उत्तराखंड के पहाड़ की वास्तविक हालत बताती प्रदीप बिलजवान विलोचन जी की यह गढ़वाली कविता।
गढ़वाली कविता का शीर्षक है – “बची खुची बांदरू न उजाड़ी”
जनसंख्या बढ़णी छ,
अर देखा तब बढ़णी छ।
बेरोजगारी यां लई त द्वी
हजार रुपिया कु नोट ह्वेगी
तीस साल पैली का जनू एक
सौ नोटा बरोबरी।
यू मिलावटी,
खाणु हमन कब तलक खाणी
दवाई लै कु हर रोज डॉक्टर
का पास कब तलक जाणी
बोतल बंद अर चूना मिल्यूं
छ यख कू पाणी काम धंधा खेती
पाती कन कू क्वी भी नी छ बल
त बोला अब हमन कोदा
झंगोरा की दाणी द बोला अब
कखन खाणी।
बांदुरू कू भलै खेती पाती मां
आतंक फैलाऊं छ उत्पात देखा
ऊंकू कनु मचायूं छ
करा तुम सभी खेती पाती तब
बांदुरु की देखभाल भली करी
कई बार होई जाली सरकार न
भी त यां का खात्मा कु कई ,
स्कीम बनाई याली ।
यख, जना ठंडू ठंडू पाणी कखन लैल्या
ठंडी माठी आबोहवा बोला कखन पैल्या
बात या तुम सब मेरी या माणी जा
स्वर्ग छ हम तैं यखी बातु कु महत्व तुम ईं
जाणी जा गांव गांव सी पलायन एक ,
विशेष समस्या होइगी।
गर पर्यटन, जीवनदायिनी पाणी
अर कुछ हिमालय मां पैदा जनि
औषधि वाला पादपु पर काम
करे जाऊ जलवायु परिवेश का
अनुसार खेती बाड़ी जू करे जाऊ
त पलायन कर्यों युवा वर्ग
रोजगार का चक्कर मां दौड़ी
रोजगार का अवसरू देखी
दौड़ी दौड़ी यना ही पहुंचन सी
जनसंख्या भी धीरा धीरा बढ़ी जाली।
नया नया स्कूल अर हॉस्पिटल का साथ मा और
भी जरूरी संसाधनु की जरूरत भी आई जाली।
लेखक के विषय में- यह कविता टिहरी गढ़वाल निवासी प्रदीप बिजलवान बिलोचन जी ने भेजी है। बिजलवान जी हमारे पुराने सहयोगी हैं। विजलवान जी की कवितायेँ और लेख हमारे पोर्टल में संकलित होते रहते हैं।
आज दुनिया ग्लोबल वार्मिंग जैसी भयावह स्थिति का सामना कर रही है ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी है पर्यावरण संरक्षण की, उसके लिए हम सभी को मिलकर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने की आवश्यकता है। हाल ही में भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय और उसकी सहयोगी संस्था सरकारटेल के सहयोग से महाराष्ट्र में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमें आने वाले जल संकट और उसके संरक्षण को लेकर गहन चर्चा हुई।
इस दौरान अन्य देशो से आए हुए विशेषज्ञ वैज्ञानिकों की टीम ने जल संकट को एक भयानक वैश्विक संकट मानते हुए इसके समाधान के लिये अपने कुछ सुझाव दिए तथा दुनिया भर में हो रहे ग्लोबल वार्मिंग व पेयजल के संकट से निपटने के लिए दुनियाभर की नई-नई तकनीकों और भारत द्वारा इस दिशा में उठाये जा रहे अनेकों सकारात्मक कदमों पर भी खूब चर्चा हुई। इस दौरान कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक के आए आए हुए 52 जल पर्यावरणविदों को जल प्रहरी सम्मान से से सम्मानित भी किया गया। जिसमें हमारे उत्तराखंड के नैनीताल जिले से ओखलकांडा निवासी चंदन सिंह नयाल व अल्मोड़ा जिले के शिव कुमार उपाध्याय का नाम भी शामिल है।
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जल प्रहरी – शिव कुमार उपाध्याय
जलागम विभाग अल्मोड़ा के उप परियोजना निदेशक डाॅ० शिव कुमार उपाध्याय जी को महाराष्ट्र में आयोजित कार्यक्रम में उनके द्वारा किए गए अनुकरणीय कार्यों के लिए ‘जल प्रहरी सम्मान’ से सम्मानित किया गया। जोकि पूरे प्रदेश के लिए गर्व की बात है। हम डाॅ० शिव कुमार उपाध्याय जी को इस सम्मान के लिए बधाईयाँ देते हैं।
नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लाक, तोक चामा निवासी पर्यावरण प्रेमी चन्दन सिंह नयाल को भी उनके द्वारा बनाए गए 3200 से अधिक चालखाल और 53000 से ज्यादा पेड़ लगाने के अनुकरणीय कार्यों के लिए जल प्रहरी सम्मान से सम्मानित किया गया। चन्दन सिंह नयाल द्वारा किए गए कार्यों के लिए उन्हें पहले भी कई बार सम्मानित किया जा चुका है।
