Friday, April 18, 2025
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लोक संस्कृति दिवस 2024 | निबंध | भाषण

लोक संस्कृति दिवस – संस्कृति का अर्थ है सम्यक रूप से किया जाने वाला आचार ,व्यवहार ! सामान्य व्यवहार या बोलचाल में संस्कृति का अर्थ होता है सुन्दर ,रुचिकर और कल्याणकारी परिस्कृत व्यवहार। श्री देव सिंह पोखरिया अपनी प्रसिद्ध पुस्तक लोक संस्कृति के विविध आयाम में संस्कृति की सरल शब्दों में परिभाषा देते हुए लिखते हैं ,” परम्परा से प्राप्त किसी मानव समूह की निरंतर उन्नत मानसिक अवस्था ,उत्कृष्ट वैचारिक प्रक्रिया ,व्याहारिक शिष्टता ,आचरण पवित्रता , सौंदर्याभिरुचि आदि की परिस्कृत , कलात्मक तथा सामुहिक अभिव्यक्ति ही संस्कृति है।

संस्कृति पुरे समाज का प्रतिबिम्ब होती है। कोई जन्मजात सुसंस्कृत नहीं होता है ,समाज ही व्यक्ति को सुसंकृत बनाता है। संस्कृति से ही किसी समाज की नैतिक और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ती होती है।

लोक संस्कृति क्या है –

लोक संस्कृति के अर्थ को जानने के लिए लोक शब्द का अर्थ जानना जरुरी है ,लोक का अर्थ संस्कृत में संसार होता है। सामान्य बोलचाल में कहें तो कोई ऐसा स्थान जिसका आभास या बोध देखने से होता है।

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डॉक्टर कृष्णदेव उपाध्याय ने लोक शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया है , ” आधुनिक सभ्यता से दूर अपने प्राकृतिक परिवेश में निवास करने वाली तथाकथित अशिक्षित और संस्कृत जनता को लोक कहते हैं, जिनका आधार, विचार एवं जीवन परम्परायुक्त नियमों से नियंत्रित होता है। उन्होंने आगे लिखा है कि जो लोग संस्कृति तथा परिष्कृत लोगों के प्रभाव से बाहर रहते हुए अपनी पुरातन स्थिति में वर्तमान हैं, उन्हें लोक की संज्ञा प्राप्त है। इन्हीं लोगों के साहित्य को लोक साहित्य कहा जाता है। ”

और इन्ही के या अपने मूल परिवेश में रहने वाली जनता के सामाजिक जीवन या आचार ,व्यवहार या सामान्य व्यवहार  अथवा यूँ कह सकते कि मूल परिवेश में निवास करने वाली संस्कृति को लोक संस्कृति कहते हैं।

उत्तराखंड लोक संस्कृति दिवस –

उत्तराखंड के गाँधी के रूप में प्रसिद्ध स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी जी का उत्तराखंड की स्थापना,उत्तराखंड राज्य आंदोलन , उत्तराखंड सामाजिक आंदोलन के प्रणेता के रूप में महत्वपूर्ण योगदान है। उन्हें उत्तराखंड की संस्कृति से बहुत लगाव और प्रेम था। इसलिए 2014 में उत्तराखंड की तत्कालीन सरकार ने स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी जी के जन्मदिन 24 दिसम्बर को प्रत्येक वर्ष लोक संस्कृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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लोक संस्कृति दिवस 2024 | निबंध | भाषण

इंद्रमणि बडोनी जी का जीवन परिचय –

इंद्रमणि बडोनी जी का जन्म 24 दिसम्बर 1925 टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोडी गावं में हुवा था। इनके पिता का नाम सुरेशानंद बडोनी था। इंद्रमणि बडोनी जी की माता का नाम श्रीमती कालो देवी था। इनका परिवार एक गरीब ब्राह्मण परिवार था। इनके पिता श्री सुरेशानन्द बडोनी जी बहुत सरल व्यक्ति थे। इन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव से की थी। और आगे की पढाई के लिए वे मसूरी ,टिहरी देहरादून गए। इनके पिता की मृत्यु हो जाने के कारण ,इनके ऊपर जल्दी घर की जिम्मेदारियां आ गई।

प्रारम्भिक जीवन में ही अपने गावं से ही इंद्रमणि बडोनी ने अपने समाजिक जीवन को विस्तार दिया। पर्यावरण व् वातावरण संरक्षण के लिए वे अपने मित्रों के साथ मिलकर कार्य करते थे। उनके द्वारा शुरू किये गए कई स्कूलों का उच्चीकरण और प्रांतीयता भी प्राप्त गई है।

इंद्रमणि बडोनी जी उत्तराखंड राज्य आंदोलन के पुरोधा थे। श्री इंद्रमणि बडोनी जी उत्तराखंड आंदोलन के मुख्य केंद्रबिंदु थे। 1979 से ही वे अलग  पहाड़ी राज्य के लिए सक्रिय हो गए थे। श्री बडोनी जी एक कुशल वक्ता थे। उन्हें उत्तराखंड के लगभग हर क्षेत्र के बारे अच्छा ज्ञान था। उन्होंने उत्तराखंड की जनता को एक अलग पहाड़ी राज्य की संकल्पना का विचार दिया। और अलग राज्य के लिए चले संघर्ष का पहली पंक्ति में खड़े होकर नेतृत्व किया।

बीबीसी ने इंद्रमणि बडोनी जी के लिए कहा था ,” यदि आपको जीवित और चलते -फिरते गाँधी को देखना है तो आप उत्तराखंड की धरती पर चले जाएँ। वहां गाँधी आज भी अपने उसी अहिंसक अंदाज में बड़े जनांदोलनों का नेतृत्व कर रहा है।

अंतिम दिनों में भी श्री इंद्रमणि बडोनी उत्तराखंड के आंदोलन और उत्तराखंड की संस्कृति के लिए सक्रीय थे। बिमारियों से जूझते जूझते श्री इंद्रमणि बडोनी जी 18 अगस्त 1999 को अपने ऋषिकेश स्थित विठ्ठल आश्रम में हमे सदा के लिए छोड़ कर चले गए।

श्री इंद्रमणि बडोनी जी का जीवन परिचय विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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