कर्कोटक नागदेवता मंदिर भीमताल : उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भीमताल कस्बे से 3 किलोमीटर पूर्वोत्तर दिशा में पांडेगांव के ऊपर एक प्राचीन नागदेवता कर्कोटक का पूजन स्थल स्थित है। यहां एक छोटा-सा मंदिर है । नागपंचमी के दिन इस मंदिर में स्थानीय लोग नागदेवता की पूजा करते हुए उन्हें दूध अर्पित करते हैं।
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कर्कोटक नागदेवता मंदिर भीमताल से जुडी बेतिया सांप और साधु की कथा :
इस स्थल से जुड़ी एक रोचक जनश्रुति है। प्राचीनकाल में यह क्षेत्र बेतिया नामक एक विशेष प्रजाति के छोटे और अत्यंत विषैले सांपों का गढ़ था। यह सांप जमीन से उछलकर व्यक्ति के सिर पर डंक मारते थे, जिससे तुरंत मृत्यु हो जाती थी।
एक बार, एक साधु अपने शिष्य के साथ इस स्थान से गुजर रहे थे। अचानक, एक बेतिया सांप ने शिष्य को डंक मार दिया। साधु ने अपनी मंत्र शक्ति और झाड़-फूंक से शिष्य को बचा लिया। इसके बाद, साधु ने इस क्षेत्र को बेतिया सांपों के आतंक से मुक्त करने का संकल्प लिया।
साधु ने एक नक्कारा (बड़ा ढोल) मंगवाया और छकाता की चोटी पर खड़े होकर एक हाथ में घंटा और दूसरे में झंडा थामकर नक्कारे की ध्वनि के साथ बेतिया सांपों को निर्विष करने का मंत्र पढ़ा। साधु ने घोषणा की कि जहां तक नक्कारे की आवाज जाएगी और जितना क्षेत्र यहां से दिखाई देगा, वहां बेतिया सांप का विष निष्क्रिय हो जाएगा।
स्थानीय मान्यताएं और नाग पूजा :
साधु की इस घटना के बाद से, इस स्थान को नागदेवता कर्कोटक का नाम दिया गया। यहां नागपंचमी के दिन लोग दूध चढ़ाकर नागदेवता की पूजा करते हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि कर्कोटक नाग पशुओं का रक्षक है और दही-दूध से इनकी पूजा करने से पशुओं की रक्षा होती है।
बेतिया मंत्र का रहस्य :
कहा जाता है कि साधु ने बेतिया सांप के मंत्र को जनहित के लिए एक पत्थर पर उत्कीर्ण किया था। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडे के अनुसार, यह मंत्र गौला नदी के किनारे डहरा गांव के पास एक विशाल पत्थर पर लिखा गया था। हालांकि, समय के साथ यह उत्कीर्ण लेख अस्पष्ट हो गया।
यहां के निवासियों की आस्था और इस स्थान की पौराणिकता इसे एक अद्वितीय स्थल बनाती है। कर्कोटक नाग के प्रति श्रद्धा और पूजन की यह परंपरा आज भी जारी है, जो इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को दर्शाती है।
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