Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

69 National Film Awards  में उत्तराखंड के दो युवाओं को उनके बेहतरीन कार्य के लिए  Non feature Film category में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिलने जा रहा है। जिसमे सृष्टि लखेड़ा को उनकी फिल्म एक था गांव के लिए और बिट्टू रावत को पाताल ती में बेस्ट सिनेमेटोग्राफर के लिए चयनित किया गया है। सृष्टि लखेड़ा की एक था गांव को National film Awards – उत्तराखंड के पलायन पर आधारित फिल्म “एक था गांव को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है। गढ़वाली और हिन्दी में बनी इस फिल्म मे पलायन से खाली हो चुके गाँव की कहानी…

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कुमाऊँ मस्टिफ (Kumaon Mastiff) एक दुर्लभ कुत्तों की प्रजाती है। इस नस्ल की उत्पत्ती भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊ मंडल मे मानी जाती है। इसलिए इस प्रजाती का नाम Kumaon mastiff है। इस प्रजाती को साइप्रो कुकुर के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें सर्वप्रथम कुमाऊं के पहाड़ी इलाकों में रखवाली के लिए पाला गया था। एक पुराने अध्ययन के अनुसार भारत में अब केवल 150 से 200 कुमाऊँ मस्टिफ प्रजाती के कुत्ते बचे हैं। यह अध्ययन पुराना है वर्तमान में इनकी संख्या और कम हो गई होगी ।असाधारण रूप से शक्तिशाली ये कुत्ते अत्यंत परिश्रमी और वफादार…

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हिलजात्रा उत्सव उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ जिले का प्रमुख उत्सव है। यह सोरघाटी में विशेषतः बजेटी, कुमोड़, बराल गावं, थरकोट, बलकोट, चमाली, पुरान, देवथल, सेरी, रसैपाटा में मनाया जाने वाला लोकनृत्य है। और कुछ परिवर्तनों के साथ हरिण चित्तल नृत्य के रूप में अस्कोट और कनालीछीना में मनाया जाता है। यह लोकनृत्य कृषि व्यवसाय से संबंधित होने के कारण इसमें अभिनय करने वालों का रूप भी उसी के अनुसार होता है। अर्थात इसमें कोई हल जोतते हुए बैल बनता है तो कोई हल जोतने वाला किसान ,कोई ग्वाला ,कोई मेड बांधने वाला तो कोई अन्य पशुओं का रूप…

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प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखंड नैनीताल के प्रसिद्ध मन्दिर कैंची धाम में ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है। इसके साथ-साथ कैंची धाम मन्दिर के अन्दर फोटो खीचनें पर भी  प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। मन्दिर के बाहर और आस पास बोर्ड लगाकर श्रद्धालुओं से विनम्र अनुरोध किया गया है, कि श्री कैंची धाम मन्दिर की पवित्रता और मर्यादा का ध्यान रखते हुए, मन्दिर में मार्यादित वस्तों में प्रवेश करें।अमर्यादित और अशोभनीय वस्त्र पहन कर मन्दिर में प्रवेश न करें। मन्दिर के अन्दर पहुंचते ही मोबाईल silent कर दें और मन्दिर के अन्तर फोटोग्राफी और विडोयोग्राफी न करें।पकड़े जाने पर…

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तीलू रौतेली गढ़वाल की एक वीरांगना कन्या थी, जो मात्र पंद्रह वर्ष की आयु में युद्ध में कूद पड़ी। और बाइस वर्ष की आयु तक सात युद्ध लड़ चुकी थी। सम्भवतः तीलू  विश्व की सबसे कम उम्र की वीरांगना थी जिसने अपने छोटे से जीवन में सात युद्ध जीते। Teelu Rauteli को गढ़वाल की लक्ष्मीबाई भी कहते हैं। तीलू रौतेली का असली नाम तिलोत्तमा देवी था। तीलू रौतेली पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट के गुराड गावं की निवासी थी। इनका जन्म 8 अगस्त 1663 में हुवा था। इनके पिता का नाम  भूप सिंह रावत और माता का नाम मैनावती देवी था।…

