Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

परिचय: कुमाऊं मंडल में स्थित चम्पावत जनपद के टनकपुर से 18 किमी दूर, पूर्णागिरी पर्वत के शिखर के पास स्थित एक अनोखा देवालय है, जिसे ‘झूठा मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यह एक छोटा ताम्र देवालय है, जो अपनी रहस्यमयी कहानी और असामान्य स्थिति के लिए प्रसिद्ध है। आज हम इस मंदिर की दिलचस्प और रहस्यमयी कथा पर एक नज़र डालेंगे। झूठा मंदिर का इतिहास: झूठा मंदिर के बारे में एक प्रचलित कथा है, जो इसके नामकरण की वजह बताती है। कहते हैं कि एक समय किसी सेठ ने मां पूर्णागिरी के मंदिर में एक मनौती की थी।…

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गौला नदी नैनीताल जनपद की सबसे बड़ी नदी मानी जाती है, जो नैनीताल तहसील के अंतर्गत ओखलकांडा विकास खंड के पहाड़पानी क्षेत्र में स्थित भीड़ापानी की उपत्यका से निकलती है। यह नदी अपने प्रवाह के दौरान कई प्रमुख स्थानों से गुजरती हुई, पूरे क्षेत्र की जीवन रेखा मानी जाती है। गौला नदी का उद्गम स्थल और प्रवाह – गौला नदी का उद्गम स्थल पहाड़पानी के निकट स्थित है, जो कि ओखलकांडा विकास खंड में आता है। यहां से यह नदी प्रवाहित होकर गंगोलीगाड़ नामक स्थान पर “गौला” के नाम से प्रसिद्ध होती है। नदी का नामकरण यहां से ही हुआ…

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कुमाऊं मण्डल के चम्पावत जनपद में स्थित क्रान्तेश्वर मंदिर /किरातेश्वर (कानादेव) एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जो अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है। यह देवालय चम्पावत मुख्यालय से लगभग 5-6 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में कूर्म पर्वत की ऊँचाई पर स्थित है, जो 7248 फीट की ऊंचाई पर एक मनोरम स्थल है। चारों ओर हरी-भरी वनावली से घिरा यह स्थान शांति और भव्यता का प्रतीक है। इस स्थान पर स्थित शिव मंदिर में विशेष रूप से श्रावण मास के दौरान पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। आसपास के गांवों के निवासी, जैसे कांडा और सिमल्टा, यहां शिव की पूजा…

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काली कुमाऊं में खेली जाने वाली बीस बग्वालों में से केवल अब एक ही बग्वाल रह गई है। जिसे श्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन देवीधुरा में बाराही माता के मंदिर में खेला जाता है। इस दिन यहाँ भव्य मेला लगता है। जिसे बग्वाल मेला उत्तराखंड के नाम से जाना जाता है। बग्वाल मेले को राजकीय मेला घोषित कर दिया गया है। 2025 में बग्वाल मेला 04 अगस्त 2025 से शुरू हो जायेगा और 16 अगस्त जन्माष्टमी के दिन समाप्त होगा। और मेले का खास आकर्षण बग्वाल 09 अगस्त 2025 को रक्षाबंधन के दिन खेली जाएगी। बग्वाल का अर्थ -…

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उत्तराखंड के जंगलों में तरह-तरह की औषधीय वनस्पतियां हैं, जिनका प्रयोग करके हम खुद को स्वस्थ और तंदुरुस्त रख सकते हैं। इनमें से एक औषधीय वनस्पति है, लिंगड़ा, जिसका सब्जी के रूप में उपयोग करके हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर बीमारियों से बच सकते हैं। यह वनस्पति लिंगुड़ा, लिंगड़ा, लिंगड और ल्यूड आदि नामों से जाना जाता है। आइए जानते हैं क्या है लिंगड़ा और इसके क्या लाभ हैं? लिंगड़ा क्या है? लिंगुड़ा  (Lingda) एक जंगली वनस्पति है, जो उत्तराखंड तथा अन्य हिमालयी राज्यों में जंगलों एवं नमी वाले स्थानों, जैसे गधेरों के किनारे उगता है। लिंगुड़ा…

