Friday, November 22, 2024
Homeसंस्कृतितिले धारू बोला का मतलब और तिले धारू बोला से जुड़ी कहानी

तिले धारू बोला का मतलब और तिले धारू बोला से जुड़ी कहानी

मित्रों अक्सर हम अपने पहाड़ी गीतों में, गढ़वाली और कुमाउनी गीतों में एक प्राचीन और प्रचलित तुकबंदी सुनते हैं ,”तिले धारू बोला” और हमारे दिमाग मे अकसर यह चलता रहता है कि तिले धारू बोला का मतलब क्या होता होगा?

उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने इसका अर्थ कुछ इस प्रकार बताया, “तिले धारू शब्द हमारे वीर भड़ो के लिए इस्तेमाल होता था। इसका शाब्दिक अर्थ है, तिल धारी बोल, जो गाते गाते तिले धारू बोला हो गया।

इसका मतलब तूने एक बोल रख दिया, तूने एक मिसाल कायम कर दी। तिल धारी बोल.. तिल धारी बोल.. गाते गाते बाद में तिले धारू बोला बन गया। असल मे यह लाइन उसके लिए गाई जाती थी, जो वीरता के काम करता था या शाबाशी के काम करता था।लेकिन आजकल हर चीज में तिले धारू बोला जोड़ दिया जाता है।

इसे भी पढ़े :- रानीखेत उत्तराखंड का एक रमणीय हिल स्टेशन 

Best Taxi Services in haldwani

तिले धारू बोला

तिले धारू बोला पर आधारित लोक कथा

तिले धारू बोला तुकबंदी के जन्म पर एक पुरानी ऐतिहासिक कहानी जुड़ीं हुई है। यह कहानी है ,कुमाऊं मंडल के कत्यूरी राजाओं के विनाश या कत्यूरी वंश के समापन से जुड़ी है। जिसका विवरण उत्तराखंड के प्रमुख इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडेय जी ने कुछ इस प्रकार किया है

राजा धामदेव और वीर देव से कत्यूरी वंश का नाश होना शुरू हुवा था। कहाँ जाता है,कि जब ये अंतिम राजा अपने भंडार से गेहूं पीसने के लिए उल्टी नाली से भरकर देते थे ।औऱ आटा सुलटी (सीधी) नाली से भरकर लेते थे। हर गावँ को बेगार देनी पड़ती थी।कर का कोई नियम नही था, जैसे चाहे वैसे ले लिया । जिसके घर से चाहे उसके घर से ले लिया। घर मे जो सुंदर लड़के और लड़कियां होती थी, उन्हें नौकर बनाने के लिए जबरदस्ती उठा लेते थे।

उनके राजमहल से लगभग 6 मील दूर हथछिना नौला ( कौसानी ) का पानी स्वास्थ्य वर्धक माना जाता था। दोनो राजाओं के लिए ताज़ा पानी वहीं से मंगाया जाता था। इस पानी को मंगाने के लिए , नौले से राजमहल तक सेवको को लाइन से खड़ा करके हाथों हाथ पानी मंगाया जाता था। कुल मिलाकर कत्यूरी वंश के अंतिम राजा अत्यंत अत्याचारी हो गए थे ,जिस कारण उनका पतन निश्चित हुवा।

कत्यूरी राजा अत्याचार करने का सिलसिला यही नही रुका, हद तो तब हुई जब राजा वीरदेव का दिल अपनी मामी  तिलोत्तमा देवी पर आ गया और उसने तिलोत्तमा देवी से बलपूर्वक विवाह रचा लिया। इस घटना को उत्तराखंड के इतिहास में कलंक कहा जाता है।

कहा जाता है,कि इसी घटना से तिले धारू बोला उत्तराखंड की प्रचलित तुकबंदी का जन्म हुआ। कहते हैं कि उस समय के लोगों ने तिलोत्तमा देवी के बलिदान और साहस को सराहने के लिए या तिलोत्तमा देवी पर तरस के भाव से यह लाइन ,तिले धारू बोला बोली गई।जो कालांतर लगभग सभी लोक गीतों में तुकबन्दी के रूप में लगने लगी।

कत्यूरी वंश के अंतिम शाशको के अत्याचार इतना बढ़ गया ,था कि खुद उनका जनता से भरोसा उठ गया था। वे राजा जब कहीं जाते थे तो ,डोली (पालकी ) को डोली ले जाने वालों के कंधों पर बांध देते थे। ताकि स्वयं गिरने के डर से ,डोली ले जाने वाले राजा को पहाड़ से गिराने की साजिश ना करें।

कहते हैं तिलोत्तमा देवी और जनता ने मिल कर प्लान बनाया या कुछ कहते हैं कि तिलोत्तमा शर्म के मारे पहले आत्महत्या कर चुकी थी। तब लोगो ने राजा को मारने का प्लान बनाया और इस योजना में जनता का साथ दिया ,राजा की डोली ले जाने वाले दो नौजवानों ने।

एक दिन जब राजा की डोली उन दो नौजवानों को ले जाने का मौका मिला ,तो पूर्व योजना  के अनुसार दोनो नौजवान राजा को साथ लेकर गहरी खाई में कूद गए और दो नौजवानों की शहादद के कारण अत्याचारी राजा का नाश हुवा। डोली कंधे से बंधी रहती थी,इसलिए दोनो का शाहिद होना जरूरी हो गया था।

इसे पढे :- कुमाऊं के लोक देवता हरज्यूँ की जन्मकथा

संदर्भ उपरोक्त लेख का संदर्भ उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी के साक्षात्कार का अंश व उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडेय जी की पुस्तक कुमाऊं का इतिहास से लिया गया है।

“जैसा कि श्री नरेन्द्र नेगी जी ने बताया कि तिले धारू बोला का प्रयोग प्राचीन काल मे वीर भड़ो के लिए या जो अच्छा कार्य करते थे उनके लिए होता था। और कुमाऊं के इतिहास का रानी तिलोत्तमा का प्रसंग नेगी जी बात को यथार्थ करता है। किंतु आजकल बिना इस तुकबंदी का अर्थ जाने इसे हर गीत में प्रयोग किया जाता है।

हमारे व्हाट्स ग्रुप से जुडने के लिए यहां क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments