Thursday, April 17, 2025
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कुमाउनी कविता, अहा रे कदू याद ऊ

गंगोलीहाट के हिमांशु ने हमे एक सुंदर सी कुमाउनी कविता भेजी है। आइये सर्वप्रथम हिमांशु की सुंदर कविता का आनंद लेते हैं।

कुमाउनी कविता का शीर्षक-

आहा रे कतु याद उँ

लेखक – हिमांशु पन्त

उ दौर ले कमाल छी, यो दौर ले कमाल छु,
तब जिंदगी में खुशी छी, अब जिंदगी बडी दुखी छु।
आहा रे कतु भल लागछि…
जब बुजुर्ग नकि बात सुणछ्यां, आब् सब मोबाइल में व्यस्त छन और बुढ़ बाढ़ि हमन देखि पस्त छन,
उ घरक बिजलीक लंफु आज ले याद ऊँ, ज्या में हाथ लगा भेर झाव लागछि खोर लगा भेर चड़चड़ाट हुंछि।
आब् तो ख्वार है ले मलि एक LED लाइट हूँ, नें तो झाव हूँ, नै हीं कोई चड़चड़ाट हूं।
उ जनव और मडुआ क रोट ले याद ऊँ, ज्या में घ्यू और चीनी लगा भेर एक अलगे स्वाद आ जांछि, आब् तो बढ़िया बढ़िया डिश हुनन लेकिन उस स्वाद कां ले नै मिलन।
आहा रे कतु याद ऊं…..
उ ईजा क लाड़ और बाबू की मार कतु याद उँ,
जब ईज लिखि कयो ल्हि बेर उँछि और हम कोई हथियार समझि बेर डरी जांच्छ्या।
बाबू घर में उँछि तो किताब खोलि बेर बैठि जांच्छ्या।
आब् तो PUBG और FREE FIRE है ई नानतिन नं कें फुर्सत नहां।
आहा रे कतु याद ऊं…..
उ घर पनिकी फसक फराव, उ आठ बखत क चाहा।
उ बूढ़ी बाढ़ि नैकि काटणि, उ हमार कुड़बूती।
उ रात्ते  रात्ते गोरु क डूडाट, उ चाड़ नाक चड़चड़ाट।
उ बुबु कि लट्ठी कि खट खट, उ मडुआ रोट कि पट पट।
उ ग्यूँ मडु चुटण, उ घवाग् भुटण।
उ चीनी लागि मडुवा रवाट, उ भेकुवाक लकड नाक स्वाट।
उ स्कूल क भात, उ बाखई में जोरेकि धात।
उ पहाड़कि हवा, उ बुजुर्ग नैकि प्राकृतिक दवा।
उ पाणिकि तें धार में जाण, उ इजाक हाथक खाण।
उ हमार तीज त्यार, उ हमरि बाखई में चाड़ हजार।
उ च्यूड भुटनैकि भट भट, उ धान कूटनैकि खट खट।
आहा रे कतु याद ऊं…..
आहा रे कतु याद ऊं…

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लेखक के बारे में
कुमाउनी कविता हिमांशु पंत द्वारा

उपरोक्त कुमाउनी कविता के लेखक श्री हिमांशु पंत जी है। हिमांशु पंत मूलतः गंगोलीहाट पिथौरागढ़ के रहने वाले हैं। आई टी कंपनी में कार्यरत हिमांशु पंत , अपने पहाड़ व अपनी दूधबोली कुमाउनी में कविता और लेख लिखने के शौकीन हैं।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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