Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

कुमाऊनी में घिंगारू, घिंघारू और गढ़वाली में घिंघरू तथा नेपाली में घंगारू के नाम से विख्यात ये पहाड़ी फल दक्षिणी एशिया, मध्य पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों मे समुद्र तल से 1700 से 3000 मीटर की ऊंचाई में पाया जाता है। इस फल की कटीली झाड़ियां मुख्य रूप से पहाड़ी ढलानों पर, पहाड़ों में रास्तों के किनारे या सड़कों के किनारे या घाटी वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से होता है। घिंगारू के पेड़ पर जून जुलाई के आसपास फल लगते हैं। छोटे छोटे लाल सेव जैसे दिखने वाले घिंघरु के फलों को हिमालयन रेड बेरी फायर थोर्न एप्पल या व्हाइट थोर्न…

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हमारा उत्तराखंड एक बहुत बड़े संकट से गुजर रहा है , इस समय किसी के भाई, माता ,बहन या उनके परिवार का कोई सदस्य लापता हो जा रहा है! पिछले कुछ समय से देख रहा हूं कि दिन पर दिन ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं ।बच्चे से लेकर बूढ़े व्यक्ति तक कोई भी लापता हो रहा है ।लापता होने की इतनी घटनाएं देखता हूं जिसकी कोई कल्पना नहीं .. और कितने लोगों के अपने लोग मृत मिल रहे हैं। हमारा पहाड़ वर्षों से शांत रहा है और अब कुछ पहाड़ को अशांत कर रहे हैं। समस्या यह है कि…

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नौला का अर्थ क्या है? नौला उत्तराखंड में घरनुमा पानी के श्रोत या बावड़ी को कहते हैं। उत्तराखंड में नौले का निर्माण एक खास वस्तुविधान के अंतर्गत किया होता है। प्राचीन काल में पहाड़ो में घरों के आसपास जो भूमिगत जल श्रोत होता था ,उसे वही महत्त्व दिया जाता था, जैसे मंदिरों को दिया जाता था। मंदिरों के वस्तुविधानों की तरह नौलों को भी खास वास्तु विधान बनाया जाता था। मंदिरों के गर्भगृह की तरह नौलों का भी गर्भग़ृह और दो या चार खम्भों पर आधारित वितान हुवा करता था। गर्भगृह में मजबूत तराशे हुए पत्थरों से उल्टे यञकुंड अर्थात…

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मित्रों अपने इस लेख में हम आज इस संकलन में प्रसिद्ध लेखिका, गौरा पंत शिवानी की कहानी “पिटी हुई गोट” लेकर आये हैं। शीर्षक-पिटी हुई गोट लेखिका-गौरा पंत शिवानी दिवाली का दिन।  चीना पीक की जानलेवा चढ़ाई को पार कर जुआरियों का दल दुर्गम-बीहड़ पर्वत के वक्ष पर दरी बिछाकर बिखर गया था।  एक ओर एक बड़े-से हंडे से बेनीनाग की हरी पहाड़ी चाय के भभके उठ रहे थे, दूसरी ओर पेड़ के तने से सात बकरे लटकाकर आग की धूनी में भूने जा रहे थे। जलते पशम से निकलती भयानक दुर्गंध, सिगरेट व सिगार के धुएं से मिलकर अजब…

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गढ़वाली गीत लिरिक्स – इस लेख में हम आपके लिए कुछ सदाबहार गढ़वाली गीत लिरिक्स या गढ़वाली गीतों के बोलों का संकलन कर रहे हैं। उम्मीद है कि हमारा यह संकलन आपको अच्छा लगेगा। प्रसिद्ध सदाबहार गढ़वाली गीतों में सर्वप्रथम हम बीना कुकरेती जी द्वारा गाया हुवा ये सास बहु की नोकझोक वाले से कर रहे हैं। यह गढ़वाल का बहुत पुराना लोक गीत है। इसकी रिकॉर्डिंग चंद्र सिंह राही द्वारा करवाई गई थी। गाडो गुलाबंद गुलबंद को नगीना, गढ़वाली गीत लिरिक्स ( Garhwali song lyrics ) – गाडो गुलाबंद, गुलबंद को नगीना, त्वै तैं मेरी सासू ब्वारी युं की…

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नरशाही मंगल : यह शब्द उत्तराखंड के गोरखा शाशन काल में हुए नृशंश हत्याकांड का बोधक है। उत्तराखंड के चंद शाशकों ने, अपनी प्रजा और सैनिकों को नियंत्रण में रखने के लिए अपनी सेना में , हिमाचल के नगरकोट ,कांगड़ा और अन्य पश्चिमी जिलों से उच्च पदों पर सेनानायक रखे थे। कालान्तर में ये धीरे धीरे यही बस गए और  यहाँ के स्थानीय राजपूत परिवारों के साथ बना सम्बन्ध कर यहाँ के निवासी बन गए। इन लोगों को नगरकोटिया कहा जाता था। इनकी बालों की  शैली से इन्हे आसानी से पहचाना जा सकता था। इनकी बाल शैली को जुल्फेन कहा…

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बूढ़ी देवी : बचपन में जब पहली बार दादी के साथ पहाड़ की ऊँची नीची पगडंडियों पर पैदल सफर पर गया, तो रास्ते  में दादी ने हाथ में एक सुखी लकड़ी पकड़ ली, मैंने जिज्ञासा वश पूछ लिया, दादी ये लकड़ी क्यों उठाई? दादी ने बताया आगे बूढ़ी देवी को चढ़ाएंगे। आगे गए दादी ने चौराहे जैसे रस्ते पर बहुत सारी लकड़ियों के ढेर के ऊपर वो लकड़ी डाल दी, और हाथ जोड़ कर आगे बढ़ गई! मै बहुत चकित हुवा , मैंने दादी से पूछा , ये कैसा मंदिर? ना मूर्ति है ना मंदिर है!! फिर बाद में एक…

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पिथौरागढ़ जनपद मुख्यालय से लगभग 6 से 7 किलोमीटर दूर, पश्चिम की तरफ समुद्रतल से 6000 फुट की उचाई पर चंडाक में  स्थित है, सोर घाटी के शक्तिशाली देवता मोस्टमानु का मंदिर, मोस्टमानु मंदिर। इस मंदिर का प्रभाव क्षेत्र मुख्यतः पिथौरागढ़ जिले के अनेक क्षेत्रों खासकर गौरंग देश, आसपास के क्षेत्रों तक फैला हुवा है। सुई -बिसुड पट्टी में सुई क्षेत्र का प्रमुख देवता माना जाता है। यहाँ बड़े स्तर पर मोस्टा देवता की पूजा अर्चना की जाती है। गलचौड़ा में भी इनका एक मंदिर अव्यस्थित है। मोस्टा देवता की पूजा चम्पावत जिले के गंगोल पट्टी के जौलाड़ी  गावं में…

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भगवान भोलेनाथ का पवित्र माह सावन मैदानी क्षेत्रों में 14 जुलाई से शुरू हो रहा है। और पहाड़ी व नेपाली सावन 16 जुलाई से होगा । मैदानी सावन और पहाड़ी सावन में तिथियों में अंतर होने का मूल कारण पंचांग हैं। मैदानी क्षेत्रों में चंद्र पंचांग के आधार पर महीने की शुरुआत होती है। और पहाड़ों में सौर पंचांग के आधार पर महीने की शुरुआत होती है। सावन के शुरू होते ही शुरू हो जाता है, भगवान भोले को जलाभिषेक कराने वाला कावड़ मेला । पिछले दो साल से कोरोना का दंश झेल रहा कावड़ मेला इस साल 2022 में…

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जिमदार देवता : जिमदार फारसी के जमीदार शब्द का अभ्रंश कुमाऊनी शब्द है। इसका अर्थ हिंदी के जमीदार की तरह, भूमिधर, या कृषक के साथ साथ कुमाऊनी में जिमदार शब्द कुमाउनी में वर्ण व्यवस्था को इंगित करता है। कुमाउनी वर्ण व्यवस्था के अर्थ में जिमदार का मतलब क्षत्रिय होता है। चंपावत के चराल पट्टी के लोगो द्वारा जिमदार देवता नामक लोकदेवता की भूमिदेवता या ग्राम देवता के रूप में पूजा की जाती है। एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार , एक बार एक गीत संगीत गा कर लोगो का मनोरंजन करने वाला व्यक्ति चंपावत के चरालपट्टी के एक गाँव मे…

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