Thursday, March 27, 2025
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युगशैल : उत्तराखंड में एक प्राचीन राज्य का इतिहास और विरासत

युगशैल ( Yugshail ) एक ऐसा नाम जो भारतीय इतिहास के पन्नों में गुमनामी के बीच छिपा हुआ है, आज भी अपनी ऐतिहासिक महत्ता के लिए जाना जाता है। यह प्राचीन राज्य, जो ईसा पूर्व पहली शताब्दी से लेकर पांचवीं शताब्दी तक फला-फूला, भारत के उत्तराखंड क्षेत्र में स्थित था। युगशैल का उल्लेख नृपति शीलवर्मन के प्राचीन जगतग्राम बाड़ेवाला (देहरादून) से प्राप्त अश्वमेध यज्ञ के इष्टिका लेख में मिलता है, जो इस राज्य के अस्तित्व का एकमात्र प्रमाण है। यह लेख, जो ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है, इस प्राचीन राज्य के इतिहास को समझने की कुंजी प्रदान करता है।

युगशैल की खोज: एक ऐतिहासिक खोज .

युगशैल का नाम सबसे पहले बाड़ेवाला, देहरादून में हुए उत्खनन के दौरान प्राप्त अश्वमेध यज्ञ के इष्टिका लेख से जुड़ा है। इस लेख में लिखा है – “युगेश्वरस्याश्वमेधे युगशैलमहीपते“, जिसका अर्थ है “युगशैल के महीपति (राजा) ने अश्वमेध यज्ञ किया।” यह लेख युगशैल राज्य का एकमात्र ज्ञात उल्लेख है, जो इसे ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।

वर्ष 1952 से 1954 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा किए गए उत्खनन में तीसरी शताब्दी ईस्वी की तीन यज्ञ वेदिकाएं प्राप्त हुईं। ये वेदिकाएं पक्की ईंटों से बनी थीं और धरातल से तीन-चार फीट नीचे दबी हुई थीं। इन वेदिकाओं को ASI ने दुर्लभतम की श्रेणी में रखा है। इन पर उत्कीर्ण ब्राह्मी लिपि के अभिलेखों से पता चलता है कि युगशैल राज्य का विस्तार वर्तमान हरिपुर, सरसावा, विकासनगर और संभवतः लाखामंडल तक था।

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युगशैल राज्य का विस्तार –

ऐतिहासिक साक्ष्यों और पुरातात्विक निष्कर्षों के आधार पर, युगशैल राज्य यमुना नदी के तट पर स्थित था और इसकी राजधानी हरिपुर थी। इस राज्य पर वृषगण गोत्र के वर्मन वंश का शासन था। तीसरी शताब्दी को युगशैल राज्य का स्वर्णकाल माना जाता है, जब राजा शीलवर्मन ने सत्ता संभाली। राजा शीलवर्मन एक पराक्रमी शासक थे, जिन्होंने अपने शासनकाल में चार अश्वमेध यज्ञ किए। इनमें से तीन यज्ञ वेदिकाएं बाड़ेवाला जगतग्राम में प्राप्त हुई हैं, जबकि चौथी वेदिका का पता अभी तक नहीं लगाया जा सका है।

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अश्वमेध यज्ञ, एक प्राचीन वैदिक अनुष्ठान, राजाओं द्वारा अपनी शक्ति और प्रभुत्व का प्रदर्शन करने के लिए किया जाता था। युगशैल में प्राप्त यज्ञ वेदिकाएं इस बात का प्रमाण हैं कि यह राज्य अपने समय में एक प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा होगा।

प्राचीन ग्रंथों में युगशैल –

युगशैल का नाम प्राचीन ग्रंथों में बहुत कम उल्लेखित है, लेकिन “युगन्धर” नाम महाभारत (वन पर्व 129:9), भीष्म पर्व (10:40) और पाणिनी की अष्टाध्यायी (4.2.130) में मिलता है। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. वासुदेवशरण अग्रवाल ने युगन्धर को युगशैल से जोड़ा है। उनके अनुसार, युगशैल और युगन्धर एक ही राज्य के दो नाम हो सकते हैं। यह संभव है कि युगशैल प्राचीन काल में एक प्रसिद्ध क्षेत्र रहा हो, भले ही इसका नाम समय के साथ विस्मृत हो गया हो।

युगशैल का पतन और उपेक्षा –

युगशैल राज्य का पतन पांचवीं शताब्दी के आसपास हुआ। इसके बाद, इस क्षेत्र पर जौनसार-बावर के राजाओं का शासन स्थापित हुआ। जयदास और उनके वंशजों ने 350-460 ईस्वी तक इस क्षेत्र पर शासन किया। इस दौरान युगशैल के राजाओं का प्रभाव भी बना रहा।

दुर्भाग्यवश, युगशैल का अश्वमेध यज्ञ स्थल, जो पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, आज उपेक्षित पड़ा हुआ है। यह स्थल ASI के अधीन होने के बावजूद पर्यटकों और शोधकर्ताओं की नजरों से दूर है। यहां पहुंचने के लिए एक पगडंडीनुमा मार्ग है, जो एक निजी आम के बाग से होकर गुजरता है। यज्ञ स्थल पर पेयजल और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, जिसके कारण पर्यटक यहां आने से कतराते हैं।

निष्कर्ष –

युगशैल ( yugshail ) राज्य भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो अपने समय में एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य रहा होगा। राजा शीलवर्मन के अश्वमेध यज्ञ और युगशैल की यज्ञ वेदिकाएं इस बात का प्रमाण हैं कि यह क्षेत्र प्राचीन काल में धार्मिक और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा होगा। हालांकि, आज यह स्थल उपेक्षा का शिकार है, लेकिन इसके ऐतिहासिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता। युगशैल की विरासत को संरक्षित करने और इसे दुनिया के सामने लाने की आवश्यकता है, ताकि हम अपने अतीत की इस महत्वपूर्ण कड़ी को समझ सकें।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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