Thursday, May 22, 2025
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उत्तराखंड में धारा 371 के अंतर्गत भू कानून, रोजगार तथा संस्कृति संरक्षण

धारा 371 के तहत उत्तराखंड में भू कानून

उत्तराखंड में भू कानून की मांग आजकल जोर पकड़ रही हैं। अब तो उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी ने भी राष्ट्रीय चैनलों पर अपने साक्षात्कार में यह कह दिया है, कि आगामी मंत्रिमंडल की बैठक में उत्तराखंड भू कानून पर चर्चा करेंगे । इससे साफ हो रहा कि सरकार भी कही न कही समझ गई है,कि उत्तराखंड भू कानून आंदोलन को अब अनदेखा नही किया जा सकता है। अब उत्तराखंड मांगे भू कानून के साथ, उत्तराखंड में धारा 371 की मांग भी जोर पकड़ रही है। या ये कहें कि बिना धारा 371 के सख्त भू कानून नही लागू हो सकता। उत्तराखंड में भू कानून और पहाड़ी संस्कृति को संवर्धन करने की ताकत केवल धारा 371 में है। या यूं कह सकते हैं कि उत्तराखंड भू कानून धारा 371 के अंतर्गत बनना चाहिए।

उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल ने, उत्तराखंड में धारा 371 लगाने के लिए ,धरना करना शुरू किया है। ukd का कहना है, कि उत्तराखंड का मूल निवासी ,राज्य से दूर हो रहा है, ऐसी स्थिति में उत्तराखंड में धारा 371 और भू कानून बहुत जरूरी है। सरकार को एक प्रस्ताव पास करके , धारा 371 के अंतर्गत यह व्यवस्था बनाये कि , उत्तराखंड की भूमि, शिक्षा तथा रोजगार पर केवल उत्तराखंड के मूल निवासियों का हक हो। अर्थात उत्तराखंड भू कानून को धारा 371 में शामिल किया जाय। उत्तराखंड को भू माफियाओं से बचाने के लिए भू कानून नितान्त आवश्यक है।

आइये जानते हैं, अनुच्छेद 371 (Article 371) क्या है? और कौन कौन से राज्य इसका लाभ ले रहे हैं?

अनुच्छेद 371 क्या है? या धारा 371 क्या है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 371 , भारत के कुछ राज्यों को विशेष अधिकार या उन राज्यो को विशेष राज्य का दर्जा देता है। यह विशेष राज्य का दर्जा उनकी विशेष संस्कृति संरक्षण और जनजाति संरक्षण तथा भूमि संरक्षण आदि प्रदान करने के लिए है।

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कौन – कौन से राज्य अनुच्छेद 371 का लाभ ले रहे हैं

  1. हिमाचल में अनुच्छेद 371 के तहत, कोई भी बाहरी आदमी हिमाचल की कृषि भूमि नही खरीद सकता है।
  2. अनुच्छेद 371 A के तहत नागालैंड को 1949 और 1963 में 3 विशेष अधिकार दिए हैं-
    केंद्र सरकार का कोई भी कानून , नागालैंड के धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में लागू नहीं होगा।
    नागा लोगो के कानूनों, और परम्पराओं को लेकर संसद का कानून और सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू नही हो सकता।
    देश का किसी और राज्य का नागरिक नागालैंड में जमींन नही ले सकता।
  3. अनुच्छेद 371 b के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति विधानसभा के गठन के लिए , समितियों के लिए, राज्य के जनजातीय
  4. क्षेत्रो से चुने गए प्रतिनिधि को शामिल का कर सकते हैं।
  5. अनुच्छेद 371 C के तहत मणिपुर के राज्यपाल को पहाड़ी जनजातियों का प्रभार दिया जाता है।
  6. अनुच्छेद 371 F के अंतर्गत सिक्किम को अपनी जमीन पर पूरा अधिकार है। सिक्कम की कोई भी जमीन विवाद में , देश के सुप्रीम कोर्ट या संसद को हस्तक्षेप करने का अधिकार नही है। इस धारा 371 के अंतर्गत सिक्किम की विधानसभा कार्यकल 4 साल का है।
  7. अनुच्छेद 371 G  के अंतर्गत मिजोरम में जमीन का हक केवल वहां के आदिवासियों को है। उद्योग खोलने के लिए सरकार ,मिज़ोरम एक्ट 2016 के अंतर्गत भूमि अधिग्रहण कर सकती है।
  8. अनुच्छेद 371 H के तहत अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के पास एक विशेष अधिकार होता है, जिसके आधार पर राज्यपाल मुख्यमंत्री के फैसले को रद्द कर सकता है।
  9. अनुच्छेद 371 D-E,- आंध्र प्रदेश को , अनुच्छेद 371 J -कर्नाटक को और  अनुच्छेद 371 I,  गोवा को विशेष अधिकार देते हैं।

उत्तराखंड भू कानून में धारा 371 का महत्व

उपरोक्त हमने धारा 371 के बारे में जानकारी ली है, तथा यह भी जाना है कि अनुच्छेद 371 का लाभ कोन कौन से राज्य और क्या लाभ ले रहे हैं

अतः इस जानकारी से यह स्पष्ट है कि उत्तराखंड में भू कानून के लिए उत्तराखंड के लिए अनुच्छेद 371 आवश्यक है। अनुच्छेद 371 उत्तराखंड को भूमि संरक्षण , संस्कृति सरंक्षण तथा रोजगार संरक्षण दे सकती है।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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