प्राचीन काल से ही सनातन समाज में विवाह संस्कार जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। सनातन धर्म में अनेक जीवन पद्धतियां ,समाज हैं जिनके विवाह संस्कार मूलतः सनातनी विधि -विधानों पर होने के बावजूद थोड़ा बहुत स्थानीय संस्कृति और परम्पराओं का अंतर आ जाता है। स्थानीय मान्यताओं के आधार पर कुछ परम्पराएं बदल जाती हैं। प्रस्तुत आलेख में कुछ कुमाऊनी विवाह परम्पराओं के बारे में चर्चा करेंगे। वैसे तो कुमाऊँ मंडल में तीन प्रकार की विवाह परम्पराएं चलन में रही हैं – १- आँचल विवाह २ -सरोल विवाह ३ -मंदिर विवाह। कुमाऊं में आजकल मुख्यतः आंचल विवाह चलता…
Author: Bikram Singh Bhandari
उत्तराखंड के कुमाऊं में लोक देवता सैम देवता को मंगलकारी कल्याणकारी देव शक्ति के रूप में पूजा जाता है। सैमज्यू अत्यंत सरल और न्यायकारी लोकदेवता हैं। वे अपने भक्तों का कल्याण करते हैं और दुष्टों को दंड देते हैं। सैम का अर्थ होता है स्वयंभू। इन्हे शिवांश या शिव का अंशावतार भी माना जाता है। अल्मोड़ा जागेश्वर के पास झाकर सैम ( jhakar sem mandir ) में इनका परम धाम है। वहां ये स्वयंभू लिंग रूप में अवतरित हैं। इसके अलावा अल्मोड़ा क्षेत्र के लगभग प्रत्येक गांव में इनका मंदिर होता है। इन्हे देवताओं का मामू या देवो के गुरु…
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट नगर को मंदिरों का नगर उत्तर की द्वारिका भी कहा जाता है। इसी मंदिरो के नगर में काशी विश्वनाथ के महत्त्व के बराबर महत्त्व रखने वाला महादेव का मंदिर है , जिसे विभाण्डेश्वर महादेव (vibhandeshwar mahadev mandir )कहा जाता है। विभाण्डेश्वर भगवान शिव का यह मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट नगर से 8 किमी. दक्षिण में नगारधण (नागार्जुन) पर्वत के तलहटी में स्थित है। यह मंदिर नागार्जुन पर्वत से प्रवाहित होने वाली रमनी, सुरभि एवं नन्दिनी नामक सरिताओं के संगम पर स्थित है। विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास -…
गंगनाथ देवता और गोलू देवता उत्तराखंड कुमाऊं के प्रमुख लोक देवता है। जिस प्रकार गोलू देवता को न्याय के देवता माना जाता है उसी प्रकार गगनाथ देवता को भी कुमाऊं का न्यायप्रिय देवता माना जाता है। अल्मोड़ा क्षेत्र के गांव -गांव में गंगनाथ देवता के मंदिर हैं। ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर इनका नैनीताल जिले में हैं जिसके बारे में मान्यता है कि यहाँ रुमाल बांधने से मनोकामना पूर्ण होती है। नैनीताल में भी है न्याय के देवता गंगनाथ देवता का मंदिर – गंगनाथ देवता की पूजा मुख्यतः अल्मोड़ा जिले के आस पास के गांवों में अधिक होती है। अल्मोड़ा…
उत्तराखंड की संस्कृति, परम्पराओं में आपसी प्रेम, प्रकृति प्रेम, मानव कल्याण की भावनाये कूट-कूट कर भरी होती है। इसी फेरहिस्त में कुमाऊं उत्तराखंड की एक प्यारी परम्परा है ,जिसमे भांजे और भांजी को परिवार या समाज का सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है। भांजे -भांजी को दक्षिणा देना, दान करना पुण्य माना जाता है। कुमाऊं मंडल में हर शुभ कार्यों में भांजे भांजी को पुरोहित के साथ लगभग उनके बराबर दान-दक्षिणा से सम्मानित किया जाता है। भांजे – भांजी को कुमाऊं में ब्राह्मण माना जाता हैं। बिना भांजे के कोई शुभ काम सफल नहीं होता है। कुमाऊं की ये प्यारी परम्परा…
