भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखंड को देवभूमि ( Devbhoomi Uttarakhand ) के नाम से जाना जाता है। इसको देवभूमि कहने के कई तर्क और कारण हैं। यह राज्य हिमालय की गोद मे बसा एक दम स्वर्ग सा दिखता है। हिमाच्छादित ऊँची ऊँची पहाड़ियो से घिरा यह राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है।
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आखिर क्यों कहते हैं उत्तराखंड को देवभूमि –
भारत की लगभग सभी पवित्र नदियों का उद्गम हिमालय के इस पवित्र राज्य से है। उत्तराखंड को देवभूमि इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां अनेक देवी देवता निवास करते हैं। माना यह जाता है की यहाँ तैतीस करोड़ देवी देवता निवास करते है। मुख्य रूप से चार धाम श्री बद्रीनाथ जो कि भगवान विष्णु का मंदिर है, श्री केदारनाथ भगवान शिवजी ,श्री गंगोत्री गंगा जी का उद्गम स्थल और श्री यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थल यहां स्थित हैं। इसके साथ सिखों का पवित्र गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब भी स्थित है।
माँ भगवती के अनेक रूपों के दर्शन होते हैं यहाँ –
यहां अनेक शक्तिपीठ स्थित हैं जिनमें मुख्य रूप से मां धारी देवी, मां सुरकंडा देवी, मां कुंजापुरी ,मां पूर्णागिरि, मां विंध्येश्वरी देवी, मां नंदा देवी और मां चंद्रबदनी के भव्य मंदिर एवं सिद्ध पीठ शामिल हैं। यहां पांच प्रयाग – विष्णुप्रयाग, सोनप्रयाग, कर्णप्रयाग रुद्रप्रयाग, एवं देवप्रयाग स्थित है जहां दो नदियों का संगम होता है।
यहां ऋषिकेश के निकट मणिकूट पर्वत पर नीलकंठ महादेव का प्राचीन मंदिर है मान्यता है कि इसी जगह भगवान शिव ने सागर मंथन से निकले विष का पान किया था । यहां विशेषकर सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु जलार्पण करने के लिए आते हैं।
ऋषि मुनियों की तपोस्थली है उत्तराखंड –
पुरे भारत में जन्म पाए हुए देव पुरुष और ऋषि मुनी यहां तपस्या करने यही आते थे । कहते हैं ऋषि मुनियों ने सैकड़ों साल तपस्या करके इसे देवभूमि बनाया है, उसी तपोबल का प्रसाद पाने श्रद्धालु मीलों की यात्रा करके इस पावन भूमि में आते हैं।
भगवान् शिव का विशेष संबंध है –
भगवान शिव का घर हिमालय की सर्वोच्च छोटी कैलाश पर माना जाता है। लेकिन भगवान् शिव का प्रथम ससुराल हरिद्वार रहा है। माँ पारवती का मायका हिमावन राज्य का एक भाग उत्तराखंड भी है। इसके अलावा भगवान शिव से के कई यहाँ के कई स्थानों का विशेष सम्बन्ध रहा है। उत्तरांखड को देवभूमि कहने का एक कारण यह भी है कि इस भूमि भगवान् शिव से विशेष संबंध रहा है।
पांडवों को स्वर्ग का मार्ग यहीं मिला था –
द्वापर युग में पांडवों और कौरवो से इस भूमि का विशेष जुड़ाव रहा है। उत्तराखंड का लाखामंडल ,पांडवों के बनाये हुए मंदिर ,पांडवों के अज्ञातवास और वनवास के स्थल इस बात की गवाही देते हैं। इसके अलावा कहते हैं उत्तराखंड में आज भी पांडव यहाँ लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। आज भी वे यहाँ अवतरण लेकर लोगो की समस्याओं का समाधान करते हैं। सबसे बड़ी बात पांडवों की स्वर्गारोहण की यात्रा उत्तराखंड से ही शुरू हुई थी।
निष्कर्ष –
उत्तराखंड को देवभूमि कहने का सबसे बड़ा कारण यह है कि यह स्थान देवो और दैवीय शक्तियों तथा ऋषि मुनियों का सबसे प्रिय स्थान रहा है। पौराणिक इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि प्राचीनकाल यह स्थान दैवीय गतिविधियों का गढ़ रहा है। वर्तमान में उसी समृद्ध दैवीय इतिहास और दैवीय शक्तियों के तपोबल को महसूस करने ,दूर -दूर से श्रद्धालु आते हैं। यहाँ आकर अभूतपूर्व शांति और सुकून का प्रसाद और दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद लेकर जाते हैं।
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