केदारनाथ धाम, उत्तराखंड का सबसे पवित्र शिव स्थल माना जाता है, जहां भगवान शिव स्वयं केदारनाथ रूप में विराजते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां एक और अद्वितीय देवता हैं, जिनके बिना केदारनाथ यात्रा अधूरी मानी जाती है — भुकुंड भैरव।
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केदारनाथ के दक्षिण में निवास करते हैं भुकुंड भैरव –
केदारनाथ धाम से लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में खुले आसमान के नीचे विराजते हैं भुकुंड भैरव (Bhukund Bhairav Kedarnath)। यह स्थान कोई भव्य मंदिर नहीं, बल्कि कुछ प्राचीन मूर्तियों के माध्यम से पहचाना जाता है। यही है भैरव बाबा का पावन धाम, जो केदारनाथ की सुरक्षा के लिए सदा जागृत रहते हैं। बिना भुकुंड भैरव दर्शन के अधूरी मानी जाती है यात्रा,इन्हे को केदारनाथ का क्षेत्रपाल देवता माना जाता है। उन्हें केदारनाथ का प्रथम रावल भी कहा जाता है। केदारनाथ यात्रा की पूर्णता तब तक नहीं मानी जाती जब तक भक्त भुकुंड भैरव के दर्शन न कर लें केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले भैरव बाबा की पूजा होती है, फिर भगवान शिव के कपाट खुलते हैं।
3000 वर्ष प्राचीन मानी जाती है इनकी मूर्तियां –
इतिहासकारों और पुरोहितों के अनुसार, यहाँ की मूर्तियां लगभग 3000 साल पुरानी मानी जाती हैं। हर मंगलवार और शनिवार को इनकी पूजा होती है। आषाढ़ मास में इनकी विशेष पूजा का आयोजन होता है।
केदारनाथ की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था के देवता –
भुकुंड भैरव केवल रक्षक ही नहीं, बल्कि न्याय के देवता भी माने जाते हैं। स्थानीय जनश्रुति के अनुसार:
- केदारनाथ क्षेत्र में कोई भी धार्मिक त्रुटि या अनियमितता पर भैरव बाबा का कोप आता है।
- 2013 की आपदा को भी कई लोग भैरव बाबा के क्रोध का परिणाम मानते हैं।
- “भूल-चूक क्षमा करें, भैरव बाबा से यही प्रार्थना की जाती है।”
2017 की घटना और भैरव जी की चेतावनी –
2017 में जब केदारनाथ के कपाट बंद करने में अड़चन आई, तो पुरोहितों ने भुकुंड भैरव की पूजा कर क्षमा याचना की। तब जाकर कपाट बंद हो सके। लोगों का विश्वास है कि भैरव बाबा पस्वा के अंदर अवतार लेकर चेतावनी भी देते हैं।
क्यों विशेष हैं भुकुंड भैरव ?
- केदारनाथ की हर गतिविधि पर इनकी पैनी नजर रहती है।
- कपाट बंद होने के बाद पूरे धाम की रक्षा की जिम्मेदारी इन्हीं की होती है।
- इनका स्थान आज भी खुले आकाश तले, हिमालयी शांति और रहस्य के बीच बसा है।
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