Friday, May 23, 2025
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गणतंत्र दिवस 2024 में मिलेगा पिथौरागढ़ के लखियाभूत का आशीर्वाद !

गणतंत्र दिवस 2024 की परेड में कर्तव्य पथ पर उत्तराखंड पिथौरागढ़ की हिलजात्रा ( मुखौटा नृत्य ) की झलक देखने को मिलेगी। प्राप्त जानकारी के अनुसार भाव राग ताल अकादमी के निर्देशक प्रसिद्ध रंगकर्मी कैलाश कुमार के नेतृत्व में 9 लोगो का दल यह प्रस्तुति देगा। वे अपने दल के साथ अभ्यास के लिए दिल्ली पहुंच चुके हैं। वैसे पारम्परिक हिलजात्रा पुरुषों द्वारा की जाती है , लेकिन गणतंत्र दिवस 2024 की परेड में होने वाली हिलजात्रा में महिलाये भाग ले रही हैं। इस साल गणतंत्र दिवस की थीम महिला सशक्तिकरण की है और इस वर्ष देश भर से अनेकों महिलाएं भाग लेने वाली हैं।

हिलजात्रा  उत्तराखंड के  पिथौरागढ़ जिले का प्रमुख उत्सव है। यह सोर घाटी में खासकर बजेटी ,कुमोड़ ,बराल गावं ,थरकोट,बलकोट ,चमाली ,पुरान ,देवथल ,सेरी ,रसैपाटा में मनाया जाने वाला लोकनृत्य है। और कुछ परिवर्तनों के साथ हरिण चित्तल नृत्य के रूप में अस्कोट और कनालीछीना में मनाया जाता है। यह लोकनृत्य कृषि व्यवसाय से संबंधित होने के कारण इसमें अभिनय करने वालों का रूप भी उसी के अनुसार होता है। अर्थात इसमें कोई हल जोतते हुए बैल बनता है तो कोई हल जोतने वाला किसान ,कोई ग्वाला ,कोई मेड बांधने वाला तो कोई अन्य पशुओं का रूप धारण करते हैं।

गणतंत्र दिवस 2024

विभिन्न पशुओं और पात्रों का अभिनय करने वाले अभिनेता उन पात्रों के मुखौटे अपने चेहरे पर लगाते हैं। इसलिए इसे उत्तराखंड का प्रसिद्ध मुखौटा नृत्य भी कहते हैं। यह मुखौटे लकड़ी के बने होते हैं। अभिनय करने वाले लोग आधे अंग में केवल कच्छा पहन का बाकी शरीर में सफ़ेद मिट्टी पोत लेते हैं। उसपे काली सफ़ेद धारियां यान बूटें डाल लेते हैं। इस प्रकार का गेटउप लेकर लोग अलग -अलग अभिनय करते हैं। इस लोक नृत्य का मुख्य पात्र लखिया देव या लखियाभूत होता है। लखिया भूत को भगवान शिव का प्रमुख गण माना जाता है। गणतंत्र दिवस 2024 की परेड में हिरण चितल नृत्य का प्रदर्शन किया जायेगा।

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मुखौटा नृत्य हिलजात्रा के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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