हल्द्वानी में महिला रामलीला – कुमाऊँ के सबसे बड़े आर्थिक, शैक्षिक, व्यापारिक एवम आवासीय केंद्र यानी “कुमाऊँ के प्रवेश द्वार” कहे जाने वाले हल्द्वानी में पहली बार होने जा रहा है महिला रामलीला का मंचन। जी हां साथियों इस बार की रामलीला में समस्त किरदार, भगवान राम, लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न व रावण सहित सभी किरदार महिलाओं द्वारा निभाये जा रहे हैं। 2 अप्रैल 2023 से प्रतिदिन शाम 5 बजे से 8 बजे तक लोग इस रामलीला का आनंद उठा पाएंगे। कुमाऊ में रामलीला का मंचन बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है, यहां हर साल हजारों जगहों पर रामलीला होती है इन रामलीला में हल्द्वानी, अल्मोड़ा और नैनीताल की रामलीला सबसे प्रसिद्ध है।
हालांकि कुमाऊं के इतिहास में यह पहली बार नहीं है कि जहां महिलाओं द्वारा रामलीला का मंचन किया जाएगा इससे पहले भी कई बार रामलीला का मंचन कई शहरों में हुआ है लेकिन हल्द्वानी के इतिहास में उत्थान मंच में यह पहली बार है जो यहां के लोगों के लिए एक अलग अनुभव होगा। आपको बता दें कि उत्थान मंच में होने वाली इस महिला रामलीला का मंचन पुनर्नवा महिला समिति के तत्वाधान में हो रहा है। 2 अप्रैल 2023 से 11 अप्रैल तक चलेगा।
रामनगर में आयोजित जी-20 सम्मेलन में पहुंचे 20 देशों के G20 प्रतिनिधियों को उत्तराखंड के परिधान यहां की संस्कृति के साथ आएं यहां के खानपान भी बहुत पसंद आए उन्होंने झोड़ा चाचरी का आनंद भी उठाया और सुप्रसिद्ध कुमाऊनी गाना बेडू पाको बारामासा पर ठुमके भी लगाए। लेकिन सबसे खास बात यह है कि उन्हें अल्मोड़े की सुप्रसिद्ध बाल मिठाई जिसके लिए अल्मोड़ा प्रसिद्ध है वो बहुत पसंद आयी और उन्होंने बाल मिठाई की खूब तारीफ की।
बाल मिठाई की शुरुआत –आपको बता दें कि अल्मोड़ा की प्रसिद्ध बाल मिठाई को इजात करने का श्रेय जाता है अल्मोड़े के प्रसिद्ध हलवाई “जोगा शाह जी” को कहा जाता है कि सन 1865 से 1872 के बीच में उन्होंने बाल मिठाई बनाने का काम शुरू किया था। उस वक्त देश में अंग्रेजी हुकुमत थी और अंग्रेज अफसर उस दौरान क्रिसमस के मौके पर अल्मोड़े की ये बाल मिठाई एक दूसरे को उपहार स्वरूप देते थे। बाद में खीम सिंह मोहन सिंह जी की बाल मिठाई प्रसिद्ध हो गई क्योंकि कहा जाता है कि अंग्रेजो ने उनकी मिठाई इंग्लेंड एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया था जिसके चलते यह मिठाई देश विदेशों में मशहूर हो गई।
बाल मिठाई की बादशाहत आज भी बरकरार है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी बाल मिठाई के दीवाने हैं हाल ही में उन्होंने इसका जिक्र भी किया था। G20 देशों से आए हुए प्रतिनिधि उत्तराखंड की सुनहरी यादों के साथ बाल मिठाई का स्वाद भी अपने साथ लेकर जाएंगे और हमें उम्मीद है कि उत्तराखंड की ये मशहूर मिठाई G-20 की यादों में मिठास घोलने का काम करेगी।
इसके अतिरिक्त G20 प्रतिनिधियों ने झुगर की खीर, मडूवे की रोटी, गहत की दाल, कापा, गडेरी के गुडके खाए और कुमाऊनी खानपान से काफी प्रभावित हुए।
पुष्कर सिंह धामी को मिला 2023 के सौ शक्तिशाली भारतीयों की सूची में स्थान
The Indian express की तरफ से भारत के 2023 के सौ शक्तिशाली भारतीयों की सूची के बारे में जानने के लिए भारत के राजनीतिज्ञों। व्यवसायियों, खिलाड़ियों और अभिनेताओं के बीच सर्वे कराकर एक सूची का निर्धारण किया गया। 2023 के सौ शक्तिशाली भारतीयों की सूची की लिस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले स्थान पर और चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ चौथे स्थान पर है। राष्ट्रिय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भगवत छठे नम्बर पर है ,और रिलायंस इंडस्ट्रीज के चैयरमेन मुकेश अम्बानी नवे स्थान पर हैं। 2023 के सौ शक्तिशाली भारतीयों में तीन उत्तराखंडियों को भी स्थान मिला है। जो अपने आप में गर्व का विषय है।
