Thursday, May 22, 2025
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जिमदार देवता, काली कुमाऊं में ग्राम देवता के रूप में पूजित लोक देवता की लोक कथा

जिमदार देवता : जिमदार फारसी के जमीदार शब्द का अभ्रंश कुमाऊनी शब्द है। इसका अर्थ हिंदी के जमीदार की तरह, भूमिधर, या कृषक के साथ साथ कुमाऊनी में जिमदार शब्द कुमाउनी में वर्ण व्यवस्था को इंगित करता है। कुमाउनी वर्ण व्यवस्था के अर्थ में जिमदार का मतलब क्षत्रिय होता है। चंपावत के चराल पट्टी के लोगो द्वारा जिमदार देवता नामक लोकदेवता की भूमिदेवता या ग्राम देवता के रूप में पूजा की जाती है।

एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार , एक बार एक गीत संगीत गा कर लोगो का मनोरंजन करने वाला व्यक्ति चंपावत के चरालपट्टी के एक गाँव मे ,मांगने गया। गावँ में मांगते -मांगते एक जिमदार के घर जा पहुचा। उस समय जिमदार घर पर नही था। उस समय उसकी बूढ़ी माँ जो ठीक से देख नहीं पाती थी ,वो थी घर पर। बूढ़ी माँ ने गलती से उसे एक सूप कालीमिर्च दे दी। वह व्यक्ति खुश हो गया उसे बहुमूल्य उपहार दान में मिल गया था। यही व्यक्ति मांगते हुए राजदरबार में पहुँच गया।

और उसे लगा जब गांव का एक जिमदार उसे बहुमुल्य दान दे सकता है, तो राजा तो अच्छा ही दान देगा कुछ !  लेकिन राजा के दरबार से उसे अपेक्षाकृत दान न मिला तो उसने क्रुद्ध होकर राजा को ताना मारा, कि एक सामान्य जिमदार ने इतना बहुमुल्य दान दिया और तुम एक राजा होकर सामान्य दान दे रहे हो !! धिक्कार है तुम पर !!!

जिमदार देवता

मांगने वाले के इस ताने से राजा को बहुत बुरा लगा। राजा ने उसे को दुत्कार के भगा दिया और सैनिकों को आदेश दिया कि उस, जिमदार को पकड़ कर मेरे सामने पेश करो !

जैसे ही जिमदार को पता चला कि , राजा के सैनिक उसे पकड़ने आ रहे हैं, वो घबरा गया ।और जल्दीबाजी में उसने अपने साथ अपने कुत्ते बिल्ली सहित, कुनबे के 24 प्राणियों को घर में बंद करके आग लगा कर आत्मदाह कर लिया।

कालांतर में इसी जिमदार ग्राम देवता या भूमिदेवता के रूप में पूजा जाने लगा। कहते हैं, जिमदार देवता  किसी व्यक्ति को ज्यादा परेशान नहीं करता है। केवल पशु – पक्षियों के द्वारा उत्पात मचाकर अपना आक्रोश प्रकट करता है। मान- मनोती करने और साल में एक बार बकरा चढ़ाने पर संतुष्ट हो जाता है। जिमदार देवता के थान में कोई मूर्ति नही होती है। केवल प्राकृतिक पत्थरों के प्रतीकात्मक रूप में पूजा आराधना की जाती है। इस देवता को काली कुमाऊं का भूमिदेवता भी कहा जाता है।

संदर्भ – यह लेख ( लोक कथा ) प्रो DD शर्मा जी की किताब “उत्तराखंड ज्ञानकोष ” पर आधारित है। 

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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