Thursday, March 13, 2025
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गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम और उनका इतिहास।

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गढ़वाल के 52 गढ़

उत्तराखंड में ऐसे कई नाम है जिनके पीछे गढ़ शब्द का प्रयोग होता है। वस्तुतः मध्यकाल में समस्त उत्तराखंड क्षेत्र इन गढ़ियों के शासकों द्वारा प्रशासित था। इनकी अपनी सामंती ठकुराई होती थी। और इनके अपने छोटे छोटे दुर्ग होते थे जिन्हे गढ़ ,गढ़ी  कोट या बुंगा कहते थे। इनका निर्माण पहाड़ी  ऊपर किसी समतल भूमि पर किया था।

कुमाऊं गढ़वाल में सभी राजवंशो के गढ़ों के अलावा इनके सामंतो भी अपने गढ़ होते थे। इनमे अधिकतर केवल नाम के रह  हैं अब। गढ़वाल जो पहले “केदारखंड’ के नाम से जाना जाता था। वर्तमान गढ़वाल का नामकरण ही गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम पर पड़ा है।

बताते हैं कि पँवारवंश के राजा अजयपाल( 1500-1515 ई.) के द्वारा इन गढ़ो को एक करके गढ़वाल नामक राज्य  गठन किया गया था। उस समय इनकी संख्या 52 थी। गढ़वाल के इतिहासकार श्री हरिकृष्ण रतूड़ी जी द्वारा गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम निम्न बताये गएँ हैं।

गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम

गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम –

1 .अजमीरगढ़ (अजमेर पट्टी), 2 .इड़ियागढ़ (बड़कोट रवांई), 3. उप्पुगढ़ (उदयपुर), एरासूगढ़ (श्रीनगर के ऊपर), 5. कंडारीगढ़ (नागपुर), कांडागढ़ (रावतस्यू), 7. कुइलीगढ़ (कुइली), 8. कुजड़ीगढ़ (कुजड़ी), 9. कोलीगढ़ (बछणस्यू), 10.गढ़कोटगढ़ (टकनौर), 11. तड़तांगगढ़ (टकनौर), 12.गुजडूगढ़ (गुजडू), 13. चम्पागढ़, 14. चांदपुरगढ़ (तैली चांदपर्) 15. चौण्डागढ़ (शीली चांदपुर), 16. चौंदकोटगढ़ (चौंदकोट), 17. जौटगढ़ (जौनपुर), 18. जौलपुरगढ़, 19. डोडराक्वारगढ़ (डाडराक्वार), 20. तोपगढ़, 21. दशौलीगढ़ (दशौली), 22. देवलगढ़ (देवलगढ़), 23. धौनागढ़ (इडवालस्यू), 24. नयालगढ़ (कटूलस्यों), 25. नागपुरगढ़ (नागपुर), 26. नालागढ़ (देहरादून), 27. फल्याणगढ़ (फल्दाकोट)

28. बदलपुरगढ़ (बदलपुर), 29. बधाणगढ़ (बधाण), 30. बनगढ़ (बनगढ़), 31. बागरगढ़ (बागर), 32. बागगढ़ (गंगासलाण), 33. बिराल्टागढ़ (जौनपुर), 34. भरदारगढ़ (भरदार), 35. भरपूरगढ़ (भरपूर), 36. भुवनागढ़, 37. मुंगरागढ़ (रवांई) 38. मोल्यागढ़ (रमौली), 39. रतनगढ़ (कुजडी), 40. रवालगढ़ (बद्रीनाथ के मार्ग में), 41. राणीगढ़ (पट्टी राणीगढ़), 42. रामीगढ़ (शिमलास्टेट), 43. रैंकागढ़ (रैंका), 44. लंगूरगढ़ (लंगूर पट्टी), 45. लोदगढ़, 46. लोदनगढ़, 47 .लोहबागढ़ (लोहबा), 48. श्रीगुरुगढ़ (सलाण), 49. संगेलागढ़ (लोहबा), 50. सांकरीगढ़ (रवांई), 51. सांवलीगढ़, (खावलीखाटली), 52. सिलगढ़ (सिलगढ़)।

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नारायण आश्रम उत्तराखंड का इतिहास (Narayan Ashram Uttarakhand)

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नारायण आश्रम

नारायण आश्रम की स्थापना 1936 में श्री नारायण स्वामी जी ने की थी। यह पिथौरागढ़ से 136 किमी दूर है। और तवाघाट से 14 किमी दूर है। नारायण आश्रम समुद्रतल से 2734 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह आश्रम धारचूला स्टेशन से 23 किमी दूर है। प्रकृति की सुरम्य वादियों में बसा यह आश्रम ध्यान योग की गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है।

नारायण आश्रम उत्तराखंड का इतिहास –

नारायण स्वामी का जन्म दक्षिण एक सम्पन्न परिवार में हुवा था। किन्तु इनके मन में युवास्था में ही वैराग्य उत्पन्न हो गया था। अपने सम्पन्न परिवार का त्याग कर ये हिमालय को आ गए। बद्री -केदार ,हरिद्वार आदि दर्शन के बाद 1935 में कैलास मानसरोवर की यात्रा से लौटते समय स्थानीय लोगो से मुलाकात और उनका आतिथ्य ग्रहण किया। उस समय वहां की परिस्थियाँ देखकर वहां एक आश्रम की स्थापना का निर्णय लिया।

सर्वप्रथम 26 मार्च 1936 को एक पर्णकुटीर के रूप में आश्रम की स्थापना की गई। एक ध्वज पर ॐ श्री नारायणाय नमः लिखकर ध्वज लहराया गया। स्थानीय मजदूरों की वर्षों की मेहनत और स्थानीय तथा महाराष्ट्र और गुजरात के भक्तों की बदौलत यह आश्रम बन कर तैयार हुवा। उस समय अल्मोड़ा तक ही सड़क की सुविधा थी। अल्मोड़ा से पैदल आना जाना होता था। उस समय भवन बनाना बहुत संघर्ष का काम होता था।