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पुष्कर सिंह धामी को मिला 2023 के सौ ताकतवर भारतीयों की सूची में स्थान-
इनके अलावा 2023 के शक्तिशाली भारतीयों में एक तीसरा नाम भी है। वो नाम है उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री पुष्कर धामी का। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी जी को 2023 के शक्तिशाली भारतीयों की सूची में 93 वा स्थान मिला है। The Indian express के अनुसार, 2022 के चुनाव में पुष्कर धामी भाजपा के 70 में से 47 सीट दिलाने में कामयाब रहे। और आलाकमान की नजरों में मुख्यमंत्री पद की पहली पसंद बने। ukssc धांधली ,अंकिता मर्डर , जोशीमठ आपदा होने के बावजूद भी धामी ने तत्काल और मजबूत निर्णय लेकर खुद पर जनता के विश्वास को बनाये रखा। यह पुष्कर सिंह धामी जी के लिए एक विशेष उपलब्धि है।
Pushkar Singh dhami The most powerful Indians in 2023
उत्तराखंड मूल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को इस सूची में दसवां स्थान मिला है। अजीत डोभाल प्रधानमंत्री मोदी जी के सबसे खास लोगो में एक हैं। सुरक्ष और कूटनीति के मामले में मोदी सरकार में अजीत डोभाल जी की मुख्य भूमिका होती है। उनके फैसले पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भरोसा करते हैं। सुरक्षा संस्थानों के प्रमुख पदों पर नियुक्ति में भी उनकी राय ली जाती है । भारत सरकार की कश्मीर पॉलिसी में उनका बड़ा योगदान है। पाकिस्तान और चीन दोनों पड़ोसी देशों से संबंधित हर कूटनीति में अजीत डोभाल का प्रभाव दिखता है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के मुद्दे पर भारत की स्थिति तय करने में उनकी मुख्य भूमिका रही है। उन्हें भारत का जेम्सबांड कहा जाता है। श्री अजीत डोभाल उत्तराखंड के पौड़ी जिले के मूल निवासी है।इनके अलावा उत्तराखंड मूल के ,उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस सूची में पांचवा स्थान मिला है। योगी आदित्यनाथ अपने कड़क शाशन प्रशाशन व्यवस्था के लिए जाने जाते हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश में अपराध पर काफी हद तक लगाम लगाने में सफल हुए हैं।
उत्तराखंड में महिलाओं का स्वर्णिंम इतिहास रहा है। शाशन या सत्ता सहयोग मिले या न मिले, उत्तराखंड की दृढ़ निश्चयी मातृशक्ति ने अपने लिए स्वतंत्र रह चुनी और उस पर सफल होकर दिखाया। उत्तराखंड की महिलाओं की सफलता की कहानिया प्रतिदिन ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यमों से सुन कर मन गौरवान्वित हो जाता है। आज आपको उत्तराखंड की एक ऐसी ही लड़की की कहानी बताने जा रहे हैं, जो आजकल उत्तराखंड में ढोल गर्ल के नाम से मशहूर हो रही है।
वर्षा बंडवाल , फोटो साभार सोशल मीडिया
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कौन है उत्तराखंड की ढोल गर्ल?
उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के गडेरा, पीपलकोटी निवासी वर्षा बंडवाल ने अपने लिए वो राह चुनी है, जिसमे पुरुषों का एकाधिकार माना जाता है। वर्षा बंडवाल ने ढोल वादन के क्षेत्र में कदम बढ़ाकर पारम्परिक वर्जनाओं को तोड़ कर एक नई परम्परा की शुरुवात की है। जब वर्षा ढोल पर ताल देती है, तो सुनने वाला मन्त्र मुग्ध हो जाता है। छोटी सी उम्र में ढोल वादन में वर्षा की महारथ को देख हर कोई हतप्रभ रह जाता है। वर्ष 2022 में पीपलकोटी के बंड मेले में लोकनृत्य पौणा में वर्षा का ढोलवादन मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा।
