Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

उत्तराखंड और समस्त हिमालयी क्षेत्र को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र अपने अंदर कई रहस्य समाहित किये है। इन्ही रहस्य्मयी स्थलों में एक है केदारनाथ का रेतस कुंड। जैसा की हमको पता है अप्रैल मई से बाबा केदार के कपाट खुल जाते हैं और अक्टूबर नवंबर केदारनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं। केदारनाथ भगवान् शिव का ग्यारहवा ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है। इसके आस पास कई चमत्कारिक और रहस्य्मय ,रमणीक स्थान हैं ,जो बहुत उच्च धार्मिक महत्व के स्थान हैं। रेतस कुंड केदारनाथ में स्थित एक चमत्कारिक कुंड है – केदारनाथ में कई चमत्कारिक…

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नारायणकाली मंदिर समूह अल्मोड़ा :- उत्तराखंड के ऐतिहासिक स्मारकों ,मंदिरों में उत्तराखंड अल्मोड़ा में स्थित यह मंदिर समूह अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 13 किलोमीटर दूर नारायणकाली नामक गांव में ” काकड़ी गधेरे ” के दक्षिण तट पर निर्मित छोटे बड़े 52 मंदिरों का एक समूह है। यहाँ नारायण ,काली ,शिव मंदिरों का प्रधान्य होने के कारण यहाँ का नाम नारायणकाली मंदिर समूह रखा गया है। यहाँ सम्प्रति मंदिर भगवान् शिव का है। नारायणकाली मंदिर पक्षिम में शिव का छोटा मंदिर है जिसे पशुपतिनाथ का मंदिर कहा जाता है। जैसा की इसके नाम से आभासित होता है यहाँ का प्रमुख…

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ठेकुआ -ठेकुली कुमाऊँ की एक प्रसिद्ध कुमाऊनी लोक कथा है। आपने कुमाऊँ में ये किस्सा तो सुना ही होगा – लक्ष्मी नाम की झाड़ू लगाए।  धनपति मांगे भीख।  अमर नाम का मर गया  तो मेरा ठेकुआ ही ठीक। आज इसी किस्से पर आधारित एक कुमाऊनी लोककथा का संकलन करने जा रहे हैं। पहले मनोरंजन के साधन नहीं होते थे। पहाड़ो में आमा बुबु आग के किनारे बैठकर बड़े चाव से लोककथाएं सुनाते थे। और हम उन कथाओं में इस कदर खो  जाते थे कि कहानी हमारे आगे चलचित्र की तरह चलने लगती थी। ठेकुआ -ठेकुली की कुमाऊनी लोककथा – कहते…

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देहली ऐपण :- प्रवेशद्वार के अधस्तल (देहली) पर किये जाने वाले ऐपणों को ‘देहली ऐपण’ या ‘देहली (धेई) लिखना’ कहा जाता है। कुमाऊं के निवासियों में अल्पना की यह परम्परा बहुत लोकप्रिय तथा प्राचीन है। ऐसा लगता है कि प्रवेशद्वार के आलेखन की यह परम्परा यक्ष संस्कृति की देन है। महाकवि कालिदास की अमरकृति ‘मेघदूत’ में हिमालयस्थ अलकापुरी  का निवासी यक्ष अपने घर का परिचय देते हुए मेघ से कहता है- “द्वारोपान्ते लिखितवपुषौ शंखपद्मौ च दृष्टवा” ‘वहां पर मेरी पत्नी के द्वारा द्वारस्थल (देहरी) पर लिखित शंख तथा कमल पुष्प को देखकर तुम्हें उसे पहचानने में कोई कठिनाई नहीं होगी…

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पावड़ा : उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में किसी वीर पुरुष अथवा देवता  के जीवन से संबंधित उसके वीरता पूर्ण घटनाओं का वर्णन जिन गीतों में किया जाता है उन्हें गढ़वाल में पावड़ा गीत कहा जाता है। यह कुमाऊँ के “कटकु ” , भड़गामा ,या राजस्थान के रासो गीत की तरह होते हैं गढ़वाल में देवताओं के पावड़ो में गोरिल देवता एवं नागराजा के पावड़े काफी प्रसिद्ध है। गोरिल के पवाड़े में कहा गया है कि तैमूर लंग अपनी विशाल तुर्की सेना को लेकर पहाड़ों पर आक्रमण एवं लूटपाट करने की दृष्टि से दिल्ली से चलता हुआ बिजनौर जिले में स्थित…