पहाड़ों में पुण्यात्माओं की पूजा करने की पुरानी परम्परा है। किसी को श्रद्धावश पूजते हैं तो किसी को अनिष्ट के भय से बचने के लिए पूजते हैं। और पुल्लिंग इंगित करने वाली पूज्य आत्माओं को स्नेह से बुबु जी भी बोलते हैं। जैसे रानीखेत के बुबुधाम के बुबु ,बेतालघाट के बेताल बुबु बागेश्वर के मशान बुबु इत्यादि। इन्हीपूज्य बुबु लोगो में एक बुबु और हैं ,और वे है अल्मोड़ा के खमसिल बुबु। उत्तराखंड की संस्कृति नगरी अल्मोड़ा के गंगोला बाजार में एक छोटा सा मंदिर है ,जहा एक हुक्का रखा है। इसे खमसिल बुबु का मंदिर कहते हैं। खमसिल बुबु…
कुवाली रानीखेत : पूरा उत्तराखंड देवभूमि के में नाम से जगविख्यात है। यहाँ के कण कण देवताओं का वास है। यहाँ हिन्दुओं के चार धाम हैं। और कई प्रसिद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व वाले मंदिर हैं। इसके अलावा कुछ पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर ऐसे है जो आज भी गुमनाम है या उनको उनके स्तर का महत्व नहीं मिला। ऐसे ही मंदिरों में अल्मोड़ा- द्वाराहाट मार्ग पर कुवाली नामक गावं पड़ता है ,देखने में यह एक छोटा सा कस्बा है लेकिन यह स्थान बहुत ही धार्मिक महत्त्व का स्थान है। क्योकि यहाँ स्वयं भगवान् बद्रीनाथ निवास करते हैं। कुवाली गांव में…
पहाड़ों में कई ऐसे गांव ,कसबे नगर है जो ऐतिहासिक महत्व से संपन्न हैं। इन्ही ऐतिहासिक संपन्न गावों या क्षेत्रों में से एक क्षेत्र है दौलाघट क्षेत्र। मल्ला तिखून पट्टी में पहाड़ के मुख्य अनाज मोटे अनाज की पैदावार के लिए प्रसिद्ध यह क्षेत्र अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ कुमाऊं के दोनों प्रमुख राजवंश कत्यूरों और चंदो की ऐतिहासिक निशानियाँ इस क्षेत्र को खास बना देती है। दौलत सिंह के घटों के नाम पर पड़ा दौलाघट का नाम – दौलाघट के आस पास प्राचीन पनचक्कियों की बहुताय है। जिन्हे स्थानीय भाषा में घट कहते हैं। कहा…
कुमाऊनी बैठकी होली :होली हिन्दू धर्म के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। इस त्यौहार को सभी सनातनी बड़े हर्षो उल्लास के साथ मानते हैं। सभी क्षेत्रों की होली अपने आप में खास होती है। इसमें से भी ब्रज की होली और उत्तराखंड की कुमाऊनी होली काफी प्रसिद्ध हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में दो तरह से होली गायन होता है। पहली कुमाऊनी बैठकी होली (kumaoni baithaki holi )और दूसरी है कुमाऊनी खड़ी होली। कुमाऊनी बैठकी होली का इतिहास – कुमाऊं की इस होली के स्वरुप में होली गायक बैठ कर हारमोनियम ,तबला में सुर ताल के साथ शास्त्रीय…
लिंगवास (Lingwas ) उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों ( गढ़वाल और कुमाऊं ) की मृतक संस्कार से जुड़ी परम्परा है। यह परम्परा अन्तोष्टि के ग्यारहवे दिन या तेरहवे दिन या पन्द्रहवे दिन या महीने बाद निभाई जाती है। प्रत्येक क्षेत्र में अलग -अलग समय निर्धारण किया गया है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों मृतक संस्कार से जुड़ी अलग अलग परंपराएं मनाई जाती है । जिसमे से उत्तराखंड की लिंगवास परंपरा या पित्तरकुडी, ढुंग ठौर रखना, नाम से प्रसिद्ध परंपरा है। उत्तराखंड की लिंगवास परम्परा – मृतक की दाह संस्कार के बाद क्रियाकर्म करने वाला व्यक्ति नदी तट पर स्थित शमशान घाट पर…