कफल्टा कांड उत्तराखंड के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटनाओं में से एक है। 09 मई 1980 को शांत कही जाने वाली वादियों में कुछ ऐसा घटित हुवा ,जो सदियों के लिए इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज हो गया। यह घटना उत्तराखंड के इतिहास में एक ऐसा घाव है जो आज भी रह -रह कर आज भी दुखता है।
समाज में कार्यों के वर्गीकरण के लिए बनाई गई वर्ण व्यवस्था ,धीरे -धीरे समाज में आपसी वैमनस्य का कारण बन गई। धीरे -धीरे सभी वर्णो के सम्बन्ध आपस में बिगड़ते गए ,और रह रह कर उनके आपसी संघर्ष मानव इतिहास के पन्नो में काले धब्बे छोड़ते गए।
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क्या था कफल्टा कांड (kafalta kand in Uttarakhand ) –
बात कुछ इस प्रकार थी , 09 मई 1980 को अल्मोड़ा के कफल्टा गांव से ,बिरलगावं के लोहार समुदाय से वास्ता रखने वाले युवक श्याम प्रसाद की बारात गुजर रही थी। तब गांव की कुछ महिलाओं ने गांव में स्थित भगवान बद्रीनाथ के मंदिर के सम्मान के लिए डोली ( पालकी ) से उतरने के लिए कहा। मंदिर गांव के दूसरे छोर पर था ,तो दलितों ने कहा मंदिर के सामने दूल्हा डोली से उतर जायेगा।
अपनी बात की अवमानना होते देख गांव की महिलाएं नाराज हो गई और उन्होंने गांव के पुरुषों को आवाज देकर बुला लिया। उन दिनों छुट्टी आये एक फौजी खीमानंद ने गुस्से में आकर पालकी को पलट दिया। खीमानन्द की इस हरकत से नाराज होकर दलितों ने उसकी पिटाई कर दी जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
सवर्ण व्यक्ति की हत्या से बौखलाए ग्रामीण –
सर्वण समाज के व्यक्ति की हत्या दलितों के हाथों होने के कारण सवर्ण समाज के लोगो का खून खौल गया। सारे गावं के ब्राह्मणो और ठाकुरों ने दलितों की बारात पर हमला बोल दिया। जान बचाने के लिए दलित बारातियों ने गांव के एकमात्र दलित नरराम के घर में छुप गए। गांव के सवर्णो ने पुरे घर को घेर लिया और उसकी छत तोड़ कर ,घर के अंदर सूखी चीड़ की पत्तिया और लकड़ी ,मिटटी तेल डाल कर आग लगा दी।
जिन्दा जला दिया लोगो को –
घर के अंदर 06 लोग जिन्दा जलकर ख़त्म हो गए। जो दरवाजा तोड़ कर बाहर निकले उन्हें खेतों में दौड़ा -दौड़ा कर मार डाला। कुल मिलकर 14 बाराती इस नृशंश हत्याकांड में मारे गए थे। दूल्हा और कुछ बाराती भाग कर अपनी जान बचाने में सफल रहे।
पुरे देश में चर्चा में रहा ये कफल्टा कांड –
कफल्टा कांड के नाम से प्रसिद्ध इस नृशंश घटना की खबर पुरे देश में फ़ैल गई। तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को खास इस कांड के लिए कफल्टा आना पड़ा था। कफल्टा गांव की इस घटना ने पुरे देश को झकझोर कर रख दिया। लम्बी मुकदमे बाजी के बाद 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने 16 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इनमे से 3 की मृत्यु पहले हो चुकी थी।
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