Friday, July 26, 2024
Homeसंस्कृतिउत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई या पारम्परिक मीठे पकवान।

उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई या पारम्परिक मीठे पकवान।

वैसे आजकल उत्तराखंड की बाल मिठाई ,सिंगोड़ी इत्यादि मिठाइयां विश्व प्रसिद्ध है। मगर ये उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई नहीं है।  उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई का मतलब उन मिठाइयों या पारम्परिक मीठे पकवानों से है ,जो पर्वतीय जनजीवन में लोग अपने घर में उपलब्ध संसाधनों से बनाते थे। आर्थिक कमजोरी नागरिक मिठाइयों या शहरी मिठाइयों की असुलभता के कारण प्राचीन काल के लोगो ने गुड़ /शहद और आटे, चावल से पारम्परिक मीठे पकवान बनाये जो शहरी मिठाइयों की स्थापन्न बन गए।

उत्तराखंड की कुछ पारम्परिक मिठाइयों का विवरण इस प्रकार है –

खजूर या खजूरे उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई –

गेहू केआटे में गुड़ का पाक डालकर ठोस आटा गूंथकर उसकी रोटी बना कर ,उसे तिकोने टुकड़ों ( बर्फी शेप ) में काट लेते हैं। उसके बाद उसे तेल में फ्राई करके रख लिया जाता है। इन्हे खस्ता बनाने के लिए घी ,दही या आजकल सूजी का प्रयोग भी करते हैं। इसमें पानी की मात्रा कम होने के कारण ये जल्दी खराब नहीं होते हैं। लम्बी यात्राओं के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। खजूरे भी उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई है।

रोट या रोटना –

पहाड़ो में स्थानीय लोक देवताओं के पूजन में प्रसाद के रूप में प्रयुक्त मीठी रोटी नुमा पकवान को रोट या रोटना कहा जाता है। इसे हाथ चक्की से पीसे हुए आटे में गुड़ ,तिल सौंफ मिलाकर बनाया जाता है। बड़े -बड़े गोल बिस्किट के आकर के रोट बनाकर ,उन्हें चौड़े बर्तन में हलकी आंच में सेका जाता है। इसमें पानी कम और घी ज्यादा होने के कारण ये जल्दी खराब नहीं होते हैं। इसे कुमाऊँ में रोट और गढ़वाल में रोटना कहते हैं।

साया –

Best Taxi Services in haldwani

उत्तराखंड में बनाये  वाला यह एक विशेष मीठा पकवान है। यह उत्तराखंड के कुमाऊं मण्डल में बनाये जाने वाला खास पकवान है। यह चैत्र के महीने में बहिन को दी जाने वाली भिटौली  बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए सर्वप्रथम सूजी को दही में मिलकर रख देते हैं। कुछ देर रखने के बाद कढ़ाही में घी डालकर करछुली से काफी देर चलाया जाता है। तपश्यात अवश्यकतानुसार चीनी डाल कर उसे रोट की तरह सेक लिया जाता है। फिर करछी से छोटी -छोटी बर्फियाँ सी काटकर खाने को दी जाती है। यह काफी खस्ता और स्वादिष्ट होता है।

उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई

छउवा या छोलिया रोटी –

यह खास पर्वतीय मिष्ठान पकवान होता है। यह एक तरह की उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई भी है। ऐसे विशेष उत्सवों और खास मेहमानो के आगमन पर बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए गुड़ के घोल में आटा मिलाकर किया जाता है। इस घोल को बड़ी सावधानी से अंगुलियों की सहयता से तवे पर फैलाया जाता है।

अन्यथा यह कहीं पर मोटा तथा कहीं पर पतला हो जाने से सेकते समय इसका पतला भाग या तो जल जाता है या मोटा भाग कच्चा रह जाता है। क्योंकि इसे अंगुलियों के पोरों के द्वारा गरम तवे पर फैलाया जाता है अत: इसमें सावधानी आवश्यक होती है अन्यथा अंगुलियों के पोरों के जलने का भी डर रहता है। इस काम में मात्र गृहणियां दक्ष होती हैं।