नारायण आश्रम स्थापना के उद्देश्य –

यहाँ आश्रम स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य था इस क्षेत्र की सामाजिक ,आध्यात्मिक और शैक्षणिक उत्थान। उस समय सीमांत क्षेत्र में ईसाई मिशनरीज भी सक्रीय थी। वे वहां बड़े जोर शोर से धर्मपरिवर्तन में सक्रिय थे। इस लिहाज से भी वहां नारायण आश्रम की स्थापना महत्वपूर्ण हो गई थी।

नारायण आश्रम उत्तराखंड का इतिहास (Narayan Ashram Uttarakhand)

आश्रम में की जाने वाली गतिविधियां –

यह आश्रम धार्मिक ,योग ,ध्यान और प्रकृति की सुंदरता का आनंद और ट्रैकिंग की गतिविधियां की जाती हैं । महाराष्ट्र और गुजरात के भक्त /पर्यटकों की आवाजाही यहां अधिक होती है।

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कैसे पहुचें –

नारायण आश्रम का नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर है। और यहां का नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर है। यहाँ पहुँचने के लिए सबसे पहले आपको धारचुला पहुँचना होगा। धारचूला से नारायण आश्रम की दूरी 44 किमी है।

उत्तराखंड का घेस गांव सपनो की दुनिया ख्वाबों का देश

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उत्तराखंड का घेस गांव: घेस गांव (ghes village Uttarakhand) उत्तराखंड का हर्बल गांव के नाम से प्रसिद्ध है। हिमालय की तलहटी में बसा यह गांव जड़ी बूटियों के साथ-साथ अपनी नैसर्गिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। इसे जड़ी बूटियों वाला गांव भी कहते हैं। घेस गांव हिमालय के नजदीक चमोली जिले के देवाल ब्लॉक में स्थित है। इस गांव के लिए एक प्रसिद्ध कहावत है। घेस जिसके आगे नहीं देश ।

घेस गांव
फ़ोटो साभार राजेश कुमार घुमक्कड़ी दिल से ।

जड़ी-बूटियों का उत्पादन होता है –

घेस गांव मे परम्परागत खेती के साथ जड़ी बूटीयों का उत्पादन भी किया जाता है। ग्रामवासी अतीस,कटकी, कर, पुष्करगोल, चिरायता और वन ककड़ी जैसी जड़ी बूटीयों का उत्पादन करके उन्हें उचित दामों पर बेचते भी हैं।

यहां परम्परागत खेती के साथ-साथ आधुनिक खेती भी शुरू की जा रही है।  परम्परागत राजमा, चौलाई आदी का उत्पादन अच्छी मात्रा मे हो रहा है। जड़ी बूटीयों की खेती और फसल की खेती यहा मुख्य स्वरोजगार का साधन है।

घेस गांव

प्राकृतिक सुन्दरता का खजाना है घेस गांव –

हिमालय की तलहटी मे बसा घेस गांव प्राकृतिक सुन्दरता का खजाना है। यहां से बर्फ से ढकी हरदेवल, त्रिशूल, नंदा, घुंगटी और बगची बुग्याल के मनोरंम नजारे दिखाई देते है। प्राकृतिक सुन्दरता का आनंद लेने के लिए उपयुक्त है।

यहां का प्रमुख आकर्षण का केंद्र बागची बुग्याल है । यहां से हिमालय की चोटियां ऐसे दिखती हैं मानो हाथ बढ़ाओ और छू लो। यदि आप थोड़ी असुविधाओं में कंप्रोमाइज कर सकते हो तो, उत्तराखंड की यह ऑफबीट डेस्टिनेशन आपके लिए सपनों का देश बन सकता है।

घेस गांव

बागची बुग्याल:-

यह बुग्याल घेस गांव से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये बुग्याल प्राकृतिक सुंदरता का खजाना है। इस बुग्याल को 2022 में ट्रैक ऑफ द ईयर घोषित किया जा चुका है। यह अभी तक छुपी हुई डेस्टिनेशन में से एक है। बागची बुग्याल बागेश्वर और चमोली से लगा हुआ है।

यह बुग्याल समुद्रतट से लगभग 12 हजार फीट ऊँचाई पर है ।बागची बुग्याल की ट्रकिंग घेस गांव से शुरू होती है । यहां 4 किमी के दायरे में फैली फूलों की बेल्ट अद्भुत शांति देती है। जाड़ो में बर्फ से ढका मैदान अलग ही सुख देता है।

घेस गांव

कैसे पहुँचें घेस गांव-

देहरादून से ऋषिकेश-बद्रीनाथ नेशनल हाईवे पर कर्णप्रयाग से इस गाँव के लिए सड़क जाती है । घेस देहारादून से 300 किमी और ऋषिकेश से 269 किमी की दूरी पर स्थित है।कर्णप्रयाग से ग्वालदम नेशनल हाइवे पर थराली बाजार के बाद इस गाँव के लिए अलग सड़क जाती है। थराली से देवाल ब्लॉक पहुँचाना होता है और फिर देवाल से आगे घेस गाँव के लिए करीब 26 किमी की दूरी पर ये गाँव स्थित है।

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क्या हैं घास के लुटे – आसमान के नीचे घास को स्टोर करने की पहाड़ियों की विशेष तकनीक !

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अश्विन माह जिसे पहाड़ो में आशोज के नाम से जाना जाता है। और यह अशोज का महीना जबरदस्त खेती के काम का प्रतीक माना जाता है। क्योंकि इस महीने खरीफ की फसलों के साथ घास भी काटी जाती है। और अधिक मात्रा में होने के कारण इसे घास के लुटे बनाकर स्टोर किया जाता है।

काम -काज का पर्याय है आशोज का महीना –

अश्विन यानि सितम्बर और अक्टूबर में मोटा अनाज मडुवा ,झंगोरा आदि और धान की फसल ,और दाल दलहन इसके साथ घास ये सब एक साथ तैयार होते हैं। इतनी सारी फसलें एक साथ तैयार होने के कारण इस महीने काम की मारमार पड़ जाती है।  जाड़ों में पहाड़ों में अधिक ठंड पड़ने या बर्फ पड़ने के कारण पहाड़ों में जीवन यापन कठिन हो जाता है। इसलिए ठंड शुरू होने से पहले यहाँ के निवासी अपने लिए जाडों के भोजन का प्रबंध कर लेते हैं। जैसे -अनाज ,बरसात की मौसम की सब्जियों लौकी आदि को सूखा कर रख लेते हैं।

