उत्तराखंड के नैनीताल जिले की शांत पहाड़ियों में बसा लुखाम ताल और लोहाखाम मंदिर आध्यात्मिक श्रद्धा और प्राकृतिक वैभव का एक अनूठा संगम है। ओखलकांडा ब्लॉक में स्थित यह स्थान नैनीताल मुख्यालय से लगभग 72 किमी और काठगोदाम से 50 किमी की दूरी पर है। कच्चे रास्तों के कारण यह स्थान अभी भी पर्यटकों की भीड़ से अछूता है, लेकिन यहां आने वालों को एक शांत ताल, पवित्र मंदिर और क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अनुभव प्राप्त होता है।
Table of Contents
लुखामताल और लोहाखाम मंदिर का आध्यात्मिक महत्व
लुखामताल, जिसका अर्थ है “लौहस्तंभ,” अपने नाम के देवता लुखाम देवता से प्रसिद्ध है, जो आसपास के 16 गांवों का इष्टदेवता है। लगभग 4,000 फीट ऊंचे पर्वत शिखर पर स्थित मंदिर में एक पाषाणी लिंग के रूप में लुखाम देवता की पूजा होती है। मटियानी और परगांई समुदाय इसे अपने कुलदेवता के रूप में पूजते हैं, और मंदिर का पुजारी भी मटियानी समुदाय से होता है। कहा जाता है कि इस देवता का मूल स्थान नेपाल था, जहां से ये समुदाय इसे अपने साथ लाए और इस पर्वत पर स्थापित किया।
क्या आप जानते हैं? लुखामताल को हरिद्वार के गंगा कुंड के समान पवित्र माना जाता है। जो लोग हरिद्वार में गंगा स्नान नहीं कर पाते, वे इस ताल में स्नान करते हैं, क्योंकि इसकी मान्यता गंगा स्नान के बराबर है।
लुखामताल की मनोरम सुंदरता
समुद्र तल से 1,220 मीटर की ऊंचाई पर 2 वर्ग किमी में फैला लुखामताल एक स्वच्छ और शांत झील है, जिसमें लाल मछलियां तैरती हैं और चारों ओर हरी-भरी वनस्पति इसे और आकर्षक बनाती है। ताल का साफ पानी, ठंडी हवाएं और शांत वातावरण शहर की भागदौड़ से दूर एक ताजगी भरा अनुभव प्रदान करते हैं। आसपास के गांवों में पत्थरों की छत वाले पारंपरिक घर इस दृश्य को और अधिक मनोरम बनाते हैं।
कहा जाता है कि अंग्रेजों ने इस ताल की गहराई नापने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहे, जिससे इसकी रहस्यमयी आभा और बढ़ जाती है। यह ताल प्रकृति प्रेमियों और तीर्थयात्रियों के लिए एक आदर्श स्थान है।
त्योहार और सांस्कृतिक उत्सव
हर साल वैशाखी पूर्णिमा और बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लुखामताल जीवंत हो उठता है। वैशाखी पूर्णिमा का उत्सव रात में आयोजित होता है, जिसमें भक्ति भजनों, झोड़ा, और चांचरी नृत्यों जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। श्रद्धालु लुखामताल में स्नान करने के बाद पर्वत शिखर पर मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। बुद्ध पूर्णिमा पर लगने वाला मेला दूर-दूर से लोगों को आकर्षित करता है, जो क्षेत्र की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव मनाते हैं।
हरीशताल: एक पास का खजाना
लुखामताल से मात्र 1.5 किमी की दूरी पर हरीशताल नामक एक और मनोरम झील है, जो चारों ओर से पहाड़ों से घिरी हुई है। इसकी अनछुई सुंदरता हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है। हालांकि, हरीशताल तक का रास्ता कच्चा है, फिर भी वाहन से वहां पहुंचा जा सकता है। यह लुखामताल यात्रा में एक शानदार जोड़ हो सकता है।
चुनौतियां और अवसर
नैनीताल जैसे व्यस्त पर्यटन स्थल के विपरीत, लुखामताल कच्चे और अविकसित रास्तों के कारण कम जाना जाता है। यह इसकी प्राकृतिक सुंदरता को तो संरक्षित करता है, लेकिन पहुंच को सीमित करता है। फिर भी, यही एकांत इसकी खासियत है, जो उत्तराखंड के ग्रामीण और आध्यात्मिक जीवन का एक प्रामाणिक अनुभव प्रदान करता है।
रास्तों के विकास से लुखामताल पर्यावरणीय और आध्यात्मिक पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र बन सकता है, बशर्ते इसकी प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण हो।
लुखामताल और लोहाखाम मंदिर क्यों जाएं?
- आध्यात्मिक शांति: लोहाखाम मंदिर की दिव्य आभा और लुखामताल के पवित्र जल का अनुभव करें।
- प्राकृतिक सुंदरता: लुखामताल और हरीशताल के अनछुए परिदृश्यों में डूब जाएं।
- सांस्कृतिक समृद्धि: पारंपरिक उत्सवों और मटियानी व परगांई समुदायों की अनूठी विरासत को देखें।
- अनछुआ साहसिक अनुभव: नैनीताल की भीड़ से दूर प्रकृति की गोद में शांति का अनुभव करें।
अपनी यात्रा की योजना बनाएं
लुखामताल पहुंचने के लिए काठगोदाम (50 किमी) या नैनीताल (72 किमी) से ओखलकांडा के रास्ते जाएं। सार्वजनिक परिवहन सीमित है, इसलिए निजी वाहन की सलाह दी जाती है। आरामदायक कपड़े, मंदिर तक चढ़ाई के लिए मजबूत जूते और शानदार दृश्यों को कैद करने के लिए कैमरा साथ लाएं।
लोहाखाम देवता की कहानी के साथ ये आर्टिकल भी पढ़े :
हमारे समुदाय से जुड़ें –
उत्तराखंड की संस्कृति, परंपराओं और मेलों के बारे में नवीनतम अपडेट और जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें! हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।