Sunday, November 10, 2024
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नीम करोली बाबा और उनकी चमत्कारी कहानी “बुलेटप्रूफ कंबल “

हम आपको प्रस्तुत लेख में बाबा नीम करोली जी का जीवन परिचय एवं उनके जीवन से जुड़ी प्रसिद्ध किताब मिरिकल ऑफ लव में वर्णित कुछ चमत्कारी किस्सों का वर्णन कर रहें है। अगर इस लेख में कुछ त्रुटि हो या, अच्छा लगे तो हमारे फेसबुक पेज देवभूमि दर्शन पर हमें मैसज करके बता सकते हैं। अगर अच्छी लगे तो बाबा की कहानी को शेयर जरूर करें।

नीम करोली बाबा 

प्रारंभिक जीवन :-

नीम करोरी बाबा या नीम करोली बाबा वर्तमान के सबसे महान संतो में गिना जाता है। बाबा नीम करौरी का जन्म 1900 ई के आस पास , ग्राम अकबरपुर जिला फिरोजाबाद ,उत्तर प्रदेश में माना जाता है। नीम करौरी बाबा का मूल नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। इनके पिता जी का नाम श्री दुर्गा प्रसाद शर्मा था। अकबरपुर में ही इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई। मात्र 11 वर्ष की बाल्यवस्था में इनकी शादी हो गई थी।

लेकिन बाबा जी ने शादी के बाद ही घर छोड़ दिया था। बाबा घर छोड़ कर गुजरात चले गए। 10 वर्ष गुजरात रहने के बाद, बाबा पिता जी के कहने पर वापस घर आये अपनी गृहस्थी सम्हाली, और उनके दो बेटे और एक बेटी भी थी।

लेकिन नीम करोरी बाबा का मन गृहस्थी में नही लगा, वो  फिर से घर गृहस्थी त्याग कर फिर बाबा बन कर भटकने लगे, इसी दौरान ,वो लक्ष्मण दास, हाड़ी वाला बाबा, तिकोनिया वाला बाबा आदि नामों से पहचाने लगे। कहा जाता है, कि मात्र 17 वर्ष की आयु में बाबा को ज्ञान प्राप्त हो गया था।

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नीम करोली बाबा और उनकी चमत्कारी कहानी "बुलेटप्रूफ कंबल "

नीम करौली बाबा बनने की कहानी –

हम सभी को पता है, कि बाबा का मूल नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। और बाबा को अनेक नामो से जाना गया। अब के मन मे यही सवाल रहेगा कि बाबा का नाम नीम करोली कैसे पड़ा ?

बाबा नीम करोली नामकरण की एक रोचक घटना है, एक बार बाबा ट्रेन के प्रथम श्रेणी बोगी में यात्रा कर रहे थे। जब टिकट निरीक्षक आया तो बाबा के पास ट्रेन का टिकट नही था । टिकट निरीक्षक ने बाबा को एक छोटे से गांव नीम करोरी के पास ट्रेन से बाहर उतार दिया। बाबा ने कुछ नही कहा, बस ट्रेंन के  कुछ दूरी पर चिमटा गाड़ के शांत चित्त बैठ गए। अब जब ट्रेन को दुबारा चलाने की कोशिश की तो, ट्रेन अपनी जगह से एक इंच भी आगे नही बड़ी।

ट्रेन का चालन और परिचालन करने वाले कर्मचारी हैरान हो गए। तब यात्रियों में से एक मजिस्ट्रेट था,जो बाबा को जनता था, उसने ट्रेन के कर्मचारियों से बाबा से माफी मांगने और ससम्मान वापस ट्रेन में बिठाने को कहा। तब टिकट निरीक्षक ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें दुबारा ट्रेन में बैठने को कहा, बाबा बोले ,यदि आप बोलते हैं, तो आ जाता हूँ। बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ीं। इस घटना के बाद यह साधारण गाव सारे देश विदेश में प्रसिद्ध हो गया । और बाबा नीम करोरी के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

