नंदा देवी उत्तराखंड की बहुमान्य और बहु पूज्य देवी है। उत्तराखंड के दोनों मंडलों (कुमाऊं और गढ़वाल) में पूज्य देवी है नंदा। उत्तराखंड वासियों का माँ नंदा के साथ ऐसा रिश्ता है, शायद देश में किसी भक्त और उसके आराध्य का हो। कोई इन्हे अपनी बेटी मानता है, कोई बहिन ! मानवीय रिश्तों में बांध कर देवी माँ को प्रेम और स्नेह के बंधन में बांधना भक्ति का एक अलग ही रूप है। यह देवी कत्यूर पंवार और चांद वंशों की कुलदेवी के रूप में पूजित है। कत्यूरी वंश की सभी शाखाओं में जिया रानी को नंदा देवी का अवतार मानते हैं। पर्वतराज…
Author: Bikram Singh Bhandari
अलग उत्तराखंड राज्य के लिए चल रहे आंदोलन को खटीमा गोलीकांड और मसूरी गोलीकांड ने एक नयी दिशा दी। इन दो घटनाओं बाद उत्तराखंड राज्य आंदोलन एकदम उग्र हो गया। 01 सितम्बर 1994 को खटीमा में गोलीकांड हुवा ,जिसमे कई लोग शहीद हो गए। 1 सितम्बर 1994 की इस वीभत्स घटना के विरोध में 02 सितम्बर 1994 को खटीमा गोलीकांड के विरोध में ,राज्य आंदोलनकारी मसूरी गढ़वाल टेरेस से जुलूस निकाल कर उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के ऑफिस झूलाघर जा रहे थे। बताते हैं कि गनहिल पहाड़ी पर किसी ने पथराव कर दिया , जिससे बचने के लिए राज्य आन्दोलनकारी…
उत्तराखंड में दलितों, पिछड़ों ,शोषित समाज समाज को उनका हक़ दिलाने वाले, उनको एक पहचान और नाम दिलाने वाले मुंशी हरि प्रसाद टम्टा जी का जन्म 26 अगस्त 1857 को हुवा था। पिता का नाम गोविन्द प्रसाद और माँ का नाम गोविंदी देवी था। इनका परिवार एक ताम्रशिल्पी परिवार था। हरि प्रसाद अपने माता -पिता की पहली संतान थे। इनका एक भाई ,जिसका नाम ललित था, और एक बहिन जिनका नाम कोकिला था। बचपन में ही हरि प्रसाद जी के पिता का निधन हो गया। इसके बाद हरि प्रसाद जी का लालन -पालन उनके मामा ने किया। मुंशी हरि प्रसाद…
हमारी उत्तराखंडी संस्कृति में कई ऐसे रिवाज और परम्पराएं हैं , जो वैज्ञानिक तर्कों पर खरी उतरती हैं। और कई रिवाज और परम्पराये ,त्योहार मानवता का पाठ पढ़ाती हैं। आज हम इस लेख में कुमाउनी मृतक संस्कार से जुडी एक परम्परा का जिक्र कर रहे हैं। जो कुमाऊं के कुछ भागों ,अल्मोड़ा और नैनीताल में निभाई जाती है। इन दो जिलों का नाम मै विशेषकर इसलिए ले रहा हूँ ,क्योंकि इन जिलों इस परंपरा को निभाते हुए मैंने देखा है। हो सकता है ,कुमाऊं में या गढ़वाल में अन्यत्र जगहों में भी इस परम्परा को निभाया जाता हो। कुमाउनी मृतक…
जौनसार – हिमाचल क्षेत्र का वीर नंतराम नेगी ,( नाती राम ) की वीरता की कहानी किताबों में नहीं बल्कि यहाँ के लोगों की जुबान पर हारुल के रूप में आज भी अमर है। जौनसार क्षेत्र और सिरमौर राज्य के इतिहास में अपनी वीरता और साहस के बलबूते पर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अमर करवाने वाले नंतराम नेगी ,( नाती राम ) उर्फ़ गुलदार का जन्म १७वी शाताब्दी के आस पास ,ग्राम मलेथा ,कैम्प मोहराड में हुवा था। उस समय यह क्षेत्र सिरमौर रियासत में था। और इस रियासत की राजधानी नाहन में थी। सिरमौर और नाहन वर्तमान में हिमाचल…