पहाड़ों में जाड़ों के लिए पहले स्टोरेज करना पड़ता है-

पहाड़ वासी अपने साथ -साथ अपने जानवरों के लिए भी जाडों के भोजन की व्यवस्था करके चलते हैं। चूँकि अश्विन माह में पहाड़ो में घास काफी अच्छी मात्रा होती है। इसलिए इसमें से कुछ भाग सुखाकर जानवरों के जाड़ों के भोजन के लिए रख लेते हैं। घास काफी जगह घेरती है इसलिए इसको गोदामों में भंडारण करना कठिन है। और पहाड़ में इतने गोदाम कौन बनाएगा। इसलिए पहाड़वासियों ने घास के भंडारण की ऐसी तकनीक निकाली जिससे गोदाम और जगह दोनों समस्याओं का समाधान हो जाता है।

घास के लूटे
घास के लुठे बनाते हुए । फ़ोटो साभार सोशल। मीडिया

क्या हैं घास के लुटे –

पहाड़ के लोग घास को सुखाकर एक खम्बे या पेड़ पर घास को कुछ इस तरह रखते है ,उसे न बारिश का पानी लगता है ,और न ही दीमक और न ही वो तूफान में उड़ती है। पहाड़ो में जाडों के लिए इस तरीके से घास के भंडारण की व्यवस्था को लूटे या घास के लुठ कहा जाता है। हिमाचल में इसे कोठा ,कुप्प आदि नामो से जानते हैं।

घास के लुटे कैसे लगते हैं –

घास के लूटे लगाने के लिए सर्वप्रथम सुखी घास को छोटे -छोटे हिस्सों में बांधकर रख लेते हैं। घास के इन छोटे -छोटे बंडलों को पूवे या पुले कहते हैं। फिर जमीन में एक खम्बा गाढ़ कर ,झाड़ियां काटकर उसकी गोलाई में लगा लेते हैं।  ताकि घास को जमीन से पानी या दीमक न लगे। उसके बाद घास के पुलों को कुछ इस तरह नीचे से ऊपर को लगाते हुए लाते है कि वे एक दूसरे के साथ जुड़ जाएँ।

नीचे से ऊपर को पुलों की संख्या को कम करते हुए जाते हैं और एक पुले को दूसरे पुले से दबाते जाते हैं। आखिर में दो या  पुलों के नियंत्रण में पूरा घास का लूटा रहता है। और घास के कुछ तिनको की मजबूत रस्सी बनाकर खम्बे की की छोटी या पेड़ की टहनी  के साथ बांध देते हैं। जिससे पूरा लूटा मजबूत रहता है। कहीं -कहीं घास के लूटों को बारिश से बचाने के लिए लूटों में आखिरी पुलों के रूप में धान की पराली का प्रयोग करते हैं। या ऊपर आच्छादन करते हैं।

निष्कर्ष –

कहते हैं आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। पहाड़ों में घास के भंडारण की आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया गया लूटों का अविष्कार पहाड़ियों की अद्भुत सूझबूझ और तकनीक का परिणाम हैं।

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गढ़वाली कविता – एक नवेली दुल्हन की गांव के पलायन की पीड़ा

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गढ़वाली कविता

मित्रों टिहरी गढ़वाल से श्री प्रदीप बिजलवान बिलोचन जी ने पलायन के दर्द को बताती एक गढ़वाली कविता भेजी है। गढ़वाली भाषा में कविता का आनंद लीजिये और अच्छी लगे तो शेयर करें।

गढ़वाली कविता – एक नवेली दुल्हन की गांव के पलायन की पीड़ा –

न बाबा न मिन कतै भी तै बांझा सैसुर नी जाणी ।
तख छ बाघ रिख की डैर ,
जीकुड़ी मां पड़ी जांदू झुराट अर मैं तैं त पोड़ी गेनी आणि ।
गोणी बांदूरू न त बल बांझा गेरी यालीन साग, सगवाड़ी ।
तब मिन अर सासु जी न तुमी बोला क्या त खाणी ।
गांव का सभी लोग उंदू चलीगेनी,
मिन अर सासु जी न यखुली यखुली कनै राणी ।
न बाबा न मिन कतै भी तै बांझा सैसुर नी जाणी ।
गांव मां त रई गेनी बल लाटा काला ।
अर कदम कदम पर खूल्यान जू स्कूल ऊं मां,
झटपट ही लगी जांदीन ताला ।
यख त हमारा गांव मां त होणु छः विकास ।
कना त छन म्यारा मैती स्वरोजगार ।
कट्ठा रैण मां यख त नी छ केकी डार ।
जबरी तलक मेरा सैसर माजी भी सैरू उंदा ,
लोग भी घर जना नी बोडला ।
अर अपणी इं जन्मभूमि मां स्वर्ग नी ढूंढला ।
तबारी तक नी कन मिन तै सैसूर जाण की स्याणी ।
न बाबा न मिन कतै भी तै बांझा सैसुर नी जाणी ।
भैर का लोग जब यख आइकी अपण सुख चैन, खोजदीन ।
त तुम तब होटुलू मां भांडा कुंडा ही धोंदा छीन ।
यख त छ छोया छमोटों कु ठंडो ठंडो सी अमृत,
सी जनू पाणी।
न बाबा न मिन त कतै भी तै बांझा सैसुर नी जाणी ।

गढ़वाली कविता के लेखक_ प्रदीप बिजलवान बिलोचन

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उत्तराखंड का सरमोली गांव बन गया देश का बेस्ट टूरिस्ट विलेज !