 मिरिकल ऑफ लव ( The miracle of love ) से  बाबा नीम करोली को अंतर्राष्ट्रीय पहचान

नीम करोरी की घटना के बाद बाबा विख्यात हो गए, और वो अपने सबसे प्रसिद्ध धाम कैंची धाम आश्रम में  रहने लगे ।1967 में वहा उनसे प्रभावित होकर उनके प्रसिद्ध शिष्य रामदास मिले। रामदास एक अमेरिकी थे। उनका मूल नाम रिचर्ड अल्पर्ट था। रिचर्ड अल्पर्ट बाबा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा से दीक्षा लेकर, उनके शिष्य बन गए, और अपना नाम अल्पर्ट रामदास रख लिया।

अल्पर्ट रामदास ने 15 पुस्तकें लिखी , इनमे से बाबा नीम करोरी जी पर आधारित मिरिकल ऑफ लव ( The miracle of love )  काफी प्रसिद्ध रही । इस प्रसिद्ध किताब से बाबा नीम करोली को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली।

मिरिकल ऑफ लव में बाबा जी के बारे में कई सच्चे किस्सों  और कहानियों में बताया गया है। इस पुस्तक का एक प्रसिद्ध किस्सा “बुलेटप्रूफ कंबल” जिसने बाबा नीम करोरी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। यह किस्सा इस प्रकार है –

कहानी बुलेटप्रूफ कम्बल की

बाबा के अनेको भक्तों में से एक बुजुर्ग दंपत्ति भी थे। जो फतेहगढ़ नामक स्थान पर रहते थे। अचानक एक रात को बाबा उनके घर आ गए, रात रहने के लिए। और उनका एक कंबल लपेट कर सो गए। बाबा ने खाना भी नही खाया। जब बाबा रात को कम्बल में सोए थे, तो वो कम्बल के अंदर बहुत कराह रहे थे। जैसे बाबा को बहुत मार पड़ रही होगी। बुजुर्ग दंपति भी रात भर परेशान थे, बाबा ने खाना भी नही खाया और कराह भी रहे हैं, पता नही बाबा को क्या कष्ट हो रहा है।

सुबह बाबा उठे, और उन्होंने रात भर ओढ़ा हुवा कम्बल तह बना कर दंपति को दिया, और कहा इसे गंगा जी मे प्रवाहित कर दीजिए, और ध्यान रहे इसे खोल कर मत देखना। दंपति ने बाबा जी की आज्ञा का पालन करते हुए कंबल को ले लिया, कम्बल बहुत भारी लग रहा था। ऐसा लग रहा था, जैसे कि उसमे बहुत सारा लोहा रखा होगा, और लोहा आपस मे बज भी रहा था।मगर जब बाबा ने कहा तो उन्होंने, बाबा की आज्ञा शिरोधार्य करके उस भारी कम्बल को गंगा जी मे प्रवाहित कर दिया।

नीम करोली बाबा और उनकी चमत्कारी कहानी "बुलेटप्रूफ कंबल "

मिरिकल ऑफ लव में यह घटना 1943 की बताई गई है, उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। ब्रिटिश सेना की तरफ से कई भारतीयों ने भी युद्ध मे भाग लिया था। औऱ इसी युद्ध मे वर्मा फ्रंट में इस बुजुर्ग दंपति का इकलौता बेटा भी था। बुजुर्ग दंपति ने अपना दुख बाबा को बताया तो, बाबा बोले चिंता मत करो, तुम्हारा बेटा एक माह में वापस आ जायेगा।

वास्तव में उनका बेटा एक माह बाद द्वितीय विश्व युद्ध से सकुशल वापस आ गया। और उसने अपने माता पिता को बताया कि , युद्ध की एक रात उसके साथ एक चमत्कार हुवा। एक रात वह जापानी सैनिको के बीच मे अकेला फस गया था, जापानी सैनिक रात भर गोलियां बरसाते रहे ,लेकिन उसे एक भी गोली छू तक नही पाई, और दूसरे दिन सुबह ,ब्रिटिश फौज उसकी सहायता के लिए आ गई।