विगत सप्ताह रविवार के दिन देहरादून में राष्ट्रिय उत्तराखंड महासभा द्वारा आयोजित नंदा शक्ति सम्मान समारोह में वर्षा और उनके सहयोगी अनुज राणा को विशिष्ट सम्मान से सम्मनित किया गया। वर्षा बंडवाल ढोल वादन प्रतियोगिता में ब्लाक स्तर व जिला स्तर पर प्रथम तथा राज्य स्तर पर द्वितीय स्थान प्राप्त क्र चुकी है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्षा बंडवाल वर्तमान में BA प्रथम वर्ष की छात्रा है। वर्षा के अनुसार जब वे कक्षा -6 में पढ़ती थी, तब ढोल वादन शुरू कर दिया था। गावं, क्षेत्र में जब कोई कार्यक्रम होता था तो वो ढोल की ताल बड़ी गहराई से सुनती थी। वर्षा ने जब पहली बार ढोल वादन किया तो, उसकी उंगलिया स्वतः ही ढोल पर ताल देने लगी। वह अपने इस कार्य के पीछे अपने विद्यालयी अध्यापक श्री रोशन सिंह को मानती है। वर्षा कहती है, हमारे गुरूजी श्री रोशन सिंह ने मुझे निरंतर ढोल वादन के लिए प्रेरित किया है।
प्रस्तावना – उत्तराखंड को देवभूमि है। यहाँ कण कण में दैवीय शक्तियों का वास है। यहाँ सनातन धर्म के लगभग ऋषि मुनियो ने सैकड़ों साल की तपस्या करके अपने तप से इसे देवभूमि के रूप में सवारा है। दैवीय शक्तियों ने यहाँ समय समय पर जन्म लेकर ,इस भूमि देवभूमि बना दिया है। माँ धारी देवी भी उत्तराखंड की प्रमुख दैवीय शक्तियों में एक है। धारी देवी (Dhari devi) को उत्तराखंड की रक्षक कहा जाता है। इन्हे उत्तराखंड के चार धामों की रक्षक देवी भी कहा जाता है। यदि आप बिना धारी देवी के दर्शन किये ,चार धाम की यात्रा करते हो तो आपके चार धामों की यात्रा अपूर्ण मानी जाती है।
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धारी देवी का इतिहास –
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 58 पर श्रीनगर नगर से लगभग 15 किलोमीटर दूर कलियासौड़ बस अड्डे के पास स्थित है माँ धारी देवी का मंदिर। अलकनंदा की धारा में प्राप्त होने के कारण माँ धारी देवी के नाम से विख्यात हुई। इसके बारे कहा जाता है कि 1994 की बाढ़ के समय अलकनंदा नदी में कालीमठ (चमोली) से बहकर यहाँ आई ,और रेत में दबी पड़ी हुई थी। कुंजु धुनार नामक केवट ने स्वप्न में माता का आदेश पाकर रेत से निकाल कर एक चबूतरे में स्थापित किया। इस मंदिर में माँ महाकाली के सौम्य रूप की पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त धारी देवी के बारे में एक और मान्यता प्रचलित है। कहते हैं जब नवी या दसवीं शताब्दी आस पास उत्तराखंड आये तो उन्होंने माता की मूर्ति को सूरजकुंड निकाल कर स्थापित किया। और स्थानीय पुजारियों को उसकी पूजा का कार्यभार सौंप दिया।
2013 से पूर्व तक मंदिर यथा स्थान पर ही था। लेकिन 16 जून 2013 को अलकनंदा हाइड्रो पावर द्वारा 330 मेगावाट अलकनंदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक बांध (Alaknanda Hydro Electric Dam) बनाने के लिए मंदिर को अपने मूल स्थान से हटा दिया गया था। मंदिर को अलकनंदा नदी से लगभग 611 मीटर ऊंचाई पर स्थान्तरित कर दिया गया था। उसी दिन 16 जून 2013 को देश की सबसे भीषण आपदा आई थी। इस विनाशकारी बाढ़ ने पुरे तीर्थ स्थल को तहस नहस कर दिया था। लोगो ने इसे माँ धारी देवी का कोप माना था।
धारी देवी का नया मंदिर अपने मूलस्थान पर अलकनंदा नदी के बीचों -बीच बनाया गया है। जनवरी 2023 में माँ धारी देवी को 9 साल बाद उनके मूल मंदिर में स्थापित कर दिया गया है।
Dhari devi temple
धारी देवी की कहानी-
माँ धारी देवी के बारे में एक लोक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार केदारघाटी के सात भाई कठैतों की एकलौती बहिन थी। उसके बारे में यह धारणा प्रचलित थी कि,यह त्योहारों के समय महाकाली रूप धर मनुष्यों को खा जाती है। यहाँ तक कि एक एक करके अपने छह भाईयो को खा गई। जब सबसे छोटे भाई (सातवें भाई) की बारी आई तो वो तलवार लेकर दरवाजे के पीछे छुप गया। जैसे ही वो झुक कर घर के अंदर घुसने लगी तो ,उसके भाई ने उसके कमर में वार करके उसके दो टुकड़े कर दिए। और हाथ भी काट डाले। इसीलिए आज भी,हाथ बिहीन आधे धड़ (कमर से ऊपरी भाग) की मूर्ति रूप में पूजा की जाती है।
धारी देवी का रहस्य-
