पूर्णागिरि मंदिर या पुण्यागिरी, उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर अन्नपूर्णा पर्वत पर 5500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। (Purnagiri ka mandir) माँ पूर्णागिरि मंदिर चंपावत से लगभग 92 किलोमीटर दूर स्थित है। पूर्णागिरि मंदिर टनकपुर से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है।
पूर्णागिरि का मंदिर काली नदी के दाएं ओर स्थित है। काली नदी को शारदा भी कहते हैं। यह मंदिर माता के 108 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पूर्णागिरि में माँ की पूजा महाकाली के रूप में की जाती है।
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पूर्णागिरि मंदिर का इतिहास –
पौराणिक कथाओं के अनुसार , जब माता सती ने आत्मदाह किया, तब भगवान शिव माता की मृत देह लेकर सारे ब्रह्मांड में तांडव करने लगे। सृष्टि में अव्यवस्था फैलने लगी । तब भगवान विष्णु ने संसार की रक्षा के लिए, माता सती की पार्थिव देह को अपने सुदर्शन चक्र से नष्ट करना शुरू किया । सुदर्शन चक्र से कट कर माता सती के शरीर का जो अंग जहाँ गिरा, वहाँ माता का शक्तिपीठ स्थापित हो गया। इस प्रकार माता के कुल 108 शक्तिपीठ हैं।
इनमे से उत्तराखंड चंपावत के अन्नपूर्णा पर्वत पर माता सती की नाभि भाग गिरा ,इसलिये वहाँ पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना हुई।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार , महाभारत काल मे प्राचीन ब्रह्मकुंड के पास पांडवों द्वारा विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया। और इस यज्ञ में प्रयोग किये गए अथाह सोने से ,से यहाँ एक सोने का पर्वत बन गया । 1632 में कुमाऊँ के राजा ज्ञान चंद के दरवार में गुजरात से श्रीचंद तिवारी नामक ब्राह्मण आये ,उन्होंने बताया कि माता ने स्वप्न में इस पर्वत की महिमा के बारे में बताया है।तब राजा ज्ञान चंद ने यहाँ मूर्ति स्थापित करके इसे मंदिर का रूप दिया।
माता के दर्शन के लिए यहाँ साल भर श्रद्धालु आते हैं। परंतु चैत्र माह और ग्रीष्म नवरात्र के दर्शन का विशेष महत्व है। चैत्र माह से यहाँ 90 दिनों तक पूर्णागिरि मंदिर का मेला भी लगता है।
पूर्णागिरि के सिद्ध बाबा मंदिर की कहानी-
सिद्ध बाबा के बारे में कहा जाता है, कि एक साधु ने घमंड से वशीभूत होकर, जिद में माँ पूर्णागिरि पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की, तब माता पूर्णागिरि ने क्रोधित होकर साधु को नदी पार फेक दिया। (जो हिस्सा वर्तमान में नेपाल में है।) बाद में साधु द्वारा माफी मांगने के बाद ,माता ने दया में आकर साधु को सिद्ध बाबा के नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। और कहाँ कि बिना तुम्हारे दर्शन के ,मेरे दर्शन अधूरे होंगे।
अर्थात जो भी भक्त पूर्णागिरि मंदिर जाएगा, उसकी यात्रा और दर्शन तब तक पूरे नही माने जाएंगे, जब तक वह सिद्ध बाबा के दर्शन नही करेगा। यहाँ सिद्ध बाबा के लिए मोटी मोटी रोटिया ले जाने का रिवाज भी प्रचलित है।
पूर्णागिरि धाम के झूठे का मंदिर की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक सेठ संतान विहीन थे। एक दिन माँ पूर्णागिरि ने स्वप्न में कहा कि ,मेरे दर्शन के बाद तुम्हे पुत्र प्राप्ति होगी। सेठ में माता के दर्शन किये ,ओर मन्नत मांगी यदि उसका पुत्र हुआ तो वह माँ पूर्णागिरि के लिए सोने का मंदिर बनायेगा। सेठ का पुत्र हो गया,उनकी मन्नत पूरी हो गई, लेकिन जब सेठ की बारी आई तो ,सेठ का मन लालच से भर गया।
सेठ ने सोने की मंदिर की स्थान पर ताँबे के मंदिर में सोने की पॉलिश चढ़ाकर माँ पूर्णागिरि को चढ़ाने चला गया। कहते है, टुन्याश नामक स्थान पर पहुचने के बाद वह मंदिर आगे नही ले जा सका, वह मंदिर वही जम गया। तब सेठ को वह मंदिर वही छोड़ना पड़ा। वही मंदिर अब झूठे का मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में बच्चों के मुंडन संस्कार किये जाते हैं। इसके बारे में मान्यता है,कि इसमें मुंडन कराने से बच्चे दीर्घायु होते हैं।
पूर्णागिरि माता का मंदिर कैसे जाएं –
पूर्णागिरि मंदिर कैसे जाए पूर्णागिरि धाम की यात्रा यातायात के सभी प्रारूपों द्वारा सुगम है। पूर्णागिरि मंदिर की यात्रा गर्मियों में ज्यादा अच्छी होती है। विशेष तौर से 30 मार्च से अप्रैल मई तक। इस समय यहाँ पूर्णागिरि का मेला भी चलता है,और धार्मिक महत्व भी है इस समय का। मौसम के हिसाब से भी यह पूर्णागिरि यात्रा का सबसे सुगम समय है।
हवाई मार्ग से पूर्णागिरी मंदिर की यात्रा:-
पूर्णागिरी के नजदीक हवाई अड्डा पंतनगर है। पंतनगर नैनीताल जिले में स्थित है। यह पूर्णागिरी से 160 किमी दूर है। यहाँ से पुण्यागिरी, पूर्णागिरी को टैक्सी ,बस ऑटो सब उपलब्ध हैं। पंतनगर में सप्ताह की 4 उड़ाने दिल्ली के लिए उपलब्ध हैं । और देहरादून के लिए भी उड़ाने उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग से पूर्णागिरी मंदिर की यात्रा:-
टनकपुर से पूर्णागिरी की दूरी 20 किमी है। टनकपुर से पूर्णागिरी को टैक्सी उपलब्ध हैं। टनकपुर रेलवे स्टेशन भारत के बड़े शहरों के रेलवे स्टेशन से जुड़ा है। हाल ही में भारत सरकार ने 26 फरवरी 2021 को दिल्ली पूर्णागिरी जनशताब्दी एक्सप्रेस नामक ट्रेन शुरू की है।
यह ट्रेन प्रतिदिन दिल्ली मुरादाबाद, बरेली इज्जतनगर, खटीमा होते हुए टनकपुर आती है। दिल्ली पूर्णागिरी जनशताब्दी एक्सप्रेस विशेष रूप से पूर्णागिरी यात्रा के लिए चलाया गया है। यह पूर्णागिरी जाने के लिए सबसे सुगम हैं।
सड़क मार्ग से पूर्णागिरी मंदिर की यात्रा:-
टनकपुर , देश के सभी नेशनल हाईवे से जुड़ा हुआ है। टनकपुर से पूर्णागिरी लगभग 20 किमी दूर है। टनकपुर तक दिल्ली ,लखनऊ, देहरादून या किसी अन्य शहर से बस में आसानी से आ सकते हैं। टनकपुर से पूर्णागिरी के लिए टैक्सी आसानी से उपलब्ध है। यदि निजी वाहन द्वार आ रहें तो आसानी से पूर्णागिरी पहुच सकते हैं।
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