और वह सकुशल वापस आ गया। इतना सुनते ही बूढ़े दंपत्ति की आंखे भर गई, क्योंकि जिस रात का जिक्र उनका बेटा कर रहा था, उस रात बाबा नीम करोली उनके घर आये थे, और उनको बाबा के कराहने,और भारी कम्बल का राज समझने में देर ना लगी।

जब बाबा के इसी प्रकार की चमत्कारी घटनाओं का वर्णन उनके शिष्य रामदास ने अपनी पुस्तकों में किया , तो बाबा की कीर्ति विश्व मे फैलती गई। नीम करोरी बाबा को उनके भक्त हनुमान जी के अवतार मानते हैं। बाबा हनुमान जी के परम भक्त थे । बाबा नीम करोली बाबा ने दुनिया भर में हनुमान जी के 108 मंदिर बनाये।

दुनिया की बड़ी हस्तियां हैं बाबा के भक्त-

बाबा नीम करोली के अंसख्य भक्त हैं। और हो भी क्यों नाऐसेसिद्ध दिव्यात्मा के चरणों मे हर कोई रहना चाहता है। बाबा के भक्तों में एक आम आदमी से लेकर भारत के बड़े बड़े उद्योगपति टाटा बिड़ला, और फेसबुक कंपनी के मालिक मार्क जुकरबर्ग, I phone के सीईओ स्टीव जॉब्स, जूलिया राबट्स आदि हैं।

इनमे सबसे अच्छी बात यह है, की ये लोग तब बाबा के भक्त बने जब ये कुछ नही थे। और बाबा की कृपा से ये दुनिया के उच्च शिखर पर पहुँचे।

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बाबा नीम करौली की मृत्यु –

बाबा नीम करोली एक सिद्ध आत्मा थे, बाबा कई प्रकार की सिद्धियों के स्वामी थे। बाबा भक्तों के कहने से पूर्व उनकी समस्याओं का निदान कर देते थे।

जब बाबा को लगा कि उन्हें अब शरीर त्याग देना चाहिए।तो उन्होंने अपने भक्तों और शिष्यों को इसका संकेत दे दिया, और अपने समाधि स्थल का चुनाव भी कर लिया।

09 सितम्बर 1973 को वो आगरा के लिए चले थे।आगरा से बाबा मथुरा की गाड़ी में बैठे, और मथुरा स्टेशन पर उतरते ही बाबा अचेत हो गए। बाबा को जल्दी जल्दी रामकृष्ण मिशन अस्पताल लाया गया। वहाँ बाबा नीम करोली जी की 10 सिंतबर 1973 को मृत्यु हो गई। इस दिव्यात्मा ने इस नश्वर शरीर को त्याग दिया।

नीम करोली बाबा

बाबा का कैंची धाम –

उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल नैनीताल जिले में स्थित है, परम पूज्य बाबा नीम किरोली बाबा का आश्रम कैंची धाम मंदिर । हल्द्वानी -अल्मोड़ा हाइवे पर भवाली से 9 किलोमीटर आगे तथा नैनिताल से 17 किलोमीटर आगे स्थित है नीम करोली बाबा का आश्रम। इस स्थान पर दो कैची के तरह के तीव्र मोड़ होने के कारण यहाँ का नाम कैंची रखा है। और यहाँ बाबा नीम करोली का धाम या मंदिर होने के कारण इसे कैंची धाम या कैंची मंदिर कहते हैं।

कैंची धाम में हनुमान जी का मंदिर है, और साथ मे बाबा नीम करोली जी का आश्रम है। यह मंदिर शिप्रा नदी के किनारे , भवाली की पहाड़ियों के बीच बसा है। कैची धाम की स्थापना 15 जून 1960 को बाबा नीम करोली जी ने की थी। प्रत्येक वर्ष 15 जून को कैंची धाम में स्थापना दिवस के अवसर पर ,विशाल मेले का आयोजन होता है।

15 जून को विशाल मेले में भाग लेने के लिए , कैंची धाम में देश विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं। प्रत्येक दिन भी यहां हजारों श्रद्धालु आते हैं। नीम करोली  बाबा पर लोगो की अटूट श्रद्धा है।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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