धारी देवी मंदिर को उत्तराखंड के चमत्कारी और रहस्यमई मंदिरो में गिना जाता है। कहते हैं माँ धारी देवी की मूर्ति रंग, भाव बदलती है। कहते हैं माता की मूर्ति का रूप सुबह सौम्य, दिन में विकराल, और शाम को शांत दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त कई भक्तों ने ,इस मूर्ति को एक ही दिन में अलग अलग रंगो में परिवर्तित होते हुए पाया है। कहते हैं अपने सौभाग्यशाली भक्तों को कभी योगिनी के रूप में तो कभी चांदी की छड़ी लेकर घूमती हुई बुढ़िया के रूप में दर्शन देती है।
यहाँ के समाज में धारी देवी का बहुत बड़ा धार्मिक महत्त्व है। धारी देवी मंदिर को उत्तराखंड के प्रमुख चमत्कारिक मंदिरों में एक माना जाता है। बिना धारी देवी के दर्शन के चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। धारी देवी को चार धाम की रक्षक देवी माना जाता है। यहाँ के लोगों की धरी देवी के प्रति अगाध श्रद्धा है। यह देवी न्याय की देवी मानी जाती है। सच – झूठ और न्याय अन्याय का निर्णय करने के लिए माँ के द्वार पर गुहार लगाई जाती है। यहाँ माँ को काली के रूप में पूजा जाता है। और लोगों की मान्यता है कि यह देवी तत्काल निर्णय करती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण 2013 की आपदा को माना जाता है। मूर्ति को हटाने के चंद घंटो बाद देवभूमि में विनाशकारी आपदा आई थी।
उद्यान निदेशक डाॅ० हरमिंदर सिंह बवेजा के अथक प्रयासों से पंडित दिन दयाल उपाध्याय राजकीय उद्यान चौबटिया रानीखेत को डच गवर्नमेंट (नीदरलैंड) के सहयोग से उत्कृष्टता केंद्र यानी एक्सीलेंस सेंटर के रूप में विकसित किए जाने को लेकर नीदरलैंड से आए वैज्ञानिको द्वारा चौबटिया गार्डन का निरीक्षण व भ्रमण किया गया।
इस संबंध में वैज्ञानिकों द्वारा शीघ्र ही विस्तृत कार्य योजना तैयार कर उसकी रिपोर्ट भारत सरकार के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।राजकीय उद्यान चौबटिया में नीदरलैंड से आए विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों ने क्षेत्रीय काश्तकारों और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के प्रतिनिधियों से वार्ता करते हुए उनके सुझाव लिए गए। वहां पहुंचे समस्त लोगों का यही कहना था कि राजकीय उद्यान चौबटिया को अगर उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित किया गया तो इससे क्षेत्र के सभी कास्तकारों को लाभ मिलेगा।
इस दौरान एक्सीलेंस सेंटर से क्षेत्रीय काश्तकारों को होने वाले लाभ पर भी चर्चा हुई, उत्तराखंड के तमाम जिलों से आए हुए काश्तकारों ने एक्सीलेंस सेंटर को लेकर अपनी – अपनी राय दी।उनका कहना था कि भारत सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है।
उद्यान विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ० बी के गुप्ता ने बताया कि सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के बनने से स्थानीय काश्तकार लाभान्वित होंगे, इसके अंतर्गत किसानों के प्रशिक्षण केंद्र की भी स्थापना की जाएगी। उद्यान भ्रमण के दौरान नीदरलैंड और भारत सरकार से आए वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने चौबटिया उद्यान में किए जा रहे कार्यों की प्रशंशा की।
इस दौरान भारत सरकार से डा0 तरन्नुम, इंडो डच सरकार से मार्क्स स्लोकास सहित डा0 सुरभि पांडे, मुख्य उद्यान अधिकारी सतीश कुमार शर्मा, प्रधान सहायक नारायण सिंह, मोहन सिंह रौतेला, कैलाश पुजारी, भूपाल सिंह बिष्ट, भुवन चंद्र आर्य सहित कई काश्तकार और अधिकारी मौजूद थे।
केदारमण्डले दिव्ये मन्दाकिन्याः परे तटे । सरस्वत्यास्तटे सौम्ये कालीतीर्थमितिस्मृतम् ।।
स्कन्द पुराण , केदारखण्ड ,अध्याय -85 अर्थात-केदारमण्डल (उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में) में मन्दाकिनी नदी के दूसरे (पूर्वी) तट और सरस्वती नदी के पश्चिमी तट से सटे स्थल पर कालीतीर्थ है।