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सनातनी राखी :- रक्षाबंधन 2023 का त्यौहार आने वाला है। बाजार राखियों से सज चुके हैं। इनमें से कई राखियां विदेशी आती हैं। मसलन चीन का राखी बाजार पर बहुत बड़ा प्रभाव है। लेकिन बिगत कुछ वर्षों से चीन का राखी बाजार पर  वर्चस्व कम हुवा है। इसका मुख्य कारण है स्वदेशी को बढ़ावा देना । जनता, सामाजिक संस्थाएं और सरकार अब स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा दे रही है। और कई लोग अब घर मे स्वदेशी हस्तनिर्मित राखियां बना कर घर मे अच्छा रोजगार कमा रहे हैं। इसी प्रकार उत्तराखंड राज्य के विभिन्न लोग, सामाजिक संस्थाएं स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा…

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उत्तराखंड एक प्राकृतिक प्रदेश है। यहाँ के निवासियों का और प्रकृति का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रकृति यहाँ के लोगो को एक आदर्श जीवनचर्या के लिए एक माँ की तरह सारी सुविधाएँ देती है। बदले में उत्तराखंड के निवासी समय समय पर प्रकृति की रक्षा और उसके सवर्धन से जुड़े पर्व ,उत्सव मना कर प्रकृति के प्रति अपना आभार प्रकट करना नहीं भूलते। प्रकृति माँ के प्रति आभार प्रकट करने का उत्सव है अंढूड़ी उत्सव, या बटर फेस्टिवल (butter festival) उत्तरकाशी में रैथल ग्रामवासी , मखमली बुग्याल दायरा में भाद्रपद की संक्रांति को अपने मवेशियों के ताजे दूध ,दही ,…

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भगवान शिव के पवित्र सावन माह में सभी भाषा संस्कृति के लोग अपनी-अपनी भाषा और संस्कृति में गीत बनाते हैं। अपने अन्दाज में भगवान शिव को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। भगवान शिव का घर हिमालय कैलाश में है। और उत्तराखंड देवभूमि में भगवान शिव के कई चमत्कारी मन्दिर और उनका पावन धाम केदारनाथ है। हरियाणवी गायक गुलजार छिंदवाड़ा ने भगवान शिव को समर्पित एक भजन बनाया है, जिसके बोल हैं. “उत्तराखंड के राजा”। हालांकि यह भजन साल 2022 के सावन में रिलीज हो गया था। और यूट्यूब पर टॉप Five में रैंक भी किया था। अभी भी यह हरियाणवी…

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Uttarakhand home guard bharti 2023- उत्तराखंड होमगार्ड भर्ती 2023, 1 सितंबर से शुरू होगी। उत्तराखंड के मुख्यमन्त्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने होमगार्ड स्थापना दिवस के अवसर पर इन भर्तियों की घोषणा की थी। कमांडेंट जनरल होमगार्ड्स के अनुसार उत्तराखंड राज्य मे 320 महिला होमगार्डो की भर्ती की जाएगी इसके अलावा 10 प्लाटून कमांडरों की भर्ती भी की जाएगी।उत्तराखंड के कई जिलों में पहली बार होमगार्ड की महिला प्लाटून की भर्ती खुलेगी । यह भर्ती के बार में होगी में उधम सिंह नगर, बागेश्वर, उत्तरकाशीचमोली पौड़ी, टिहरी मे आयोजित की जाएगी। पहला चरण 1 सितम्बर से शुरू होगा दूसरे चरण…

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प्रत्येक वर्ष अगस्त के पहले रविवार को आधुनिक युवा मित्रता दिवस मनाते हैं। और आज के डिजिटल युग मे मित्रता जोड़ने के लिए सोशल मीडिया सबसे बड़ा साधन है। इसके बाद भी दोस्ती इतनी प्रगाढ़ नही होती जितनी उत्तराखंड की मिज्जू परंपरा में हो जाती थी और अभी भी होती है। उत्तराखंड कुमाऊँ मंडल के चंपावत जिले तथा सीमांत क्षेत्रों में सदियों से एक अनोखी परम्परा चली आ रही है, जिसे मिज्जू परंपरा कहा जाता है। इस परंपरा का मूल कार्य, कुमाऊ के अलग अलग जाती, समुदाय,अलग अलग वर्गों के बीच अटूट मित्रता स्थापित करना है। दो अलग अलग जाती,…

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