Thursday, May 15, 2025
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उत्तराखंड मेरी मातृभूमि गीत | Uttarakhand meri matra bhumi lyrics in Hindi

मित्रों आज आपके लिए ,उत्तराखंड के प्रसिद्ध जनकवि  स्व श्री गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की प्रसिद्ध कविता, जनगीत उत्तराखंड मेरी मातृभूमि (Uttarakhand meri matra bhumi lyrics) शब्दों में लाये है। गिरीश तिवारी गिर्दा का यह गीत ( कविता ) उत्तराखंड में बहुत प्रसिद्ध है। आंदोलन में, सामूहिक गीतों में, स्कूलों में इस गीत का विशेष प्रयोग होता है। कई उत्तराखंड के कई लोग गिर्दा की कविता व्हाट्सप और फेसबुक स्टेटस बना कर उत्तराखंड के लिए अपना प्यार दिखाते हैं।

गिरीश तिवारी गिर्दा –

गिरीश तिवारी गिर्दा का जन्म उत्तराखंड, अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक के ज्योली नामक गाँव मे सन 1945 में हुवा था। गिर्दा एक जनकवि थे। उनकी रचनाओं ने समाज मे जनजागृति का काम किया ।उत्तराखंड आंदोलन में गिरीश तिवारी गिर्दा, ने अपने गीतों से, उत्तराखंड समाज मे नया जोश भर दिया।

गिर्दा की प्रमुख गीतों में – 

आदि अनेक और भी गीत भी हैं। 22 अगस्त 2010  को गिर्दा हम सब को छोड़ कर सदा के लिए दुनिया से विदा हो गए।

उत्तराखंड मेरी मातृभूमि

उत्तराखंड मेरी मातृभूमि गीत

उत्तराखंड मेरी मातृभूमि
मातृभूमि, मेरी पितृभूमि,
ओ भूमि तेरी जै- जै कारा म्यार हिमाला।
ख्वार मुकुट तेरी ह्युं झलको
झलकी गाल गंगे की धारा , म्यार हिमाला।
तली तली तराई कुनी
कुनी मली मली भाभरा , म्यार हिमाला ।
बद्री केदारा का द्वार छना,
छना कनखल हरिद्वारा, म्यार हिमाला।
काली धौली का छाना जानी,
जानी नान ठुला कैलाशा, म्यार हिमाला ।
पार्वती को मैत या छो,
या छो शिवजयू को सौरसा , म्यार हिमाला।
धन मयेङी मेरो यो जनमा,
भई तेरी कोखी महाना , म्यार हिमाला।
मरी जूलो , तरी जूलो ,
इजु ऐल त्यारा बाना , म्यार हिमाला।

मित्रों हमने उपरोक्त लेख में , उत्तराखंड मेरी मातृभूमि गीत बोल ,या उत्तराखंड मेरी मातृभूमि प्रार्थना (Uttarakhand meri matra bhumi song) के लिरिक्स लिखे हैं।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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