इसलिए इस क्षेत्र से आगे सरस्वती नदी में कालीशिला से आनेवाली धारा के मिलने के कारण इसका नाम काली नदी हो जाता है। इसी क्षेत्र को कालीमठ क्षेत्र कहते हैं। कालीमठ का पुराना नाम कलंग्वाड़ था। कालीमठ का पौराणिक नाम कालीतीर्थ है। कालीमठ क्षेत्र वर्तमान में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में पड़ता है।
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कालीमठ मंदिर –
कालीमठ मंदिर (Kalimath mandir), माता का वह मंदिर जहाँ उन्होंने शुम्भ निशुम्भ और रक्तबीज का वध करके समाधिस्थ या अंतर्ध्यान हो गई थी। कालीमठ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले की मन्दाकिनी घाटी में गुप्तकाशी से लगभग 10 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित है।
यह मंदिर समुन्द्र तल से लगभग 1463 मीटर उचाई पर स्थित केदार और चौखम्बा की ढाल पर ,काली नदी के तहिने तट पर स्थित है। केदारनाथ धाम के मुख्य मार्ग पर गुप्तकाशी से एक रास्ता कालीमठ के लिए अलग निकल जाता है। kalimath temple Uttarakhand
कालीमठ मंदिर शक्तिपीठ उत्तराखंड के प्रमुख स्थलों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। कालीमठ को माँ काली का मुख्य स्थान माना जाता है। माँ काली को दस महाविद्याओं में प्रथम है।
काली माँ के उग्र और सौम्य दोनों रूपों में दस महाविद्याएं आती हैं। ये महाविद्यांए कई सिद्धियां देने में समर्थ हैं। इन दस महाविद्याओं में, काली, तारा, छिन्मस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी ,त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बंगलामुखी, मातंगी और कमला हैं।
कालीमठ मंदिर का इतिहास –
कालीमठ में महाकाली के साथ महालक्ष्मी, महासरस्वती, गौरीशंकर, भैरवनाथ और सिद्धेश्वर महादेव जी के स्वतत्रं मंदिर भी हैं। कालीमठ में माँ काली का आगमन कैसे हुवा? इसके बारे में एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्राचीनकाल में शुम्भ और निशुंभ नामक दो उत्पाती असुर हुए थे।
इन्होने संसार में खूब उत्पात मचाया हुवा था। देवताओं को स्वर्ग से खदेड़ दिया। खुद अधिपति बन बैठे थे। तब देवताओं ने हिमालयी क्षेत्र के कालीशिला नामक स्थान पर माँ भगवती की आराधना की। देवताओं की पुकार पर माँ चंडिका रूप अवतरित हुई।
जब शुम्भ निशुम्भ को यह पता चला की उनके संहार के लिए देवी ने हिमालय में अवतार ले लिया है ,तो उन्होंने अपने सेनापति धूम्रलोचन को सेना सहित वहां भेजा।
माँ ने उनका संहार कर दिया तब शुम्भ निशुम्भ ने अपने सेवक चंड -मुंड को माता के वध के लिए भेजा लेकिन माँ ने उनका सर से धड़ अलग करके धारण कर लिए। चंड-मुंड का वध करने के कारण माँ भगवती का नाम चामुंडा पड़ा।
चंड-मुंड के वध के पश्चयात शुम्भ और निशुम्भ ने अपने अनन्य सेवक रक्तबीज को माता के पास युद्ध के लिए भेजा। रक्तबीज को वर प्राप्त था, कि अगर उसके रक्त की एक बूँद जमीन पर पड़ेगी तो उससे नया रक्तबीज पैदा हो जायेगा। देवी ने जब रक्तबीज को मारा तो, उसकी रक्त से बहुत सारे रक्तबीज पैदा हो गए। माँ ने उन्हें मारने के कई प्रयास किये ,लेकिन सारे रक्तबीज पैदा हो गए।
अंत में माँ ने महाकाली का विकराल रूप धरा, इस रूप में उन्होंने एक हाथ में खप्पर और दूसरे हाथ में खड्ग लिया। महाकाली एक तरफ से रकबीजों का वध करते गई और उनके शरीर से निकलने वाले खून को जमींन पर पड़ने से पहले खप्पर में समेटने लगी।
इस प्रकार माँ ने रक्तबीजों की खून की एक बूँद भी जमीन में गिराए बिना उनका सर्वनाश कर दिया। अंत में शुम्भ और निशुम्भ को युद्ध के लिए आना पड़ा। कहते है माँ ने शुम्भ निशुम्भ का वध करके ,कालीमठ में समाधिस्थ हो गई। या अंतर्ध्यान हो गई थी।
कालीमठ मंदिर के बारे में –