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गोलू देवता मंदिर नैनीताल – उत्तराखंड का घंटियों वाला मंदिर गोलू देवता मंदिर नैनीताल ( Golu Devta Temple Nainital ) उत्तराखंड के न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध गोलू देवता का देवस्थल है। यह उत्तराखंड का घंटियों वाला मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। नैनीताल जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। नैनीताल के ही भवाली नामक कसबे से लगभग 03 किलोमीटर दूर स्थित है। और भीमताल से 11 किलोमीटर दूर स्थित है। मंदिर में घोड़े पर सवार गोल्ज्यू की संगमरमर की मूर्ति है। मंदिर के गर्भगृह में माँ दुर्गा की मूर्ति भी है। उत्तराखंड…

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ऑपरेशन कालनेमि’ नाम सुनते ही रामायण का वह प्रसंग याद आता है, जब रावण ने हनुमान जी को रोकने के लिए छल का सहारा लिया और एक राक्षस को साधु के वेश में भेजा। इसी पौराणिक कथा से प्रेरणा लेकर उत्तराखंड पुलिस ने अपने विशेष अभियान का नाम ‘ऑपरेशन कालनेमीऑपरेशन कालनेमि ’ रखा, जिसका उद्देश्य फर्जी साधुओं और ढोंगी बाबाओं को पकड़ना है। उत्तराखंड में ऑपरेशन कालनेमि क्यों चलाया गया ? हाल के वर्षों में चारधाम यात्रा, कांवड़ यात्रा और अन्य धार्मिक आयोजनों में कई फर्जी साधु सक्रिय पाए गए। ये लोग – साधु का वेश धारण कर अपराध करते…

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ऐपण राखी : भाई बहिन के प्यार का प्रतीक राखी का त्यौहार, रक्षाबंधन 09 अगस्त 2025 को पूर्णिमा की तिथि में मनाया जाएगा। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में यह त्यौहार पारम्परिक जनेऊ पनेउ या जनेऊ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में कुछ उत्तराखंड के युवा इसे कुमाऊँ की लोककला ऐपण के साथ जोड़कर, ऐपण वाली राखी बना कर उत्तराखंड की लोककला को प्रोत्साहित कर रहे हैं। उत्तराखंड के कुछ युवाओं ने, उत्तराखंड की पौराणिक पारम्परिक लोककला ऐपण को राखियों में उतार कर , ऐपण कला के संवर्धन में एक नई शुरुआत की है। साथ ही ऐपण राखी…

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उत्तराखंड के लोक देवता : उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, भारत का एक ऐसा राज्य है जहां धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का गहरा संबंध प्रकृति और उसके रहस्यमय रूपों से जुड़ा हुआ है। इस प्रदेश में प्रकृति की सुंदरता के साथ-साथ उसकी भयावहता भी एक साथ पाई जाती है। यहीं से उत्तराखंड के लोक देवताओं की उत्पत्ति हुई है। ये देवता न केवल सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में उनकी भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में हम उत्तराखंड के लोक देवताओं की परंपराओं, उनके प्रभाव, पूजा पद्धतियों और उनके…

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परिचय – दण्डेश्वर मंदिर, जिसे दण्डेश्वर या डंडेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में स्थित एक प्राचीन और पवित्र शिवालय है। यह मंदिर जागेश्वर मंदिर समूह से लगभग 2 किलोमीटर पश्चिम में, अल्मोड़ा शहर से 35 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में, जटागंगा और दूधगंगा नदियों के संगम के ऊपर एक पहाड़ी पर, घने देवदार के जंगल के बीच स्थित है। यह मंदिर वृद्धजागेश्वर मंदिर से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर है और इसके आसपास 8-9 छोटे-छोटे देवालय भी हैं, जो धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखते हैं।  दण्डेश्वर मंदिर का पौराणिक महत्व- पौराणिक कथाओं के…

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