पुरुषों के द्वारा इसे बनाना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होता है। यहां के ग्रामीण समाज में भी पहले बहू बेटियां मायके-ससुराल को जाते समय इन्हें उपहार स्वरूप ले जाया करती थीं। जौनपुर, जौनसार में इसे चिलड़ा कहते हैं।

सिंगल –

 मिष्ठान्नों में खीर, पुआ, हलवा, छोलुवा के अतिरिक्त विशेष  मिष्ठान्न ‘सिंगल’ भी बनाया जाता है जो अल्मोड़ा जनपद में अधिक प्रचलित है। बड़े इसके उपादान होते हैं- सूजी, घी, दही, चीनी व केला। पहले सूजी में चीनी और अपेक्षित मात्रा में घी तथा पके हुए केले को मिला कर उन्हें खूब मसल लिया जाता है। फिर उसमें आवश्यक मात्रा में दही व चीनी मिला कर फैंटा जाता है। फिर जलेबी बनाने की स्टाइल में किसी छेद वाले कपड़े या बर्तन में डाल के घी में तल लिया जाता है।

सेई – 

इसके लिए भी चावलों को भिगाकर तथा फिर धूप पीस लिया जाता है। फिर इसमें दही या दूध मिला कर थोड़ा-थोड़ा करके घी में तल लिया जाता है।

फफरोला –

यह फाफर (कोटू/ओगल) के आटे से तैयार किया जाने वाला मीठा भोज्य  है। इसे कोटू के आटे में गुड़/शक्कर मिलाकर डबल रोटी जैसी मोटी रोटी के रूप में तैयार किया जाता है। पहले लम्बी यात्रा पर जाने जाया करते थे, क्योंकि यह एक महीने तक भी वाले लोग इसे ही बना कर रखने से खराब नहीं होता था।

अर्सा/अर्शा –

यह उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल का लोकप्रिय विशिष्ट मीठा पकवान है। इसे उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई भी कहते हैं ।इसके लिए एक नियत परिमाण के हिसाब से चावलों को भिगा कर फिर उन्हें ओखली में कूट लिया जाता है। इसके बाद इसे छान कर गुड़ की चासनी में डाल कर हलवे की भांति गाढ़ा करके मालपुओं के समान उनके गोल-गोल- पेड़े बना कर उन्हें तेल में तला जाता है। ग्रामीण महिलाएँ मायके ससुराल आते जाते समय कल्यो ( सौगात) में इन्हें बना कर ले जाती हैं। विशेषकर उत्तराखंड की यह पारम्परिक मिठाई गढ़वाल मंडल में शादियों में विशेष रूप से प्रयोग की जाती है।

आटो या लापसी –

पहाड़ का यह मिष्ठान चावल की जगह आटे में दूध डालकर पकाई जाने वाली खीर की तरह होता है। इसे गढ़वाल में आटो और कुमाऊं में लपसी या लापसी कहते हैं। कुमाऊं के कतिपय हिस्सों में लाप्सी का प्रयोग प्रसूता गाय के दूध का आटे के साथ उपयोग शुरू करने की परंपरा के तौर पर किया जाता है।

उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई मालपुए या पुए –

यह भी  पारम्परिक तौर बनाई जाने वाली आटे,चीनी या गुड़ के घोल से बनाई जाने वाली उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई है। इसमें भी आटे के घोल में चीनी या गुड़, केला,दही , सूजी इत्यादि डाल कर पौकोड़ो की शक्ल में गुलगुले बनाए जाते हैं। पहले केवल आटे और चीनी से भी बनाए जाते थे। वर्तमान में अधिक चीजें उपलब्ध होने से सभी चीजों का प्रयोग किया जाता है। कहीं इसे आटे,दही इत्यादि मिलाकर चीनी की चासनी में भिगोया जाता है।पहाड़ में पारंपरिक पुए खुशियों या देवपूजन के अवसर पर बनाए जाते हैं। विस्तार से पढ़े – सोमेश्वर के प्रसिद्ध मालपुए, विलुप्त होते पारम्परिक स्वाद का आखिरी ठिकाना

पहाड़ी सामान ऑनलाइन मंगाने के लिए क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments