गोलू देवता मंदिर -उत्तराखंड की धरती देवभूमि कहलाती है, जहाँ हर गाँव, हर घाटी में किसी न किसी लोकदेवता की अनूठी आस्था जुड़ी हुई है। इन्हीं लोकदेवताओं में से एक हैं गोलू देवता जिन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। कुमाऊँ क्षेत्र में गोलू देवता की पूजा विशेष श्रद्धा और विश्वास के साथ की जाती है। भक्त अपनी मनोकामनाएँ यहाँ लिखित अर्जी के रूप में प्रस्तुत करते हैं और जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो वे घंटियाँ, नारियल या अन्य भेंट चढ़ाते हैं।
आइए जानते हैं उत्तराखंड के पाँच प्रमुख गोलू देवता मंदिरों के बारे में, जहाँ रोज़ हजारों श्रद्धालु न्याय और आशीर्वाद की याचना के लिए आते हैं।
Table of Contents
1. चितई गोलू देवता मंदिर – अल्मोड़ा :
चितई गोलू देवता मंदिर अल्मोड़ा नगर से लगभग 6 किमी पैदल मार्ग और 12 किमी मोटरमार्ग की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर गोलू देवता के न्याय दरबार के लिए विश्वविख्यात है। यहाँ पर भक्त अपनी मनोकामनाएँ लिखकर टांगते हैं, जिनकी संख्या लाखों में है।
माना जाता है कि जब किसी को प्रशासनिक या न्यायालय से न्याय नहीं मिलता तो वह अपनी अर्जी गोलू देवता को भेजता है। न्याय मिलने के बाद भक्त बलि, प्रसाद और घंटियाँ चढ़ाते हैं। मंदिर प्रांगण में हजारों घंटियों की गूंज श्रद्धालुओं की आस्था का अद्भुत प्रमाण है। यहाँ सबसे बड़ी घंटी 110 किलो की है, जो एक श्रद्धालु ने पुत्र प्राप्ति की खुशी में चढ़ाई थी।
मंदिर छोटा होते हुए भी अत्यंत भव्य और आस्था से परिपूर्ण है। गर्भगृह में श्वेत अश्व पर आरूढ़ धनुषधारी गोलू देवता की प्रतिमा है। उनकी माता कालिका और अन्य सेवकों की मूर्तियाँ भी यहाँ स्थापित हैं।
2. घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर – नैनीताल :
नैनीताल जिले के भवाली के पास घोड़ाखाल गाँव में यह मंदिर स्थित है। इसे “उत्तराखंड का घंटियों वाला मंदिर” भी कहा जाता है। यहाँ भी चितई की तरह भक्त अपनी अर्जी लिखकर टांगते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर घंटियाँ चढ़ाते हैं।
लोककथाओं के अनुसार, गोलू देवता ने अपनी बहन भाना को न्याय दिलाने के लिए भीमताल के महरा गाँव में युद्ध किया और अन्यायियों को दंडित किया। इसके बाद उनकी बहन ने महरा गाँव की ऊँची चोटी पर इस मंदिर की स्थापना की।
यहाँ सावन के महीने में विशेष पूजा और दुग्धाभिषेक किया जाता है। इस दौरान खीर बनाई जाती है और भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है। नवविवाहित जोड़े इस मंदिर में दर्शन कर अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
3. चमड़खान गोलू देवता मंदिर – अल्मोड़ा
चंपावत से भ्रमण करते हुए गोलू देवता ने चितई, ताड़ीखेत और चमड़खान में भी न्याय दरबार लगाया। यहाँ उन्होंने अपनी चरण पादुकाएँ छोड़ दीं और कहा कि भक्त जब भी उन्हें पुकारेंगे, वे न्याय देने अवश्य आएंगे।
चमड़खान मंदिर का एक अनूठा रहस्य यह है कि मंदिर परिसर से 500 मीटर की दूरी तक एक भी नया चीड़ का पेड़ नहीं पनपा है। स्थानीय मान्यता है कि यह गोलू देवता की अद्भुत शक्ति का प्रतीक है।
मंदिर में कलुवा देव, नरसिंह देवता, दुर्गा माता और बजरंगबली के मंदिर भी हैं। चैत्र और आश्विन नवरात्रि में यहाँ भव्य मेला लगता है और दूर-दराज़ से श्रद्धालु न्याय और आशीर्वाद की प्रार्थना करने आते हैं।
4. उदयपुर गोलू देवता मंदिर – द्वाराहाट (अल्मोड़ा) :
कैड़ारो घाटी की ऊँचाई पर स्थित उदयपुर गोलू देवता मंदिर को चमत्कारी मंदिर कहा जाता है। यहाँ निःसंतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होने की विशेष मान्यता है।
मान्यता है कि चंद राजाओं के सेनापति हरसिंह कैड़ा, गोलू देवता को चम्पावत से अपने साथ कैड़ा गढ़ लेकर आए थे। यात्रा के दौरान गोलू देवता की मूर्ति पगड़ी सहित जमीन में धंस गई और तब देवता ने आदेश दिया कि आठ भाइयों के कंधों पर उन्हें कैड़ा गढ़ ले जाया जाए। तभी से यह मंदिर भक्तों के बीच चमत्कारी माना जाता है।
यहाँ शीतकालीन नवरात्रि में विशाल मेला लगता है। पहले यहाँ बलि प्रथा प्रचलित थी लेकिन 2006–07 में हाईकोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के बाद अब भक्त केवल फूल, नारियल और मिठाई चढ़ाते हैं। गोलू देवता ने स्वयं कहा था – “मैं सच्चे मन से चढ़ाए गए एक फूल से प्रसन्न हूँ।”
5. गागरीगोल गोलू देवता मंदिर – बागेश्वर :
बागेश्वर जिले के गरुड़ क्षेत्र में स्थित गागरीगोल मंदिर गोलू देवता का पावन धाम है। कहते हैं कि गोल्ज्यू यहाँ गागर (तांबे के बर्तन) में आकर स्थापित हुए थे।
कई लोककथाओं के अनुसार, चंद राजाओं के समय गोलू देवता की मूर्ति यहाँ गागर में रखकर लाई गई थी। जब गागर हिली नहीं तो इसी स्थान पर उनकी स्थापना कर दी गई।
एक अन्य कथा के अनुसार, मटेना गाँव के जोशी की गाय प्रतिदिन यहाँ झाड़ियों में दुग्धदान करती थी। जब मालिक ने देखा तो पाया कि वह दूध सीधे गागर में रखी गोलू देवता की मूर्ति पर गिर रहा था। इसके बाद यहाँ मंदिर की स्थापना हुई।
गागरीगोल मंदिर में विषुवत संक्रांति और महाशिवरात्रि पर विशेष मेले का आयोजन होता है। श्रद्धालु यहाँ नए अनाज की नवाई चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। यहाँ गोलू देवता को “तात्कालिक पर्चा देने वाला देवता” कहा जाता है।
निष्कर्ष :
उत्तराखंड में गोलू देवता के मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि न्याय और आस्था के प्रतीक हैं। चितई, घोड़ाखाल, चमड़खान, उदयपुर और गागरीगोल – ये पाँचों मंदिर श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का जीवंत उदाहरण हैं। यहाँ आकर लोग विश्वास करते हैं कि चाहे दुनिया का कोई भी दरबार उन्हें न्याय न दे, पर गोलू देवता अवश्य न्याय करेंगे।
गोलू देवता के विभिन्न नाम और उनसे जुड़ी कहानियां।