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उत्तराखंड की शांत और सुन्दर वादियां लोगों का मन मोह लेती हैं। हालाँकि देश भर में कई सुन्दर पर्यटन स्थल हैं लेकिन उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक सुंदरता के आगे वे भी फीके पड़ते हैं। यहाँ सालभर पर्यटकों का ताँता लगा रहता है। इसलिए भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने उत्तराखंड के सरमोली गांव को देश का सबसे श्रेष्ठ पर्यटन गांव के रूप में चुना है। बेस्ट टूरिस्ट विलेज ऑफ़ इंडिया के रूप में चुने जाने वाला सरमोली गांव उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के पास स्थित है।

भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने समस्त देश में श्रेष्ठ पर्यटन गांव के लिए अनेक गावों का सर्वे कराया। इस सर्वे में देखा गया कि गांव में सुख सुविधा की क्या क्या व्यवस्थाएं हैं ? गांव में सफाई कैसी है? गांव वासियों का रहन सहन, व्यवहार, माहौल, गांव का मुख्य मार्गों से जुड़ाव, गांव में प्राकृतिक सुंदरता आदि कई मापदंडो को परखा गया। समस्त राज्य सरकारों ने पुरे भारत से 795 गावों का नाम इस प्रतियोगिता के लिए पर्यटन मंत्रालय को भेजा था। इन सब में से पिथौरागढ़ के सरमोली गांव को बेस्ट टूरिस्ट विलेज चुना गया। इसकी आधिकारिक घोषणा 27 सितम्बर 2023 को की जाएगी।

सरमोली गांव

विशेष है सरमोली गांव –

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की पहाड़ियों में बसा छोटा सा गांव सरमोली इकोटूरिज्म के लिए एक आदर्श गांव है। बहुत सारे पर्यटन स्थल स्वयं को इकोटूरिज्म स्थलों के रूप में प्रदर्शित करते हैं, और उनमें से अधिकांश हैं। लेकिन अगर हम ऐसा कहें तो उनमें से बहुत सारे पर्यटन स्थल पर्यावरण पर्यटन की शर्तों को पूरा नहीं कर पाते हैं। लेकिन सरमोली नहीं। सरमोली का छोटा सा गांव इकोटूरिज्म की परिभाषा है और यह इसलिए संभव है, क्योंकि इस गांव में आपको जमीनी स्तर से स्थानीय संस्कृति का अनुभव मिलता है।

जब गांव से पलायन बढ़ने लगा तब स्थानीय लोगों को अहसास हुवा कि, अपनी संस्कृति अपनी परम्पराओं को जीवित रखने के लिए, अपने गावं को बचाने के लिए कुछ करना होगा। एक शौकीन पर्वतारोही और सामाजिक कार्यकर्ता मलिका विरदी ने हिमालयन आर्क होमस्टे कार्यक्रम शुरू किया। यह केवल महिलाओं द्वारा चलाया जाता है। इस गांव में 25 से अधिक होमस्टे हैं जिन्हे महिलाओं के द्वारा चलाया जाता है।

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प्रकृतिक सुंदरता के मामले में भी यह गावं किसी से कम नहीं है। गावं के शांत और सूंदर वातावरण और हिमालय की चोटियों -नंदा देवी ,राजरंभा ,पंचाचूली और नंदाकोट चोटियों का मनमोहक दृश्य हर किसी को अपना दीवाना बना लेता है। यहाँ के ग्रामवासियों ने पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण पर्यटन को स्वरोजगार बना कर खुद को और गांव को समृद्ध किया है।

सरमोली गांव में की जाने वाली गतिविधिया –

अन्य पर्यटन स्थलों में की जाने वाली गतिविधियों – ट्रैकिंग, कैम्पिंग, बर्ड वाचिंग, नेचर फोटोग्राफी, एडवेंचका र गेम्स के साथ -साथ एक खास गतिविधि है जो यहाँ की जाती है, वो है स्थानीय संस्कृति के साथ वहाँ का जीवन जीना। यह गतिविधि इसे खास पर्यटन स्थल बनाती है। और हो सकता है इसी गतिविधि के कारण इसे देश के बेस्ट टूरिस्ट विलेज का अवार्ड मिलने जा रहा है। स्थानीय जीवन जीने का अर्थ है, वहां के लोगो के दैनिक जीवन में सम्मिलित होकर उनके साथ मिलकर उनके दैनिक क्रियक्लाप करना।

कुमाऊं के शक्तिशाली लोक देवता भोलनाथ, जिन्होंने अल्मोड़ा को जल संकट से उबारा

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सैम देवता और हरु देवता  के समान ही यह भोलनाथ भी कुमाऊं के एक अति लोकप्रिय सम्मानित देवता है। इन्हे  भोलेनाथ (शिव) का अवतार माना जाता है। तथा सभी खुशी के अवसरों पर तथा प्रमुख पर्वो पर इसका स्मरण किया जाता है तथा ‘रोट’ का प्रसाद बनाकर इसका पूजन किया जाता है। कहीं-कहीं इसे भैरव के नाम से भी पूजा जाता है। इसके अतिरिक्त इनका  ‘जागर’ भी लगता है जिसे ‘भ्वलनाथ ज्यूक जागर’ कहा जाता है। इनका प्रभाव क्षेत्र मुख्यतः अल्मोड़ा तक ही सिमित है।

लोक देवता भोलनाथ की कहानी –

एक लोकश्रुति के अनुसार राजा उदयचंद की दो रानियां थी। और दोनों के ही एक-एक पुत्र थे। इनमें से बड़े का नाम हरिश्चन्द्र और छोटे का ज्ञानचन्द था। कहा जाता है कि उसका छोटा भाई  ज्ञानचन्द बड़ा धूर्त, छली और कपटी था। कई लोग कहते हैं कि राजा का बड़ा बेटा बुरी संगत में पड़ने के कारण घर से निकाल दिया गया। ( कुमाऊं का इतिहास ) और कई लोगो मानना  है कि ज्ञानचंद का छल और कपट से राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी अपने इस बड़े भाई को राज्यभ्रष्ट कर डाला था। अपने भाई के इस प्रकार के षडयंत्रों से दुखी होकर  हरिश्चंद्र ने राजपाट को छोड़कर सन्यास ले लिया था। और नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ जी से शिक्षा-दीक्षा लेकर  भोलानाथ के नाम से जाना जाने लगा। कहते हैं एक स्त्री से उनका प्रेम था, जो कि उनके साधु बनने पर स्वयं भी साध्वी बन गयी थी। और उसके साथ तीर्थाटन को निकल गयी थी। उसे कई बर्मी  बामणि के नाम से संबोधित करते हैं। एक बार जब ये जब ये दोनों एक बार घूमते-घूमते आकर अल्मोड़ा के निकटस्थ एक गांव नैल पोखरी में रुके हुए हुए थे, तो उनके कपटी भाई ज्ञानचन्द को इसका पता चल गया।