कालीमठ मंदिर में श्री महाकाली , श्री महालक्ष्मी और महासरवस्ती के तीन भव्य मंदिर हैं। कालीमठ में इन तीनो शक्तियों की पूजा होती है। भक्तगण मुख्यतः महाकाली मंदिर में पूजा सम्पन्न करते हैं। माँ का,ली के विषय में कहा जाता है कि वे बहार से जितनी कठोर है अंदर से उतनी दयालु भी है। भक्तों की पूजा अर्चना से जल्दी खुश होकर उनको ऐच्छिक वर देती हैं।
कालीमठ में महाकाली मंदिर –
श्री महाकाली मंदिर लगभग सात फुट ऊँचे सीमेंट के खम्बो पर बाहर से गोलाई लिए हुए टीन की छतो से आच्छादित है। गर्भगृह में एक कुण्डी है जो रजत पात्र से ढकी रहती है।
गर्भगृह में कोई भी मूर्ति नहीं है। रजत पात्र से ढकी कुंडी के विषय में बताते हैं कि इस कुण्डी के भीतर क्या है? यह अभी तक रहस्य बना हुवा है। यह कुण्डी साल में एक बार शारदीय नवरात्रि को अष्टमी की रात्रि अँधेरे में खोली जाती है।
श्री महालक्ष्मी मंदिर-
कालीमठ क्षेत्र में शक्ति के तीन मंदिरों में श्री महालक्ष्मी मंदिर सबसे बड़ा मंदिर है। श्री लक्ष्मी मंदिर गर्भगृह में अष्टधातु निर्मित चतुर्भुज प्रतिमा विध्यमान हैं। मूर्ति के पास रजत एवं ताम्र पत्रों से बने मुखोटे दर्शनीय है।इन्हे पुजारी अष्टभैरव कहते हैं। मुखौटों के पीछे शिव पार्वती अदृश्य रूप में, अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान हैं।
केवल पुजारी ही अभिषेक के दौरान उसकी पूजा कर सकते हैं। और फिर उन्हें उसी प्रकार गुप्त रख दिया जाता है। गर्भगृह के बाहर मडप की दाहिनी ओर पूरी और कुछ टूटी हुई मूर्तियां है।
सभामण्डप के नजदीक खष्टी कुंड है। शारदीय नवरात्री में इस कुंड को खोलकर हवन किया जाता है। खष्टी कुंड के नजदीक हवन कुंड है। हवनकुंड के बारे में मान्यता है कि इस कुंड में अग्नी तीन युगों से जल रही है।
उत्तराखंड में त्रिजुगीनारायण (गुप्तकाशी), श्री राकेश्वरी (श्री मद्महेश्वर) श्री महालक्ष्मी मंदिर (कालीमठ) ये तीन मंदिर ऐसे माने गए हैं, जहाँ युगों से अखंड धूनी जल रही है।
सरस्वती मंदिर – कालीमठ में श्री महासरवस्ती मंदिर लगभग 35 फ़ीट ऊँचा है। मंदिर के गर्भ में माँ सरस्वती की पत्थर निर्मित आकर्षक अष्टभुजी मूर्ति स्थापित है। गर्भ के बाहर गणेश भगवान् की पत्थर की मूर्ति स्थापित है।
कालीमठ मंदिर
गौरीशंकर मंदिर – कालीमठ क्षेत्र में श्री महासरवस्ती मंदिर की तरह गौरीशंकर मंदिर है। यहाँ श्री गौरीशंकर की युगल प्रतिमा स्थित है। राहुल सांकृतायन ने इस मूर्ति को हिमालय की सबसे भव्यतम मूर्ति बताया है।
सिद्धेश्वर महादेव मंदिर – सरस्वती मंदिर के नजदीक श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। इसमें शिवलिंग प्रतिष्ठित है।प्राचीन प्रथा के अनुसार माँ शक्ति के अधिकांश शक्तिपीठों में भैरव जी की स्थापना अवश्य होती है।
इसलिए इन सभी मंदिरों से 200 मीटर ऊंचाई पर भैरव जी का मंदिर स्थित है। इसके अलावा उत्तराखंड के सिद्ध पुरुष व्रती बाबा महाराज जी ने आठ दशकों तक महाकाली की विधिवत पूजा की और काठीमठ क्षेत्र में तप करके सिद्धियां प्राप्त की।
कालीमठ में होने वाली धार्मिक गतिविधियां-
कालीमठ में वर्षभर भक्तों के लिए खुला रहता है। यहाँ भक्तों का आवागमन चलता रहता है। शारदीय नवरात्र और ग्रीष्म नवरात्री में यहाँ विशेष पुजाएँ होती हैं। कालीमठ में दिसम्बर माह में देवरा यात्रा का आयोजन भी होता है।
इस यात्रा में सम्मिलित होने वाले छह गावों (कालीमठ, कविल्ठा, व्युंखी, जग्गी बागवान, बेडुला और कुंजेठी ) के लोग इस आयोजन की तैयारी बड़े उत्साह से करते हैं। यहाँ कविल्ठा गांव के पुजारी लोग रहते हैं। ह्यूण, कोठेड़ा व देवशाल के आचार्य भी यहाँ पूजा कराते हैं।
कालीशिला –
कालीमठ क्षेत्र में कालीमठ मंदिर से लगभग 5 किलोमीटर की तीक्ष्ण ऊंचाई पर एक दिव्य चट्टान है। जिसको कालीशिला कहा जाता है।
कालीमठ के श्री महालक्ष्मी मंदिर शिलालेख में कलिकाला शैल नाम से वर्णित कालीशिला कालीगंगा के उच्च स्तर पर स्थित एक दिव्य सिद्ध क्षेत्र है। कालीशिला शिखर इस क्षेत्र का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है। इसके अलावा यह क्षेत्र जड़ी बूटियों और दिव्य वनस्पतियों से आच्छदित क्षेत्र है।
