पहाड़ों में कई ऐसे गांव ,कसबे नगर है जो ऐतिहासिक महत्व से संपन्न हैं। इन्ही ऐतिहासिक संपन्न गावों या क्षेत्रों में से एक क्षेत्र है दौलाघट क्षेत्र। मल्ला तिखून पट्टी में पहाड़ के मुख्य अनाज मोटे अनाज की पैदावार के लिए प्रसिद्ध यह क्षेत्र अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ कुमाऊं के दोनों प्रमुख राजवंश कत्यूरों और चंदो की ऐतिहासिक निशानियाँ इस क्षेत्र को खास बना देती है।
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दौलत सिंह के घटों के नाम पर पड़ा दौलाघट का नाम –
दौलाघट के आस पास प्राचीन पनचक्कियों की बहुताय है। जिन्हे स्थानीय भाषा में घट कहते हैं। कहा जाता हैं नान कोसी नदी में पानी की प्रचुर मात्रा और मिट्टी की उर्वरा शक्ति को देख दौलत सिंह बोरा नामक व्यक्ति ने यहाँ कई पांचक्कियां या घराट लगाए। धीरे -धीरे यहाँ लोग बसने लगे और इस क्षेत्र को दौलत सिंह के घटों का क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। जो कालांतर में दौलाघट बन गया।
कत्यूर राजवंश की अमर निशानी है दौलाघट का तीन देबाव मंदिर समूह –
दौलाघट चौना क्षेत्र के ग्योपानी में कोसी की सहायक नदी नान कोसी और ग्यो नदी के संगम पर कत्यूर शैली में बना है तीन देबाव मंदिर समूह। इस मंदिर समूह को कत्यूरी राजाओं ने लगभग 12 शताब्दी में बनाया था। नागर शैली में बना यह मंदिर समूह कत्यूर राजवंश की समृद्ध स्थापत्य कला का प्रतीक है। चौना क्षेत्र में संगम पर बसा इस मंदिर समूह में तीन मंदिर तीन दिशाओं में स्थापित हैं। ऐतिहासिक जानकारों के अनुसार प्राचीन काल में यह स्थान तंत्र साधना के लिए प्रयुक्त होता था। इसके कुछ दुरी पर पर एक कुंड ,पोखर भी है। इस मंदिर समूह को पुरातत्व विभाग ने मृत धर्मस्थलों की सूची में रखा है।
तीन देबाव का अर्थ है तीन देवालय। भाषा जानकारों के अनुसार देबाव शब्द का प्रयोग देवस्थल या मंदिर या देवो का तालाब के लिए किया जाता था।
पथरकोट के ऐतहासिक शैल चित्रों की अद्भुत श्रंखला –
अभी कुछ समय पहले दौलाघट के नजदीक के गांव पथरकोट में ऐतिहासिक शैल चित्र मिले थे। पथरकोट की भीमकाय चट्टानों पर बने ये शैल चित्र प्रागैतिहासिक हैं। शैल चित्रों की अद्भुत शृंखला उस समय मानव के विकास की कहानियां बताती हैं। शैल चित्रों में मानवो की संख्या और उस समय स्वस्तिक और ऐपण जैसे चित्र मिले हैं। पथरकोट में भरी भरकम शिलाओं की अधिकता है। अब पुरातत्व विभाग को यहाँ की सभी शिलाओं पर अध्ययन का मार्ग प्रसस्त हुवा है। पत्थर कोट का अर्थ होता है पत्थरों का किला।
चंद राजाओं की पहचान है बस्यूरा में बसा नारसिंही देवी मंदिर –
दौलाघट कुछ दुरी पर गोविंदपुर कसबे के पास बस्यूरा गांव में बसा है ऐतिहासिक मंदिर नारसिंही देवी मंदिर। यह मंदिर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है। कुमाऊं का इतिहास के अनुसार इस मंदिर को चंद वंश के राजा देवीचंद ने बनाया था। उसके कुछ दुरी पर स्थित है भगवान् शिव का प्राचीन मंदिर सिद्धेश्वर महादेव मंदिर। जो अपनी धार्मिक महत्ता के लिए पुरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
कभी भवन निर्माण के लिए विशेष पत्थरों के लिए प्रसिद्ध था दौलाघट क्षेत्र –
आजकल पहाड़ो में भी देसी तर्ज पर मकान बनने लगे हैं , जिनमे सीमेंट ,सरिया बजरी आदि का प्रयोग होता है। या फिर कई लोग टीन का प्रयोग करते हैं। पहले पहाड़ों में पारम्परिक पहाड़ी शैली के मकान बनाये जाते थे। और उनकी छतो में विशेष लम्बे टायलनुमा पत्थरों का प्रयोग होता था जिन्हे पटाल कहते थे। इन्ही पटालों का प्रमुख उत्पादक था दौलाघट। यहाँ चौना गांव के पटाल क्षेत्र में प्रसिद्ध थे। कुमाऊं के कई हिस्सों से यहाँ पटालों की डिमांड आती थी। लेकिन बदलते ज़माने के साथ लोगो की जीवनशैली भी बदल गई। अब ये पटाल वाले घरों का चलन बंद हो गया तो ,पटाल का काम भी बंद हो गया।
इसके अलावा चंद राजाओ के सहायक बने थोकदारों का गांव पणकोट का अपना अलग इतिहास है। और अभी कुछ साल पहले खबर मिली थी कि दौलाघट के छाना गांव में चंद राजा रुद्रचंद के समय के ताम्रपत्र मिले हैं। जिन्हे पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन रखा है। इसके अलावा इस क्षेत्र में और कई निशानियाँ है जो इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि यह क्षेत्र एक समृद्ध ऐतिहासिक क्षेत्र है।
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