गढ़ कन्या – उत्तराखंड में गोरखा शाशन से पहले तक ,हिमालयी क्षेत्रों ( गढ़वाल ,कुमाऊं और हिमाचल ) के राजघरानो के न केवल आपस में वैवाहिक सम्बन्ध थे ,अपितु इन राज्यों ( गढ़वाल ,कुमाऊं और हिमाचल ) में परस्पर एक दूसरे राज्यों से आने वाले सैनिकों को भी अपने राज्य में वरीयता से भर्ती किया जाता था। दूसरे राज्यों से आने वाले सैनिक और सेनानायक अपने आश्रयदाता राजाओं के प्रति निष्ठावान रहते थे और राज्य के स्थानीय सेनानायको की दलबंदी और षणयंत्रों से मुक्त रहते थे। कुमाऊं का नरशाही मंगल हत्याकांड में मारे गए नगरकोटिये सैनिक हिमाचल प्रदेश के थे। गढ़वाल में…
काली कुमाऊं में खेली जाने वाली बीस बग्वालों में से केवल अब एक ही बग्वाल रह गई है। जिसे श्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन देवीधुरा में बाराही माता के मंदिर में खेला जाता है। इस दिन यहाँ भव्य मेला लगता है। जिसे बग्वाल मेला उत्तराखंड के नाम से जाना जाता है। बग्वाल मेले को राजकीय मेला घोषित कर दिया गया है। बग्वाल का अर्थ – बग्वाल का अर्थ होता है, पत्थरों की बारिश या पत्थर युद्ध का अभ्यास। पत्थर युद्ध पहाड़ी योद्धाओं की एक विशिष्ट सामरिक प्रक्रिया रही है। महाभारत में इन्हे पाषाण योधि ,अशम युद्ध विराशद कहा गया…
बाबा मोहन उत्तराखंडी का जीवन परिचय – बाबा मोहन उत्तराखंडी के नाम से विख्यात मोहन सिंह नेगी का जन्म उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल जिले के एकेश्वेर ब्लॉक के बैठोली गांव मे सन 1948 को हुवा था। इनके पिता का नाम श्री मनवर सिंह नेगी और माता जी नाम श्रीमती कमला देवी था। १२वी की परीक्षा पास करने के बाद मोहन सिंह नेगी सेना के बंगाल इंजीयरिंग ग्रुप में ,क्लर्क के रूप में भर्ती हो गए। सेना की नौकरी में वे ज्यादा दिन नहीं रहे। उसका प्रमुख कारण था। उत्तराखंड की पृथक मांग के लिए आंदोलन शुरू हो गया। अपने राज्य के…
उत्तराखंड के नागदेवता हिमालयी क्षेत्रों और उत्तराखंड में नागदेवता की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से बहुप्रचलित रहा है। उत्तराखंड में कुमाऊं मंडल की अपेक्षा गढ़वाल मंडल में ज्यादा प्रचार देखा जाता है। टिहरी गढ़वाल में स्थित सेम -मुखेम नामक नागराजा का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण को नागराजा के नाम से पूजते हैं। इसके अलावा नागेलो और नागदेव के भी अनेक पूजा स्थल हैं , जिसमे से पौड़ी उफल्टागांव में है , जिसमे गेहूं की तराई के बाद हर तीसरे वर्ष जून के महीने ४० किलो का रोट चढ़ाया जाता है। इसके अलावा उत्तरकाशी के रवाई घाटी…
शेषनाग देवता मंदिर – श्रवण मास की पंचमी को समस्त देश में सनातन धर्म के लोग नागपंचमी योहार के रूप में मानते हैं। उत्तराखंड में नागों को विशेष महत्व दिया जाता है। उत्तराखंड के सभी मंडलों में नागदेवता को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। यहाँ शेषनाग देवता से लेकर कालियानाग और उसके समस्त परिवार की पूजा होती है। सावन की पंचमी के दिन पड़ने वाली नागपंचमी को भी उत्तराखंड बड़े उत्त्साह और श्रद्धा भक्ति से मनाया जाता है। उत्तराखंड के शेषनाग देवता मंदिर में नागपंचमी के दिन भव्य मेला लगता है। उत्तराखंड में कहाँ है शेषनाग देवता मंदिर- उत्तराखंड…