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कंडार देवता गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जिले के बारह गावों का अधिष्ठातृ देव है। इनका मूल स्थान मांडो गांव है। कहते हैं इस गांव में मांडय ऋषि का आश्रम होने के कारण इसे मांडो गांव के नाम से जाना जाता है। यहाँ के स्थानीय लोकदेवताओं में इन्हे श्रेष्ठ देव माना जाता है। कंडार देवता का प्रभाव क्षेत्र उत्तरकाशी का उत्तरी क्षेत्र है। इनका निवास स्थान उत्तरकाशी का ततराली गांव है। इसका मंदिर वरुणावत पर्वत पर स्थित संग्राली गांव में स्थित है। यहाँ इन्हे धातु के मुखोटे के रूप में स्थापित किया है। कंडार देवता के पास भूत भविष्य और वर्तमान…

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प्रस्तुत लेख में उत्तराखंड के एक ऐसे ऐतिहासिक घर का वर्णन किया गया है ,जिसके बारे में कहा जाता है कि यह नौ पत्थरों से बना है। क्यूकी इसको किसी भी कोने से देखे तो केवल नौ पत्थर दिखाई देते हैं। इसलिए इसका नाम स्थानीय भाषा में नौ ढुंगा घर ( Nau Dhunga Ghar) यानि नौ पत्थरों वाला मकान भी कहते हैं। उत्तराखंड का अनोखा घर नौ ढुङ्गा घर – उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के चम्पावत जिले में चम्पावत-पिथौरागढ़ राजमार्ग पर उससे 1.5 किमी दूर मांदली नामक गांव में एक प्राचीन मकान के भग्नावेश हैं। इस घर का नाम है…

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हर समाज में शुभ अशुभ से जुडी कई मान्यताएं होती हैं। ठीक उसी प्रकार हमारे पहाड़ो में दैनिक जीवन और क्रियाकलापों से जुड़ी घटनाओं को शुभ और अशुभ से जोड़ा जाता है। वर्तमान में शहरीकरण के प्रभाव इन पहाड़ी मान्यताओं का प्रभाव थोड़ा काम हो गया हैं ,लेकिन ग्रामीण अंचलों में ये मान्यताएं अपने पारंपरिक रूप में अभी भी प्रचलित हैं। उत्तराखंड में प्रचलित लोकविश्वासो ,आस्थाओं ,शुभ-अशुभ सम्बन्धी अवधारणाओं एवं वर्जनों -प्रतिवर्जनों में से अनेक ऐसे हैं कि जो सर्वत्र स्तर पर आंशिक भेदों के साथ पुरे हिमालयी क्षेत्र में माने जाते हैं। इनमे में से आइये जानते हैं कुछ…

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केदारनाथ धाम, उत्तराखंड का सबसे पवित्र शिव स्थल माना जाता है, जहां भगवान शिव स्वयं केदारनाथ रूप में विराजते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां एक और अद्वितीय देवता हैं, जिनके बिना केदारनाथ यात्रा अधूरी मानी जाती है — भुकुंड भैरव। केदारनाथ के दक्षिण में निवास करते हैं भुकुंड भैरव – केदारनाथ धाम से लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में खुले आसमान के नीचे विराजते हैं भुकुंड भैरव (Bhukund Bhairav Kedarnath)। यह स्थान कोई भव्य मंदिर नहीं, बल्कि कुछ प्राचीन मूर्तियों के माध्यम से पहचाना जाता है। यही है भैरव बाबा का पावन धाम, जो केदारनाथ की सुरक्षा के…

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वैसे आजकल उत्तराखंड की बाल मिठाई ,सिंगोड़ी इत्यादि मिठाइयां विश्व प्रसिद्ध है। मगर ये उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई नहीं है।  उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई का मतलब उन मिठाइयों या पारम्परिक मीठे पकवानों से है ,जो पर्वतीय जनजीवन में लोग अपने घर में उपलब्ध संसाधनों से बनाते थे। आर्थिक कमजोरी नागरिक मिठाइयों या शहरी मिठाइयों की असुलभता के कारण प्राचीन काल के लोगो ने गुड़ /शहद और आटे, चावल से पारम्परिक मीठे पकवान बनाये जो शहरी मिठाइयों की स्थापन्न बन गए। उत्तराखंड की कुछ पारम्परिक मिठाइयों का विवरण इस प्रकार है – खजूर या खजूरे उत्तराखंड की पारम्परिक मिठाई – गेहू…

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