कुमाऊं के शक्तिशाली लोक देवता भोलनाथ

उसको आशंका हुई कि भोलानाथ कहीं आकर अपने राज्याधिकार की मांग न कर बैठे। इसलिए उसने अपने रास्ते के इस कांटे को सदा के लिए समाप्त कर देने के लिए  एक माली को धन दिया। उस माली ने  उन दोनों को वहीँ  शीतलादेवी के मंदिर के पास में उनके आश्रम में ही मरवा डाला। कहा जाता है कि उस समय उसकी प्रेमिका गर्भवती थी। फलत: इस छलपूर्ण क्रूर हत्या के उपरान्त वे तीनों प्रेतात्माएं (भोलनाथ , बर्मी , नवजात बच्चा) बाड़ियों तथा ज्ञानचन्द को सताने लगी। राजा ज्ञानचन्द के द्वारा पुरोहितों के कहने पर इन तीनों की आत्माओं की सन्तुष्टि के लिए अल्मोड़ा नगर में अष्टभैरवों-कालभैरव, बटुक भैरव, बाल भैरव, शै भैरव, गढ़ी भैरव, आनन्द भैरव, गौर भैरव, खुटकनियां भैरव-, की स्थापना करवाई थी।

कुमाऊं के लोक देवता भोलनाथ से जुडी दूसरी कहानी –

भोलेनाथ के कोप से बचने के लिए ज्ञानचन्द द्वारा स्थापित अल्मोड़ा के  इन भैरव मंदिरों के सम्बन्ध में एक लोकगाथा  यह भी है कि भोलानाथ पराशक्तियों से सम्पन्न घुमक्कड़ प्रकृति के संत थे। या वो एक सिद्ध पुरुष थे। एक दिन जब वह अल्मोड़ा पहुँचे तो रात्रि को अपनी पराशक्ति के बल से राजा के उस शयनकक्ष में प्रवेश कर गए जो कि सभी ओर से बंद था। जब राजा की नींद खुली तो वह वहां एक अनजान व्यक्ति को देखकर चौक गया और उसे आश्चर्य हुवा कि जब शयनकक्ष की सभी खिड़किंया, दरवाजे बंद हैं तो यह व्यक्ति कैसे अन्दर आ गया?

उसने क्रोध में आकर पास में रखे तलवार से उसका सिर काट डाला परउसका आश्चर्य और भी बढ़ गया जब उसने देखा कि उसमें से एक बूंद रक्त नहीं गिरा। इसके बाद वह जब भी पलंग पर सोता तो पलंग उलट जाता और वह भूमि पर गिर जाता। तब पुरोहितों  की सलाह पर उसने इस पवित्रात्मा की हत्या के प्रायश्चित के लिए अल्मोड़ा के इन आठों भैरव मंदिरों की स्थापना की थी।

इन्हे भी पढ़े: कुमाऊं के लोकदेवता गांगनाथ देवता की कहानी

भ्वलनाथ को समर्पित मंदिर पलटन बाजार सिद्ध नौले के पास है बाकी इन्हें मानने वाले लोग अपने घरों में ही इसकी स्थापना करके इसकी पूजा आराधना किया करते हैं और जागर लगाकर उसका अवतरण कराते हैं। इनकी हत्या पौष माह के रविवार के दिन हुई थी, इसलिए श्रद्धालु पौष के रविवारों को रोट भेंट चढ़ाते हैं।

भोलनाथ का सिद्ध नौला
सिद्ध नौला अल्मोड़ा

अल्मोड़ा का सिद्ध नौला इनकी प्रचंड शक्ति का प्रमाण –

जनश्रुतियों के अनुसार अल्मोड़ा के पलटन बाजार में स्थित सिद्ध नौला इनकी प्रचंड शक्ति का प्रमाण है। कहते हैं भोलनाथ बाबा ने यहाँ पर अपने चिमटे के वार से जलधारा को प्रस्फुटित किया था। स्थानीय लोग चिमटे के निशान की पुष्टि भी करते हैं। बाद में इसे चंद राजाओं ने एक नौले का स्वरूप दिया । इसके  बगल से एक सुरंग भी बनी है, जिसे अब  बन्द कर दिया गया है। कहते हैं भोलनाथ जी ने अल्मोड़ा में जगह – जगह अपने तपोबल से धाराएं प्रस्फुटित कर अल्मोड़ा को जल संकट से उबारा था।

झंगोरा के फायदे और उसमे पाए जाने वाले पोषक तत्व

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झंगोरा

एक समय था जब झंगोरा पहाड़ी लोगों का दिन का अनिवार्य भोजन हुवा करता था। धीरे -धीरे परिस्थितियां बदली लोग पहाड़ छोड़ कर मैदानों में बस गए। लोगो की आय और जीवन स्तर बदल गया। जानकारी के अभाव में झुंगर जैसे सर्वगुण संपन्न अनाज को लोगों ने तुच्छ समझ कर त्याग दिया। आज जब लोगों को इस अनाज के गुणों का पता चल रहा तो आज दुगनी कीमत में भी झुंगरू खरीदने को तैयार हैं।

झंगोरा का परिचय  –

यह उत्तराखंड का एक पारम्परिक मोटा अनाज है। इसे अंग्रेजी में Indian Barnyard Millet कहते हैं। संस्कृत में इसे श्यामाक,श्यामक, श्याम, त्रिबीज,अविप्रिय, सुकुमार,राजधान्य,तृणबीजोत्तम कहते हैं। इसके अलवा हिंदी में झंगोरा को शमूला,सांवा,सावाँ मोरधन,समा,वरई,कोदरी,समवत और सामक चाव आदि नामों से जाना जाता है। उत्तराखंड की कुमाउनी और गढ़वाली भाषा में ऐसे झंगोरा, झुंगरू आदि नामों से जाना जाता है। झंगोरा का वैज्ञानिक नाम इक्निकलोवा फ्रूमेन्टेसी है।

दुनिया के गर्म और समशीतोष्ण क्षेत्रों में उगाई जाने वाली एक प्राचीन बाजरा फसल है। एशिया, विशेष रूप से भारत, चीन, जापान और कोरिया में व्यापक रूप से खेती की जाती है।  यह चौथा सबसे अधिक उत्पादित लघु बाजरा है, जो दुनिया भर में कई गरीब लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है। विश्व स्तर पर, भारत पिछले 3 वर्षों  के दौरान 1034 किलोग्राम/हेक्टेयर की औसत उत्पादकता के साथ क्षेत्रफल (0.146 मिलियन हेक्टेयर-1) और उत्पादन (0.147 मिलियन टन) दोनों के मामले में बार्नयार्ड बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है। बार्नयार्ड बाजरा की खेती मुख्य रूप से मानव उपभोग के लिए की जाती है, हालांकि इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है। उत्तराखंड सहित हिमालयी पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 2200 मी की ऊँचाई तक इसकी खेती की जाती है।

झंगोरा

झंगोरा में पाए जाने वाले पोषक तत्व –

झंगोरा उर्फ़ बार्नयार्ड बाजरा  एक छोटी अवधि की फसल है जो लगभग बिना किसी इनपुट के प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में विकसित हो सकती है। और विभिन्न जैविक और अजैविक तनावों का सामना कर सकती है। इन कृषि संबंधी लाभों के अलावा, चावल, गेहूं और मक्का जैसे प्रमुख अनाजों की तुलना में अनाज को उनके उच्च पोषण मूल्य और कम खर्च के लिए महत्व दिया जाता है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और, विशेष रूप से, आयरन (Fe) और जिंक (Zn) जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत होता है। जो कई स्वास्थ्य लाभों से संबंधित हैं।

Jhangora nutritional value –

पोषक तत्व   झंगोरा प्रति 100 gm
कैलोरी  342 
कार्बोहाइड्रेट्स  64 ग्राम 
डाइटरी फाइबर  12.6 ग्राम 
प्रोटीन  11.2 ग्राम 
आयरन  16 से 18 ग्राम 
कैल्शियम  22 मिलीग्राम 
वसा  3. 6 ग्राम 
विटामिन B1 0.33 मिलीग्राम 
विटामिन B2 0.10 मिलीग्राम 
विटामिन B3 4.2 मिलीग्राम 
ग्लाइसेमिक इंडेक्स  50
झंगोरा in english
झंगोरा खाने के फायदे। झगोरा को हिंदी में क्या कहते हैं ?

झंगोरा के फायदे –

खून की कमी दूर करता है –

इसमें आयरन  की अच्छी मात्रा होने के कारण शरीर में होने वाली खून की कमी को दूर करता है। माहवारी में अधिक निकलने की समस्या से जूझ रही महिलाओं, एनीमिया से पीड़ित मरीजों के लिए यह वरदान साबित हो सकता है।

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पाचन में लाभदायक –

झंगोरा में डाइट्री फाइबर अधिक होने के कारण पेट की कई समस्याएं कब्जइ,एसिडिटी आदि में लाभदायक होता है। पेट में पाचन में सुधार करता है।

झंगोरा वजन घटाने में लाभदायक है –

इसमें फाइबर और प्रोटीन की अधिकता के कारण जल्दी भूख नहीं लगती है। शरीर में ऊर्जा बनी रहती है। कैलोरी की मात्रा इसमें कम होती है। इस कारण इसे वजन घटाने वाला अनाज माना जाता है।

मधुमेह में लाभदायक –

इसमें चावल की अपेक्षा कार्बोहाइड्रेड काफी कम होता है। और इसमें मौजूद हाई डाइयट्री फाइबर शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। इस कारण यह मधुमेह रोगियों के लिए लाभदायक होता है।

इसके अलावा झंगोरा अपने विशिष्ट गुणों के कारण यह ह्रदय मरीजों के लिए एक लाभदायक आहार है।

Nanda devi bhajan lyrics – नंदा देवी को समर्पित भजनों के बोल ।

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Nanda devi bhajan lyrics
हे नंदा है गौरा । जय भगोती नंदा लिरिक्स

नंदा देवी को पहाड़ की कुल देवी कहते हैं। पहाड़ वासी माँ नंदा को अपनी पुत्री के रूप में मानते हैं।प्रत्येक भाद्रपद में नंदा अष्टमी पर माँ की पूजा अर्चना होती है। गढ़वाल कुमाऊं में माँ नंदा देवी के देवालयों में मेले लगते हैं।प्रत्येक बारह वर्ष में माँ नंदा अपने मायके आती है। तब लोग उसे एक धार्मिक यात्रा के रूप में  ससुराल छोड़ने जाते हैं।  इस धार्मिक यात्रा को नंदा राजजात कहते हैं। यह एशिया की सबसे लम्बी और दुर्गम यात्रा है। प्रस्तुत पोस्ट में हम माँ नंदा के दो प्रसिद्ध गढ़वाली भजनों के बोल (Nanda devi bhajan lyrics) संकलित कर रहे हैं। उम्मीद है ये आपको पसंद आएंगे और इस पोस्ट से आपको मदद मिलेगी।

जय बोला जय भगोती नंदा | Nanda devi bhajan lyrics –

यह प्रसिद्ध भजन को  उत्तराखंड के प्रसिद्ध गायक ,संगीतकार गढ़रत्न श्री नरेंद्र नेगी और मीना राणा व् अनुराधा निराला जी ने गाया है। यह भजन माँ नंदा की धार्मिक यात्रा पर आधारित है। यहाँ देखिये इसके बोल –

जय जय बोला जय भगोती नंदा, नंदा उंचा कैलास की जय !
जय जय बोला जय भगोती नंदा, नंदा उंचा कैलास की जय !
जय बोला तेरु चौसिंग्या खाडू, तेरी छंतोळी रिंगाळ की जय !
जय बोला तेरु चौसिंग्या खाडू, तेरी छंतोळी रिंगाळ की जय!
जय जय बोला  …

काली कुलसारी की, देवी उफरांई की,
नंदा राज राजेश्वरी।
बगोली का लाटू की, हीत बिणेसर की
नंदा राज राजेश्वरी।
बीड़ा बधाण की, जमन सिंह जदोड़ा की, कांसुआ कुवंरुं की ,
नंदा राज राजेश्वरी।
जय जय बोला, माता मैणावती, तेरा पिताजी हेमंता की जय।
जय बोला जय भगोती नंदा, नंदा उंचा कैलासा की जय।
जय बोला….

