Wednesday, April 16, 2025
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Radha Bahin Bhatt Biography : वर्ष 2025 में पद्मश्री से सम्मानित राधा बहिन भट्ट का जीवन परिचय

राधा बहिन भट्ट : समस्त उत्तराखंड के लिए गर्व की बात है कि ” पहाड़ की गांधी ” या पहाड़ की महिला गांधी के नाम से प्रसिद्ध 91 वर्षीय राधा बहिन भट्ट को देश के सम्मानित पुरस्कारों में से एक पद्मश्री पुरस्कार मिलने जा रहा है। पहाड़ों में 25 बाल मंदिरों के द्वारा लगभग 15000 बच्चों को शिक्षा का लाभ दिला चुकी हैं राधा बहिन भट्ट। इसके अतिरिक्त 1 लाख 60 हजार पेड़ लगाकर पर्यावरण संरक्षण की मसाल जला चुकी हैं राधा भट्ट। आइये एक संक्षिप्त लेख के माध्यम से जानते हैं राधा बहिन भट्ट का जीवन परिचय ( Biography of Radha Bahin Bhatt )

जन्म और प्रारंभिक जीवन –

राधा भट्ट का जन्म 16 अक्टूबर 1933 को उत्तराखंड के अलमोड़ा जिले के धुरका गाँव में हुआ। उनका बचपन से ही शिक्षा के प्रति गहरा लगाव था। इसी प्रेरणा ने उन्हें 1951 में सरला बहन द्वारा कौसानी में स्थापित लक्ष्मी आश्रम में शिक्षिका बनने के लिए प्रेरित किया। यह आश्रम महात्मा गांधी के आदर्शों पर आधारित था और महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित था।

सामाजिक आंदोलन और सर्वोदय कार्य –

1957 से 1961 के बीच राधा भट्ट ने सर्वोदय और भूदान आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने बौगाड़ क्षेत्र में 1961 से 1965 के बीच ग्रामीण पुनर्निर्माण का कार्य किया। इसके बाद, उन्होंने नशाबंदी, वन संरक्षण, टिहरी बाँध, खनन विरोधी आंदोलनों और नदी बचाओ आंदोलन जैसे कई जनांदोलनों में हिस्सा लिया।

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अंतर्राष्ट्रीय योगदान और अध्ययन –

राधा भट्ट ने भारत के बाहर भी गांधीवादी विचारों और सामाजिक विकास के क्षेत्र में काम किया। डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, कनाडा, मैक्सिको, और अमेरिका जैसे देशों में उन्होंने कभी शिक्षिका तो कभी विद्यार्थी के रूप में योगदान दिया। उन्होंने डेनमार्क में वयस्क शिक्षा और लोक हाई स्कूल प्रणाली में डिप्लोमा किया।

महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण –

1966 से 1989 तक राधा भट्ट ने लक्ष्मी आश्रम की सचिव के रूप में काम किया। उन्होंने बालिका शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, ग्राम स्वराज, शराब विरोधी आंदोलन और वन संरक्षण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए।

1975 में सरला बहन के 75वें जन्मदिन पर उन्होंने 75 दिनों की पदयात्रा की, जिसमें चिपको आंदोलन और ग्राम स्वराज के संदेश को जन-जन तक पहुँचाया। राधा बहिन भट्ट ने पहाड़ों में 25 बाल मंदिरों के द्वारा लगभग 15000 बच्चों को शिक्षा का लाभ दिला चुकी हैं। राधा बहिन अपने जीवन में लगभग डेढ़ लाख पेड़ लगाकर पर्यावरण संरक्षण की अलख जला चुकी है।

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सम्मान और पुरस्कार-

राधा भट्ट को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनमें जमनालाल पुरस्कार, बाल सम्मान, इंदिरा प्रियदर्शनी पर्यावरण पुरस्कार, और गौदावरी गौरव पुरस्कार प्रमुख हैं। और अब उन्हें देश के सर्श्रेष्ठ सम्मानों में से एक पद्मश्री सम्मान के लिए चयनित किया गया है।

विशेष उपलब्धियां और योगदान –

1980 में उन्होंने खनन के खिलाफ मोर्चा खोला और 2006 से 2010 तक उत्तराखंड के हिमालय और नदियों का सर्वेक्षण किया। उन्होंने हाइड्रो पावर परियोजनाओं और सुरंगों में नदियों को डालने के विरोध में जनजागरूकता फैलाने का कार्य किया।

वर्तमान प्रेरणा –

आज, 90 वर्षीय राधा भट्ट महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण, और ग्राम स्वराज के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं। लक्ष्मी आश्रम कौसानी की अध्यक्ष के रूप में वे उत्तराखंड के पहाड़ों और ग्रामीण समुदायों के लिए निरंतर काम कर रही हैं। उनका जीवन गांधीवादी मूल्यों और हिमालय के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है।

राधा बहिन भट्ट का जीवन संघर्ष, समर्पण और सेवा की मिसाल है, जो न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणादायक है। उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ सम्मानों में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है ,यह प्रत्येक उत्तराखंडी के लिए सम्मान का विषय है।

राधा बहिन भट्ट के बारे में विस्तार से जानने हेतु दूरदर्शन को दिया उनका ये साक्षात्कार वीडियो देखें :

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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