Thursday, March 27, 2025
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धिन्नरपाता लोक नृत्य : कुमाऊं की अनूठी बाल क्रीड़ा (Dhinrrapata Folk Dance: A Unique Child’s Play of Kumaon)

धिन्नरपाता लोक नृत्य : कुमाऊं क्षेत्र (Kumaon region) अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत (rich cultural heritage) और पारंपरिक लोक नृत्यों (traditional folk dances) के लिए प्रसिद्ध है। इन्हीं में से एक है “धिन्नरपाता” (Dhinrrapata), जो मुख्य रूप से बालिकाओं द्वारा खेला जाने वाला एक लोक नृत्य (folk dance) है। यह नृत्य आठू के त्योहार के दौरान या उससे पहले घरों में खेला जाता है। धिन्नरपाता को नृत्य की बजाय एक बाल क्रीड़ा या केलि के रूप में जाना जाता है, जो इसे और भी विशेष बनाता है।

धिन्नरपाता लोक नृत्य की विशेषताएं (Features of Dhinrrapata Dance) –

धिन्नरपाता नृत्य में बालिकाएं आमने-सामने खड़ी होकर एक-दूसरे के हाथ पकड़ती हैं। इस दौरान वे अपने बाएं हाथ को साथी के दाएं हाथ में और दाएं हाथ को साथी के बाएं हाथ में पकड़ती हैं। इसके बाद वे दोनों पैरों को साथ मिलाकर फिरकी की तरह घूमते हुए नृत्य करती हैं। यह नृत्य सामूहिक होता है और इसमें बच्चों की हंसी-खुशी और उत्साह साफ झलकती है।

 

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धिन्नरपाता लोक नृत्य : सांस्कृतिक महत्व (Cultural Significance of Dhinrrapata) –

धिन्नरपाता नृत्य कुमाऊं की सांस्कृतिक पहचान (cultural identity) का एक अहम हिस्सा है। यह न केवल बच्चों के मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह उन्हें अपनी परंपराओं और संस्कृति (culture) से जोड़ने का भी काम करता है। इस नृत्य के माध्यम से बच्चे सामाजिक एकता और सहयोग की भावना सीखते हैं।

धिन्नरपाता और आधुनिक समय (Dhinrrapata in Modern Times)

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आधुनिक समय में जहां पारंपरिक लोक नृत्य (traditional folk dances) धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं, वहीं धिन्नरपाता जैसे नृत्यों को संरक्षित करने की आवश्यकता है। यह नृत्य न केवल कुमाऊं की संस्कृति को बढ़ावा देता है, बल्कि यह बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़े रखने में भी मददगार है।

उपसंहार (Conclusion) –

धिन्नरपाता लोक नृत्य (Dhinrrapata folk dance) कुमाऊं की सांस्कृतिक धरोहर (cultural treasure) का एक अनूठा उदाहरण है। यह नृत्य बच्चों के लिए मनोरंजन और शिक्षा दोनों का स्रोत है। इसे संरक्षित करना और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना हम सभी की जिम्मेदारी है।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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