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कंगनी अनाज जिसे हम उत्तराखंड में कौणी के नाम से जानते हैं | benefits of foxtail millet in Hindi

Foxtail millet in Hindi

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कंगनी अनाज  जिसे हमारे पहाड़ों में कौणी या कौंणी कहा जाता है। यह पहाड़ों की पारंपरिक फसल भी है । वर्तमान में पलायन की मार झेल रहे पहाड़ो में कौंणी लगभग विलुप्त हो गई है। इसका वानस्पतिक नाम Setarika italics है। यह पोएसी कुल का पादप है। यह चीन में मुख्यतः उगाई जाने वाली फसल है। चीन में ई0पु0 600 वर्ष से उत्त्पादन किया जा रहा है। इसलिए “चीनी बाजरा” भी कहा जाता है। यह पूर्वी एशिया में अधिक उगाई जाने वाली फसल है। इसका  उपयोग एक घास के रूप में भी होता है।

कौणी या कंगनी प्रतिवर्ष होने वाली फसल है। इसका पौधा लगभग  7 फ़ीट ऊँचा होता है । इनके छोटे छोटे बीज होते हैं । जिनपर बारीक छिलके होते हैं। झंगोरा अनाज की तरह इनके कई पकवान बनते हैं। इसकी रोटियां, खीर, भात, इडली, दलिया, मिठाई बिस्किट आदि बनाये जाते हैं।

कंगनी के अलग अलग नाम –

  • हिंदी में इसे कंगनी या कफनी , काकुंन, टांगुन कहते हैं।
  • अंग्रेजी में इसे Foxtail Millet , Italian millet कहते हैं।
  • संस्कृत में  कंगनी, प्रियंगु, कंगुक, सुकुमार, अस्थिबन्धन
  • मराठी में  कांग, काऊन, राल
  •  गुजराती में भी कांग कहते हैं।
  • बंगाली में काऊन, काकनी और कानिधान कांगनी दाना
  • तमिलनाडु में इसे तीनि कहा जाता है।
  • उत्तराखंड में इसे कौणी या कौंणी कहते हैं।

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फाक्सटेल मिलेट का कृषि क्षेत्र

कंगनी भारत मे नागालैंड और दक्षिण भारत के छत्तीसगढ़ आदि क्षेत्रों में प्रमुख अनाज के रूप में उगाया जाता है। इसके अलावा देश के अन्य क्षेत्रों में भी यह अनाज के रूप में उगाया जाता है। उत्तराखंड में कौंणी पहले सहायक अनाज के रूप में प्रमुखता से उगाया जाता था। वर्त्तमान में पलायन की मार झेल रहा उत्तराखंड में यह अनाज लगभग विलुप्त हो गया है।

विदेशों में देखा जाय तो यह चीन का मुख्य अनाज है। चीन में इसे छोटा चावल भी कहते हैं। अमेरिका यूरोप में इसे पक्षियों के लिए उगाया जाता है।

फ़ॉक्सटेल मिलेट्स या कंगनी में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व –

कौंणी या कंगनी एक पौष्टिक अनाज है इसमे निम्न पौष्टिक तत्व प्रमुखतया पाए जाते है।

पौष्टिक तत्व मात्रा प्रति 100 gm में
कार्बोहाइड्रेट 67 mg
प्रोटीन 12.30 gm
फैट 4.30 gm
आयरन 2.8 gm
एनर्जी 331 kcl
फाइबर 8 gm
कैल्शियम 3 gm
फास्फोरस 290 mg
ग्लाइसेमिक इंडेक्स 52
ग्लाइसेमिक लोड 32

 

इसके अलावा इसमे बीटा कैरोटीन, एल्कलॉइड, फेनोलिक्स, फलवोनॉइड्स, टॉनिन्स और विटामिन बी1, बी2, बी3, पोटेशियम क्लोरीन और जिंक मौजूद होता है। और साथ में कई प्रकार के एमिनो एसिड भी उपलब्ध होते है।

कंगनी अनाज
कंगनी

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कंगनी अनाज के फायदे –

  • कंगनी में आयरन कैल्शियम अच्छी मात्रा में होने के कारण यह अनाज हड्डियों के लिए बहुत लाभदायक होता है।
  • कौणी या कंगनी के सेवन से शरीर मे नर्वस सिस्टम की समस्या में लाभ मिलता है।
  • कंगनी अनाज में फाइबर अधिक होने के कारण यह मधुमेह रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी अनाज है।
  • कौणी अनाज या कंगनी का एक फायदा यह भी है,कि यह अनाज खून में कोलोस्ट्रोल लेबल कंट्रोल करता है।
  • सुपाच्य अनाज है कौणी या कंगनी । इसे 6 से 8 घंटे भीगा कर बना कर, छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को भोजन में दिया जा सकता है।
  • वजन कम करने में सहायक है , कंगनी अनाज ।
  • कंगनी में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट की वजह से यह कैन्सर से लड़ने में सहायक है।

नुकसान :-

वैसे तो यह एक पौष्टिक भोज्य है । किंतु अत्यधिक प्रयोग करने और सही प्रयोग न करने से कुछ नुकसान हो सकते हैं । जो अमूमन सभी मे होता है।

  • कौणी या कंगनी को पकाने से पहले लगभग 6 घंटे भीगना आवश्यक है। नही तो पाचन की समस्या हो सकती है।
  • इसका अत्यधिक प्रयोग या रोज प्रयोग से थायराइड कि समस्या हो सकती है।
  • इसको पकाने और खाने के बाद पानी का अधिक प्रयोग करना चाहिए । नही तो परेशानी हो सकती है।

नोट :- यह लेख केवल शैक्षणिक माध्यम के लिए है। इस उत्पाद का औषधीय प्रयोग से पहले, डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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