Wednesday, April 24, 2024
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इनर लाइन सिस्टम क्या है ?और यह उत्तराखंड में कहाँ लागू होता है ? | उत्तराखंड में इनर लाइन परमिट

इनर लाइन परमिट क्या है ?

इनर लाइन परमिट राज्य सरकार द्वारा प्रदान किया गया एक आधिकारिक दस्तावेज है जो भारतीय नागरिकों को एक विशिष्ट अवधि के लिए आईपीएल के तहत राज्य में प्रवेश की अनुमति देता है। कुछ राज्यों के बाहर के निवासियों के साथ-साथ विदेशियों के लिए भी राज्य में प्रवेश करने के लिए परमिट का अनुरोध करना अनिवार्य है। हालांकि, केंद्र सरकार के कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मियों को आईएलपी दस्तावेज के बिना राज्य में प्रवेश करने की छूट है।

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इनर लाइन परमिट का अर्थ है, भारत के कुछ राज्यों में घूमने के लिए जाने के लिए भारत के नागरिकों को और विदेशियों को एक अलग दस्तावेज की जरूरत पड़ती है,जिसमे तय किये गए स्थान और समयावधि से ज्यादा उस राज्य में नही रह सकते ।उससे ज्यादा रहने के लिए रिन्यू कराना पड़ता है।

वर्तमान में, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम जैसे राज्यों के लिए इनर लाइन परमिट आवश्यक हैं। इस प्रणाली का उपयोग भारत में पूर्वोत्तर में जनजातीय आबादी की रक्षा और उनकी भाषा संस्कृति की रक्षा के लिए  इस परमिट को दिया जाता है । दिए गए परमिट विभिन्न रूपों में होते हैं और एक विशेष अवधि के लिए आगंतुकों, किरायेदारों और अन्य कारणों से अलग से दिए जाते हैं।

इनर लाइन परमिट सिस्टम के तहत, अन्य राज्यों के बाहरी लोग इन पूर्वोत्तर राज्यों में किसी भी उपयोग के लिए संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं, और राज्य के निवासियों के लिए, संपत्ति खरीदने के लिए कुछ नियम और शर्तें लागू होती हैं।

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ILP नियम बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (BEFR), 1873 के तहत मान्य है। BEFR 1873 की धारा 2 के संबंध में, अन्य राज्यों के निवासियों को अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम में प्रवेश करने के लिए ILP की आवश्यकता होती है। इनर लाइन परमिट (ILP) प्रणाली का प्राथमिक लक्ष्य स्थानीय समुदायों की सुरक्षा तथा उनकी संस्कृति की रक्षा के लिए अन्य भारतीय नागरिकों को इन तीन राज्यों में स्थाई निवास  बनाने की अनुमति नही है।

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इनर लाइन परमिट क्या है ?

कैसे शुरू हुआ इनर लाइन परमिट

इनर लाइन परमिट प्रणाली ब्रिटिश काल के दौरान शुरू की गई थी ,ताकि उनके व्यक्तिगत कार्यो या अन्य कार्यो में स्थानीय पहाड़ी आदिवासी  पहाड़ियों के आदिवासियों से बचाया जा सके, , बदले में, पड़ोसी पहाड़ियों में असुरक्षा पैदा करते थे। इसलिए, दोनों पक्षों के हितों की रक्षा के लिए एक काल्पनिक रेखा बनाई गई जिसे इनर-लाइन कहा गया ताकि कोई भी पक्ष उचित प्राधिकारी की अनुमति के बिना लाइन से आगे न जा सके।

1850 में ब्रिटिश शासकों के लिए बंगाल की पूर्वी सीमाएं पर गंभीर चिंता का विषय थी क्योंकि क्षेत्र की स्थिति दयनीय थी। इन क्षेत्रों की पहाड़ी जनजातियाँ चाय और रबर प्लांटर्स के अंग्रेजों के साथ लगातार संघर्ष चलता रहता था।  इसलिए बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 अधिनियमित किया गया, जिसने इनर लाइन सिस्टम की अवधारणा को जन्म दिया।

आजादी के बाद 1950 में ब्रिटिश इनर लाइन परमिट में कुछ नए बदलाव करके भारत के कुछ राज्यों में इसे लागू कर दिया गया।

और मुक्त आवाजाही पर प्रतिबंध के पहले के शासन को पूर्वोत्तर राज्य की आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए एक प्रणाली के रूप में वर्णित किया गया था।

यह परमिट स्वतंत्र भारत मे क्यों लगाया गया

  • इस दस्तावेज़ सरकार द्वारा भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास स्थित कुछ क्षेत्रों में व्यक्तियों की आवाजाही को नियंत्रित करने का एक प्रयास है।
  • इन राष्ट्रों के स्वदेशी समुदायों की रक्षा करना।
  • किसी भी अप्रिय दुर्घटना की संभावना को कम करना।
  • इन राज्यों को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के आर्थिक रूप से विकसित करने के लिए पर्याप्त समय देना।
  • सुरक्षा का उद्देश्य।

भारत में इस परमिट ( ILP) की आवश्यकता कहां है ?

राष्ट्रीय सुरक्षा की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से सटे संवेदनशील क्षेत्र और

देश के कई ऐसे दूर के हिस्सों में बाहरी लोगों के उत्थान और इन क्षेत्रों में स्थायी रूप से रहने और / या रहने की क्षमता पर अत्यधिक प्रतिबंध लगाकर मूल संस्कृति और स्थानीय लोगों के हितों को सुरक्षित रखने के तरीके के रूप में।

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भारत मे इनर लाइन परमिट द्वारा संरक्षित क्षेत्र –

1- मणिपुर (आंशिक रूप से): प्रसिद्ध लोकतक झील, वेटे झील कोंगजाम युद्ध स्मारक, मोइरंग आईएनए स्मारक, कीबुल हिरण अभयारण्य और इंफाल शामिल हैं।

2- मिजोरम (आंशिक रूप से): वैरांगटे, थिंगडॉल और आइजोल शामिल हैं।

3- अरुणाचल प्रदेश (आंशिक रूप से): ईटानगर, पासीघाट, जीरो, नमदाफा, अलोंग और मियाओ शामिल हैं।

4- नागालैंड (संपूर्ण राज्य): गैर-नागाओं के लिए आवश्यक है जो दीमापुर से आगे यात्रा कर रहे हैं। राज्य का अधिकांश भाग दीमापुर जिला, कोहिमा जिला, मोकोचोंग और वोखा जिलों सहित एक संरक्षित क्षेत्र है।

5- उत्तराखंड (आंशिक रूप से): इसमें मिलम ग्लेशियर, नंदा देवी अभयारण्य, उत्तर काशी जिले और चमोली में कालिंदी खल से सटे क्षेत्र शामिल हैं। संरक्षित क्षेत्र हैं।

लेख का संदर्भ ( Reference) –

https://blog.ipleaders.in/inner-line-permit-citizenship-amendment-act/amp/

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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