुशी में दीपावली पर्व मनाया जाता है। लेकिन कहते हैं कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भगवान राम के लौटने की खबर 11 दिन बाद मिली इसलिए पहाड़ों में 11 दिन बाद खुशियां मनाई गई। लेकिन इस मान्यता के पीछे तर्क मजबूत नहीं है। क्योंकि उत्तराखंड के पहाड़वासी , इगास के साथ आमावस्या वाली दीपावली भी मनाते हैं ।और इगास उत्तराखंड के कुछ भागों में मनाई जाती है। और उत्तराखंड के अनेक भागों में अलग अलग तिथियों को बूढ़ी दीपावली मानाते हैं।

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ईगास बग्वाल मनाने के पीछे सबसे सटीक कारण उसके नाम में छुपा है। ईगास बग्वाल मतलब एकादशी को किया जाने वाला पत्थर युद्ध अभ्यास । कालांतर में पत्थर युद्ध के अभ्यास की परंपरा खत्म हो गई और कार्तिक एकादशी के दिन उत्तराखंड के वीर भड़ श्री माधो सिंह भंडारी तिब्बत विजय करके लौटे तो उनकी विजय के उपलक्ष में इस दिन उत्सव मनाया गया। और वीर माधो सिंह भंडारी और गढ़वाल की सेना के युद्धरत होने के कारण ,हो सकता प्रजा ने भी अमावस्या की दीपावली नही मनाई और विजय मिलने के बाद ही सबने साथ में खुशियां मनाई। और प्रतिवर्ष उत्तराखंड गढ़वाल में यह पर्व विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

इगास बग्वाल मनाने के पीछे यह मान्यता तार्किक लगती है। अतः हम कह सकते हैं कि इगास ( egaas festival ) उत्तराखंड का विजयोत्सव है।

इगास बग्वाल

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इगास त्योहार से जुड़ी लोक कथा –

इगास त्योहार से एक स्थानीय लोक कथा भी जुड़ी है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में भैलो खेल कर बग्वाल ( दीपावली ) मनाई जाती है। कहा जाता है,कि उत्तराखंड गढ़वाल में किसी एक गाव में रहने वाला व्यक्ति ,अमावस्या की बग्वाल ( दीपावली के दिन ) के दिन भैलो खेलने के लिए,छिलके लेने जंगल गया और 11 दिन तक वापस नही आया। 11वे दिन जब वह व्यक्ति वापस आया तब यह पर्व मनाया गया। तब से बग्वाल को भैलो खेलने की परम्परा शुरू हुई।

इगास बग्वाल

कैसे मनाते हैं इगास त्यौहार ?-

मुख्य दीपावली पर्व की तरह भी इगास बग्वाल को भी घरों में साफ सफाई और दीये जलाए जाते हैं। इस त्यौहार के दिन गाय ,बैलों को पौष्टिक भोजन कराया जाता है। बैलों के सींगों में तेल लगाया जाता है। गोवंश के गले मे माला पहनाकर उनकी पूजा करते हैं। बग्वाल पर्व पर गढ़वाल में बर्त खींचने की परंपरा भी है। यह बर्त का मतलब है, मोटी रस्सी ।

इस पर्व पर भैलो खेलने की परम्परा है। भैलो चीड़ या भीमल आदि की लकड़ियों की गठरनुमा मशाल होती है। जिसे रस्सी से बांधकर शरीर के चारो ओर घुमाते हैं। तथा खुशियां मनाते हैं।हास्यव्यंग करते हुए ,लोक नृत्य और लोककलाओं का प्रदर्शन भी इस दिन किया जाता है। कई क्षेत्रों में पांडव नृत्य की प्रस्तुतियां भी की जाती हैं।

इगास बग्वाल की शुभकामनाएं –

इस पर्व के अवसर पर उत्तराखंड वासी खुशियां मनाते हुए एक दूसरे को इगास त्यौहार की शुभकामनाएं देते हैं। इगास ( egaas ) के शुभावसर यह लोक गीत गाया जाता है।

सुख करी भैलो, धर्म को द्वारी, भैलो।
धर्म की खोली, भैलो जै-जस करी
सूना का संगाड़ भैलो, रूपा को द्वार दे भैलो।।
खरक दे गौड़ी-भैंस्यों को, भैलो, खोड़ दे बाखर्यों को, भैलो
हर्रों-तर्यों करी, भैलो।
भैलो रे भैलो, खेला रे भैलो।
बग्वाल की राति खेला भैलो।।
बग्वाल की राति लछमी को बास
जगमग भैलो की हर जगा सुवास
स्वाला पकोड़ों की हुई च रस्याल
सबकु ऐन इनी रंगमती बग्वाल
नाच रे नाचा खेला रे भैलो।
अगनी की पूजा, मन करा उजालो
भैलो रे भैलो।।।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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