नौटी का नौट्याळूं की, सेम का सेम्वाळूं की,
नंदा राज राजेश्वरी।
देवल का देवळ्यूं की, नूना का नवान्यूं की ,
नंदा राज राजेश्वरी।
देवी नंदकेसरी की, छैकुड़ा का सत्यूं की, बाराटोकी बमणूं की ,
नंदा राज राजेश्वरी।
जय जय बोला दशम द्वार डोली, डोली कुरुड़ हिंडोली की जय।
जय बोला जय भगोती नंदा, नंदा उंचा कैलासा की जय।
जय बोला।

डिमर का डिमर्यूं की, मलेथा मलेथ्यूं की ,
नंदा राज राजेश्वरी।
तोती का ड्यूंड्यूं की, खंडूड़ा खंडूड़्यूं की,
नंदा राज राजेश्वरी।
नैणी का नैन्वळ्यूं की, गैरोळा थपल्यळ्यूं की, चेपड़्यूं का थोकदारूं की,
नंदा राज राजेश्वरी।
जय जय बोला हीत घंड्याळ, तेरा न्योज्यां निसाण की जय।
जय बोला जय भगोती नंदा. नंदा उंचा कैलासा की जय।
जय बोला।।

लाता की मल्यारी की, शैलेसर बनोली की,
नंदा राज राजेश्वरी।
मनोड़ा मनोड्यूं की, देवराड़ा देवरड्यूं की ,
नंदा राज राजेश्वरी।
चमोळी कंड्वळूं की, चौदा सयाणों की, द्यो सिंह भौ सिंह की,
नंदा राज राजेश्वरी।
जय जय बोला तांबा का पतार, तेरा रिंगदा छतारा की जय।
जय बोला जय भगोती नंदा. नंदा उंचा कैलासा की जय।
जय बोला..

हे नंदा हे गौरा। नंदा देवी भजन लिरिक्स | Hey nanda hey gora lyrics

हे नंदा हे गौरा  …..हे नन्दा हे गौरा…
कैलाशों की जात्रा ….
हे नन्दा, हे गौरा….
कैलाशों की जात्रा….
आ. आ..
पटिनों भागिना, हे नन्दा भवानी ।
सौंण भादों का मैहणा, सोरासों की बारी।।
लागिगे नि बाटा, यो भगति त्यारा ।
यौ बाजा भंकौरा, सब त्यारा द्वारा।।
हे नन्दा, हे गौरा…
कैलाशों की जात्रा…
हे माता सुनन्दा, हे माता भवानी,
सौंण भादों का मैहणा, जाते कि तैयारी।
हे देवी छाजिरौ चांदी को छतरा ,
भुज को पतला, हाथेकि पौजिया।
देवी आ……
चांदी को छतरा, पांव की पौलिया।
भोजि का पथरा, हाथों कि पौछिया।।
देवी …….
पावन करिदे, यो धरती सारी,
सुफल है जाया, मेरी नन्दा भवानी।।
हे नन्दा हे गौरा……
कैलाशों की जात्रा….
हे माता सुनन्दा, हे माता भवानी,
सौंण भादों का मैहणा, जाते कि तैयारी।।
हे नन्दा, गौले की हसुली, मौनि को जुन्याला।
स्योनि का संगाला, पूजला भूमियाला।।
सोबनातु पाणि, पोनो का सुपाली,
देवि जात्रा आया, हे गौरा भवानी।।
हे नन्दा, हे गौरा….
कैलाशों की जात्रा….
हे माता सुनन्दा, हे माता भवानी,
सौंण भादों का मैहणा, जाते कि तैयारी।।
देवी…..
भगतों की देवी, तुइमैं सकारी।
गायी माई मॉ तू, छाया माँ करी।
पैटण लागि ग्ये, कैलाशे की बारी।
आशीष दी जाया, विनती हमारी।
सौंण भादो को मैहणा,
सोरासों की बारी।।
हे नन्दा हे गौरा….
कैलाशों की जात्रा…
हे नन्दा, हे गौरा…
कैलाशों की जात्रा…
हे माता सुनन्दा, हे माता भवानी,
सौंण भादों का मैहणा, जाते कि तैयारी।।

इन्हें पढ़े- शकुनाखर | कुमाऊं मंडल के संस्कार गीतों की अन्यतम विधा।

गीत के बारे में –नंदा देवी को समर्पित हे नंदा हे गौरा भजन गढ़वाली लोक गायक दर्शन फर्स्वाण जी ने गाया है। उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में यह भजन आजकल बहुत पसंद किया जा रहा है।

K’S Skin and Hair Care Clinic: हल्द्वानी का प्रसिद्ध स्किन और हेयर स्पेशलिस्ट क्लिनिक

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dr ks skin and hair care clinic

क्या आप हल्द्वानी में श्रेष्ठ त्वचा और बाल विशेषज्ञ की तलाश में हैं? आइए हम आपको हल्द्वानी के बेहतरीन त्वचा और बाल विशेषज्ञ डॉक्टर (Dr. Kiran K C) और उनके क्लिनिक (K’S Skin and Hair Care Clinic) के बारे में बताते हैं।