दुर्गा सप्तशती के अनुसार सभी देवताओं की प्रार्थना के बाद इस स्थान माँ शक्ति ने अवतार लिया। सिद्ध स्थल कालीशिला पर अनेकों मन्त्र लिखें हैं। कालीशिला पर मुख्यतः कालीमंत्र ,बंगलामुखी मन्त्र, भैरवी मन्त्र, मातंगी मंत्र, छिन्नमता मन्त्र, धूमावती मन्त्र, त्रिपुर भैरवी मन्त्र, षोडशी मन्त्र, कमला मन्त्र, तारा मन्त्र आदि अनेक मन्त्र लिखे है।
आदिगुरु शंकराचार्य ने चौसठ मन्त्रों का उल्लेख सार्थ सौंदर्य लहरी में किया है। अग्नि पुराण में चौसठ तंत्रों को चौसठ योगिनियों के रूप में किया है। कूर्म पुराण और शुम्भ रहस्य में भी कालीशिला का वर्णन किया गया है।
कालीशिला पर तंत्र साधना भी की जाती है। और यहाँ देवी की दस महाविद्याएं सिद्ध की जाती हैं। कालीशिला के विषय में कहाँ जाता है कि इस शिला पर पौराणिक काल से देवताओं, यक्षो और गन्धर्वों का निवास रहा है।
कालीशिला का वर्णन विश्व कवी कालिदास ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ “मेघदूत” में किया है। Kalishila Uttarakhand के बारे में कहा जाता है कि ,माता काली के पदचिन्ह यहाँ उत्कीर्ण हैं।
कालीशिला कैसे पहुंचे –
काली शिला पहुंचने के लिए तीन मुख्य रस्ते हैं। पहला गुप्तकाशी से कालीमठ ब्यूखीं होते हुए कालीशिला पहुँचता हैं। दूसरा मार्ग उखीमठ से मनसूना ,जुगासु ,राऊलैंक होते हुए कालीशिला पहुँचता है। तीसरा मार्ग चुन्नी बैंड से बेदुला होते हुए कालीशिला पहुँचता है।
उत्तराखंड के फुटबॉल में पुराने अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने सन 2011 में फुटबॉल को उत्तराखंड का राज्य खेल घोषित किया। उत्तराखंड में फुटबाल अंग्रेजों के समय से खेला जा रहा है। सन 1937 में देहरादून डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स एसोसिएशन (Dehradun District Sports Association) DDSA का गठन हुआ था। सन् 1950 में देहरादून स्थित 48वीं गोरखा बटालियन ने फाइनल में रांसी स्टेडियम, पौड़ी कोलकाता के प्रसिद्ध क्लब ईस्ट बंगाल से सामना किया, और गोरखा बटालियन को हार मिली। सन 1953 में देहरादून की भारतीय सैन्य अकादमी ने दिल्ली में आयोजित डूरंड कप फाइनल में मोहन बागान क्लब के साथ खेलते हुए बेहतरीन प्रदर्शन किया।
उसके बाद 1958 में डूरंड कप के फाइनल में पहुंचने वाली देहरादून की गोरखा ब्रिगेड मद्रास रेजीमेंट के साथ खेलते हुए दूसरे स्थान पर रही। सन 1966 में गोरखा ब्रिगेड ने सिख रेजीमेंट को 2-0 से हरा कर डूरंड कप में विजय प्राप्त की। इसी टीम ने सन 1969 में सीमा सुरक्षा बल को हराकर दूसरी बार डूरंड कप का फाइनल जीता। सन 1960 में जूनियर सुब्रतो कप शुरू हुआ और तब से 1972 तक स्कूल स्तर की इस राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में देहरादून की विभिन्न जूनियर टीमें सात बार फाइनल में पहुँची।
गोरखा मिलिट्री स्कूल की टीम ने सन् 1964 एवं 1965 में सुब्रतो कप जीता। देहरादून की गोरखा ब्वॉयज कम्पनी ने सन् 1969, 1970 एवं 1972 में सुब्रतो कप जीता। गोरखा मिलिट्री स्कूल की टीम 1961 में सुब्रतो कप में रनर अप रही।
वर्तमान में उत्तराखंड के राज्य खेल फुटबॉल की अपने राज्य में हालत खस्ता है। इस खेल बाहर मैदान पर खिलाड़ी कम, अंदर एसोसिएशन ज्यादा खेल रही हैं। उत्तराखंड का राज्य खेल एसोसिएशनों और सरकार की खींचतान में फंस है।
उत्तराखंड के प्रमुख फुटबॉल खिलाडियों में राम बाहदुर क्षेत्री भारत के बेहतरीन मिडफ़ील्डरों में से एक है। इनके अलावा भूपेंद्र सिंह रावत एक कुशल फुटबॉल खिलाड़ी थे। उत्तराखंड के अनिरुद्ध थापा, मनीष मैथानी, रोहित दानू, साहिल पंवार, दीपेंद्र नेगी, पवन कुमार जोशी, अमर बाहदुर गुरंग आदि खिलाड़ियों ने फूटबाल में उत्तराखंड का नाम रोशन किया।