K’s Skin and Hair Care Clinic:-

डॉ. के सी स्किन एंड हेयर केयर क्लिनिक हल्द्वानी (K’s Skin and Hair Care Clinic) में त्वचा और बाल संबंधित समस्याओं के सर्वश्रेष्ठ समाधानों में से एक है। यदि आप हल्द्वानी या इसके आसपास में सर्वश्रेष्ठ त्वचा और बाल विशेषज्ञ डॉक्टर (best dermatologist) की तलाश में हैं, तो आपकी खोज यहीं समाप्त होती है। इस क्लिनिक में, आपकी सभी त्वचा एवं बालों से संबंधित समस्याओ के लिए उपचार मौजूद हैं। यहां उच्चकुशल और अनुभवी त्वचा विशेषज्ञ डॉ. किरण के सी हैं, जो विश्वसनीय और सर्वोच्च देखभाल प्रदान करते हैं जिन पर आप भरोसा कर सकते हैं। आप कह सकते हैं की यहा त्वचा और बालों की सभी प्रकार की समस्याओं और बीमारियों का उपचार किया जाता है।

सेवाएं:-

K’S Skin and Hair Care Clinic विभिन्न प्रकार की त्वचा और बाल समस्याओं के लिए एक स्थानीय उपाय प्रदान करता है। यहाँ पर विशेषज्ञ डर्मैटोलॉजिस्ट डॉक्टर किरन के सी ने अपने विशेषज्ञता के साथ त्वचा और बालों की जरूरतों को समझने और उन्हें सही समाधान प्रदान करने का समर्पण किया है। यहाँ उपलब्ध सेवाएं विभिन्न प्रकार की त्वचा समस्याओं के लिए विशेषकृत हैं, समेत हो सकती हैं एक्ने, एजिंग के लक्षणों का समाधान, बालों की समस्याओं का समाधान, और अन्य त्वचा संबंधित चुनौतियों का समाधान।
इस क्लिनिक में, उन्नत त्वचा उपचार, बालों की देखभाल के समाधान, रासायनिक पील, हाइड्राफेशियल उपचार, माइक्रोनीडलिंग, पीआरपी, बुढ़ापा विरोधी का उपचार भी होता है। क्लिनिक में डॉ. किरण के सी मरीजों को देखते हैं, जो एक बेहद निपुण त्वचा विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने अपने व्यापक चिकित्सा शिक्षा और पेशेवर अनुभव के लिए प्रसिद्ध हैं।

Dr. Kiran K C का संक्षिप्त परिचय:-

डॉक्टर किरन के सी (Dr. Kiran K C) क्लिनिक के प्रमुख डर्मैटोलॉजिस्ट हैं, जिन्होंने अपने विशेषज्ञता के साथ पिछले ६-७ सालों से हजारों मरीजों की सहायता की है। उन्होंने अपनी शिक्षा को उन्नत किया है और उनका मुख्य लक्ष्य मरीजों के साथ व्यक्तिगत संवाद बनाने और सही तरीके से उनकी त्वचा और बाल समस्याओं का समाधान प्रदान करना है।

डॉ. किरण के सी एक बेहद निपुण त्वचा विशेषज्ञ हैं, जो अपनी व्यापक चिकित्सा शिक्षा और पेशेवर अनुभव के लिए प्रसिद्ध हैं। डॉ. किरण के सी ने अपनी प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा कर्नाटक के कन्नड़ जिला के एक छोटे से गांव सिरसी तालुक से की। उसके बाद उन्होंने अपना एमबीबीएस प्रतिष्ठित के.वी.जी. से पूरा किया। एमबीबीएस के बाद डॉ. किरण के सी ने भारत के प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में से एक, सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, बेंगलुरु से त्वचाविज्ञान में एमडी किया।

Dr Kiran K C

त्वचाविज्ञान में उत्कृष्टता के जुनून के साथ, डॉ. किरण के.सी. ने फोर्टिस हॉस्पिटल और रेनबो चिल्ड्रेन्स डर्मेटोलॉजी हॉस्पिटल सहित प्रसिद्ध अस्पतालों और मल्टीस्पेशलिटी श्रृंखलाओं में काम करके अपने कौशल को निखारा है। उन्होंने काया स्किन क्लिनिक और हेयरलाइन इंटरनेशनल हेयर एंड स्किन क्लिनिक जैसे प्रतिष्ठित ब्रांडों के साथ सहयोग के माध्यम से सौंदर्य प्रसाधनों के क्षेत्र में भी अमूल्य अनुभव प्राप्त किया है। डॉ. किरण के सी की विशेषज्ञता सामान्य त्वचाविज्ञान से भी आगे तक फैली हुई है। चिकित्सा प्रगति में सबसे आगे रहने की गहरी प्रतिबद्धता के साथ, डॉ. किरण के सी ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई प्रकाशनों और प्रस्तुतियों के माध्यम से इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से योगदान दिया है।

उच्च गुणवत्ता और विशेषज्ञता:-

K’s Skin and Hair Care Clinic अपनी श्रेष्ठ गुणवत्ता और विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध है। ये त्वचा और बाल सेवाओं के क्षेत्र में उच्च स्तर की सेवाएं प्रदान करते हैं और अपने मरीजों को उनकी समस्याओं का प्रबंधन करने के लिए विशेषज्ञ समर्थन प्रदान करते हैं। इनकी उच्च गुणवत्ता, व्यक्तिगत समीक्षा, और प्रगतिशील प्रक्रियाओं के साथ ये आपके त्वचा और बाल स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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इनकी विशेषज्ञ टीम अपनी विशेषज्ञता और उच्च गुणवत्ता के साथ ये आपकी समस्याओं को समझती है और उन्हें सही समाधान के साथ प्रबंधन करती है। ये आपके त्वचा और बाल स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने में आपकी मदद करने के लिए हल्द्वानी में स्थित हैं।

K’s Skin and Hair Care Clinic एक स्थानीय प्रमुख स्थल है जहाँ आपकी त्वचा और बालों की सभी समस्याओं का समाधान प्रदान किया जाता है। डॉक्टर किरन के सी की विशेषज्ञता और प्रतिबद्धता ने इस क्लिनिक को एक प्रमुख स्थल बनाया है जहाँ आपको अद्वितीय और प्रभावी सेवाएं प्राप्त होती हैं।

संपर्क:
यदि आप अपनी त्वचा और बाल समस्याओं के लिए उत्कृष्ट सेवाएं चाहते हैं, तो संपर्क करें:
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